सुबह और शाम को सूरज लाल क्यों दिखता है? - subah aur shaam ko sooraj laal kyon dikhata hai?

कई बार हमने सूर्य को तेज चमकते हुए रंग से लाल या नारंगी होते देखा है लेकिन क्या हमने सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है..तो चलिए हम आपको आसान भाषा मे समझाते हैं सबसे पहले ये जान लीजिए कि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरता है और हमारे पहुंचने से पहले ही बिखर जाता है

। scatter की सीमा सभी रंगों के लिए एक समान नहीं होती है। कम wavelength का प्रकाश, जैसे कि बैंगनी, नीला, हरा और पीला, लंबी wavelength ( दो ध्वनि या तरंगों के बीच की दूरी;) की तुलना में नारंगी और लाल अधिक बिखरता है ।

सुबह और शाम के समय सूर्य लाल क्यों होता है इसके लिए हमे पहले ये जानना होगा कि दिन के समय आसमान नीला क्यों दिखता है..?

सूर्यास्त और सूर्योदय के समय, सूर्य की किरणों को पृथ्वी के वायुमंडल के बड़े हिस्से को ढंकना पड़ता है। इसके कारण, Rayleigh scattering (प्रकाश का सबसे छोटे कण का बिखरना) सर्वाधिक होता है। भौतिक नियमों के अनुसार कम wavelength वाली तरंगों के लिए Rayleigh scattering सबसे कम होता है। इसके लिए लाल बत्ती का प्रकीर्णन सबसे कम होता है जबकि बैंगनी प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। यही कारण है कि सामान्य परिस्थितियों में और दिन के समय हमें आसमान नीला दिखाई देता है… हालांकि बैंगनी रंग सबसे अधिक बिखरा हुआ है लेकिन इसे हमारी आंखों से महसूस नहीं किया जा सकता.

सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान, जैसा कि पहले बताया गया है, सूर्य की किरणें पृथ्वी के वातावरण से एक मोटी रुकावट का सामना करती हैं। नीली रोशनी हालांकि सबसे अधिक बिखरी हुई है, लेकिन व्यापक रूप से बिखरने का ज्यादा मौका नहीं मिलता है … क्योंकि यह बहुत अधिक बाधाओं का सामना करता है। हालांकि, लाल रंग अपनी कम wavelength के कारण लापरवाह होती है और इसलिए इन दो अवधियों के दौरान हमारी आंखों द्वारा ज्यादातर देखी जाती है। यही मुख्य कारण है कि हम सूर्यास्त और सूर्योदय आसमान को लाल रंग में देखते हैं।

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और इन्ही कारणों से सूर्य के आसपास आकाश लाल हो जाती है। लाल wavelength नीले वाले की तुलना में अधिक आसानी से हवा से गुजरते हैं। जब सूर्य पश्चिम में अस्त हो रहा होता है, तो उसका प्रकाश उसके ऊपर बादलों से टकराने से पहले सैकड़ों मील वायुमंडल से होकर गुजरता है – इस प्रक्रिया से आकाश अत्यंत लाल हो जाता है।सीधी भाषा मे समझे तो लाल आकाश टिंडल प्रभाव के कारण होता है। इसका मतलब है कि हवा में चारों ओर तैरने वाले कण प्रकाश को बिखेर रहे हैं ।

जब आप सीधे सूर्य को देखते हैं – या अन्य प्रकार की चमकदार रोशनी जैसे वेल्डिंग टॉर्च – पराबैंगनी प्रकाश आपके रेटिना को भर देता है, वस्तुतः उजागर tissue ऊतक को जला देता है। … यह Retina की rods और cones को नष्ट कर देता है और केंद्रीय दृष्टि में एक छोटा अंधा स्थान बना सकता है, जिसे scomata के रूप में जाना जाता है ।

तेज़ चमकने वाले सूरज को लाल रंग में बदलते आपने कई बार देखा होगा. ऐसा अक्सर सूरज के उगते और ढलते समय होता है.

सूरज लाल हो जाता है, आसमान संतरी, गहरा लाल या बैंगनी हो जाता है.

ये बेहद ख़ूबसूरत और रूमानी नज़ारा होता है. आसमान चलायमान होता है. लेकिन, असल में इसके पीछे पूरी तरह वैज्ञानिक कारण हैं.

इसका जवाब रेली स्कैटरिंग (प्रकाश का प्रकीर्णन) में छुपा है. 19वीं सदी में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी लॉर्ड रेली प्रकाश के प्रकीर्णन की घटना की व्याख्या करने वाले पहले व्यक्ति थे.

प्रकाश का प्रकीर्णन वह प्रक्रिया होती है, जिसमें जब सूर्य का प्रकाश सूर्य से बाहर निकलकर वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो धूल और मिट्टी के कणों से टकराकर चारों तरफ फैल जाता है.

सूरज को सीधे आँखों से ना देखें

इस ख़ूबसूरत दृश्य के बीच सूरज को सीधे आँखों से ना देखें और ना ही इसके लिए दूरबीन का इस्तेमाल करें. इससे आपकी आँखों को नुक़सान पहुँच सकता है या आप अंधे हो सकते हैं.

रॉयल म्यूज़ियम्स ग्रीनिच में खगोल विज्ञानी एडवर्डी ब्लूमर कहते हैं, "सूर्य के प्रकाश के प्रकाशीय गुण पृथ्वी के वातावरण से होकर गुज़रते हैं."

सबसे पहले हमें प्रकाश को समझने की ज़रूरत है, जो दृश्यमान प्रकाश स्पेक्ट्रम के सभी रंगों यानी लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, गहरा नीला और बैंगनी से बना है.

ब्लूमर कहते हैं, ''ये सूरज की रोशनी के बिखरने से जुड़ा है. लेकिन, ये समान रूप से बिखरी हुई नहीं होती.''

हर रंग की अपनी वेवलेंथ होती है, जो उस रंग को वैसे ही दिखाता है, जिस रंग का वो है.

उदाहरण के लिए बैंगनी रंग की सबसे छोटी वेवलेंथ होती है जबकि लाल रंग की सबसे लंबी.

अब जानते हैं कि वातावरण क्या होता है. विभिन्न गैसों की वो परतें, जो हमारे ग्रह में फैली हुई हैं और जो हमें ज़िंदा रखती हैं. इसमें ऑक्सीजन भी शामिल है,जिससे हम साँस ले पाते हैं.

जैसे-जैसे सूरज की रोशनी अलग-अलग हवा की परतों से गुज़रती है, इन परतों में अलग-अलग घनत्व की गैसें होती हैं. इनसे गुज़रते हुए रोशनी दिशा बदलती है और बँट भी जाती है.

वातावरण में कुछ कण भी होते हैं, जो विभाजित रोशनी में उछाल लाते हैं या उसे प्रतिबिंबित करते हैं.

जब सूरज डूबता या उगता है, इसकी किरणें वातावरण की सबसे ऊपर की परत से एक निश्चित कोण से टकराती हैं और यहीं पर ये 'जादू' शुरू होता है.

जब सूरज की किरणें इस ऊपरी परत से होकर गुज़रती हैं, तो नीली वेवलेंथ बँट जाती है और अवशोषित होने की वजह से प्रतिबिंबित होने लगती है.

ब्लूमर कहते हैं, "जब क्षितिज पर सूर्य का ताप कम होता है, तो प्रकाश की नीले और हरे रंग की तरंगें बिखर जाती हैं, और ऐसे में हमें बची हुईं प्रकाश की नारंगी और लाल तरंगें ही दिखाई देती है."

बैंगनी और नीले रंग की किरणें अपनी छोटी वेवलेंथ के कारण ज़्यादा लंबी दूरी तक नहीं जा पातीं और ज़्यादा बिखर जाती हैं. जबकि संतरी और लाल रंग की किरणें लंबी दूरी तय करती हैं. ऐसे में आसमान पर ये ख़ूबसूरत मंज़र बन जाता है.

ये भले ही लाल लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सूरज का रंग बदल गया है.

ब्लूमर कहते हैं, ''धूल के बादल, धुंआ और इसी तरह के अन्य तत्व आसमान के रंग पर असर डालते हैं.''

अगर आप भारत, कैलिफॉर्निया, चिली, ऑस्ट्रेलिया या अफ़्रीका के कुछ हिस्सों या लाल रेत वाले इलाक़ों के नज़दीक रहते हैं, तो आपका वातावरण मौसम की स्थिति के आधार पर प्रकाश को प्रतिबिंबित करने वाले कणों से भरा हो सकता है.

ब्लूमर कहते हैं, ''ये कुछ ऐसा ही है, जैसा मंगल ग्रह पर होता है. जब लाल रंग की धूल हवा में उड़ती है, तो लगता है कि आसमान लाल-गुलाबी सा हो गया है.''

कई बार रेगिस्तान से दूर रहने वालों को भी अलग-अलग रंगों वाले ऐसे आसमान देखने को मिल सकते हैं. जैसे सहारा रेगिस्तान की रेत वायुमंडल की उच्च परतों में चली जाती है. फिर वहाँ से ये यूरोप, साइबेरिया और यहाँ तक कि अमरीका भी पहुँच जाती है.

लॉकडाउन और प्रकृति से क़रीबी

ऐसा होना बहुत अलग बात नहीं है. प्रकृति में ऐसा होता आ रहा है लेकिन बात ये है कि अब हम इस पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं.

ब्लूमर एक मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, ''लॉकडाउन के इस समय में लोग आसमान पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. लोग इस समय दूसरे कामों में व्यस्त नहीं हैं.''

लॉकडाउन में सिनेमा, थियेटर और पार्टी जैसे मनोरंजन के साधन बंद हैं. लोग घरों में रह रहे हैं और प्रकृति से जुड़ पा रहे हैं.

ब्लूमर कहते हैं कि ट्रैफ़िक कम होने से प्रदूषण का स्तर भी कम हो गया है और लोग बाहर ज़्यादा अच्छा महसूस कर रहे हैं.

आसमान का रंग दिन में ज़्यादा नीला क्यों हो जाता है. इसका जवाब भी भौतिक विज्ञानी लॉर्ड रेली की प्रकीर्णन घटना की व्याख्या में ही छिपा है.

सूरज आसमान में बहुत ऊँचाई पर होता है. इसकी रोशनी वायुमंडल से होकर बिना टूटे ही गुज़रती है. ये वायुमंडल में आते ही अवशोषित हो जाती है और प्रमुखता से दिखाई देने वाला रंग नीला होता है.

हालाँकि, ये मौसम पर भी निर्भर करता है.

जैसे इंद्रधनुष बनने की बात करें, तो जब सूरज के चमकते समय बारिश होती है, तो प्रकाश बारिश की हर बूँद से होकर अलग-अलग वेवलेंथ में फैल जाता है और इसके कारण अपवर्तन (प्रकाश तरंग की दिशा बदलना) सभी रंगों को वातावरण में बिखेर देता है.

शाम और सुबह के समय सूरज लाल क्यों दिखाई देता है?

सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य का लाल रंग सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है

सूर्य का असली रंग क्या है?

पृथ्‍वी पर रहते हुए हमें सूर्य पीले रंग का दिखाई देता है, इसकी वजह लाइट यानी प्रकाश की फ‍िजिक्‍स है। इसी वजह से सूर्य हमें पीला दिखाई देता है। लेकिन सूर्य का असली रंग वास्तव में सफेद है। पृथ्‍वी के वायुमंडल के कारण हमें सूर्य पीला दिखाई देता है।

शाम को सूरज लाल क्यों चमकता है?

शुबह और शाम में सूर्य की किरणों को पृथ्वी की वायुमंडल में लंबी यात्रा करनी पड़ती है । इस दौरान प्रकाश की प्रकीर्णन के कारण लाल रंग के अलावा हमारी आँखों तक नही पहुँच पाता। लाल रंग इसलिए पहुँच पाने में सक्षम होता क्योंकि लाल का तरंगदैर्ध्य(वेव लेंथ) सबसे अधिक होती है।

सूर्य का जन्म कैसे हुआ था?

बहुत बड़ी द्रव्य राशि केंद्र में केंद्रित हुई, जबकि शेष बाहर की ओर चपटकर एक डिस्क में तब्दील हुई जिनसे ग्रह व अन्य सौरमंडलीय निकाय बने। बादल के कोर के भीतर के गुरुत्व व दाब ने अत्यधिक उष्मा उत्पन्न की वैसे ही डिस्क के आसपास से और अधिक गैस जुड़ती गई, अंततः नाभिकीय संलयन को सक्रिय किया। इस प्रकार, सूर्य का जन्म हुआ