पैमाना से आप क्या समझते हो? - paimaana se aap kya samajhate ho?

यहाँ उत्पत्ति के पैमाने का अर्थ उत्पादन करने वाली फर्म के आकार तथा उसके उत्पादन की मात्रा से है। साधारणतः उत्पादन का पैमाना निम्न हो सकता है:


1. छोटे पैमाने पर उत्पादन


2 बड़े पैमाने पर उत्पादन


A. छोटे पैमाने पर उत्पादन


जब किसी फर्म की उत्पादन प्रक्रिया में थोड़ी मात्रा में श्रम, यन्त्र, कच्चा माल आदि उत्पादन के साधनों का प्रयोग होता है तथा फर्म के उत्पादन की मात्रा भी कम होती है

तो इसे छोटे पैमाने का उत्पादन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में छोटे पैमाने पर उत्पादन का अभिप्राय फर्म के उस आकार से है जहाँ फर्म उत्पादन के साधनों का छोटी मात्रा में प्रयोग करती हैं तथा फर्म के उत्पादन की मात्रा भी कम होती है।


छोटे पैमाने के उत्पादन से लाभ

(Advantages of Small Scale Production)


वर्तमान युग में जब बाजार विश्वव्यापी बन चुका है फिर भी छोटे पैमाने पर उत्पादन करने वाली फर्मे अत्यधिक मात्रा में विद्यमान हैं, इससे स्पष्ट है कि छोटे पैमाने के उत्पादन के कुछ विशिष्ट लाभ हैं। अब हम छोटे पैमाने के उत्पादन के लाभों का अध्ययन करेंगे


(1) व्यक्तिगत सम्पर्क सम्भव छोटे पैमाने की उत्पादन व्यवस्था में श्रमिकों एवं प्रबन्धकों के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है, वे एक-दुसरें की कठिनायों से अवगत रहते हैं तथा वे एक दुसरे से हानि-लाभ को अच्छी तरह से जानते है


(2) आर्थिक विशमता को कम किया जा सकता हैं-छोटे पैमाने के उत्पादन के माध्यम से आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीयकरण हो जाता है, जिससे धन कुछ बड़े बड़े उद्योगपतियों के स्थान पर अनेक छोटे-छोटे उद्यमियों में वितरित हो जाता है, जिससे आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीयकरण सम्भव है। जैसा कि हम जानते हैं कि आर्थिक सत्ता के विकेन्द्रीयकरण के अनेक लाभ है जैसे वर्ग संघर्श उत्पन्न ही नहीं होता हैं।


(3) अधिक संख्या में रोजगार प्रदान किया जा सकता है-छोटे पैमाने के उत्पादन के अन्तर्गत स्वचालित मशीनों एवं यन्त्रों का कम उपयोग होता है। इसका परिणाम यह होता है कि उत्पादन प्रक्रिया में अधिक कार्य श्रमिकों द्वारा होता है, अतः अधिक संख्या में रोजगार प्रदान किया जाना सम्भव है।


(4) देश की क्षेत्रीय विशमताओं को न्यूनतम किया जा सकता है-छोटे पैमाने पर उत्पादन देश के सभी स्थानों पर सम्भव है जबकि बड़े पैमाने पर उत्पादन केवल कुछ क्षेत्रों में ही अधिक हो सकता है अतः छोटे पैमाने पर उद्योगों की स्थापना करके क्षेत्रीय विशमता को न्यूनतम किया जा सकता है।


(5) प्रबन्धकीय कार्य सरल छोटे पैमाने पर उद्योग स्थापित होने से स्वामही व्यक्तिगत देख-रेख तथा सम्पर्क के माध्यम से प्रबन्धकीय कार्य सरलता से कर सकता है।


(6) लेखा कार्य में सुविधा- छोटे पैमाने पर उद्योग स्थापित करने से लेखा कार्य आसान एवं सुविधाजनक हो जाता है क्योंकि छोटे उद्योगों को अनेक औपचारिकताओं का पालन नहीं करना पड़ता है, जैसे


1 अकेक्षण कराना जरूरी नहीं।


2 समस्त क्रियाकलापों का लेखा नहीं रख कर नकद व्यवहारों का लेखा रखना ही पर्याप्त है।


(7) कार्य करने की स्वतन्त्रता - छोटे पैमाने के उद्योगों में एक ही श्रमिक द्वारा अनेक क्रियाओं तथा प्रक्रियाओं में कार्य करना पड़ता है जिससे श्रमिक सर्वगुण सम्पन्न हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिक अपने स्वयं के थोड़े से साधनों के माध्यम से छोटे पैमाने पर अपना कारखाना स्थापित करके जीविका प्राप्त कर सकता है।


(8) कर्मचारी तथा उद्योगपतियों में प्रत्यक्ष निकट का सम्पर्क सम्भव- लघु उद्योगों में श्रमिकों की संख्या कम होने से मालिक प्रत्येक श्रमिक के बारे में व्यक्तिगत जानकारी रखता है, अतः श्रमिक विवादों की संख्या न्युनतम रहती है क्योंकि श्रमिक मालिक की समस्याओं से अवगत रहते है तथा मालिक श्रमिकों की कठिनाइयों को स्वयं पहचानते हैं।


(9) श्रमिकों के व्यक्तित्व का विकास सहज एवं सरल-लघु उद्योगों में उत्तरदायित्व, ईमानदारी एवं स्वाभिमान की भावना स्वतः ही उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि श्रम एवं स्वामी के मध्य निकट का मधुर सम्बन्ध होता है। इन सब का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों के व्यक्तित्व का विकास असानी से हो सकता है।


( 10 ) उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत पसन्द को ध्यान में रखा जा सकता है-छोटे पैमाने की उत्पादन व्यवस्था में उत्पादक तथा ग्राहक के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध बना रहता है, अतः निर्माता ग्राहक की पसन्द-नापसन्द को ध्यान में रखकर उत्पादन कर सकता है तथा अपने उत्पादन की किस्म में भी तदनुसार परिवर्तन कर सकता है।


(11) विनियोजित पूँजी पर अल्प समय में लाभ सम्भव छोटे पैमाने पर स्थापित उद्योग में जो पूँजी लगाई जाती है, इस पर बहुत कम समय में लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है, जिससे स्वामी को अधिक समय तक इन्तजार नहीं करना पड़ता है।


(12) माँग से अधिक उत्पादन का भय नहीं छोटे पैमाने की स्थिति में उतना ही उत्पादन किया जाता है जितनी बाजार में माँग होती है। अतः माँग से अधिक उत्पादन की कभी हालत ही उत्पन्न नहीं होती है।


(13) कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन सम्भव छोटे पैमाने की उत्पादन व्यवस्था के अन्तर्गत स्वामी स्वयं ही उत्पादन करता है अथवा उत्पादन पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण रखता है तथा श्रमिकों को पर्याप्त स्वतन्त्रता भी प्रदान की जाती है, अतः इस व्यवस्था में कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन आसानी से हो सकता है।


(14) कारखाना प्रणाली के अवगुणों से बचा जा सकता है-छोटे पैमाने की उत्पादन व्यवस्था में उत्पादन का कार्य सम्पूर्ण देश में बिखरा रहता है, अतः कलात्मक प्रणाली के दोष इस व्यवस्था में उत्पन्न ही नहीं हो पाते हैं। जैसे-


1. आवास की समस्या


2. स्वच्छ वातावरण की कमी


3. नैतिक मूल्य मे कमी


4. दूषित पानी एवं चिमनियों से निकले धुएँ की समस्या


5. स्त्री तथा बच्चों का शोषण ।


( 15 ) उत्पादन मे लोच सम्भव-छोटे पैमाने के उत्पादन में माँग में वृद्धि तथा कमी के अनुसार उत्पादन की मात्रा को भी बढ़ाया तथा घटाया जा सकता है। इस तरह से उत्पादन में लोच सम्भव है


(16) सुक्ष्म निरीक्षण सम्भव छोटे पैमाने की उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादक अपनी उत्पादन प्रक्रिया की छोटी से छोटी क्रियाओं का स्वयं निरीक्षण कर सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि खराब उत्पादन होने से पहले की सुधार सम्भव है जिससे समय एवं श्रम की बचत होती है। मशीनों, यंत्रों व कच्चे माल के मितव्ययितापूर्ण उपयोग को प्रोत्साहन मिलता है।


(17) उत्पादन को जब चाहे प्रारम्भ किया जा सकता है तथा जब चाहे बन्द किया जा सकता है-छोटे पैमाने की उत्पादन व्यवस्था में उत्पादक जब चाहे तब उत्पादन कार्य बन्द कर सकता है तथा पुनः चालू कर सकता है। स्वामी को उत्पादन बन्द करते तथा पुनः चालू करते समय कोई विशेष कानूनी या अन्य समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।

पैमाने से आप क्या समझते हैं?

वास्तविकता और उसके निरूपण के बीच का अनुपात को मापक(पैमाना) (अंग्रेज़ी:scale) कहते हैं। इसकी इकाई नहीं होती और यह भिन्न अथवा गुणक के रूप में व्यक्त किया जाता है। मानचित्र पर पैमाना का अर्थ है, मानचित्र पर दर्शाये गये दो बिंदुओं और उनके संगत धरातलीय जगहों के बीच दूरियों का अनुपात।

पैमाना क्या है और कितने प्रकार के होते हैं?

(1) साधारण मापक (2) तुलनामक मापक (3) कणवत मापक (4) वनयर मापक एवं (5) अय मापक।

पैमाना क्यों आवश्यक है?

उस मानचित्र का मापक या पैमाना होगा। पैमाना मानचित्र के लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि अगर पैमाना नही होगा तो हम छोटे से पेज में पूरा मानचित्र (शहर, देश,विश्व ) को कवर नहीं कर पाएंगे । हम मानचित्र में 1 कि मी .

मापनी क्या है वर्णन करें?

दूसरे शब्दों में, मापनी, मानचित्र पर दिखाए गए संपूर्ण पृथ्वी या इसके किसी आंशिक भाग के साथ मानचित्र के संबंध को दर्शाता है। इस संबंध को मानचित्र पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी एवं धरातल पर उन्हीं दोनों स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी के अनुपात के रूप में भी व्यक्त कर सकते हैं।