Show इस लेख में आमाशय के कार्य ( functions of stomach ) से सम्बन्धित सभी जानकारी मिलेगी, तो चलिए आगे जानते है इन सभी प्रश्नों के बारे में ” उत्तर “।
आमाशय के कार्य ( functions of stomach )यान्त्रिक कार्य ( Mechanical Functions )अपनी दीवार के भीतरी भंजों ( rugae ) के कारण आमाशय ( stomach ) काफी लचीला ( elastic ) और प्रसार्य यानी फैलने वाला ( distensible ) होता है । भोजन के इसमें पहुँचते ही दीवार की पेशियों के शिथिलन से यह फैलने लगता है और भंज समाप्त होने लगते हैं । इसे आमाशय का ग्राही शिथिलन ( receptive relaxation ) कहते हैं , क्योंकि इसके कारण आमाशय में दो से चार लीटर तक भोजन एकत्रित हो जाता है । इस प्रकार , यह भोजन – पात्र ( food reservoir ) का काम करता है । इसीलिए , भोजन – ग्रहण की आवश्यकता लगातार नहीं , बल्कि कई – कई घण्टों बाद होती है । यदि यह पात्र न हो तो हमें हर 20 मिनट बाद भोजन ग्रहण करना पड़े । स्पष्ट है कि आमाशय में भोजन काफी समय तक रुकता है । यहाँ जठर रस में इसका मिश्रण , मन्थन तथा आंशिक पाचन होता है फिर धीरे – धीरे इसे छोटी आँत में धकेलने की प्रक्रिया शुरू होती है । आमाशय की गतियाँ ( Motility of Stomach )जैसे ही भोजन आमाशय में पहुँचता है , आमाशयकाय ( body of stomach ) से पाइलोरिक भाग की ओर क्रमाकुंचन यानी तरंगगतियाँ ( peristalsis ) प्रारम्भ हो जाती हैं । ये गतियाँ धीमी ( 3 से 4 बार प्रति मिनट ) , परन्तु बलवती होती हैं । बन्द पाइलोरिक छिद्र के निकट पहुँचकर प्रत्येक तरंगगति उल्टी दिशा में वापस आमाशयकाय की ओर होने लगती है । इन गतियों के कारण जठरीय रस भोजन में भली – भाँति मिश्रित होकर इसकी एक पतली , लेई – जैसी , सफेद – सी लुगदी बना देता है जिसे काइम ( chyme ) कहते हैं । आमाशय का क्रमाकुंचन यानी तरंगगति एवं मन्थन गतियाँआमाशय की इन गतियों को इसीलिए मिश्रण या मन्थन गतियाँ ( churning or trituration movements ) कहते हैं । भोजन की लुगदी बन जाने के बाद , मन्थन गतियों के अतिरिक्त , थोड़ी – थोड़ी देर में तीव्र तरंगगतियाँ होने लगती है और ऐसी प्रत्येक तरंग काइम की थोड़ी – सी मात्रा को बलपूर्वक पाइलोरिक छिद्र में से ग्रहणी ( duodenum ) में धकेल देती है । आमाशय की गतियों में लगभग 80 % धीमी मन्थन गतियाँ तथा 20 % तीव्र तरंगगतियाँ होती हैं । जैव-रासायनिक कार्य ( Biochemical Functions )जठर रस ( Gastric Juice ) हमारे आमाशय की दीवार में उपस्थित लगभग 3.5 करोड़ जठर ग्रन्थियाँ दिनभर में लगभग एक से तीन लीटर तक , एक पीले से , उच्च अम्लीय ( pH – 1.0 से 3.0 ) जठर रस का स्रावण करती हैं । इस रस में 97 से 99 % तक जल , 0.2 से 0.5 % तक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) तथा सूक्ष्म मात्रा में पैराएटल कोशिकाओं द्वारा स्रावित एक तात्विक अभिकर्ता ( intrinsic factor ) और जाइमोजीनिक कोशिकाओं द्वारा स्रावित पेप्सिनोजन ( pepsinogen ) एवं जठर लाइपेज ( gastric lipase ) नामक एन्जाइम होते हैं । जठर रस की उच्च अम्लीयता इसके हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) के कारण ही होती है । हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) की निम्नलिखित उपयोगिता हैं ; ( 1 ). यह भोजन के साथ आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है । जठर रस के तात्विक अभिकर्ता ( intrinsic factor ) के अणु भोजन में उपस्थित विटामिन B12 के अणुओं से जुड़ जाते हैं । इसके फलस्वरूप आँत में पहुँचने पर B12 का अवशोषण ( absorption ) सुगम हो जाता है । जठर-रस का पेप्सिनोजन ( pepsinogen ) एक निष्क्रिय एन्जाइम यानी प्रोएन्जाइम ( proenzyme ) होता है । HCI के कारण बने उच्च अम्लीय माध्यम में यह सक्रिय पेप्सिन ( pepsin ) एन्जाइम में बदलकर भोजन पर प्रतिक्रिया करता है । पेप्सिन एक प्रोटीन – पाचक यानी प्रोटिओलाइटिक ( proteolytic ) एन्जाइम और एण्डोपेप्टिडेज ( endopeptidase ) होता है । यह जटिल प्रोटीन अणुओं के भीतरी पेप्टाइड बन्धों को तोड़कर इन्हें बड़े – बड़े टुकड़ों अर्थात् व्युत्पन्न प्रोटीन्स ( derived proteins ) — प्रोटिओज़ेज , पेप्टोन्स एवं पॉलिपेप्टाइड्स ( proteoses , peptones and polypeptides ) में तोड़ता है । जठर रस में जठर लाइपेज ( gastric lipase ) नामक वसा – पाचक एन्जाइम भी होता है । यह भोजन के कुछ छोटे वसा अणुओं , यानी ट्राइग्लिसराइड ( riglyceride ) अणुओं को इनके घटक वसीय अम्लों ( fatty acids ) एवं मोनोग्लिसराइड्स ( monoglycerides ) में विखण्डित कर देता है । बहुत से स्तनियों के जठर रस में दुग्ध – प्रोटीन्स ( milk proteins ) के पाचन हेतु रेनिन ( remmin ) नामक प्रोटीन – पाचक एन्जाइम होता है । मानव के जठर रस में इसकी उपस्थिति संदिग्ध है । सम्भवतः शिशुओं के जठर रस में यह होता है , लेकिन वयस्कों के जठर रस में नहीं होता । वयस्कों में दुग्ध – प्रोटीन्स के पाचन का श्रेय पेप्सिन को ही दिया जाता है । जठरीय श्लेमिका की सुरक्षा ( Protection of Gastric Mucosa )आमाशय की श्लेष्मिक कला की कोशिकाएँ तथा जठर ग्रन्थियों की ग्रीवा कोशिकाएँ प्रचुर मात्रा में गाढ़े , क्षारीय ( alkaline ) श्लेष्म ( mucus ) का स्रावण करती रहती हैं । यह श्लेष्म श्लेष्मिक कला पर फैलकर 1 से 3 मिमी मोटा जैली – सदृश रक्षात्मक आवरण बनाए रहता है जो पेप्सिन की पाचन क्रिया को तथा HCI के प्रभाव को स्वयं ( आमाशय ) की दीवार पर होने से रोकता है । आमाशय में यदि लगातार अधिक अम्लीयता बनी रहे तो अम्लीय पेप्सिन के प्रभाव से कामाशयी दीवार का आंशिक पाचन होने लगता है और दीवार में जगह – जगह घाब या नासूर ( peptic ulcers ) बन जाते हैं । तो दोस्तों , आशा करता हूँ की इस लेख में दी गयी सभी जानकारी जैसे की — आमाशय के कार्य?आदि प्रश्नों का उत्तर आपको अच्छे से समझ आ गया होगा । और यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है । तो हमें कमेंट्स करके जरुर बतायें हमें आपकी मदद करने में बहुत ख़ुशी होगी । [ धन्यवाद्…] Read More—
Read more articlesआमाशय क्या कार्य है?आमाशय का मुख्य कार्य भोजन के पाचन का है। आमाशय भोजन के साथ आने वाले हानिकारण जीवाणुों का सफाया करता है। आमाशय के पाचक रस में स्थित एंजाइम भोजन में स्थित प्रोटीन को छोटे-छोटे कणों मे तोड़ देते हैं, जिससे प्रोटीन का पाचन आसान हो जाता है। आमाशय का पाचक रस भोजन के कणों को अम्लीय बनाकर सड़ने से रोकता है।
आमाशय के कितने पार्ट होते हैं?Solution : आमाशय के तीन भाग हैं - (i) कार्डियक भाग (Cardiac part ), <br> (ii) पाइलेरिक भाग (pyloric part ) तथा <br> (iii) भाग (Fundic part )।
आमाशय में कौन सा एंजाइम पाया जाता है?सही उत्तर विकल्प 1 है अर्थात् पेप्सिन। पेप्सिन: पेप्सिन पाचक एंजाइम है जो प्रोटीन को तोड़ता है।
आमाशय में भोजन को क्या कहा जाता है?काइल,काइमबोलस,ये सभी।
|