मंडल आयोग के गठन के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन था? - mandal aayog ke gathan ke samay bhaarat ke pradhaanamantree kaun tha?

31 साल पहले जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया था तब इसे तात्कालिक जल्दबाजी में लिया गया फैसला बताया गया. इससे भारतीय राजनीति की दिशा बदल गई. सियासी पंडितों को यह उम्मीद नहीं रही होगी कि दशकों बाद तक इसकी गूंज राजनीति में सुनाई देती रहेगी. क्या है मंडल कमीशन की कहानी, पढ़ें यह रिपोर्ट

हैदराबाद : 7 अगस्त, एक ऐतिहासिक तारीख. 31 साल पहले यानी 7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ( V.P. Singh) के एक ऐलान के बाद भारत की राजनीति बदल गई. सरकारी सिस्टम बदल गया. समाज का ताना-बाना भी कुछ हद तक हिल गया. जी हां, 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन (Mandal commission) की सिफारिशों को लागू किया गया था, जिसके तहत अति पिछड़ा वर्ग (OBC) को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया.

मंडल आयोग के गठन के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन था? - mandal aayog ke gathan ke samay bhaarat ke pradhaanamantree kaun tha?

देवीलाल के ताकत दिखाने से पहले ही वी पी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों पर मुहर लगा दी.

एक ऐलान और 'सामाजिक न्याय के मसीहा' बन गए वी पी सिंह

इस ऐलान के बाद प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह 'सामाजिक न्याय के मसीहा' बन गए. इसके बाद के वर्षों में मंडल की राजनीति हावी हो गई और अधिकतर हिंदी भाषी प्रदेशों की सत्ता ओबीसी नेतृत्व के हाथों में चली गई. ओबीसी वर्ग में नया आत्मविश्वास पैदा हुआ. इसके बाद समाज में जातीय संगठन भी बने और नए गुटों ने आरक्षण की मांग शुरू की. इसके बाद से हर पार्टी के मेनिफेस्टो में आरक्षण का मुद्दा भी जुड़ गया. इसका असर ऐसा है कि आज भी जनता परिवार से जुड़े राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, ताकि ओबीसी के बारे में सही आंकड़ा मिल जाए.

4 साल तक आंदोलन की आग में झुलसता रहा देश

जब 7 अगस्त 1990 को जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई थी, तब से देश करीब 4 साल तक आंदोलन की आग में झुलसता रहा. आरक्षण विरोधी और इसके समर्थक दोनों सड़क पर उतरे. कॉलेज और यूनिवर्सिटी आंदोलन का अखाड़ा बन गए. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में 200 से अधिक युवाओं ने आत्मदाह की कोशिश की, जिसमें से 62 की मौत हो गई.

मंडल आयोग के गठन के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन था? - mandal aayog ke gathan ke samay bhaarat ke pradhaanamantree kaun tha?

मोरारजी देसाई की सरकार ने बी पी मंडल ( बीच में) की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग की हालत जानने के लिए समिति बनाई थी

कौन थे मंडल कमीशन के अध्यक्ष बी. पी. मंडल

20 दिसंबर 1978 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए 6 सदस्यीय कमीशन बनाने का फैसला किया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ( बी. पी. मंडल) कमीशन के अध्यक्ष थे. एक जनवरी 1979 को जनता पार्टी की सरकार ने इसके गठन के लिए अधिसूचना जारी की. 31 दिसंबर1980 को बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. मगर रिपोर्ट आने तक केंद्र में सरकार बदल गई थी. मध्यावधि चुनाव के बाद इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बन चुकी थी. उन्होंने कमीशन की रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया. राजीव गांधी के कार्यकाल तक यह ठंडे बस्ते में ही पड़ी रही.

देवीलाल दिखाना रहे थे दम, इसलिए 7 अगस्त को कर दी घोषणा

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, केंद्र में प्रधानमंत्री बनने के साथ ही विश्वनाथ प्रताप सिंह अपने ही दल में विरोध झेल रहे थे. हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर उनका चौधरी देवीलाल से मतभेद हो गया. हालात इस कदर बिगड़ गए कि चौधरी देवीलाल को उप प्रधानमंत्री पद से वी पी सिंह ने बर्खास्त कर दिया. साथ ही जनता दल से भी निष्कासित कर दिया था. विश्वनाथ प्रताप सिंह के इस रवैये के बाद देवीलाल ने वोट पर 9 अगस्त 1991 को किसान रैली करने का ऐलान कर दिया. यह चौधरी देवीलाल का शक्ति प्रदर्शन था. उम्मीद की जा रही थी कि रैली में उनके समर्थक सांसद पहुंचेगे और सरकार संकट में घिर जाएगी.

15 अगस्त को लालकिले से होता ओबीसी के लिए आरक्षण का ऐलान

तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह 15 अगस्त को लालकिले से मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा करने वाले थे. मगर जब देवीलाल ने रैली बुला ली तो पार्टी के नेता असमंजस में पड़ गए. मंडल समर्थक नेता वी पी सिंह के पास पहुंचे और 9 अगस्त से पहले इसे लागू करने की सलाह दी. शरद यादव ने एक इंटरव्यू में बताया कि 1989 में सरकार बनते ही चौधरी देवीलाल को मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए बनाई गई समिति अध्यक्ष बनाया गया था. देवीलाल इसे लागू करने के हक में नहीं थे. पार्टी और सरकार से निकालने के बाद वी पी सिंह ने मंडल दांव से उन्हे चित्त करने का फैसला किया.13 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी की गई.

कमंडल की राजनीति के बीच झूलता रही मंडल की राजनीति

वी पी सिंह ने मंडल कमीशन को लागू करने का फैसला दे दिया मगर इसे नरसिंह राव सरकार के दौरान अमल में लाया गया. आरक्षण आंदोलन के दौरान ही 25 सितंबर 1990 को बीजेपी ने रामरथ यात्रा निकाली. बिहार में लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार किए और अक्टूबर में बीजेपी ने केंद्र की वी पी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर ने 10 नवंबर 1990 को सत्ता संभाला . 17 जनवरी 1991 को केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्गों की सूची तैयार की. मगर चार महीनों में ही चंद्रशेखर की सरकार भी कांग्रेस के समर्थन लेने के कारण गिर गई और मंडल कमीशन का मुद्दा सुलगता रहा. आंदोलन होते रहे.

Etv Bharat

चंद्रशेखर की सरकार भी आरक्षण के मसले पर सही नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी. नरसिंह राव ने इसे सिस्टम में लागू किया था

नरसिंह राव की सरकार ने आरक्षण फार्मूले को लागू किया

मध्यावधि चुनाव हुए. 21 जून 1991 को कांग्रेस के पी वी नरसिंह राव ने अल्पमत की सरकार बनाई. विरासत में उन्हें आरक्षण आंदोलन मिला. अगस्त 1991 से जनता परिवार के नेताओं ने फिर मंडल कमिशन को लागू करने के लिए आंदोलन शुरू किया. रामबिलास पासवान ने जंतर-मंतर पर गिरफ्तारी भी दी. 30 अक्टूबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की सिफारिशों के खि़लाफ़ दायर याचिका को सुनवाई के लिए नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया. इस बीच बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में उग्र प्रदर्शन होते रहे.

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई मंडल कमीशन पर मुहर

19 नवंबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की अनुमति दे दी. इसके बाद भी इसके विरोध में कई याचिकाएं दायर की गईं. 16 नवंबर 1992 को को इंद्रा साहनी बनाम संघ केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के फ़ैसले को वैध ठहराया और आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी. साथ ही सरकार को क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड विकसित करने का निर्देश दिया. इसके बाद कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी. कमीशन की सिफारिशों के तहत शिक्षा कोटा 2006 में लागू हुआ.

Etv Bharat

लालू प्रसाद मंडल आंदोलन के सबसे बड़े नेता रहे, जिन्होंने सामाजिक न्याय का नारा गढ़ा.

फिर 7 अगस्त को ही नीतीश की पार्टी ने छेड़ा मंडल का राग

संयोग देखिए, 7 अगस्त 2021 को जेडी यू ने मंडल कमीशन की अन्य बची हुई सिफारिशों को लागू करने की मांग कर दी. जनता परिवार से जुड़े समाजवादी नेता पहले भी यह मांग कर चुके हैं. इन दलों का कहना है कि 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर गठित रोहिणी आयोग का हवाला दे रहे हैं. रोहिणा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 6000 ओबीसी जातियों में सिर्फ 40 समुदाय ही सिविल एग्जाम में आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. फिलहाल एक बार फिर नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने मंडल कमीशन के बाकी सिफारिशों को लागू करने का सुर छेड़ा है. चुनाव है तो इसमें कई दल सुर मिलाएंगे ही.