प्रसंग – इसमें मीरा की अनन्य भक्ति-भावना प्रकट हुई है। मीरा कृष्ण के प्रति इस तरह समर्पित है कि उसने भक्ति की राह में आने वाले भाई-बंधुओं, पति, सास आदि को भी त्याग दिया है। व्याख्या – मीराबाई कहती हैं – मेरा तो इस संसार में केवल गिरिधारी कृष्ण ही है अन्य कोई मेरा अपना नहीं है। मेरा पति तो केवल वही है जिसने सिप पर मोरमुकुट धारण किया हुआ है। मैंने कुल की प्रतिष्ठा का विचार भी त्याग दिया है। मेरा कोई क्या कर लेगा? मैंने माया से विरक्त संतों के साथ बैठ-बैठ कर रही-सही लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींच कर अपने प्रेम की बेल को बोया है। अब तो यह प्रेम की बेल पूरी तरह फैल गई है और उसमें आनंद रूपी फल भी लगने लगे हैं। मैंने दूध में मथनी डालकर बड़े प्रेम से उसे बिलोया है। उसमें से मैंने मक्खन तो निकाल लिया है। अब छाछ बची है, उसे जो चाहे, पिए। आशय यह है कि मैंने संसार का चिंतन-मंथन करके यह पाया है कि भगवद् भक्ति ही संसार का सार है। उसी को मैंने अपना लिया है। सांसारिकता तो नि:सार छाछ के समान है। उसे जो चाहे अपनाए, मुझे इससे लेना-देना नहीं है। मैं भक्त को देखकर प्रसन्न होती हूँ ओर जगत को सांसारिकता के जाल में फँसा हुआ देखकर रोती हूँ। दासी मीरा अपने प्रभु से प्रार्थना करती है- हे गिरिधारी कृष्ण! मैं आपकी सेविका हूँ, अब मेरा उध्दार करो। काव्य सौन्दर्य – ( 1 ) संसार की निस्सारता प्रकट हुई है। कवियित्री भक्ति को ही सार तत्व मानती है और संसार को असार मानती हैं। ( 2 ) प्रेम-बेल, आनंद-फल में रूपक ‘दूध की मथनियाँ.... छोयी’ में अन्योक्ति, गिरिधर गोपाल, मोर-मुकुट, कुल की कानि में अनुप्रास अलंकार है। ( 3 ) पूरे पद में भक्ति रस और शांत रस की छटा दर्शनीय है।
2 पग घुघरू बांधि मीरां नाची, मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि बावरी न्यात कहै कुल-नासी विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ से लिया गया है। इसकी रचयिता मीराबाई है। प्रसंग – प्रस्तुत पद में मीराबाई की अनन्य भक्ति प्रकट हुई। मीरा ने कृष्ण के प्रेम में लोक-लाज और घर-परिवार की मर्यादाएँ तोड़ दी हैं। वे अपने प्रभु के प्रति प्रेम में इतना डूब चुकी हैं कि उसे सांसारिक बातों का कोई असर नहीं पड़ता है। व्याख्या – मीरा अपने पैरों में घुँघरू बाँधकर श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हुई नृत्य कर रही है, नृत्य करती हुई कह रही है कि मेरे तो श्रीकृष्ण हैं और मैं भी श्रीकृष्ण की हूँ मेरे ऐसा कहने पर लोग मुझे पागल हो गई बताते हैं। मेरे इस खेले कृष्ण-प्रेम पर मेरे कुटुम्ब के लोग मुझे कुलनाशी कहते हैं। मैंने यह कर्म करके अपने कुल की छवि को मिट्टी में मिला दिया है। राणा जी ने मुझे मार डालने के लिए विष का प्याला भरकर भेजा। मैं उस प्याले को प्रभु का प्रसाद समझकर सहर्ष पी गई। ( परन्तु कृष्ण उस विष को अमृत में परिवर्तित कर देते हैं।) मीरा कहती है- मेरे प्रभु तो गिरधर कृष्ण हैं। मुझे अपने उस अविनाशी प्रभु के दर्शन सरलता से प्राप्त हो जाते हैं। काव्य सौन्दर्य – ( 1 ) मीरा की कृष्ण के प्रति अटूट निष्ठा व्यक्त हुई है। ( 2 ) कहै कुल-नासी, प्रभु गिरधर नागर में अनुप्रास अलंकार है। ( 3 ) भक्ति रस में पद की व्यंजना की गई है। पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर पाठ के साथ - प्रश्न 1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं? वह रूप कैसा है? उत्तर - मीरा कृष्ण की उपासना प्रिय ( पति ) के रूप में करती हैं। यह रूप अत्यंत मनोहारी है। मीरा इस रूप पर बलिहारी जाती है। कृष्ण ने इस रूप में सिर पर मोर-मुकुट पहन रखा है। मीरा को कृष्ण का यही रूप प्रिय है। प्रश्न 2. भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए - ( क ) अंसुवन जल सींच-सींच, प्रेम-बेलि बोयी अब तो बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी उत्तर - भाव-सौंदर्य - इसमें भाव-भक्ति अपने चरम पर है। मीरा का प्रेम आंसुओं से सींच-सींच कर पल्लवित हुआ है। अब मीरा को इसमें आनंद रूपी फल प्राप्त होने लगा है। शिल्प-सौंदर्य - ( 1 ) भाषा कोमल, सुमधुर एवं संगीतमयी है। ( 2 ) आंसू रूपी जल। प्रेम रूपी बेल। आनंद रूपी फल में सांगरूपक अलंकार का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है। ( 3 ) 'सींच-सींच' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ( 4 ) बेलि बोयी, बेलि फैलि में अनुप्रास की छटा दर्शनीय है। ( ख ) दूध की मथनिया बड़े प्रेम से विलोयी दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी। उत्तर - भाव-सौंदर्य - इसमें भक्ति को मक्खन के समान महत्वपूर्ण तथा सांसारिक सुख को छाछ के समान माना गया है। कावयित्री ने भक्ति की महिमा का सुंदर गान किया है शिल्प-सौंदर्य - ( 1 ) ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है। ( 2 ) इसमें अन्योक्ति अलंकार का कुशलतापूर्वक निर्वाह हुआ है। ( 3 ) यहां दही जीवन का प्रतीक है, 'घृत' भक्ति का प्रतीक हैतथा 'छोयी' असार संसार की प्रतीक है। प्रश्न 3. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं? उत्तर - मीरा ने भक्ति प्रकट करने के लिए अपना राज-परिवार छोड़ा, जग की निंदा सही और मंदिरों में प्रभु के भजन गाती फिरी। इस कारण लोग मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति भाव देखकर उसे बावरी कहते हैं। प्रश्न 4. 'विष का प्याला राणा भेज्या, पीवति मीरा हॉंसी' इसमें क्या व्यंग्य छिपा है? उत्तर - इस पंक्ति में मीरा के कुटुंबी जनों पर व्यंग है कि वे उस की भक्ति को पाप मानते हैं। उन्हें कृष्ण के प्रति प्रेम में लज्जा आती है। इसलिए राणा ने उन्हें जान से मारने के लिए विष का प्याला भेजा। परंतु मीरा ने उसे भी स्वीकार कर लिया। बेहोश प्याले को हंसते-हंसते पी गई, अर्थात उन्होंने अपने कुटुंब जनों द्वारा किए गए अपमान को पी लिया, परंतु भक्ति पथ से नहीं डिगी। प्रश्न 5. मीरा जगत को देख कर रोती क्यों है? उत्तर - मीरा सांसारिक सुख दुख को असार मानती हैं जगत की लीला को व्यर्थ मानती हैं। फिर भी लोग उस में लिप्त रहते हैं। यह देखकर मीरा रोती है। पद के आस-पास -
प्रश्न 1. कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा। उत्तर - कृष्ण का प्रेम पानी के लिए मीरा को अनेक कष्ट सहने पड़े होंगे। उन दिनों नारी को बहुत परदों में और मर्यादाओं में रहना पड़ता था। राजकुल की महिलाओं पर और भी अधिक बंधन थे। इसलिए मीरा का घर से बाहर निकलना साहसिक कदम था। फिर खुले समाज में मंदिर में नाचना-गाना तो और भी कठिन कार्य था। इसके लिए उन्हें अपने परिवार-जनों की यातनाएं सहनी पड़ी होगी। समाज के लोगों ने भी अवश्य उन पर व्यंग्य कसे होंगे प्रेम पाने के लिए उन्हें उन्हें जहर का प्याला भी पी लिया। प्रश्न 2. लोक लाज खोने का अभिप्राय क्या है? उत्तर - 'लोक लाज खोने' का अभिप्राय है- लोगों के सामने खुलकर आना। समाज की टीका-टिप्पणी से ना घबराना। समाज ने सदव्यवहार के नाम पर जो बंधन लागू किए हुए हैं, उन्हें तोड़ देना। प्रश्न 3. मीरा ने 'सहज मिले अविनासी' क्यों कहा है? उत्तर - मीरा के अनुसार, प्रभु अविनासी हैं, अर्थात अनश्वर हैं। उन्हें जो भी सच्चे मन से प्रेम करता है इसे प्राप्त हो जाते हैं। प्रश्न 4. लोग कहै, मीरा भइ बावरी, न्यात कहै कुल-नासी मीरा के बारे बारे में लोग ( समाज ) और न्यात ( कुटुंब ) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं? उत्तर - मीरा कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो चुकी है, उसे लोक लज्जा का भय नहीं है। समाज के लोग उसे पागल कहने लगे हैं क्योंकि वह पागलों की भांति नाच-नाच कर श्री कृष्ण के गीत गा रही है। न्यात ( कुटुंब )अर्थात बिरादरी के लोग उसे कुल का नाश करने वाली कहते हैं। क्योंकि मेरा विवाहित होते हुए भी श्रीकृष्ण को अपना पति स्वीकार करती हैं जोकि राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध है, इसीलिए बिरादरी के लोग मीरा कुलनासी कहते हैं। इसी कारण समाज और कुटुंब की मीरा के विषय में ऐसी धारणाएँ हैं। मीरा को न्यात के लोग क्यों कहते थे?न्यात अर्थात् परिवार जन (कुटुंब) उन्हें कुल का नाश करने वाली मानते हैं। उनके विचार में मीरा ने कुल की मर्यादा को नष्ट कर दिया है। मीरा की वजह से कुल (खानदान) को नीचा देखना पड़ता है।
मीरा की प्रेम रूपी वाले में कौन सा फल आया है?अब यह बेल चारों ओर फैल गई है। इसमें आनंद रूपी फल लग रहे हैं। भाव यह है कि अब कृष्ण की प्रेम रूपी बेल फल-फूल रही है। अब इससे उन्हें आनंद रूपी फल की प्राप्ति हो रही है।
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