वीर रस का उदाहरण क्या है? - veer ras ka udaaharan kya hai?

वीर रस, नौ रसों में से एक प्रमुख रस है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है।[1][2] युद्ध अथवा किसी कार्य को करने के लिए ह्रदय में जो उत्साह का भाव जागृत होता है उसमें वीर रस कहते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल वीररस को चारणों की पारिवारिक सम्पत्ति मानते थे।[3]

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बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी।खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इसी तरह, यह युद्ध का वर्णन भी वीर रस का द्योतक है-

"बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार, दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार। पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार, खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक-छपक तरवार॥

हिन्दी साहित्य में वीर रस[संपादित करें]

  1. झाँसी की रानी (सुभद्रा कुमारी चौहान)
  2. वीरों का कैसा हो वसन्त (सुभद्रा कुमारी चौहान)
  3. राणा प्रताप की तलवार (श्यामनारायण पाण्डेय)
  4. गंगा की विदाई (माखनलाल चतुर्वेदी)
  5. सह जाओ आघात प्राण (त्रिलोचन)
  6. निर्भय (सुब्रह्मण्यम भारती)
  7. कर्मवीर (अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध')
  8. तेरे ही भुजान पर भूतल को भार (भूषण)
  9. इन्द्र जिमि जम्भ पर (भूषण)
  10. सुभाषचन्द्र (गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही')
  11. उठो धरा के अमर सपूतो (द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)
  12. कलम आज उनकी जय बोल (रामधारी सिंह 'दिनकर')

आदि।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ओझा, दसरथ (1995). हिन्दी नाटक : उद्भव और विकास. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8170284023. अभिगमन तिथि 8 फरवरी 2016.
  2. गणेश, कुमार. UGC-NET/JRF/SLET ‘Hindi’ (Paper III): - पृष्ठ 22. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8174823662. अभिगमन तिथि 8 फरवरी 2016.
  3. Kiśora, Śyāmanandana (1963). Ādhunika Hindī Mahājāvyoṃ kā śilpa-vidhāna. Sarasvatī Pustaka Sadana.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

वीर रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण

इसका स्थायी भाव उत्साह होता है इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है।

वीर रस का उदाहरण क्या है? - veer ras ka udaaharan kya hai?

उदाहरण:

Veer Ras ke Udaharan

1.
चढ़ चेतक पर तलवार उठा करता था भूतल पानी को
राणा प्रताप सर काट-काट करता था सफल जवानी को
2.
बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी
3.
मानव समाज में अरुण पड़ा जल जंतु बीच हो वरुण पड़ा
इस तरह भभकता राजा था, मन सर्पों में गरुण पड़ा
4.
क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रिद्द अनी सर बट्ठत
लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत
5.
माता ऐसा बेटा जानिये
कै शूरा कै भक्त कहाय
6.
हम मानव को मुक्त करेंगे, यही विधान हमारा है
भारत वर्ष हमारा है,यह हिंदुस्तान हमारा है
7.
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल
मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है
8.
माता ऐसा बेटा जानिये
कै शूरा कै भक्त कहाय
9.
हम मानव को मुक्त करेंगे, यही विधान हमारा है
भारत वर्ष हमारा है,यह हिंदुस्तान हमारा है
10.
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल
मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है

रस के प्रकार/भेद

क्रमरस का प्रकारस्थायी भाव
1 श्रृंगार रस रति
2 हास्य रस हास
3 करुण रस शोक
4 रौद्र रस क्रोध
5 वीर रस उत्साह
6 भयानक रस भय
7 वीभत्स रस जुगुप्सा
8 अद्भुत रस विस्मय
9 शांत रस निर्वेद
10 वात्सल्य रस वत्सलता
11 भक्ति रस अनुराग

वीर रस का उदाहरण क्या है? - veer ras ka udaaharan kya hai?
Veer Ras

Veer Ras/ वीर रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Veer Ras: Definition and Example in Hindi

Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल

वीर रस की परिभाषा (Definition of Veer Ras in Hindi)

जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे भाव की उत्पत्ति हो तो वहाँ वीर रस (Veer Ras) होता है. वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है. जब उत्साह उत्पन्न करने वाले विषय का वर्णन हो तो वहाँ वीर रस होता है.

या दूसरे शब्दों में कहें तो-

शत्रु का उत्कर्ष, दीनों की दुर्दशा, धर्म की हानि आदि को देखकर जब इनको मिटाने के लिए किसी के हदय में उत्साह नामक भाव जागृत हो तो यही भाव विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के संयोग से रस रूप में परिणित होकर ‘वीर रस कहलाता है। 

उत्साह के प्रकार

आलम्बन भेद के आधार पर उत्साह चार प्रकार का होता है-

1. शत्रु के उत्कर्ष को मिटाकर आत्मोद्वार का उत्साह ।
2. दीन के दुःख को दूर करने का उत्साह।
3. अधर्म को मिटाकर धर्म का उद्धार करने का उत्साह।
4. सुपात्र को दान देकर उसके कष्ट दूर करने का उत्साह।

स्थायी भाव: उत्साह
संचारी भाव: आवेग, गर्व, अमर्ष, असूया, उग्रता
आलम्बन: शत्रु, याचक, कवि, दीन दुखी
उद्दीपन: शत्रु का उत्कर्ष, ललकार, वीरों की हुंकार, दुखियों का दुःख, याचक की प्रशंसा आदि
अनुभाव: अंग स्फुरण, रोंगटे खड़े हो जाना

वीर रस के प्रकार (Type of Veer Ras in Hindi)

वीर रस के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं:

युद्धवीर: जब लड़ने का उसाह हो

युद्धवीर वह होता है जो रणभूमि में अपनी वीरता सिद्ध करता है। युद्धवीर समय और चुनौती से पीछे नहीं हटते, यही कारण है कि युद्ध भूमि में वीरों ने पीछे हटने के बजाए मृत्यु स्वीकार की। इतना ही नहीं इन्होंने अपने साहस से वह सब कर दिखाया जिससे इतिहास में इनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया।

दानवीर: जब याचक और दीनों को दान करने का उत्साह हो

दानवीर वह होता है जो दुखी, लाचार और विवश व्यक्ति की सहायता के लिए समय तथा परिस्थिति नहीं देखता। दानवीर स्वयं कष्ट सहकर भी दीन दुखियों की सहायता में संलग्न रहता है। दानवीर कर्ण ने अपनी मृत्यु को जानते हुए भी इंद्र को अपना कवच दान में दे दिया। भारतवर्ष से अनेक दान वीरों से भरा हुआ है, जिन्होंने धर्म के निर्वाह के लिए किसी धन संपदा का लालच नहीं किया।

दयावीर: जब दीनों पर दया करने का उत्साह हो

पुराणों में दया को धर्म का मूल कहा गया है। जिस व्यक्ति के पास दया है, वही धर्म का निर्वाह कर सकता है। राम ने अपने जीवन काल में कितने ही कष्ट दूसरों के कारण झेले, किंतु उन्होंने दया धर्म का निर्वाह सदैव किया। माता कैकई, मंथरा, आदि के कारण राम ने जीवन के 14 वर्ष कठिनाई में व्यतीत किए किंतु उनकी दया वीरता ऐसी थी कि, उन्होंने तनिक भी क्रोध नहीं किया। लौट कर आने के बाद उन्होंने सभी को उसी भाव से स्वीकार किया जिस भाव से बचपन में स्वीकारते थे। दयावीर व्यक्ति स्वयं कष्ट सहकर भी दुखी असहाय व्यक्तियों की सहायता में उपस्थित रहता है।

धर्मवीर: जब धर्म के लिए कुछ करने का उत्साह हो

धर्मवीर वह व्यक्ति होता है जो धर्म के निर्वाह के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम ने पिता के धर्म को निभाने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। धर्म की रक्षा के लिए ही देवताओं ने पृथ्वी पर कई अवतार लिए।

युद्धवीर रस के उदाहरण

जय के दृढ विश्वासयुक्त थे दीप्तिमान जिनके मुखमंडल
पर्वत को भी खंड खंड कर रजकण कर देने को चंचल
फड़क रहे थे अतिप्रचंड भुजदंड शत्रुमर्दन को विह्वल
ग्राम ग्राम से निकल निकल कर ऐसे युवक चले दल के दल          –रामनरेश त्रिपाठी

दानवीर रस का उदाहरण

हाथ गह्यो प्रभु को कमला कहै नाथ कहाँ तुमने चित धारी
तुन्दल खाई मुठी दुई दीन कियो तुमने दुई लोक बिहारी
खाय मुठी तीसरी अब नाथ कहाँ निज वास की आस बिसारी
रंकहीं आप समान कियो अब चाहत आपहिं होय भिखारी             – नरोत्तमदास

दयावीर रस का उदाहरण

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥             – नरोत्तमदास

वीर रस के अन्य प्रमुख उदाहरण (Example of Veer Ras in Hindi) 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।सुभद्रा कुमारी चौहान

झाँसी की रानी पूरी कविता पढ़ें.. 

मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे,
है और कि तो बात क्या गर्व मैं करता नहीं,
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं।

चढ़ चेतक पर तलवार उठा करता था भूतल पानी को
राणा प्रताप सर काट-काट करता था सफल जवानी को

मानव समाज में अरुण पड़ा जल जंतु बीच हो वरुण पड़ा
इस तरह भभकता राजा था, मन सर्पों में गरुण पड़ा

क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रिद्द अनी सर बट्ठत
लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत

सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे ।
रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे ।

फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।

निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।

लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों।

लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों।

प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल कों।

रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार

वीर रस की कविता

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।

इन्हें भी पढ़ें:

  1. श्रृंगार रस (Shringar Ras in Hindi)
  2. हास्य रस (Hasya Ras in Hindi)
  3. करुण रस (Karun Ras in Hindi)
  4. रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi)
  5. भयानक रस (Bhayanak Ras in Hindi)
  6. वीभत्स रस  (Veebhats Ras in Hindi)
  7. अद्भुत रस  (Adbhut Ras in Hindi)
  8. शांत रस  (Shant Ras in Hindi)
  9. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras in Hindi)
  10. भक्ति रस  (Bhakti Ras in Hindi)

रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान

प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं

 मन:संवेग रस के नाम स्थायी भाव मूल प्रवृतियाँ
1 काम श्रृंगार प्रेम काम-प्रवृति (sex)
2 हास हास्य हास आमोद (laughter)
3 करुणा (दुःख) करुण शोक शरणागति (self-submission)
4 उत्साह वीर उत्साह अधिकार-भावना (acquisition)
5 क्रोध रौद्र क्रोध युयुत्सा (combat)
6 भय भयानक भय पलायन (escape)
7 घृणा वीभत्स जुगुप्सा निवृति (repulsion)
8 आश्चर्य अद्-भुत विस्मय कुतूहल (curiosity)
9 दैन्य शांत निर्वेद (शम) आत्महीनता (appeal)
10 वत्सलता वात्सल्य स्नेह, वात्सल्य मातृभावना (parental)
11 भगवद्-अनुरक्ति भक्ति अनुराग भक्ति-भावना (allocation spirit)

वीर रस के उदाहरण क्या है?

वीर रस के उदाहरण। बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

वीर रस कितने प्रकार के होते है?

वीर रस के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं:.
युद्धवीर: जब लड़ने का उसाह हो युद्धवीर वह होता है जो रणभूमि में अपनी वीरता सिद्ध करता है। ... .
दानवीर: जब याचक और दीनों को दान करने का उत्साह हो ... .
दयावीर: जब दीनों पर दया करने का उत्साह हो ... .
धर्मवीर: जब धर्म के लिए कुछ करने का उत्साह हो ... .
दानवीर रस का उदाहरण.

वीर रस के कवि कौन है?

महाकवि भूषण (१६१३ - १७१५) रीतिकाल के तीन प्रमुख हिन्दी कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया।

10 वा रस कौन सा है?

दसों रसों श्रृंगार रस, हास्य रस, करूण रस, रौद्र रस, वीभत्स रस, भयानक रस, अद्धभुत रस, वीर रस, शान्त रस, और वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित जानेगें।