कौन सी गोली खाने से नशा होता है? - kaun see golee khaane se nasha hota hai?

जागरण संवाददाता, कानपुर : यह दो मामले उदाहरण मात्र हैं। दरअसल ऐसे न जाने कितने युवा हैं जो पेट दर्द में आराम के लिए दवा लेते-लेते कब इनके लती हो गए, पता ही नहीं चला। अब तो नशे के लिए युवा दर्जनों की तादाद में स्पास्मोप्रॉक्सीवानकैप्सूल का सेवन कर मौत के मुंह में जा रहे हैं लेकिन इस पर बंदिश नहीं लग पा रही है।

फार्मूला बदला पर कम नहीं हुई डिमांड

स्पास्मोप्रॉक्सीवॉन कैप्सूल में पहले डेक्स्ट्रामार्फेन साल्ट होने से नशा होता था। इससे पेट दर्द से फौरन राहत मिल जाती है इसलिए नशे के रूप में इस्तेमाल होने लगा। इसकी शिकायत मिलने पर सरकार के हस्तक्षेप पर फार्मूला बदल दिया गया। डेक्स्ट्रामार्फेन को हटाकर ट्रामाडॉल, डाइसाइक्लोमिन और एसिटामिनोफेन के फार्मूले के साथ स्पास्मोप्रॉक्सीवॉन प्लस नाम से दवा लाच की गई। फिर भी इसका इस्तेमाल कम नहीं हो रहा है। युवा नीला कैप्सूल के नाम पर इसे बेधड़क खरीदते हैं।

विशेषज्ञ की राय

स्पास्मोप्रॉक्सीवॉन प्लस कैप्सूल अब नुकसानदेह नहीं है लेकिन अधिक सेवन खतरनाक है। इससे किडनी खराब हो जाती है। मेडिकल स्टोर पर आसानी से मिलती है इसलिए युवा इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। परिजन को भी ध्यान देना होगा कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं यदि युवा इसका इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्हें लेकर तत्काल डॉक्टर से मिलें। - डॉ. बृजेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।

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(केस : 1)

शहर के एक व्यापारी के पुत्र को पेट में कुछ समय पहले दर्द हुआ। पड़ोस के एक मेडिकल स्टोर से स्पास्मोप्रॉक्सीवॉन कैप्सूल लिया। उसे दर्द से आराम मिल गया। कुछ दिन बाद दोबारा दर्द उठने पर उसने वही दवा खरीदकर खाई। उसे दवा खाने से आराम मिला और धीरे-धीरे उसकी लत लग गई। रोज 25-30 कैप्सूल खाने लगा। कुछ समय बाद शरीर कमजोर होने से उसकी मौत हो गई।

(केस दो)

एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के बेटे को स्पास्मोप्रॉक्सीवान कैप्सूल की आदत लग गई। वह एक दिन में 50 कैप्सूल तक खाने लगा। शरीर कमजोर होता जा रहा था। एक दिन परिजन ने उसे कैप्सूल खाते पकड़ लिया तो इसकी जानकारी हुई। डॉक्टरों से दिखाने के बाद उसे नशा मुक्ति केंद्र में रखा तब उसकी लत छूटी।

सहरसा : जो दवा हमें रोगमुक्त करती है, उसी दवा का उपयोग अब युवा नशे के लिए कर रहे हैं. नशे के रूप में अब तक पान, गुटखा, गांजा, भांग, खैनी, बीड़ी, सिगरेट, ताड़ी और शराब लिया जाता था. लेकिन वर्तमान परिदृश्य में दवा की कुछ श्रेणी, ओपीएम युक्त कफ सिरप और कुछ ग्रुपों के इंजेक्शन सस्ते नशे के रूप में धड़ल्ले से उपयोग किये जा रहे हैं. राज्य में शराबबंदी के बाद शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी दवाओं की बिक्री काफी बढ़ गयी है. लेकिन इस पर चौकसी नहीं के बराबर है. लिहाजा जिले में लीवर व किडनी के रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है.

बिकती है प्रतिबंधित दवा

सहरसा शहर और आस-पास दवा की दुकानों से डॉक्टरों की परची के बगैर धड़ल्ले से दवाइयां बेची जाती हैं. मेडिकल स्टोर वाले अपने थोड़े फायदे के लिए ग्राहकों को बिना कारण समझाये दवा मुहैया करा देते हैं. मालूम हो कि पेंटविन इंजेक्शन, कॉरेक्स सिरफ, फोर्टवीन, स्पाजमो प्राक्सीवान कैप्सूल, कंपोज का नशे के लिए उपयोग किया जा रहा है. नशा का यह समान सस्ते दर पर उपलब्ध होने के कारण युवाओं में इसका चलन बढ़ चुका है.

प्रतिबंधित कॉरेक्स सिरप की धर-पकड़ के लिए छापे तो मारे जा रहे हैं. परंतु कोई बड़ी सफलता उत्पाद विभाग को हाथ नहीं लगी. बुधवार को हुई छापामारी में भी स्थानीय पुलिस खाली हाथ लौटी है. ओपीएम की मात्रा जिस कफ सीरफ में अधिक होती है. उसका सेवन युवा वर्ग नशे के रूप में करते हैं. प्रॉक्सीवान पेट दर्द से राहत की दवा है. जो दो-तीन रुपये में उपलब्ध होता है. युवा इएक साथ चार कैप्सूल खाकर मस्त हो जा रहे हैं. इसके अलावा पेंटविन इंजेक्शन लगाकर भी युवा वर्ग नशे में चूर हो रहे हैं. रेलवे स्टेशन एवं कबाड़ चुनने वाले व भीख मांग कर जीवन यापन करने वालों में वोनफिक्स सूंघने की लत लग गयी है.

नशे के लिए युवा स्पास्मो प्रॉक्सीवान, एमवीटामइन, एंटी एलर्जिक टेबलेट ऐविल, नारफीन एंपुल, नाइट्रोसीन टेबलेट, आयोडेक्स, कॉरेक्स व फोर्टवीन का उपयोग कर रहे हैं. इसमें से नारफिर व नाइट्रोसिन प्रतिबंधित है. फिर भी मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध हो जाती है. स्वास्थ्य विभाग के सूत्र के अनुसार, शराबबंदी के बाद ऐसी कुछ दवाओं की बिक्री डेढ़ गुना तक बढ़ गयी है. डॉ यूसी मिश्रा कहते हैं कि पेंटविन इंजेक्शन तत्काल नशा करता है. वोनफिक्स सूंघने से नशा होता है.

कॉरेक्स सिरप या कोई भी दवा जो नशा के रूप में ली जा रही है, वह व्यक्ति के स्नायु तंत्र, किडनी, लीवर पर बुरा प्रभाव डालता है और पेरालाइसिस का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. सेंट्रल ड्रग स्टेंडर्ड आर्गेनाइजेशन के निर्देश के अनुसार नींद की गोली तथा हैवी एंटीबयोटिक दवा के लिए एमबीबीएस डॉक्टर की परची जरूरी है. लेकिन दवा विक्रेताओं द्वारा इसका पालन नहीं किया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित मेडिकल स्टोर में तो इन दवाओं को धड़ल्ले से बिना किसी पुरजे के बेचा जाता है. शहरी क्षेत्र के कई दुकान भी इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं.

यहाँ पर आज हम चर्चा करेंगे उन दवाईयों के बारे में जिनका इस्तेमाल नशे के लिये किया जाता है। खासकर हमारे देश में क्या बड़ा क्या छोटा सभी इसके मूरीद नजर आते हैं। सामान्य तौर पर आम लोग इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते पर पिछले कुछ सालों से इस प्रकार के नशे का चलन काफी बढ़ गया है।

तो यहाँ हम देखेंगे कि किस तरह की दवाईयाँ ओवर द कांउटर उप्लब्ध हैं जिनका इस्तेमाल नशे के लिये किया जाता है।

सबसे पहला टाइप – सेंट्रल नर्वस सिस्टम डिप्रेसेन्ट (central nervous system depressant) 

ये वो ड्रग्स होता हैं जो ब्रेन में मौजूद न्युरोट्रांसमिटर (neurotransmitter)  के लेवल को कम कर देता है। इन दवाओं को डाउनरस् भी कहते हैं। इन दवाओं को नींद न आने पर (insomnia), एन्कजाइटी आदी के लिये प्रिसक्राइब किया जाता है। बाजार में ये अल्प्राजोलम (Alprazolam), ऐटिवेन (Ativan), लिब्रियम (Librium), वैलियम (Valium) ब्रांड नेम से फेमस हैं। इस दवा के निरंतर इस्तेमाल से सिरियस साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे 

खतरनाक तरीके से ब्लड प्रेशर लो हो जाना।

सांसो की गति का कम हो जाना।

शरीर का मुवमेंट कंट्रोल में न रहना।

 

दुसरा टाइप – डेक्सट्रोमेथोरफेन (dextromethorphan) 

 ये दवा मोरफ्नेन क्लास (morphinan class ) ड्रग है। इस दवा में अफीम का कोई अंश नहीं होता और ये मोरफीन से synthesize  की जाती है। यो दवा आमतौर पर ठंड और खांसी के लिये प्रिसक्राइब की जाती है और ये एडिक्टिव नेचर की ड्रग नहीं है पर इसका इस्तेमाल नशे के लिये किया जाता है। इसके पॉपुलर ब्रांड नेम एक्टिकोफ (acticof), एकोरिल (Acorill-DX) आदी हैं। लेकिन इसके इसके सिरियस साइड इफेक्ट्स जैसे

मतिभ्रम (Hallucinations) 

अनियंत्रित उल्टीयां होना (Uncontrolled vomiting)

सांसो की गति का कम हो जाना।

तीसरा टाइप – ओपियेट्स (Opiates)

ये वो दवायें हैं जो अफीम से बनाई जाती हैं या जिनमे अफीम का अंश होता है। ये दवाये मुख्य रुप से पेन किलर होती हैं। इस के पॉपुलर ब्रांड नेमस् हैं मोरफीन (Morphine), ट्रामाडोल (Tramadol), एलप्रेक्स (Alprax) आदी  ये दवायें बहुत ही एडिक्टिव नेचर की होती हैं और इसके बहुत सारे साइड इफेक्टस् होते हैं पर सबसे ज्यादा खतरनाक होता है इसका ओवरडोज होना। इसके साथ ओपियेट्स के और सिरियस साइड इफेक्टस हैं जैसे 

मतिभ्रम (Hallucinations) 

इंसान का कोमा में चले जाना

इम्युन सिस्टम (Immune system) कमजोर हो जाना

चौथा टाइप – कोडीन बेस्ड कफ सिरप

ये नशे के लिये सबसे ज्यादा पॉपुलर मेडिसिन है, ये ड्रग पेन रिलिफ और खाँसी के लिये प्रिसक्राइब किया जाता है। कोरेक्स ब्रांड नेम से ये ड्रग नशा करने वालो के बीच फेमस है। इसके और ब्रांड हैं जैसे टोसेक्स (Tossex), कोडिस्टार (Codistar) etc. इस ड्रग का ओवरडोज होना बेहद खतरनाक होता है इसके साथ

धीमा रक्तचाप (Low B.P) और सांस लेने में तकलीफ होना भी शामिल है।

इसके अलावा लंबे समय से इसकी लत का शिकार आदमी दिमागी रुप से अस्थिर भी हो जाता है।

हमारी सोसायटी में इस टॉपिक को लेकर ज्यादा अवेयरनेस नहीं है कि इन दवाओं का इस्तेमाल नशे के लिये किया जाता है। इसके बावजूद प्रिसक्रिपशन ड्रग अब्युज (prescription drug abuse)  लगातार बढ़ रहा है।

आइये यहां हम इसके कारण जानेगे की क्यों इसका चलन बढ़ रहा है।

  • इन दवाओं को एक ऑल्टरनेट की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। कई बार एडिक्ट हेरोइन या ब्राउन शुगर जैसे ड्रग हासिल नहीं कर पाता चाहे ऐसा पैसों की कमी के कारण हो या फिर पुलिस के डर से। ऐसी कंडिशन में ये ड्रग ऑल्टरनेटिव का काम करती है।
  • आसान पहुँच या ease of availability,  ये सारे ड्रग जिनकी हमने बात करी फारमेसी/मेडिकल में आसानी से मिल जाते हैं। ये सारे ड्रग “to be sold by prescription only” हैं पर कुछ पैसे देकर ये आसानी से खरीदे जा सकते हैं।
  • इनमें से कुछ ड्रग्स जब शराब के साथ या दुसरे ड्रग्स के साथ कॉम्बिनेशन के साथ लेते हैं तो नशे की तीव्रता (intensity) बढ़ जाती है। ये प्रेक्टिस बहुत खतरनाक  होती है क्योंकि ठीक अनुपात न होने से डोज से मौत भी हो सकती है।
  • कई बार लोग अपना इलाज खुद ही करने लग जाते हैं और बिना डॉक्टर की सलाह के इन दवाओं को खाने लग जाते हैं और धीरे-धीरे उनका शरीर इन दवाओं पर डिपेनडेंट हो जाता है। 
  • दुसरे नशे के सामान के तपलना में ये नशा बहुत सस्ता होता है। इसके साथ इसको बेरोक-टोक कहीं भी ले जाया जा सकता है।

नशे के लिये इन ड्रग्स का युज युवाओं   के बीच काफी कूल माना जाता है। और उनको लगता है कि ये शौक उनके कंट्रोल में है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं। एक दिन में कुतुबमिनार नहीं खड़ा होता ठीक उसी तरह से धीरे-धीरे ये दवाई आपकी सेहत के लिये समस्याओं का कुतुबमिनार बना देंगी।

हमारे सिस्टम में प्रिसक्रिपशन ड्रग अब्युज (prescription drug abuse)  के लिये कड़े कानुन हैं पर लागू करने प्रक्रिया बड़ी ही कॉम्पलेक्स है। इस तरह की बुराई से बचने के लिये जागरुता ही सबसे हथियार है।

हमारा आपसे अनुरोध है कि कोई भी दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें और यदि कभी ऐसी स्तिथी  आती है तो प्रिसक्रिपशन  के अनुसार तय मात्रा में लें।  

नशे वाली टेबलेट का नाम क्या है?

एलप्रेक्स ट्राइका, एटीवान, लोराजीपाम, रिवोट्रील क्लोनाजीपाम ऐसी दवाएं हैं, जिनका उपयोग नशे के लिए किया जाने लगा है। इन दवाओं को ज्यादातर नींद न आना, दर्द और तनाव को दूर करने वाले मरीज को दिया जाता है।

नशे की गोली कितने की आती है?

बाजार में 15 गोलियों की स्ट्रिप 5.65 रुपए एमआरपी पर उपलब्ध है। एक गोली 25 एमजी की है। बाजार में यह 50 एमजी में भी उपलब्ध है। 25 एमजी वाली स्ट्रिप से तीन कैप्सूल बनाए जाते हैं, जो नशे के बाजार में पच्चीस से तीस रुपए तक में बेचे जाते हैं।

सबसे ज्यादा नशीली दवा कौन सी है?

सबसे अधिक पेन किलर प्रॉक्सीवान बिक रही है। क्योंकि कहने को तो यह दर्दनाशक दवा है, लेकिन नशे के लिए इसकी दो टेबलेट काफी है।

सबसे अच्छा नशा कौन सा है?

कोकीन यानी कोक बॉलीवुड का ये सबसे फेवरेट ड्रग्स और नशा है. यहां इसे कोक के नाम से बुलाते हैं. एक ग्राम कोक की कीमत 6 से 7 हजार रुपए है.