सन् 1984 में वैज्ञानिकों ने दक्षिण ध्रुव के ऊपर ओजोन परत में 4 किलोमीटर व्यास के ओजोन छिद्र का पता लगाया। अब यह छिद्र न्यूजीलैण्ड और आस्टे्रलिया की ओर बढ़ रहा है। यहाँ मनुष्यों एवं पशुओं के शरीर में लाल चकते, त्वचा कैंसर आदि व्याधियाँ बढ़ रही है। तथा तापमान में वृद्धि हो रही है। ओजोन छिद्र के कारणओजोन छिद्र का कारण, ओजोन छिद्र का क्या कारण है? वैज्ञानिकों ने ओजोन परत के क्षरण लिये जिम्मेदार निम्नलिखित कारणों की खोज की है-
यह रसायनिक अभिक्रियाएँ कम ताप पर सम्पन्न होती है। इसके लिए तापमान शून्य से 80 डिग्री कम होना चाहिए। धु्रवों पर तापमान काफी कम होता है। यही कारण है कि ओजोन छिद्र, ध्रुव के ऊपर पैदा हुआ। 80 के दषक में चीन में 5 लाख रेफ्रीजिरेटर का उत्पादन प्रतिवर्ष किया। अब वह 80 लाख रेफ्रीजिरेटर का उत्पादन प्रतिवर्ष कर रहा है। अमेरिका में यह उत्पादन 20 गुना अधिक है, भारत में प्रतिव्यक्ति सी.एफ.सी. खपत 10 ग्राम है जबकि अमेरिका में यह खपत 3000 ग्राम प्रति व्यक्ति है। समताप मंडल में ओज़ोन की मात्रा के कम होने के कई कारण बताए गए हैं जिनमें से एक प्रमुख कारण सी. एफ. सी. नामक रसायन के अत्याधिक उपयोग से जुड़ा है। सी. एफ. सी. (क्लोरो फ्लोरो कार्बन) रसायन का उपयोग फ्रिज, एयर कंडीशनर की गैस बनाने, पेंट, फोम, कीटनाशक बनाने आदि में किया जाता है। सी. एफ. सी की एक विशेषता यह है कि यह वायुमंडल में लंबे समय तक बना रहता है। सी. एफ. सी. जब पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आता है तो अपने में से क्लोरीन के परमाणु छोड़ देता है। यह क्लोरीन ओज़ोन से क्रिया करके क्लोरीन मोनोऑक्साइड और ऑक्सीजन बनाता है। क्लोरीन मोनोऑक्साइड काफी अस्थिर किस्म का अणु होने की वजह से जल्दी ही क्लोरीन में फिर से बदल जाता है। और यह क्लोरीन एक बार फिर ओज़ोन से क्रिया करके फिर से क्लोरीन मोनोऑक्साइड और ऑक्सीजन बनाता है। फिर पुरानी क्रिया का दोहराव होता है। यानी एक स्थान विशेष पर ओज़ोन की मात्रा कम होना शुरू हो जाती है। अब शायद एक सवाल यही बचता है कि ओजोन परत में छेद बनने की शुरुआत पृथ्वी के ध्रुवीय हिस्सों में ही क्यों हुई होगी? क्लोरीन द्वारा ओज़ोन से की जाने वाली रासायनिक क्रिया; जो ऊपर बताई गई है; के लिए ध्रुवीय प्रदेशों के ऊपर का ठंडा और अधिक दाब वाला वातावरण काफी अनुकूल साबित हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत में छेद का कारण इस साल आया ध्रुवीय चक्रवात है. पोलर वोर्टेक्स के चलते धरती के उत्तरी ध्रुव पर करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर का छेद खुल गया है. यह डाटा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए के जिस उपग्रह से मिला है उसका नाम कोपरनिकस सेंटिनेल-5पी है. 2020 की शुरुआत से ही रिसर्चरों को आर्कटिक के ऊपर ओजोन का घनत्व काफी कम लगने लगा था. अप्रैल आते आते इस छेद का आकार बढ़कर 10 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया. जर्मनी के अल्फ्रेड-वेगनर इंस्टीट्यूट में एटमोस्फियरिक फिजिक्स विभाग के प्रमुख मार्कुस रेक्स का कहना है, "ओजोन परत के जिन हिस्सों की मोटाई सबसे ज्यादा है, उनमें भी करीब 90 फीसदी की कमी आई है." आर्कटिक के ऊपर घटती ओजोन परत को लेकर काफी पहले से चिंता जताई जाती रही है. क्या सामान्य है ओजोन का घटना असल में धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के पास के वातावरण से हर साल ओजोन की मात्रा घटती है. इसका कारण वहां का बेहद कम तापमान होता है जिसके चलते ध्रुवों के ऊपर के बादल आपस में चिपक कर एक बड़ा पिंड बना लेते हैं. उद्योग धंधों से निकलने वाली क्लोरीन और ब्रोमीन जैसी गैसों की इन बादलों से मिलकर ऐसी प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण वहां स्थिति ओजोन परत का क्षरण होने लगता है. तस्वीर: Imago/UPI Photoधरती को चारों ओर से घेरने वाली ओजोन परत उसकी सुरक्षा करती है. ऑक्सीजन के तीन अणु मिलकर ओजोन बनाते हैं. ओजोन की परत धरती से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर शुरू हो जाती है और 50 किलोमीटर ऊपर तक मौजूद रहती है. ओजोन की परत इंसानों में कैंसर पैदा करने वाली सूरज की पराबैंगनी किरणों को भी रोकती है. पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि ओजोन परत इस सदी के मध्य तक पूरी तरह ठीक हो सकती है. कम तापमान है एक कारण वैज्ञानिकों ने 1970 के दशक में चेतावनी दी थी कि पृथ्वी के ऊपर मौजूद ओजोन परत लगातार पतली होती जा रही है. अंटार्कटिक के ऊपर मौजूद छेद का पता 1985 में चला था. 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत ज्यादातर देशों ने क्लोरोफ्लोरो कार्बन पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका इस्तेमाल कूलिंग के लिए किया जाता था. सीएफसी क्लोरीन गैस में बदलकर ओजोन को रासायनिक रूप से तोड़ता है. इसका अच्छा असर अब ओजोन परत पर दिखाई पड़ रहा है. रेक्स का कहना है, "अगर ये रेगुलेशन नहीं होते तो इस साल के हालात और भी बुरे होते." |