भुगतान संतुलन से क्या अभिप्राय है समझाइए? - bhugataan santulan se kya abhipraay hai samajhaie?

भुगतान संतुलन की संक्षिप्त व्याख्या

भुगतान संतुलन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा चालू और पूँजी खाते में सम्मिलित विभिन्न घटकों का विवरण दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भुगतान संतुलन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए और इसके घटकों का उल्लेख कीजिए।
  • चालू और पूँजी खातों को परिभाषित करते हुए इनके विभिन्न घटकों का विवरण दीजिए।
  • भुगतान संतुलन की समग्र अवधारणा का वर्णन करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

भुगतान संतुलन (BoP) किसी देश की विभिन्न इकाइयों और विश्व के शेष भागों के मध्य निश्चित समयावधि में किये गए सभी लेन-देनों (वस्तुओं, सेवाओं एवं परिसंपत्तियों) का विवरण होता है। भुगतान संतुलन का अनुरक्षण एक राष्ट्र के केंद्रीय मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, भुगतान संतुलन में दो मुख्य खाते शामिल होते हैं अर्थात् चालू खाता और पूँजी व वित्तीय खाता। हालांकि, भारत में वित्तीय और पूँजी खाते को एक ही खाते में सम्मिलित किया जाता है तथा इसे ही पूँजी खाते के रूप में वर्णित किया जाता है। परिणामस्वरूप, भारत में भुगतान संतुलन में दो मुख्य खाते शामिल होते हैं अर्थात् चालू खाता और पूँजी खाता।

चालू खाता: चालू खाते में वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात व आयात, एकपक्षीय अंतरणों और अंतरराष्ट्रीय आयों से संबंधित लेनदेन का रिकॉर्ड शामिल होता है। इस प्रकार, चालू खाते के शेष का मान निर्यात के मूल्य में से आयात के मूल्य को घटाकर ज्ञात किया जाता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय आय और अंतरणों के लिए समायोजित किया जाता है। वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के मध्य उत्पन्न इस निवल अंतर को व्यापार संतुलन के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। जब सेवाओं में व्यापार और निवल अंतरणों को भी व्यापार संतुलन में शामिल किया जाता है तो यह चालू खाता संतुलन में परिणत हो जाता है। चालू खाता संतुलन का सदैव बराबर होना अर्थात् संतुलन में होना आवश्यक नहीं होता तथा यह अधिशेष या कमी भी प्रदर्शित कर सकता है। अधिशेष चालू खाते का अर्थ है कि राष्ट्र अन्य देशों के लिए ऋणदाता है और चालू खाता घाटे का अर्थ है कि राष्ट्र ने अन्य देशों से ऋण लिया हुआ है।

चालू खाते के घटक निम्नलिखित हैं:

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पूँजी खाता: पूँजी खाता वित्तीय और भौतिक, दोनों प्रकार की परिसंपत्तियों में परिवर्तन से संबंधित समस्त अंतरराष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन का रिकॉर्ड रखता है। यह निजी एवं सरकारी, दोनों प्रकार के अल्पकालिक और दीर्घकालिक पूंजीगत लेन-देनों का विवरण होता है, जिसमें उधार लेना, उधार देना, विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय आदि सम्मिलित होते हैं। विदेशी परिसंपत्तियों की खरीद पूँजी खाते में एक डेबिट (निकाली जाने वाली) मद (debit item) होती है (क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा भारत से बाहर प्रवाहित होती है) जबकि घरेलू परिसंपत्तियों की बिक्री पूँजी खाते में एक क्रेडिट (जमा की जाने वाली) मद (credit item) होती है

चालू खाता घाटे का वित्तीयन सामान्य रूप से निवल पूँजी अंतर्वाह अर्थात् परिसंपत्तियों के विक्रय अथवा विदेशों से ऋण लेकर किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, घाटे की स्थिति में कोई देश विदेशी मुद्रा बाजार में विदेशी मुद्रा विक्रय कर अपने विदेशी मुद्रा भंडार को कम कर सकता है। सरकारी राजकोष में कमी/वृद्धि को क्रमशः समग्र भुगतान संतुलन घाटा/अधिशेष कहा जाता है।

जब किसी देश के चालू खाते और उसके गैर-आरक्षित पूँजी खाते का योग शून्य होता है तो उस देश में भुगतान संतुलन की स्थिति संतुलित अवस्था में मानी जाती है। इसका अर्थ यह होता है कि चालू खाता संतुलन विदेशी मुद्रा भंडार में परिवर्तन किए बिना पूर्णतया अंतरराष्ट्रीय ऋण द्वारा वित्त पोषित किया गया है।

चालू और पूंजी खातों के अतिरिक्त, त्रुटियाँ और चूक (errors and omissions), भुगतान संतुलन में तीसरे तत्व का सृजन करते हैं। व्यवहार में, अंतरराष्ट्रीय लेनदेन को उचित रीति से रिकॉर्ड करने में देश की असमर्थता के कारण भुगतान संतुलन खाते संभवतः ही कभी संतुलित होते हैं। यही कारण है कि त्रुटियों और चूकों को ‘संतुलन मद’ माना जाता है, ताकि भुगतान संतुलन खातों को संतुलन में रखा जा सके।

भुगतान शेष के घटक 1. चालू खाता 2.पूँजीगत खाता

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामान्यत: सभी देश एक दूसरे के साथ माल का आयात निर्यात करते हैं, सेवाओं का आदान प्रदान करते हैं और राशि का लेन देन भी करते हैं। इस प्रकार एक निश्चित अवधि के पश्चात् इन सभी मदों पर लेन देन का यदि हिसाब निकाला जाय तो किसी एक देश को दूसरे से भुगतान लेना शेष होता है और दूसरे देश को किसी किसी तीसरे देश का भुगतान चुकाना शेष रहता है। विभिन्न देशों के बीच इस प्रकार के परस्परिक लेन देन के शेष को भुगतान शेष (Balance of payments) कहते हैं। यों कहना चाहिए कि किसी निश्चित तिथि को एक देश द्वारा अन्य देशों को चुकाई जानेवाली सकल राशि तथा अन्य देशों से उसे प्राप्त होनेवाली सकल राशि के अंतर को उस देश का 'भुगतान शेष' कहते हैं।

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(विदेशी मुद्रा भण्डार - बाहरी कर्ज) का मानचित्र (CIA फैक्तबुक २०१०)

भुगतान। शेष की मदे 1.स्वायत्त मदे: जो लाभ के उदेष्य से की जाती हे 2.समायोजन मदे:जो लाभ के उदेश्य से नहीं की जाती हे

परिचय[संपादित करें]

किसी एक देश को दूसरे देशों से भुगतान प्राप्त करने का अधिकार तथा अवसर तब आता है जब वह देश उन देशों को माल निर्यात करे, अथवा अपने जहाजों, बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों तथा कुशल विशेषज्ञों द्वारा अपनी सेवाएँ प्रदान करे अथवा उन देशों के उद्योग व्यापार में अपनी पूँजी लगाकर लाभांश तथा ब्याज प्राप्त करें। ऐसा भी हो सकता है कि उस देश के द्वारा अन्य देशों को दिए गए ऋणों की मूलराशि का उसे भुगतान प्राप्त होता हो या अन्य देशों से ही उसे ऋण स्वरूप राशि मिलती हो। इसके अतिरिक्त यह भी संभव है कि अन्य देशों के देशाटक पर्यटक उस देश में आकर माल खरीदें या सेवाओं का उपभोग करे। इन सभी परिस्थितियों में उस देश को अन्य देशों से भुगतान प्राप्त करने का अवसर होगा। इसके विपरीत, संभव है, इन्हीं मदों पर उस देश को अन्य देशों का कुछ भुगतान चुकाना भी हो। इस प्रकार किसी एक तिथि को इन सभी मदों पर एक देश की सफल लेनदारी का अंतर निकालने से उस देश का भुगतान शेष ज्ञात हो जायगा।

वैसे तो देश के बीच इस प्रकार का लेन देन किसी न किसी मद पर निरंतर चलता रहता है, पर यदि किसी निश्चित तिथि को एक देश का विभिन्न मदों पर लेन देन का अंतर निकाला जाए तो अवश्य निम्न परिस्थितियों में से कोई एक परिस्थिति सामने आती है:

(१) यदि किसी देश को अन्य देशों से प्राप्त होने वाली राशि उस देश द्वारा अन्य सभी देशों को चुकाई जाने वाली राशि से अधिक हो तो भुगतान शेष उस देश के 'अनुकूल' अथवा 'पक्ष में' कहा जायगा।(२) यदि किसी देश की अन्य देशों से लेनदारी से कम हो तो भुगतान शेष उस देश के 'प्रतिकूल' अथवा 'विपक्ष में' कहा जायगा।(३) यदि किसी देश की अन्य देशों के साथ सकल लेनदारी और देनदारी दोनों बराबर हो तो भुगतान शेष 'संतुलित' अथवा 'बराबर' कहा जायगा।

इस प्रकार भुगतान शेष 'अनुकूल', 'प्रतिकुल' व 'संतुलित' या 'पक्ष' में, 'विपक्ष' में और 'बराबर' कहा जाता है। पर इसका संबंध किसी देश विशेष के साथ सापेक्ष अर्थ में व्यक्त करना चाहिए। यह कहना सार्थक नहीं कि भुगतान शेष अनुकूल, प्रतिकूल व संतुलित है; वरन् यह कहना होगा कि अमुक तिथि को या अमुक अवधि में अमुक देश का भुगतान शेष उसके अनुकूल है, प्रतिकूल है अथवा संतुलित है।

भुगतान शेष निकालने में न केवल माल के आयात निर्यात का आधिक्य जिसे 'व्यापार शेष' कहते हैं, ज्ञात किया जाता है वरन् उक्त वर्णित सभी मदों से सकल लेनदारी और सकल देनदारी का अंतर भी ज्ञात किया जाता है। लेन देन के निरंतर क्रम में भुगतान शेष अनिवार्यत: संतुलित हो जाता है पर किसी तिथिविशेष को किसी देश का भुगतान शेष उसके अनुकूल या प्रतिकूल ही पाया जाता है।

किसी देश का अनुकूल तथा प्रतिकुल भुगतान शेष उस देश की आंतरिक आर्थिक स्थिति का परिचायक माना जाता है। यदि भुगतान शेष अनुकूल रहा तो इसका अर्थ होगा उस देश द्वारा निर्यात का बाहुल्य, उत्पादन की प्रचुरता, उद्योग व्यापार की सबलता, विदेशी मुद्रा की कमाई और राष्ट्र के स्वर्णकोश में वृद्धि। इसके विपरीत प्रतिकूल भुगतान शेष का अर्थ होगा आयात का बाहुल्य, व्यापार उद्योग की शिथिलता, उत्पादन में गिरावट, विनियोग का अभाव, विदेशी मुद्रा और राष्ट्र के स्वर्णकोश में कमी। आयोजन व विकास के वर्तमान युग में विकसित देशों से पूँजीगत माल एवं कुशल विशेषज्ञों की आवश्यक मात्रा आयात करने के हेतु यह अनिवार्य हो गया है कि भुगतान शेष देश के पक्ष में अर्थात अनुकूल बना रहे। आज प्रत्येक देश इसी उद्देश्य के लिये सतत प्रयत्नशील है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • व्यापार संतुलन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भुगतान संतुलन क्या है?