भगंदर की बीमारी कैसे होती है? - bhagandar kee beemaaree kaise hotee hai?

फिस्टुला, अंगों या नसों के बीच एक असामान्य जोड़ होता है। यह ऐसे दो अंगों या नसों को जोड़ देता है जो प्राकृतिक रूप से जुड़े नहीं होते हैं, जैसे आंत व त्वचा के बीच में, योनि व मलाशय के बीच में।

फिस्टुला के कुछ प्रकार होते हैं लेकिन इसका सबसे आम प्रकार है भगन्दर (एनल फिस्टुला)।

भगन्दर एक छोटी नली समान होता है जो आंत के अंत के भाग को गुदा के पास की त्वचा से जोड़ देता है। यह आमतौर पर, तब होता है जब कोई संक्रमण सही तरीके से ठीक नहीं हो पाता।

ज़्यादातर भगन्दर आपकी गुदा नली में पस के इकठ्ठा होने से होते हैं। यह पस त्वचा से खुद भी बाहर निकल सकती है या इसके लिए ऑपरेशन की आवश्यकता भी हो सकती है। भगन्दर तब होता है जब पस का त्वचा से बाहर आने के लिए बनाया गया रास्ता खुला रह जाता है या वह ठीक नहीं हो पाता।

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इसके लक्षण होते हैं दर्द, सूजन, सामान्य रूप से मल आने में बदलाव और गुदा से रिसाव होना।

इसकी जाँच के लिए डॉक्टर आपका एक शारीरिक परीक्षण करते हैं जिसमें आपके गुदा और आसपास की जगह में भगन्दर की जाँच की जाती है।

आजमगढ़ : आज भगंदर (फिस्टुला) एक जटिल समस्या बनकर उभर गई है। इसका इलाज और इसे जड़ से समाप्त करना चिकित्सकों के लिए कड़ी चुनौती साबित हो रही है। इस रोग में गुदा मार्ग के बाहर एक या एक से अधिक पिंडिकाएं उत्पन्न हो जाती है। इससे स्राव आता रहता है। मरीज डाक्टर के पास शिकायत लेकर आता है कि उसके गुदा मार्ग से मवाद आ रहा है।

वरिष्ठ सर्जन डा. विष्णु ने बताया कि आज लोगों का खान-पान पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो गया है। लोग तेल, मिर्च, मसाला, तली, भूनी चीजें, फास्ट फूड, अनियमित भोजन का अधिक सेवन करते हैं। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन कम कर रहे हैं। व्यायाम, परिश्रम आदि से लोग दूर भाग रहे हैं जिसके कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उपरोक्त निदान अनियमित आहार-विहार सेवन के कारण लोग एक जटिल बीमारी भगंदर का शिकार हो रहे हैं। आयुर्वेद में भगंदर के इलाज के लिए क्षारसूत्र का विधान है, जिसका परिणाम बहुत अच्छा है। क्षारसूत्र एक मेडिकेटेड थ्रेड होता है। आयुर्वेद की कई औषधियों के योग से इस क्षारसूत्र का निर्माण किया जाता है।

क्षारसूत्र विधि से आपरेशन से होने वाले फायदे

0 मरीज आपरेशन के बाद उसी दिन घर जा सकता है।

0 भगंदर के पुन: होने की संभावना कम होती है।

0 मरीज अपना दैनिक कार्य कर सकता है।

0 बूढ़े-बच्चों में भी इसका प्रयोग सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

0 इसका प्रयोग विधि बहुत सरल है।

0 क्षार सूत्र घाव भरने में सहायता करता है। मवाज को बाहर निकालता है और प्राइमरी सोर्स आफ इंफेक्शन को दूर करता है।

भगंदर से बचाव के उपाय

0 निदान परिवर्जन ही इस बीमारी का सर्वोत्तम इलाज है।

0 फास्ट फूड का पूरी तरह निषेध करें

0 नियमित आहार विहार का सेवन करें।

0 तेल, मिर्च, मसाले का सेवन न करें।

0 नियमित व्यायाम करें

0 खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन करें

0 कब्जियत होने पर शौच के समय यदि दर्द हो रहा हो या मल के साथ या बाद में खून आता हो तो विशेष डाक्टर से संपर्क करें।

जब शरीर के अंदर दो खोखली जगह जैसे, ब्लड वेसल, इंटेस्टाइन या अन्य दो खोखले आंतरिक अंग, में असामान्य रूप से कनेक्शन बन जाता है, तो उसे फिस्ट्यूला (Fistula) कहते हैं। जो कि आमतौर पर किसी चोट, सर्जरी, सूजन या संक्रमण (Infection) के कारण होता है। इसी तरह, जब त्वचा और एनस के बीच एक संक्रमित जगह या कनेक्शन बन जाता है, तो उसे एनल फिस्ट्यूला (Anal Fistula) कहते हैं और इसी को हिंदी में भगंदर (Anal Fistula) कहा जाता है।

भगंदर (Anal Fistula) आमतौर पर एनल ग्लैंड से शुरू होने वाले इंफेक्शन के कारण होता है। इस इंफेक्शन की वजह से वहां मवाद इकट्ठा होने लगती है, जो कि धीरे-धीरे निकलने लगती है या फिर एनस के बराबर वाली त्वचा के द्वारा डॉक्टर की मदद से निकलवाई जाती है। इसके बाद यहां पर त्वचा और एनस के बीच एक खोखली जगह या कनेक्शन बन जाता है।

भगंदर यानी एनल फिस्ट्यूला (Anal Fistula) के प्रकार को उसकी जगह के मुताबिक निर्धारित किया गया है। जैसे-

इंटरस्फिंक्टरिक फिस्ट्यूला (Inter Fincric Fistula)

इसमें इंटरनल और एक्सटर्नल स्फिंक्टर मसल्स के बीच की खाली जगह से ट्रैक्ट शुरू होकर एनल की ओपनिंग के बिल्कुल पास जाकर खुलता है।

ट्रांसस्फिंक्टरिक फिस्ट्यूला (Trans Fincric Fistula)

इसमें ट्रैक्ट इंटरनल और एक्सटरनल स्फिंक्टर मसल्स के बीच की खाली जगह या फिर एनस के पीछे से शुरू होता है और फिर एक्सटरनल स्फिंक्टर को क्रॉस करता हुआ एनल की ओपनिंग के एक या दो इंच बाहर जाकर खुलता है।

भगन्दर काफी पीड़ादयक रोग है। भगंदर रोग में मरीज के गुदा के अंदर और बाहर नली में घाव या फोड़ा हो जाता है। घाव छोटा या बड़ा हो सकता है। जब यह फोड़ा फट जाता है तो इससे खून बहने लगता है। खून बहने के कारण मरीजों को गुदा द्वार के पास बहुत अधिक दर्द होता है। भगंदर के रोगियों को मल त्यागने के समय बहुत अधिक पीड़ा होती है। रोगी को बैठने पर भी तेज दर्द होता है। प्रायः यह देखा जाता है कि जब किसी को भगंदर रोग होता है तो मरीज बहुत चिंतित हो जाता है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भगंदर का इलाज कराने के साथ-साथ अगर आप भगंदर के लिए डाइट प्लान का पालन करेंगे तो बीमारी पर नियंत्रण पा सकेंगे।

 

भगंदर की बीमारी कैसे होती है? - bhagandar kee beemaaree kaise hotee hai?

यहां भगंदर के लिए डाइट चार्ट की जानकारी दी जा रही है। इस डाइट प्लान को अपनाकर आप ना सिर्फ भगंदर के इलाज के दौरान उचित लाभ पा सकेंगे बल्कि बीमारी को जल्द ठीक कर सकेंगे।

भगंदर की शुरुआत कैसे होती है?

भगन्दर रोग होने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि जब किसी व्यक्ति के मलद्वार के पास कोई फोड़ा बन जाता है और उसमें जब कई मुंह बन जाते हैं और रोगी व्यक्ति इस फोड़े से छेड़छाड़ करता है तो उसे यह रोग हो जाता है। अधिक चटपटी चीजें खाने के कारण मलद्वार के पास फोड़ा हो जाता है जो आगे बढ़कर भगन्दर का रूप ले लेता है।

भगंदर की पहचान क्या है?

भगंदर के लक्षण: मलद्वार से रक्तस्नाव बुखार लगना, ठंड लगना और थकान होना कब्ज होना, मल नहीं हो पाना गुदा के पास से बदबूदार और खून वाली पस निकलना

भगंदर कितना खतरनाक है?

भगंदर का ठीक समय पर इलाज न किया जाए तो यह कैंसर का रूप भी ले सकता है। कुछ समय बाद भगंदर अपना मुंह दूसरी तरफ भी बना लेता है। दोमुखी द्वार बन जाने की वजह से मरीज को ज्यादा तकलीफ का सामना करना पड़ता है। कभी कभी ऐसी स्थिति भी बन जाती है कि इसका मुंह जांघ के किसी हिस्से पर उभर आता है जो की बहुत खतरनाक है।

भगंदर कैसे ठीक हो सकता है?

यदि व्यक्ति के आंत (intestine) का आखिरी हिस्सा गुदा के पास की स्किन से जुड़ जाता है तो इसे एनल फिस्टुला या भगंदर कहते हैं। जैसे-जैसे यह जोड़ खाली होता है इसमें पस और खून भी भर जाता हैं। भगंदर और बवासीर दोनों ही अलग रोग हैं। Pristyn Care में भगंदर का इलाज लेजर ट्रीटमेंट के जरिए होता है।