इसे सुनेंरोकेंइसमें लेखक ने राष्ट्र के स्वरूप को तीन तत्वों के सम्मिश्रण से निर्मित माना है-पृथ्वी (भूमि), जन (मनुष्य) और संस्कृति। Show
राष्ट्र का स्वरूप की कौन सी विधा है?इसे सुनेंरोकें(v) प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने राष्ट्र के किस स्वरूप पर प्रकाश डाला है? (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित एवं भारतीय संस्कृति के अध्येता डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित है। स्वरूप देखिए के लेखक कौन है? इसे सुनेंरोकें(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं? उत्तर प्रस्तुत गद्यांश ‘राष्ट्र का स्वरूप पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक ‘वासुदेव शरण अग्रवाल’ हैं। पढ़ना: देश भक्ति क्यों जरूरी है? समस्त देशवासियों को एक जैसी भावना से क्यों ओत प्रोत होना चाहिए? इसे सुनेंरोकेंधरती पर सब जातियों के लिए एक समान क्षेत्र है। इसलिए सभी मनुष्यों को देश की प्रगति और उन्नति करने का एक समान अधिकार है। किसी एक जन को पीछे छोड़कर राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। अत: सभी को एक समान रूप से प्रगति और उन्नति करने का अवसर मिलना चाहिए उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। राष्ट्र की वर्दी कैसे संभव है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: अपनी धरती के प्रति आदर – भाव; जन और भूमि के संबंध को मजबूत करता है और राष्ट्र को पुष्ट व विकसित करता है। इस प्रकार पृथ्वी के प्रति आदर भाव की इस सुदृढ़ दीवार पर ही राष्ट्र के भवन का निर्माण संभव हो सकता है। आदर की यह भावना एक मजबूत चट्टान के समान है, जिस पर स्थिर होकर राष्ट्र का जीवन चिर-स्थायी हो जाता है। वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली क्या है?इसे सुनेंरोकेंअग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ीबोली है, जिसमें व्यावहारिकता, सुबोधता और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है। इस प्रकार इनकी प्रौढ़, संस्कृतनिष्ठ और प्रांजल भाषा में गम्भीरता के साथ सुबोधता, प्रवाह और लालित्य विध्यमान है। शैली के रूप मे उन्होने गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक एवं उद्धरण शैलियों का प्रयोग प्रमुखता से किया है। पढ़ना: नीलगिरी को हिंदी में क्या कहते हैं? पृथ्वी पुत्र एवं कल्प लता वासुदेव शरण अग्रवाल जी की कौन सी गद्य विधा है? इसे सुनेंरोकेंहिंदी गद्य के लोकविश्रुत रचनाकार वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद में स्थित खेड़ा नामक ग्राम में 7 अगस्त, सन् 1904 ई. को हुआ था। राष्ट्र का दूसरा अंग क्या है? इसे सुनेंरोकें( 4 ) मातृभूमि पर निवास करनेवाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग हैं । पृथिवी हो और मनुष्य न हों तो राष्ट्र की कल्पना असम्भव है । पृथिवी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप सम्पादित होता है । जन के कारण ही पृथिवी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है । जन का प्रवाह से क्या तात्पर्य है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर-‘ जन का प्रवाह ‘ से तात्पर्य जीवन की गतिशीलता से है । गद्यांश का मतलब क्या होता है?इसे सुनेंरोकेंगद्यांश Meaning in Hindi – गद्यांश का मतलब हिंदी में गद्यांश संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] किसी गद्य रचना का कोई अंश ; गद्य लेख का बहुत संक्षिप्त भाग ; अनुच्छेद। NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 Notes in Hindi एनसीईआरटी सॉल्यूशंस कक्षा 12 साहित्यिक हिंदी गद्य गरिमा अध्याय 1 के नोट्स हिंदी मेंकक्षा 12 साहित्यिक हिंदी गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप हिंदी मेंupboardmaster.com for गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप हिंदी में एनसीईआरटी समाधान में विस्तृत विवरण के साथ सभी महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं जिसका उद्देश्य छात्रों को अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करना है। जो छात्र अपनी कक्षा 12 की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें upboardmaster.com for कक्षा 12 साहित्यिक हिंदी गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप हिंदी में NCERT सॉल्यूशंस से गुजरना होगा। इस पृष्ठ पर दिए गए समाधानों के माध्यम से जाने से आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि समस्याओं का दृष्टिकोण और समाधान कैसे किया जाए। upboardmaster.com for NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 in Hindi NCERT Solutions covers all important topics with detailed description which aims to help students to understand concepts better. Students who are preparing for their class 12 exam must go through NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 in Hindi. Going through the solutions given on this page will help you to know how to approach and solve the problems. UP Board Class 12 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूपBoardUP BoardText bookNCERTSubjectSahityik HindiClass12thहिन्दी गद्य-वासुदेव शरण अग्रवाल // राष्ट्र का स्वरूपChapter1CategoriesSahityik Hindi Class 12thwebsite Nameupboarmaster.comसंक्षिप्त परिचयनामडॉ. वासुदेव शरण अग्रवालजन्म1904 ई.जन्म स्थानउत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का खेड़ानामक ग्रामशिक्षाएम.ए., पी.एच.डी., डी.लिट की उपाधिलेखन विधानिबन्ध, शोध और सम्पादन कार्यभाषा-शैलीशुद्ध और परिष्कृत खड़ी बोली। शैली विचार प्रधान, गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक तथा उद्धरण।साहित्यिक पहचाननिबन्धकार, शोधकर्ता, सम्पादकसाहित्य में स्थानडॉ. अग्रवाल हिन्दी-साहित्य में पाण्डित्यपूर्ण एवं सुललित निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।मृत्यु1967 ई. जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँभारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व के विद्वान् वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 1904 ई. में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के खेड़ा नामक ग्राम में हुआ था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद एम.ए.,पी.एच.डी. तथा डी.लिट. की उपाधि इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इन्होंने पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं एवं उनके साहित्य का गहन अध्ययन किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में ‘पुरातत्त्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे वासुदेव शरण अग्रवाल दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के भी अध्यक्ष रहे। हिन्दी की इस महान् विभूति का 1967 ई. में स्वर्गवास हो गया। . साहित्यिक सेवाएँइन्होंने कई ग्रन्थों का सम्पादन व पाठ शोधन भी किया। जायसी के ‘पदमावत’ की संजीवनी व्याख्या और बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तत करके इन्होंने हिन्दी-साहित्य को गौरवान्वित किया। इन्होंने प्राचीन महापरुषों–श्रीकृष्ण, वाल्मीकि, मनु आदि का आधुनिक दृष्टिकोण से बुद्धिसंगत चरित्र-चित्रण प्रस्तुत किया। कृतियाँडॉ. अग्रवाल ने निबन्ध-रचना, शोध और सम्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं निबन्ध-संग्रह पृथिवी पुत्र, कल्पलता, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, भारत की एकता, माता भूमि, वाग्धारा आदि। शोध पाणिनिकालीन भारत। सम्पादन जायसीकृत पद्मावत की संजीवनी व्याख्या, बाणभट्ट के हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन। इसके अतिरिक्त इन्होंने पालि, प्राकृत और संस्कृत के अनेक ग्रन्थों का भी सम्पादन किया। भाषा-शैलीडॉ. अग्रवाल की भाषा-शैली उत्कृष्ट एवं पाण्डित्यपूर्ण है। इनकी भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ी बोली है। इन्होंने अपनी भाषा में अनेक प्रकार के देशज शब्दों का प्रयोग किया है, जिसके कारण इनकी भाषा सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक लगती है। इन्होंने प्राय: उर्दू, अंग्रेजी आदि की शब्दावली, मुहावरों, लोकोक्तियों का प्रयोग नहीं किया है। इनकी भाषा विषय के अनुकूल है। संस्कृतनिष्ठ होने के कारण भाषा में कहीं-कहीं अवरोध आ गया है, किन्तु इससे भाव प्रवाह में कोई कमी नहीं आई है। अग्रवाल जी की शैली में उनके व्यक्तित्व तथा विद्वता की सहज अभिव्यक्ति हुई है। इसलिए इनकी शैली विचार प्रधान है। इन्होंने गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक तथा उद्धरण शैलियों का प्रयोग भी किया है। हिन्दी साहित्य में स्थानपुरातत्त्व-विशेषज्ञ डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में पाण्डित्यपूर्ण एवं सुललित निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। पुरातत्त्व व अनुसन्धान के क्षेत्र में, उनकी समता कर पाना अत्यन्त कठिन है। उन्हें एक विद्वान् टीकाकार एवं साहित्यिक ग्रन्थों के कुशल सम्पादक के रूप में भी जाना जाता है। अपनी विवेचना पति की मौलिकता एवं विचारशीलता के कारण वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। पाठ का सारांशप्रस्तुत निबन्ध राष्ट्र का स्वरूप डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के निबन्ध-संग्रह पृथिवी पुत्र’ से लिया गया है। इस निबन्ध में लेखक बताते हैं कि राष्ट्र का स्वरूप जिन तत्त्वों से मिलकर बना है, वे तीन तत्व हैं-पृथ्वी (भूमि), जन और संस्कृति।। पृथ्वी (भूमि) को समृद्ध बनाने पर बल पृथ्वी : हमारी धरती माता राष्ट्र का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सजीव अंग : मनुष्य राष्ट्र की प्रगति समानता के भाव द्वारा ही सम्भव संस्कृति : मनुष्य के मस्तिष्क का प्रतीक गद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं? (ii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस बात पर बल दिया है? (iii) लेखक ने हमारे कर्त्तव्य के प्रति क्या विचार प्रस्तुत किए हैं? (iv) राष्ट्रीयता की भावना कब निर्मूल मानी जाती है? (v) ‘निर्मूल’ और ‘पल्लवित’ शब्दों में क्रमशः उपसर्ग और प्रत्यय अँटकर लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक क्या सन्देश देना चाहता है? (ii) गद्यांश में वसुन्धरा किसे और क्यों कहा गया है? (iii) पृथ्वी की देह सजाने से लेखक का क्या आशय है? (iv) छोटे-छोटे पत्थर प्रसाधन एवं सौन्दर्य हेतु किस प्रकार उपयोगी होते उत्तर पहाड़ों से टूटे हुए छोटे पत्थर नदियों के प्रवाह के साथ बहते हुए किनारे पर लग जाते हैं, जो सूर्य की किरणों से चमकते रहते हैं। इन्हीं पत्थरों पर कुशल कारीगर द्वारा कारीगरी करते हुए उसके स्वरूप को परिवर्तित किया जाता है और इनका प्रयोग प्रसाधन एवं सौन्दर्य हेतु किया जाता है। (v) ‘दिन-रात’ का समास विग्रह करते हुए उसका भेद लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) राष्ट्रीय चेतना में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (ii) लेखक ने राष्ट्र की सुप्त अवस्था कब तक स्वीकार की है? (iii) विज्ञान और श्रम के संयोग से राष्ट्र प्रगति के पथ पर कैसे अग्रसर हो सकता है? उत्तर लेखक के अनुसार, विज्ञान और परिश्रम दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए, तभी किसी सष्ट्र का भौतिक स्वरूप उन्नत बन सकता है अर्थात् विज्ञान का विकास इस प्रकार हो कि उससे श्रमिकों को हानि न पहुँचे और उनके कार्य और कुशलता में वृद्धि हो। यह कार्य बिना किसी दबाव के हो तथा सर्वसम्मति में हो। इस प्रकार कोई भी राष्ट्र प्रगति कर सकता है। . (iv) लेखक के अनुसार, राष्ट्र समृद्धि का उद्देश्य कब पूर्ण नहीं हो (v) “स्वागत’ का सन्धि विच्छेद करते हुए उसका भेद बताइए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने क्या उददेश्य दिया है? (ii) ‘यह प्रणाम-भाव ही भूमि और जन का दृढ़-बन्धन है।’ इस पंक्ति से । लेखक का क्या आशय है? (iii) पृथ्वी के रत्नों को कौन प्राप्त कर सकता है? (iv) कैसे व्यक्ति राष्ट्र का उत्थान नहीं कर सकते? (v) ‘अधिकार’ और ‘अनुराग’ शब्दों में से उपसर्ग छाँटकर लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) प्रस्तुत गद्यांश में माता और पृथ्वी की समानता किस आधार पर की गई है? (ii) “प्रगति और उन्नति करने का सबको एक जैसा अधिकार है”-से लेखक का क्या आशय है? . उत्तर प्रस्तुत पंक्ति से लेखक का आशय यह है कि व्यक्ति अमीर हो या गरीब, प्रगतिशील हो या पिछड़ा, सभी में मातृभूमि के लिए समान प्रेम-भाव होता है। संसार के समस्त प्राणियों को प्रगति व उन्नति करने के लिए मातृभूमि समान अवसर प्रदान करती है तथा इनकी समन्वय की भावना ही राष्ट्र की उन्नति व प्रगति का आधार होती है। (iii) गद्यांश में मातृभूमि की सीमाओं को अनन्त क्यों कहा गया है? (iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से क्या सन्देश मिलता है? (v) ‘मातृभूमि’ शब्द का समास विग्रह करते हुए उसका भेद लिखें। उत्तर मातृभूमि – माता की भूमि (तत्पुरुष समास)।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) लेखक ने सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति के लिए क्या आवश्यक माना है? (ii) एक राष्ट्र कब तक प्रगति एवं उन्नति के मार्ग में आगे नहीं बढ़ सकता? उत्तर एक राष्ट्र तक तब प्रगति एवं उन्नति के मार्ग में आगे नहीं बढ़ सकता. जब तक उसके प्रत्येक क्षेत्र, वर्ग, सम्प्रदाय, जाति के प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त नहीं होंगे तथा उनकी उन्नति का ध्यान नहीं रखा जाएगा। (iii) राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण अंग क्या है? उत्तर राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण अंग व्यक्ति होता है, क्योंकि इसके बिना किसी राष्ट की कल्पना भी नहीं की जा सकती। व्यक्ति निरन्तर अपने श्रम एवं कर्म के नाम पर राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान देता है। (iv) लेखक ने जन जीवन की तुलना नदी के प्रवाह से क्यों की है? (v) ‘अजर-अमर’ का समास विग्रह करते हुए उसका भेद लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) लेखक के अनुसार राष्ट्र का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग क्या है? (ii) संस्कृति से क्या अभिप्राय है? । (iii) राष्ट्र की उन्नति में संस्कृति का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। (iv) जीवन के विटप का पुष्प संस्कृति है’ से लेखक का क्या अभिप्राय है? (v) ‘विटप’ तथा ‘पुष्प’ शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
दिए गए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) लेखक के अनुसार किसी राष्ट्र का सुखद जीवन किस भावना पर निर्भर करता है? उत्तर लेखक के अनुसार किसी राष्ट्र का सुखद जीवन पारस्परिक सौहार्द्र एवं एकता की भावना पर निर्भर करता है। जिस प्रकार जंगल में अनेक लताएँ, पेड़-पौधे तथा वनस्पतियाँ सामूहिक रूप से रहते हैं, उसी प्रकार एक देश में अनेक संस्कृतियाँ हो सकती हैं, परन्तु उन सबका अस्तित्व परस्पर मेल-जोल एवं एकता की भावना में निहित होता है। (ii) राष्ट्र के अस्तित्व का आधार क्या है? (iii) संस्कृति किस प्रकार जीवन को आनन्द प्रदान करती है? (iv) विविध संस्कृतियों वाले राष्ट्र की एकसूत्रता के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। उत्तर विविध संस्कृतियों वाले राष्ट्र की सभी संस्कृतियाँ बाहरी दृष्टि से देखने पर अलग अलग दिखाई देती हैं, किन्तु इनके अन्दर मूल रूप में एक ही सूत्र अर्थात् आत्मा होती है, जो सम्पूर्ण राष्ट्र की मिली-जुली संस्कृति को मुखरित करती है। इस प्रकार किसी राष्ट्र के सबल अस्तित्व के लिए इस प्रकार की एकसूत्रता आवश्यक है। (v) राष्ट्रीय, आनन्दित शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (i) संस्कृति के वाहक एवं संरक्षक के रूप में लेखक ने किसे प्रस्तुत किया है? (ii) लेखक के अनुसार राष्ट्र की धरोहर क्या है? (iii) एक राष्ट्र की उन्नति कब सम्भव हो सकती है? (iv) हम किस भावना के माध्यम से अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं? (v) संवर्धन’ शब्द का सन्धि विच्छेद करते हुए इसमें प्रयुक्त सन्धि का नाम भी लिखिए। हमारा सुझाव है कि आप upboardmaster.com for कक्षा 12 गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी में, एनसीईआरटी बुक से गुजरें और विशिष्ट अध्ययन सामग्री प्राप्त करें। इन अध्ययन सामग्रियों का अभ्यास करने से आपको अपने स्कूल परीक्षा और बोर्ड परीक्षा में बहुत मदद मिलेगी। यहां दिए गए upboardmaster.com for कक्षा 12 गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी में, एनसीईआरटी अध्याय नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार हैं हमें उम्मीद है कि कक्षा 12 के के गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप नोट्स हिंदी में आपकी मदद करेंगे। यदि आपके पास कक्षा 12 के गद्य गरिमा अध्याय 1 वासुदेव शरण अग्रवाल राष्ट्र का स्वरूप नोट्स हिंदी में के लिए के बारे में कोई प्रश्न है, तो नीचे एक टिप्पणी छोड़ दें और हम जल्द से जल्द आपके पास वापस आ जाएंगे। We suggest you go through the NCERT Books and get exclusive study material, at upboardmaster.com for Class 12 NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 Important Questions in Hindi. Practicing these study materials will help you a lot in your school exams and board exams. Given here are upboardmaster.com for Class 12 NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 Important Questions in Hindi, NCERT chapter wise latest syllabus We hope that NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 notes in hindi will help you. If you have any query regarding NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Chapter 1 Notes in Hindi, leave a comment below and we will get back to you as soon as possible. स्वरुप देखिए रचना के लेखक कौन है?लेखक का नाम-वासुदेवशरण अग्रवाल।
यह पृथ्वी सच्चे अर्थों में किसकी जननी है?यह पृथ्वी सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी है, जो राष्ट्रीय पृथ्वी के साथ नहीं जुड़ी, वह निर्मुल होती है। राष्ट्रीयता की जड़ें पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा।
भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति जागरूक रहने का परिणाम क्या होगा?(vii) भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति जागरूक रहने का क्या परिणाम होगा ? उत्तर- भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे,हमारी राष्ट्रयता भी उतनी ही अधिक बलवती हो सकेगी।
राष्ट्र की कल्पना कब असम्भव है?जन के बिना राष्ट्र की कल्पना करना भी असम्भव है। प्रत्येक माता अपने सभी पुत्रों को समान भाव से प्रेम करती है। इसी प्रकार पृथ्वी भी उस पर रहने वाले सभी मनुष्यों को समान भाव से चाहती है, उसके लिए सभी मनुष्य समान हैं। इसलिए धरती माता अपने सभी पुत्रों को समान रूप से समस्त सुविधाएँ प्रदान करती है।
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