प्राचीन काल में कौन कौन से खेल खेले जाते हैं? - praacheen kaal mein kaun kaun se khel khele jaate hain?

भारतीय पारंपरिक खेल

First Published: August 7, 2021

प्राचीन काल में कौन कौन से खेल खेले जाते हैं? - praacheen kaal mein kaun kaun se khel khele jaate hain?

भारत में पारंपरिक खेलों का इतिहास प्राचीन काल से है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई के बाद यह पता चला कि उस समय के लोग किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधियों में लिप्त थे। प्राचीन भारत में पारंपरिक खेल रामायण, महाभारत, हड़प्पा और सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पत्थर, गेंद और पासे का उपयोग करके कई तरह के खेल खेलते थे और शिकार, तैराकी, नौका विहार और मुक्केबाजी जैसे खेल उस दौरान सबसे आम खेल थे। उन सभी खेलों को प्राचीन काल में भारत में बड़े पैमाने पर खेला और पोषित किया जाता था।
आज के कुछ लोकप्रिय खेल, जैसे शतरंज, कुश्ती, पोलो, तीरंदाजी, हॉकी, लूडो, ताश खेलना, भारतीय मार्शल आर्ट, भारत में जूडो और कराटे आदि भी भारत में उत्पन्न हुए माने जाते हैं और इसलिए इन्हें भारतीय पारंपरिक खेल भी कहा जा सकता है। इन खेलों के अलावा योग एक अन्य प्रकार का खेल है जिसकी भारत में पारंपरिक खेलों के इतिहास में बहुत बड़ी उपस्थिति है। योग प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग था और आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए लगभग हर विचारधारा में इसका अभ्यास किया जाता था। महाकाव्य युग के दौरान पारंपरिक खेल भी आम थे। ये महाकाव्य कई भारतीय पारंपरिक खेलों जैसे डाइसिंग, जिम्नास्टिक और गिल्ली डंडा के बारे में बताते हैं। मानस ओलहास (1135ई.) में सोमेश्वर ने भरश्रम (भारोत्तोलन) और भरमनश्रम (चलना) जैसे खेलों का वर्णन किया है, जो वर्तमान में स्थापित ओलंपिक खेल हैं। उन्होंने मल्ल-स्तम्भ का भी उल्लेख किया, जो कुश्ती का एक विशिष्ट रूप था।
भारतीय पुराणों में रस्सी से लड़ने के खेल का भी उल्लेख है। इनमें से अधिकांश भारतीय पारंपरिक खेल भी प्राचीन भारतीय साम्राज्यों में सैन्य अभ्यास का एक अभिन्न अंग थे। भारत में पारंपरिक खेलों के मध्ययुगीन इतिहास में कई नए खेलों की शुरुआत हुई।
कोचों की वर्तमान अवधारणा को भी भारत में पारंपरिक खेलों के इतिहास में अपनी उपस्थिति माना जाता है। प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य प्रवृत्ति या शिक्षक-शिष्य संबंध को समकालीन कोचिंग अवधारणा का सर्जक माना जाता है। प्राचीन भारत में गुरु अपने शिष्यों को विभिन्न भारतीय पारंपरिक खेलों जैसे तीरंदाजी, रथ दौड़, कुश्ती, शिकार, घुड़सवारी, भारोत्तोलन, हथौड़ा-फेंकना, तैराकी, भाला फेंक (तोरण) या डिस्कस थ्रो (चक्र) के बारे में पढ़ाते थे। ये पारंपरिक खेल भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर खेले जाते थे और आज के समय में भी ये भारत में खेले जा रहे हैं। इनमें से कुछ खेलों ने ओलंपिक खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों, एसएएफ खेलों आदि जैसे क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भी अपनी जगह बनाई है।

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प्राचीन काल में कौन कौन से खेल खेले जाते हैं? - praacheen kaal mein kaun kaun se khel khele jaate hain?

मानव का अतीत व इतिहास जितना पुराना है उतने ही समय से खेल भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं और देखा, समझा और गहराई से चिंतन किया जाये तो यह मानव की सामाजिक अंतःक्रिया का प्राचीनतम रूप है। कोई भी खेल बच्चों का हो या किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति का हो, भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल खेले जाते रहे हैं। खेल मानव जाति के संपूर्ण विकास के साथ-साथ शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेदनात्मक और नैतिक विकास में सहायक हैं।

भारत में तो प्राचीन काल से खेले जाने वाले खेल जैसै कबड्डी, शंतरज, खो-खो, कुश्ती, ताश, गिल्ली डंडा, तीरंदाजी, गदा, पिट्ठू, मलखंभ, मल्ल युद्ध, तैराकी, भाला फंेक, धनुर्विद्या, नौका दौड़, सांप-सीढ़ी, पतंगबाजी इत्यादि आज आधुनिक काल में भी कुछ बदलावों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेले जाने लगे हैं।

भारत की संस्कृति-सभ्यता में जितने भी उपरोक्त प्रकार के या अन्य खेल खेले जाते रहे हैं और जिस प्रकार प्रकृति और सामाजिक ताने-बाने के साथ तीज-त्यौहार, रीति-रिवाज और वैज्ञानिकता से ओत-प्रोत चलन में आये हैं। उसी प्रकार कोई भी भारतीय खेल ऐसा नहीं है जिसका दृष्टिकोण आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, नैतिक और सामाजिक आधार पर सटीक न रहा हो या आज भी न हो।

जिस प्रकार शतरंज के 64 खाने सृष्टि रचयिता की 64 योगिनियों, रिद्धी-सिद्धियों के प्रतीक हैं, यह भी मात्र एक संयोग नहीं अपितु एक सोची-समझी गणना है जिसे केवल भारतीय मनुष्य पहचानते रहे हैं। शतरंज के खेल में तो अपने अधीनस्थ लोगों का किस प्रकार नियमों में रहते हुए योजनाबद्ध तरीके से अपने राज्य को रक्षा, सुरक्षा करते रहने की कला में निपुणता प्राप्त की जाती है, करते रहने से उसका निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।

सांप-सीढ़ी का खेल जन्म से मृत्यु तक की जीवन यात्रा के बीच आने वाले उतार-चढ़ाव, पाप-पुण्य, कर्म-कर्मफल, भाग्य इत्यादि पर आधारित जीवन को दर्शाते हैं। अन्य खेलों में शारीरिक श्रम के साथ-साथ दिमागी कसरत योजनाबद्ध कार्यशैली, नियमों में पालन, संयमित एवं धैर्यवान जीवन जीने की कला एवं प्रतिस्पर्धा में सफलता प्राप्त करने की ललक इत्यादि को सशक्त करना ही होता है।

इसी प्रकार आज मैं आपके समक्ष ‘ताश’ जो विश्वभर में हर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या अन्य किसी भी स्तर पर खेला जाता है। उसके खेलने के अलग-अलग नियम, अलग-अलग प्रकार, अलग-अलग रूप में, अलग-अलग नामों से पहचाने जाने वाले खेलों में विश्व की बहुतायत जनसंख्या द्वारा खेला जाता है। इसके विषय में कुछ ज्ञानवर्धक तथ्य आपके समक्ष भिन्न दृष्टिकोण से रखने का प्रयास कर रही हूं।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ताश में 52 पत्ते और दो जोकर होते हैं –
– 4 प्रकार के पत्ते- ईंट, पान, चिड़ी, हुकम- चार ऋतुओं के प्रतीक हैं।
– ताश के 52 पत्ते- वर्ष में 52 सप्ताह का प्रतीक हैं। प्रत्येक रंग के 13 पत्ते प्रत्येक ऋतुओं में 13 सप्ताह के प्रतीक हैं।
– सभी पत्तों की संख्या यानी 1, 2, 3, 4 से 13 तक का जोड़ 364 दिन के बराबर होता है जिसमें एक जोकर को जोड़ा जाता है तो वर्ष के 365 दिन बन जाते हैं और जब हम दूसरा जोकर भी जोड़ देते हैं तो वर्ष में 366 दिन हो जाते हैं जो लीप वर्ष हर चार साल में फरवरी में 29 दिन हो जाता है।
– पत्तों का लाल और काला रंग दिन और रात का प्रतीक होता है।
– 52 पत्तों में गुलाम, रानी और राजा नाम से पहचाने जाने वाले चित्रों सहित 12 ही पत्ते होते हैं जो 12 महीनों का प्रतीक होता है।
इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो 1 से 13 तक संख्या के पत्ते अध्यात्म, नैतिकता और ज्ञान के भंडार के रूप में दर्शाये गये हैं जिससे कि खेल के साथ-साथ शिक्षा व ज्ञानवर्धन भी होता रहे।

पत्तों का अर्थ –
– दुक्की- पृथ्वी और आकाश केरूप में।
– तिक्की- ब्रम्हा, विष्णु, महेश- सृष्टिकर्ता के रूप में।
– चैकी- चार वेद- यर्जुवेद, सामवेद, ऋग्वेद, अथर्ववेद – ज्ञान के रूप में।
– पंजी- पंच प्राण- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान- योग ज्ञान के रूप में।
– छक्की- षड रिपू- काम, मोह, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ- मानव में कमजोरी के कारणों के रूप में।
– सत्ती- सात सागर- विश्व रचना के ज्ञान के रूप में।
– अट्ठी- आठ सिद्धी- धार्मिक शक्ति के रूप में।
– नव्वा- नौ ग्रह- ब्रह्मांड रचना के ज्ञान के रूप में।
– दस्सी- दस इंद्रियां- शरीर की रचना के रूप में।
– गुलाम- मानव की कमजोरी के रूप में।
– रानी- माया भ्रम रूपी, ज्ञान के रूप में।
– राजा- सबका शासक- एकाधिकार के रूप में।
– एक्का- मनुष्य का विवेक सबसे सशक्त, सबसे प्रबल मानव के रूप में।

इन सब उपरोक्त बातों का चिंतन करने के बाद हम इस अवधारणा को या निष्कर्ष को नहीं झुठला सकते कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, ज्ञान वगैरह सब कुछ प्रकृति के अनुरूप है और कोई भी सभ्यता-संस्कृति इसके पास भी नहीं है।

जो सभ्यतायें नजदीक में दिखाई भी देती हैं उन्होंने भी शायद हमारी भारतीय सभ्यता-संस्कृति का अनुसरण और अनुकरण किया है इसलिए भारत में जन्में हर जन को इस पर गर्व होना चाहिए और पाश्चात्य की चकाचैंध से अपने आप को दूर रखना चाहिए।

– सम्पदा जैन

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प्राचीन भारत में कौन कौन से खेल खेले जाते थे?

सबसे प्राचीन खेल: ऐसे बहुत सारे खेल हैं जिनका जन्मदाता देश भारत है, जैसे सांप-सीढ़ी, शतरंज, गंजिफा (ताश), रथ दौड़, बैलगाड़ियों की दौड़, नौका की दौड़, धनुर्विद्या, तलवारबाजी, घुड़सवारी, मल्ल-युद्ध, कुश्ती, तैराकी, भाला फेंक आदि।

प्राचीन काल में मनुष्य कौन कौन से खेल खेलते थे?

प्राचीन समय में दौड़, मुक्केबाजी, कुश्ती, तलवारबाजी, भला फेंकना, तीरंदाजी, घुड़दौड़ और रथों की दौड़ आदि कई तरह के खेलो का आयोजन होता था।

पुराने समय में कौन से खेल खेले जाते थे?

कबड्डी, शतरंज, खो-खो, कुश्ती, गिल्ली-डंडा, तीरंदाजी, गदा आदि परंपरागत खेलों के अलावा विभिन्न देशों के संपर्क में आने से भारत में क्रिकेट, जूडो, टेनिस, बैडमिंटन आदि खेलों का भी खूब प्रचलन हुआ है।

निम्नलिखित में से कौन सा एक प्राचीन खेल है?

कुश्ती भारत का सबसे पुराना खेल है।