धरती माता के पति कौन है - dharatee maata ke pati kaun hai

Dharti Laxmi Vishnu Story

- आर. हरिशंकर

धरती देवी के लिए संस्कृत नाम पृथ्‍वी है और उन्हें भूदेवी कहा जाता है। साथ ही साथ हिन्दू धर्म में उन्हें भूमी देवी भी कहा जाता है और वह भगवान विष्णु की पत्नी थीं। उन्हें बौद्ध ग्रंथों में भी वर्णित किया गया है। ऋग्वेद और कई प्राचीन पवित्र ग्रंथों में उनका उल्लेख मिलता है।

वह पृथ्वी देवी है और अपनी सर्वोच्च शक्ति के माध्यम से हमारी रक्षा करती है। एक बार सत्ययुग के दौरान, उन्हें असुर राजा हिरण्याक्ष ने समुद्र में फेंक दिया था, तब भगवान विष्णु ने 'वराह अवतार' लेकिन उन्हें समु्द्र से निकाला था।

पृथ्वी पर अक्सर होने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए धैर्य और क्षमता के लिए उन्हें कई ऋषियों और देवताओं द्वारा सराहना मिली है। उन्होंने त्रेता युग में माता सीता का अवतार लिया और भगवान राम की सेवा की। उन्होंने द्वापर में माता सत्यभामा का अवतार लिया और भगवान कृष्ण की उचित तरीके से सेवा की। इस कलियुग में, उन्होंने अंदल अवतार लिया और भगवान विष्णु की सेवा की और उनमें विलीन हो गईं।

उनकी सौम्यता और दयालुता बरसाने के लिए धरती पर लोग उनकी सराहना करते हैं। उन्हें लक्ष्मी के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है। उसके नाम पर कई मंदिरों का निर्माण किया गया और लोगों द्वारा पूजा की जाती है। उसमें से श्री भूवराहनाथ स्वामी मंदिर कर्नाटक में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है।

ऐसा माना जाता है, कि वर्तमान कलियुग में, धर्म की कमी और लोगों के बुरे कामों के कारण, वह लोगों के बुरे कामों को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। उनकी कृपा है कि वह लोगों की स्थिति के बारे में चिंता करती है और उन्हें ठीक करने की कोशिश करती है।

अधिकांश विष्णु मंदिरों में, भूदेवी भगवान विष्णु और श्रीदेवी के साथ दिखाई देती हैं। उन्हें भगवान विष्णु की दूसरी पत्नी माना जाता है और उनके विभिन्न नामों का जप करके हमेशा उनकी पूजा करते हैं। श्रीविल्लिपुथुर अंदाल मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। बहुत से भक्त इस मंदिर में जाते हैं और विभिन्न पूजा एवं होम करते हैं। वराह मंदिर में, वह वराहस्वामी की गोद में बैठी है। वराह भगवान विष्णु का एक अवतार है। दोनों हमें आशीर्वाद देते हैं।

हमें माता भूदेवी के समान धैर्य बनाए रखना सीखना होगा जो पृथ्वी में लोगों के नकारात्मक कृत्यों को सहन कर रही है और अभी भी हमें आशीर्वाद दे रही है और सभी प्रकार की कठिन परिस्थितियों से हमारी रक्षा और सुरक्षा कर रही है।

अगर हम ईमानदारी से अपने मन में उसकी पूजा करते हैं तो भूदेवी हमें हमारे पापों से छुटकारा दिलाती है। वह ग्रहों के बुरे प्रभावों की दूर करती और लोगों के विभिन्न दोषों को भी दूर करती हैं। वह हमें लंबी बीमारी से भी उबारती और हमारे जीवन में एक अच्छा स्वास्थ्य और शांति देती है।

वह हमारे जीवन में सभी प्रकार का लाभ और बेहतर स्थिति देती है। अगर हम लगातार उसकी पूजा करते हैं, तो वह हमें मोक्ष पाने में भी मदद करती है। वह हमें हमारे जीवन में धैर्य, ज्ञान, बुद्धि, धन, साहस और साहस प्रदान करेगी। आइए हम पवित्र माता की पूजा करें और धन्य हो।

ॐ श्री भूदेवीय नम:।

World Earth Day 2022: जिस तरह शनिदेव को हमने शनि ग्रह से जोड़कर देखा उसी तरह पृथ्‍वीदेवी को हमने पृथ्‍वी से जोड़कर देखा। आओ जानते हैं कि पुराणों के अनुसार कौन हैं धरती माता।


1. दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार धरती को संस्कृत में पृथ्वी कहा गया है। पौराणिक मान्यता में उन्हें भूदेवी कहा गया है। कुछ पुराणों में उन्हें भगवान विष्णु की पत्नि कहा गया है। अधिकांश विष्णु मंदिरों में उन्हें श्रीदेवी और विष्णु के साथ दर्शाया गया है। कई वराह मंदिर में वह वराह भगवान की गोद में बैठी हुई दर्शाई गई है।

दैत्य नरकासुर भगवान वाराह और पृथ्वी का पुत्र है ऐसा श्रीमद भागवत पुराण में कहा गया है। नरकासुर का वध भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने किया था।


2. दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार ही एक बार सतयुग में हिरण्याक्ष ने उन्हें समुद्र में फेंक दिया था तब श्रीहरि विष्णु ने वराह रूप धारण करके उन्हें बचाया था। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्होंने त्रेतायुग में माता सीता का अवतार लिया और श्रीराम की सेवा। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने द्वापर युग में सत्यभामा का अवतार लेकर श्रीकृष्ण की सेवा की थी। इसके अतिरिक्त कुंती को भी पृथ्वी का अवतार माना जाता है।

धरती माता के पति कौन है - dharatee maata ke pati kaun hai

3. उत्तर भारत की मान्यता के अनुसार माता धरती की पुत्री माता सीता है और उनके पुत्र का नाम मंगलदेव है, जो मंगल ग्रह के स्वामी हैं। पृथ्वी के पिता का नाम पृथु बताया जाता है। पृथु भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए थे। पृथु को धरती का पहला राजा माना जाता है। कहते हैं कि पृथु ने सबसे पहले भूमि को समतल करके खेती शुरू की और समाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी। लोगों ने कंदराओं को त्यागकर घर बनाकर रहना शुरू कर दिया। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार किया और इसका नाम पृथ्वी रखा।

4. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद जी को बताया कि यह पृथ्वी मधु और कैटभ के मेद से उत्पन्न हुई हैं। जब मां दुर्गा ने दोनों का संहार किया, तब उनके शरीर से 'मेद' निकला वही सूर्य के तेज से सूख गया। इसके कारण पृथ्वी को उस समय 'मेदिनी' कहा जाने लगा। ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पृथ्वी माता के प्रकट होने से लेकर पुत्र मंगल को उत्पन्न करने तक की पूरी कहानी दी गई है। एक अन्य कथानुसार महाविराट पुरुष अनंतकाल से जल में रहते थे। समय के बदलने के साथ महाविराट पुरुष के सभी रोमकूप उनके आश्रय बन जाते थे। उन्हीं रोमकूपों से पृथ्वी का जन्म हुआ। कुछ कथाओं में पृथ्‍वी माता को महर्षि कश्यप की पुत्री कहा गया है।

5. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया। भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की। पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे। पृथ्वी के मनोहर आकर्षक रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की। इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है। देवी भागवत में भी इसी कथा का वर्णन है।

धरती मां का पति कौन था?

धरती देवी के लिए संस्कृत नाम पृथ्‍वी है और उन्हें भूदेवी कहा जाता है। साथ ही साथ हिन्दू धर्म में उन्हें भूमी देवी भी कहा जाता है और वह भगवान विष्णु की पत्नी थीं।

पृथ्वी का पिता कौन है?

पृथ्वी के पिता का नाम पृथु बताया जाता है। पृथु भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए थे। पृथु को धरती का पहला राजा माना जाता है। कहते हैं कि पृथु ने सबसे पहले भूमि को समतल करके खेती शुरू की और समाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी।

धरती माता की सवारी क्या है?

गुरौ शुक्रे दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता॥ शनिवार और मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मां दुर्गा का वाहन घोड़ा होता है और इसी से धरती पर आती हैं।

धरती माता की पूजा कैसे की जाती है?

जानें कब-कब और क्यों होती है धरती माता की पूजा- किसी भी तरह की पूजा व अनुष्ठान आरम्भ करने से पहले उस जगह को धोकर, जल छिड़क कर, मांडना बनाकर मूर्ति, कलश,दीपक या पूजा की थाली रखी जाती है। मकान-दुकान आदि के निर्माण कार्य में सर्वप्रथम भूमि पूजन ही किया जाता है और खास मंत्रों से मां भूमि की प्रार्थना की जाती है।