विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। इनकी गणना सप्तऋषियों में होती है। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी क्षत्रिय राजा थे। Show
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ऋषि विश्वामित्रRishi Vishwamitra (Siya ke Ram)
ऋषि विश्वामित्र जन्म कथा (Birth Story of Rishi Vishwamitra)प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र थे। विश्वामित्र का ऋषि बनने से पूर्व का नाम विश्वरथ था। प्रश्न:- विश्वामित्र का क्या अर्थ है? विश्वरथ (विश्वामित्र) का वशिष्ठ आश्रम में आनाएक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में गये। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गये। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर सत्कार किया और उनसे आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। और पढ़ें: महर्षि वशिष्ठ (Guru Vashishth) वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिये व्यंजन तथा समस्त प्रकार के सुख सुविधा की व्यवस्था कर दिया। नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने सोचा कि ऐसी गाय की अधिक आवश्यकता तो उन्हें है। यही सोच कर विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ठ से नंदिनी गाय देने का आग्रह किया। पर वशिष्ठ जी बोले राजन! नंदनी मुझे अपने प्राणों से भी प्रिय है। मैं इसे आपको नही दे सकता। जब बार आग्रह करने पर भी महर्षि वशिष्ठ नही माने। तो राजा कौशिक ने बल पूर्वक नंदनी को ले जाना चाहा। परन्तु महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक की एक अक्षौहिणी सेना को परास्त कर दिया। एक ब्राह्मण से हारकर विश्वामित्र घोर शोक में घिर गए और तब उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से प्रतिशोध लेने की ठानी। उन्होंने हिमालय में घोर तपस्या की और ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्र प्राप्त किए। उन्होंने एक एक कर महर्षि वशिष्ठ पर व्यवयास्त्र, आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, पर्वतास्त्र, पर्जन्यास्त्र, गंधर्वास्त्र, मोहनास्त्र इत्यादि सारे दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया। किन्तु महर्षि वशिष्ठ ने उन सभी दिव्यास्त्रों को बीच में ही रोक दिया। विश्वामित्र को बार बार पराजित करने पर भी महर्षि वशिष्ठ ने उनका वध नहीं किया। इससे विश्वामित्र और भी अधिक अपमानित महसूस करके वहां से चले गए। त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने का हठइक्ष्वाकु वंश में त्रिशंकु नाम के एक महान प्रतापी राजा हुये।एक बार उनके मन मे सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा हुई। अतः इसके लिये उन्होंने अपने गुरु ‘ऋषि वशिष्ठ’ जी से अनुरोध किया। किन्तु वशिष्ठ जी ने इसे अस्वीकार कर दिया। त्रिशंकु ने यही प्रार्थना वशिष्ठ जी के पुत्रों से भी की, वशिष्ठ जी के पुत्रों ने कहा कि जिस काम को हमारे पिता जी ने मना कर दिया। वह कार्य आप हमसे करवाना चाहते है? ऐसा कहकर वशिष्ठ पुत्रों ने उन्हें लौटा दिया। जब यह बात विश्वामित्र को पता चली। तो उन्होंने कहा – मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण करूँगा। इतना कहकर विश्वामित्र ने अपने उन चारों पुत्रों औरशिष्यों के साथ यज्ञ प्रारम्भ कर दिया। यज्ञ की समाप्ति पर विश्वामित्र ने सब देवताओं को अपने यज्ञ भाग ग्रहण करने के लिये आह्वान किया किन्तु कोई भी देवता अपना भाग लेने नहीं आया। इस पर क्रुद्ध होकर विश्वामित्र ने कहा कि हे त्रिशंकु! मैं तुम्हें अपनी तपस्या के बल से स्वर्ग भेजता हूँ। इतना कह कर विश्वामित्र ने मन्त्र पढ़ते हुये आकाश में जल छिड़का और राजा त्रिशंकु सशरीर स्वर्ग जा पहुँचे। त्रिशंकु को स्वर्ग में आया देख इन्द्रदेव ने क्रोध में कहा – मूर्ख! तूने अपने गुरु के बात की अवहेलना की है। तू स्वर्ग में रहने योग्य नहीं है। ऐसा कहकर इंद्र ने उन्हें स्वर्ग के भीतर आने नही दिया। विश्वामित्र द्वारा नए स्वर्ग का निर्माणविश्वामित्र ने क्रोधित होकर नए स्वर्ग के निर्माण करने का मन बना लिया। विश्वामित्र ने उसी स्थान पर अपनी तपस्या के बल से स्वर्ग की सृष्टि कर दी और नये तारे तथा दक्षिण दिशा में सप्तर्षि मण्डल बना दिया। इसके बाद उन्होंने नये इन्द्र की सृष्टि करने का विचार किया जिससे इन्द्र सहित सभी देवता भयभीत होकर विश्वामित्र के पास जाकर विनय करने लगे। वे बोले कि हमने त्रिशंकु को केवल इसलिये लौटा दिया था कि वे गुरु के शाप के कारण स्वर्ग में नहीं रह सकते थे। इन्द्र की बात सुन कर विश्वामित्र जी बोले कि मैंने इसे स्वर्ग भेजने का वचन दिया है इसलिये मेरे द्वारा बनाया गया यह स्वर्ग मण्डल हमेशा रहेगा और त्रिशंकु सदा इस नक्षत्र मण्डल में अमर होकर राज्य करेगा। इससे सन्तुष्ट होकर इन्द्रादि देवता अपने अपने स्थानों को वापस चले गये। माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज है, उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ट होकर एक अलग ही स्वर्गलोक की रचना कर दी थी। मेनका द्वारा ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करना (Viwhvamitra And Menaka Story)मेनका द्वारा ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की कथा सर्वाधिक लोकप्रिय पौराणिक कथाओं में से एक है। कथा कुछ इस प्रकार है- ऋषि विश्वामित्र ने नए स्वर्ग के निर्माण के लिए जब तपस्या शुरू की तो उनके तप से देवराज इन्द्र ने घबराकर उनकी तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा मेनका को भेजा। मेनका ने अपने रूप और सौंदर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग भी कर दिया। विश्वामित्र तप छोड़कर मेनका के प्रेम में डूब गए। विश्वामित्र ने मेनका से विवाह कर लिया। मेनका से उन्हें एक सुन्दर कन्या की भी प्राप्त हुई जिसका नाम शकुंतला रखा गया। जब शकुंतला छोटी ही थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को छोड़कर इंद्रलोक चली गई। मेनका के छोड़कर चले जाने के बाद ऋषि विश्वामित्र का मोह भंग हुआ। और वह पुनः तपस्या मार्ग में लग हए। मेनका के छोड़कर चले जाने पर शकुंतला का लालन-पालन ऋषि कण्व ने किया था इसलिए वे उसके धर्मपिता कहलाये। शकुंतला का आगे चलकर सम्राट ‘दुष्यंत’ से प्रेम विवाह हुआ। जिनसे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। यही पुत्र राजा भरत थे। अप्सरा कौन है और इनकी कुल संख्या कितनी है?अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं थीं। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी।अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। विश्वामित्र का मोह भंगदेवताओं के चले जाने के बाद विश्वामित्र भी ब्रह्मऋषि का पद प्राप्त करने के लिये पूर्व दिशा में जाकर कठोर तपस्या करने लगे। इस बार उन्होंने श्वास रोक कर महादारुण तप किया। अब विश्वामित्र के तप से सारा संसार प्रकाशित हो उठा है। सूर्य और चन्द्रमा का तेज भी इनके तेज के सामने फीका पड़ गया है। इस तप से प्रभावित देवताओं ने ब्रह्माजी से निवेदन किया कि भगवन्! विश्वामित्र की तपस्या अब पराकाष्ठा को पहुँच गई है। अब वे क्रोध और मोह की सीमाओं को पार कर गये हैं।अतएव आप प्रसन्न होकर इनकी अभिलाषा पूर्ण कीजिये। ब्रह्मा जी ने विश्वामित्र को प्रसन्न होकर ओंकार, षट्कार तथा वेद का ज्ञान दिया। विश्वामित्र ने कहा- प्रभो! अपनी तपस्या को मैं तभी सफल समझूँगा जब वशिष्ठ जी मुझे मेरे द्वारा किए गए अपराध के लिए क्षमा कर देंगे। विश्वामित्र को ब्रह्मऋषि का पद कैसे प्राप्त कियाविश्वामित्र की बात सुन कर सब देवताओं ने वशिष्ठ जी का पास जाकर उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया। सारा वृत्तान्त सुनकर वशिष्ठ जी विश्वामित्र के पास पहुँचे और अपने हृदय से लगा कर बोले कि ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र! आप वास्तव में मेरे से श्रेष्ठ है। Rishi Vishwamitra Vikram Betaal Episode 78-79
राजा विश्वरथ का वशिष्ठ आश्रम में आतिथ्य सत्कार, विश्वरथ द्वारा नंदिनी गाय प्राप्ति हठ, ऋषि वशिष्ठ से युद्ध में पराजय, राजा विश्वरथ का ऋषि विश्वामित्र बनना, ऋषि वशिष्ठ के 100 पुत्रों की हत्या।
वशिष्ठ को युद्ध के लिए ललकारना, विश्वामित्र का युद्ध में पुनः पराजय, पुत्रों की हत्या के लिए क्षमा करना, त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भजेना, मेनका द्वारा विश्वामित्र की तपस्या भंग करना, विश्वामित्र का पुनः तप करना। ऋषि विश्वामित्र के आश्रम का नाम क्या था?विश्वामित्र के आश्रम को 'सिद्धाश्रम' भी कहा जाता था।
विश्वामित्र का पहला नाम क्या था?विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं थे। इनका पूर्व नाम राजा कौशिक था। एक बार वे अपनी विशाल सेना के साथ जंगल में निकल गये थे और रास्ते में पडऩे वाले महर्षि वसिष्ठ के आश्रम मेें उनसे मिले।
विश्वामित्र के शिष्य का क्या नाम था?गुरु विश्वामित्र और शिष्य श्री राम : वाल्मीकि रामायण में ही नहीं लगभग सभी राम कथाओं में विश्वामित्र के द्वारा श्री राम को अपना शिष्य बना कर उन्हें योद्धा बनाने की कथा आती है । प्रसंग के अनुसार विश्वामित्र के यज्ञ का लगातार ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे राक्षस विध्वंस कर रहे थे।
मुनि विश्वामित्र कौन है?विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि (योगी) थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे !
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