देवघर झारखंड राज्य के संथाल परगना विभाजन में देवघर जिले का मुख्य शहर है। यह भारत का बारह शिव ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भारत में 51 शक्ति पीठों में से एक है। बैद्यनाथ मंदिर के साथ यह एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल केंद्र है। यह क्षेत्र के सबसे बड़े शहर भागलपुर से 150 किमी दूर स्थित है। देवघर पहले दुमका जिला का हिस्सा था। यह झारखंड का 5 सबसे बड़ा शहर है। Show
देवघर कैसे नाम दिया गयादेवघर एक हिंदी शब्द है और ‘देवघर’ का शाब्दिक अर्थ भगवानों और देवी (‘देव’) का निवास है। देवघर को “बैद्यनाथ धाम”, “बाबा धाम”, “बी” के नाम से भी जाना जाता है। देवघर”। बैद्यनाथधम की उत्पत्ति पुरातनता में खो जाती है। इसे संस्कृत ग्रंथों में हरितकिवन या केतकीवन के रूप में जाना जाता है। नाम देवघर हाल ही में प्रतीत हो रहा है और शायद भगवान बैद्यनाथ के महान मंदिर के निर्माण से तारीखें हैं। हालांकि मंदिर के निर्माता के नाम का पता लगाने योग्य नहीं है, लेकिन मंदिर के सामने वाले हिस्से के कुछ भागों को 15 9 6 में गिद्धौर के महाराजा के पुण्य पुर मल द्वारा बनाया गया था। यहाँ श्रावण के महीने में कई भक्त पूजा के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक गंगा जल ले कर भगवान शिव पर जल चढाते है और वे अपने जीवन की इच्छा की इच्छा प्राप्त करते हैं। धार्मिक महत्वदेवघर , जिसे बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है। यह बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है और 51 शक्ति पीठों में से एक है, और हिंदू कैलेंडर प्रणाली के मुताबिक श्रावण की मीला के लिए प्रसिद्ध है। यह भारत में कुछ जगहों में से एक, श्रीशैलम के साथ है, जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ हैं, देवघर यात्रा में जुलाई और अगस्त (श्रावण के पूर्व की पूर्व संध्या पर) के बीच प्रत्येक वर्ष 7 से 8 लाख श्रद्धालु भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं जो सुल्तानगंज में गंगा के विभिन्न क्षेत्रों से पवित्र जल लाते हैं, जो देवघर से लगभग 108 किमी दूर है। , यह भगवान शिव को पेश करने के क्रम में उस महीने के दौरान, भगवा-रंगे कपड़ों में लोगों की एक लाइन 108 किमी तक फैली हुई रहती है। यह एशिया का सबसे लंबा मेला है।
देवघर, (संथाली: ᱫᱮᱣᱜᱷᱚᱨ) भारत के झारखण्ड राज्य का एक शहर है। यह देवघर जिले का मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। इसे 'बाबाधाम' नाम से भी जाना जाता है| यहाँ भगवान शिव का एक अत्यन्त प्राचीन मन्दिर स्थित है। हर सावन में यहाँ लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहाँ भारत के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री और पर्यटक आते ही हैं, विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। इन भक्तों को 'काँवरिया' कहा जाता है। ये शिव भक्त बिहार में सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। शिव पुराण मे लिखा है ये मंदिर श्मशान मे है। परन्तु श्मशान नदी के तट पर होती है । श्मशान मे कोई कुआ नही होती जबकि देवघर के प्रांगण मे कुआ है । देवघर, उत्तरी अक्षांश 24.48 डिग्री और पूर्वी देशान्तर 86.7 पर स्थित है।[1] इसकी मानक समुद्र तल से ऊँचाई 254 मीटर (833 फीट) है। नाम का उद्गम[संपादित करें]देवघर शब्द का निर्माण देव + घर हुआ है। यहाँ देव का अर्थ देवी-देवताओं से है और घर का अर्थ निवास स्थान से है। देवघर "बैद्यनाथ धाम", "बाबा धाम" आदि नामों से भी जाना जाता है।[2] जनसांख्यिकी[संपादित करें]2011 की भारत जनगणना के अनुसार देवघर की जनसंख्या 203,116 है जिसमें से 17.62% बच्चे 6 वर्ष से कम आयु के हैं। कुल जनसंख्या का 52% भाग पुरूष हैं एवं 48% महिलाएँ हैं।2011 के अनुसार देवघर की औसत साक्षरता दर 66.34% है जो राष्ट्रीय औसत दर 74.4% से कम है। पुरूष साक्षरता 79.13% और महिला साक्षरता 52.39% है। मुख्य आकर्षण[संपादित करें]झारखंड कुछ प्रमुख तीर्थस्थानों का केंद्र है जिनका ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इन्हीं में से एक स्थान है देवघर। यह स्थान संथाल परगना के अंतर्गत आता है। देवघर शांति और भाईचारे का प्रतीक है। यह एक प्रसिद्ध हेल्थ रिजॉर्ट है। लेकिन इसकी पहचान हिंदु तीर्थस्थान के रूप में की जाती है। श्रावण मास में श्रद्धालु 100 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा करके सुल्तानगंज से पवित्र जल लाते हैं जिससे बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक किया जाता है। देवघर की यह यात्रा बासुकीनाथ के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है। बैद्यनाथ धाम के अलावा भी यहां कई मंदिर और पर्वत हैं। बैद्यनाथ मंदिर[संपादित करें]इस मंदिर की स्थापना १५९६ की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं। दर्शन का समय: सुबह ४ बजे-दोपहर ३.३० बजे, शाम ६ बजे-रात ९ बजे तक। लेकिन विशेष धार्मिक अवसरों पर समय को बढ़ाया जा सकता है। यहाँ पर सावन के महीने में बड़ा मेला लगता है। मान्यता है कि भगवान शिवजी सावन में यहाँ बिराजते हैंं, इसलिये सुल्तानगंज से गंगा जल भर कर कांवरिया पैदल करीब 105 किलोमीटर की यात्रा करके यहाँ पहुंचते हैं और भगवान शिव को गंगा जल अर्पित करते हैं। मंदिर के मुख्य आकर्षण[संपादित करें]बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मंदिर भी हैं। शिवजी का मंदिर पार्वती जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है। पवित्र यात्रा[संपादित करें]बैद्यनाथधाम के यात्रा की शुरुआत श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)से होती है जो महीने भर और भाद्र मास तक अनवरत चलता रहता है । उत्तरी भारत के कई राज्यों से श्रद्धालु भक्त _ तीर्थयात्री सर्वप्रथम उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर सुल्तानगंज से ही यात्रा प्रारंभ करते हैं । जहां वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र जल और बोल बम के उद्घोष करते हुए बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है उसकी पवित्रता भंग नहीं हो इसलिए उसे कभी कहीं भी भूमि पर नहीं रखा जाता है । बासुकीनाथ मंदिर[संपादित करें]बासुकीनाथ अपने शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकीनाथ में दर्शन नहीं किए जाते। यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुंडी गांव के पास स्थित है। यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का संबंध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। बासुकीनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। बैजू मंदिर[संपादित करें]बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मंदिर भी हैं। इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है। आसपास दर्शनीय स्थल[संपादित करें]त्रिकुट[संपादित करें]देवघर से 16 किलोमीटर दूर दुमका रोड पर एक खूबसूरत पर्वत त्रिकूट स्थित है। इस पहाड़ पर बहुत सारी गुफाएं और झरनें हैं। बैद्यनाथ से बासुकीनाथ मंदिर की ओर जाने वाले श्रद्धालु मंदिरों से सजे इस पर्वत पर रुकना पसंद करते हैं। नौलखा मंदिर[संपादित करें]देवघर के बाहरी हिस्से में स्थित यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प की खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बालानन्द ब्रह्मचारी के एक अनुयायी ने किया था जो शहर से 8 किलोमीटर दूर तपोवन में तपस्या करते थे। तपोवन भी मंदिरों और गुफाओं से सजा एक आकर्षक स्थल है। नंदन पर्वत[संपादित करें]नन्दन पर्वत की महत्ता यहां बने मंदिरों के झुंड के कारण है जो विभिन्न देवों को समर्पित हैं। पहाड़ की चोटी पर कुंड भी है जहां लोग पिकनिक मनाने आते हैं। सत्संग आश्रम[संपादित करें]ठाकुर अनुकूलचंद्र के अनुयायियों के लिए यह स्थान धार्मिक आस्था का प्रतीक है। सर्व धर्म मंदिर के अलावा यहां पर एक संग्रहालय और चिड़ियाघर भी है। पाथरोल काली माता का मंदिर[संपादित करें]मधुपुर में एक प्राचीन सुंदर काली मंदिर है, जिसे "पथरोल काली माता मंदिर" के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण राजा दिग्विजय सिंह ने लगभग 6 से 7 शताब्दी पहले करवाया था। मुख्य मंदिर के करीब नौ और मंदिर हैं, जहां भक्त दर्शन कर सकते हैं। यहाँ की मान्यता है कि जो मांगो मनोकामना पूर्ण होती है। आवागमन[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]देवघर का मतलब क्या होता है?देवघर एक हिंदी शब्द है और 'देवघर' का शाब्दिक अर्थ भगवानों और देवी ('देव') का निवास है। देवघर को “बैद्यनाथ धाम”, “बाबा धाम”, “बी” के नाम से भी जाना जाता है।
देवघर का इतिहास क्या है?देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर साल सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु "बोल-बम!" "बोल-बम!" का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है।
झारखंड में देवघर जिला कब बना?1 जून 1983 को तत्कालीन दुमका जिले के देवघर उप-मंडल को अलग करके जिले का गठन किया गया। 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य को बिहार से अलग करने के बाद, देवघर झारखंड राज्य के चौबीस जिलों में से एक बन गया।
बैजनाथ धाम का पुराना नाम क्या है?काफी कम लोग जानते हैं कि बैजनाथ का पहले नाम कीरग्राम था। यहां प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है।
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