In this article, we will share MP Board Class 8th Hindi Solutions Chapter 12 याचक और दाता Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. Show याचक और दाता पाठ का अभ्यासयाचक और दाता बोध प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. (क) वृद्धा मन्दिर के पास क्या काम करती थी? (ख) सेठ
बनारसीदास के यहाँ किन लोगों की भीड़ लगी रहती थी? (ग) वृद्धा सेठजी से क्या माँगने गई थी? (घ) सेठजी ने अपने बच्चे की पहचान कैसे की? (ङ) बच्चा फिर से
बीमार क्यों पड़ गया ? प्रश्न 3. प्रश्न 4. उत्तर (क) + (3), (ख) → (1), (ग) + (2), (घ) → (5), (छ)→ (4). प्रश्न 5. (ख) मोहन कौन था ? वह वृद्धा के पास कैसे आया? (ग) मोहन ज्वर से कैसे मुक्त हुआ? (घ) ‘सेठ याचक था और वह दाता’, इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए। वृद्धा ने सेठजी की धरोहर (मोहन) ईमानदारी से लौटा दो। अब वह उसे यहाँ छोड़कर अपनी लाठी का सहारा लेकर चलती हुई अपनी झोपड़ी में लौट गई। उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे, परन्तु यह आँसू फूलों के पराग से, ममता की महक से महक रहे थे। वृद्धा माँ का ममत्व सेठ बनारसीदास के धन से अधिक गरिमावान सिद्ध हुआ। इस तरह सेठजी याचक थे और वृद्धा माँ दाता के रूप में महान और उदारता की साक्षात् मूर्ति सिद्ध हुई। (छ) सेठजी और वृद्धा के चरित्र में से
किसका चरित्र आपको अच्छा लगा ? उसकी कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
याचक और दाता भाषा-अध्ययन प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
याचक और दाता परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या (1) सुबह से शाम तक
वह उसी तरह सबका जीवन महकाती शब्दार्थ-महकाती = सुगन्ध से भर देती; राह = मार्ग, रास्ता; पकड़ती = चली जाती; समीप = पास; वर्षीय = वर्ष का; वृद्धा – बूढ़ी औरत; दुलारती = प्रेम करती; चूमकर = पुचकारते हुए। सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती” के पाठ ‘याचक और दाता से अवतरित है। इसके लेखक रवीन्द्रनाथ ठकुर है। प्रसंग-एक बूढ़ी औरत की ममता और उसके प्रतिदिन के कार्य का वर्णन किया गया है। व्याख्या-वह बूढ़ी औरत रोजाना सन्दिर के दरवाजे पर प्रात:काल से लेकर सायंकाल तक आने वाले दर्शनार्थी लोगों के जीवन को खुशबू से भर देती थी। रात्रि होने पर मन ही मन भगवान को नमस्कार करके मन्दिर के दरवाजे से लौट पड़ती। उसके हाथ में लाठी होती थी। उसका सहारा लिए हुए, अपने निवास, उस झोंपड़ी की ओर जाने वाले मार्ग पर लौट पड़ती। जैसे ही वह अपनी झोपड़ी के पास आती, तो एक दस वर्ष का बालक उछल-कूद करता हुआ उसके पास आता और प्रेमपूर्वक उससे लिपट पड़ता था। उस समय वह बूढ़ी औरत उस बालक के शरीर पर हाथ फेरती हुई उसके पूरे अंगों को टटोलती, देखती कि कहीं कुछ कमजोरी तो नहीं आ गई है। इस प्रकार, वह उससे बहुत-सा प्यार करती। उसके मस्तक पर बार-बार चुम्बन लेती। इस तरह वह उसके ऊपर अपने अन्दर के असीम अतौल प्यार को उड़ेल देती थी। (2) असहाय और रोते बच्चे को वृद्धा ने अपनी गोद में बिठाया और उसे चुप कराने का प्रयास करने लगी। ममता का आँचल पाकर बच्चा सब कुछ भूल गया था। इस तरह वह वृद्धा के पास रहने लगा। वात्सल्य की तड़प ने वृद्धा की जिजीविषा बढ़ा दी। अब वह पहले से ज्यादा श्रम करती और शीघ्र लौटने की कोशिश करती। बच्चा माँ के स्नेह को पाकर प्रसन्न था। शब्दार्थ-असहाय =बिना सहारे वाला; वृद्धा = बढ़ी औरत ने; चुप कराने का शान्त कराने का प्रयास = कोशिश; ममता का आँचल = प्यार और लगाव की शरण या आश्रय; वात्सल्य = सन्तान के प्रति प्रेम तड़प = खिंचाव, आकर्षण; जिजीविषा = जीवित रहने की इच्छा; श्रम = मेहनत; स्नेहप्रेम प्रसन्न = खुश। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-बालक उस बूढ़ी औरत के प्रेम को प्राप्त करके बहुत खुश था। व्याख्या-यह बालक अपने माता-पिता से बिछुड़ा हुआ बालक था। उस बालक से सभी अपरिचित थे। सन्ध्या का समय था। उस बूढी औरत ने उस बिछुड़े बालक को अपनी गोद में बिछाया। उस रोते बालक को शान्त कराने की, उस बूढ़ी औरत ने बड़ी कोशिश की। बच्चा रोने से शान्त हुआ। उसे प्यार और माँ के प्रेम का आँचल (छाया, शरण) मिल चुकी थी। वह, अब, अपने वास्तविक माता-पिता को भूल गया था। यह सब उस बूढ़ी औरत के प्यार और आकर्षण के कारण ही सम्भव हो सका। वह बूढ़ी औरत ही उसके लिए सब कुछ थी। उसके पास रहकर सब कुछ भूल गया। इधर, उस बूढ़ी औरत के अन्दर सन्तान के प्रति प्रेम के खिचाव ने जीवित रहने की इच्छा प्रबल कर दी। वह यह समय था जब उसे पहले से भी अधिक मेहनत करनी पड़ रही थी क्योंकि उसे पाये हुए उस बालक के पालन का उत्तरदायित्व निभाना था। अब वह मन्दिर के दरवाजे से पहले की अपेक्षा जल्दी लौटकर आने की कोशिश करती थी। माँ का प्यार इस बच्चे को मिला, इस कारण वह बहुत ही खुश था। (3) सेठजी वृद्धा के पाँवों में गिरकर बच्चे की जान बचाने वी याचना करने लगे। वे बोले-“ममता की लाज रख लो।” माँ का ममाव जाग उठा। वह बीता हुआ सब कुछ भूल गई और सेठजी के साथ चल पड़ी। घर पहुँचते ही वृद्धा ने मोहन के माथे पर हाथ फेरा । हाश्व पहचानते ही मोहन ने तुरन्स आँखें खोल दीं। माँ, तुम आ गई। वृद्धा ने कहा, “हाँ बेटा, तुम्हें छोड़कर कहाँ जा सकती हूँ।” उसने मोहन का सिर अपनी गोद में रखकर थपथपाया और मोहन को नींद आ गई। कुछ दिन बाद मोहन बिल्कुल स्वस्थ हो गया। जो बाम दवाइयों, डॉक्टरों और हकीमों से न हो पाया वह वृद्धा माँ की ममता ने ममता- माँ के प्यार की; ममत्व-माँ के प्यार की भावना; बीता हुआ-जो घटना घटी उस सबको; बिल्कुल- पूर्ण रूप सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-माँ की ममता के महत्त्व को बताया गया है। व्याख्या-सेठजी वृद्धा की झोंपड़ी पर आये। उसके पैरों पर गिर गये, वे प्रार्थना करने लगे कि उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा तुम ही कर सकती हो। सेठ ने आगे कहा कि तुम्हें एक माँ के प्यार की, ममता की लाज रखनी है। माँ की ममता जागृत हो उठी। वह यूढ़ी औरत अब वह सब कुछ भूल गई,जो भी कुछ अभी तक घटित हुआ। वह तुरन्त ही सेठजी के साथ चल पड़ी। वह बूढ़ी औरत सेठजी के घर पहुँच गई। वहाँ पहुँचते ही मोहन के सिर और माथे पर अपना हाथ फेरने लगी। मोहन ने उसके (बड़ी औरत के) हाथ को पहचान लिया और एकदम से अपनी आँखें खोल दी। मोहन ने पुकारते हुए कहा कि माँ, तुम आ गई। उस | बूढ़ी औरत ने कहा-बेटा, मैं आ गयी हूँ। मैं तुम्हें छेड़कर कहाँ । जा सकती हूँ। अर्थात् मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती। उस बूढ़ी औरत ने मोहन के सिर को अपनी गोद में रख लिया। उसे धपकियाँ देने लगी, इस प्रकार मोहन सो गया। अब धीरे-धीरे मोहन के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। किसी भी डॉक्टर और हकीम की दवाइयों ने । कोई भी लाभ उसे नहीं पहुँचाया परन्तु बूढी माँ के प्यार ने, उसकी – ममता ने इसे पूर्णतः स्वस्थ कर दिया। (4) “वृद्धा, सेठजी की धरोहर ‘मोहन’ को सेठजी के यहाँ छोड़कर, लाठी टेकती हुई, झोंपड़ी में लौट आई। उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे, पर आज इन आँसुओं में फूलों का मकरन्द और ममता की गंध थी। वह आज सेठ बनारसीदास से महान् हो गई थी। सेठ याचक था और वह दाता।” शब्दार्थ-धरोहर = वह वस्तु या द्रव्य जो कुछ समय के लिए दूसरे के पास इस विश्वास से रखी जाए कि मांगने पर उसी रूप में वापस मिल जायेगी; मकरन्द = पराग; गंध-महक; महान् = बड़ी हो गई थी बन गई थी; याचक-भिखारी दाता= दान देने वाली। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-बूढ़ी औरत की विशेषताओं का उल्लेख किया गया व्याख्या-उस ममता भरौ बूढ़ी औरत ने सेठ बनारसीदास के पुत्र मोहन को उसके वास्तविक माता-पिता के पास छोड़ दिया। मोहन वास्तव में सेठजी की धरोहर थी, उसे तो लौटाना ही था। वह अपनी लाठी के सहारे, वहाँ से (सेठजी के घर से) लाठी टेकते-टेकते अपनी झोपड़ी में लौटकर आ गई। उसकी आँखों में फूलों का पराग था। उन आँसुओं में माँ के गहरे प्रेम की महक थी। आज वह अपने ममत्व और सेवाभाव के साथ त्याग की महिमामयी मूर्ति थी। सेठ बनारसीदास को भी अपने महान् व्यक्तित्व से पीछे छोड़ दिया। उस दशा में सेठ बनारसीदास एक भिखारी थे जबकि वह एक उदार दानदाता के समान थी। मास्टर जी ने मोहन की बीमारी का पता कैसे लगाया?उत्तर: मोहन की बीमारी कि असल वजह विद्यालय से मिला कार्य था, क्योंकि मोहन ने कार्य पूरा नहीं किया और वह कार्य न पूरा करने पर मिलने वाली सजा से डर गया था, इसलिए मोहन ने बीमारी का नाटक किया किन्तु मास्टर जी ने उसका नाटक पकड़ लिया और उसकी पोल उसके पिताजी के सामने खोल दी थी ।
मोहन को क्या बीमारी थी class 6?मोहन-उन्होंने कब्ज और बदहजमी बताया है। मैं-ठीक है, दवा खाओ और जल्दी ठीक होने की कोशिश करो। कल से स्कूल खुल रहा है, याद है न।। मोहन-हाँ, हाँ, याद है।
मोहन बहानेबाजी क्यों कर रहा था?मोहन की माँ मास्टरजी को 'ऐसे-ऐसे' वाली बीमारी के बारे में बताती है । तब मास्टरजी समझ जाते हैं कि इसने छुट्टियों का काम नहीं किया है। इसी कारण यह सब बहानेबाजी कर रहा है।
मोहन को क्या बीमारी है?मोहन की माँ को लगा कि मोहन को पेट दर्द की तकलीफ है, इसलिए मोहन की माँ ने मोहन को हींग, चूर्ण और पिपरमेंट मिलाकर दवा बनाकर खिलाई, लेकिन उससे मोहन को आराम नहीं हुआ, क्योंकि मोहन को वास्तव में कोई बीमारी नही हुई थी, वो तो केवल बीमारी का नाटक कर रहा था। पाठ में ऐसे-ऐसे जानने के लिए पिता ने मोहन से क्या-क्या सवाल किये?
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