कबीर साहब का जन्म कैसे हुआ था? - kabeer saahab ka janm kaise hua tha?

कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।

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चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

 

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कबीर वाणी

माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो

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आया है किस काम को किया कौन सा काम
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल

क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

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कबीर भजन

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो। उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
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ऋतु फागुन नियरानी हो

ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।
सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, 
सोई पिया की मनमानी,
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,
सतगुरु से लिपटानी ।
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।
इक इक नाम बिना बहकानी,
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कबीर की कुंडलियां

कबीर ने कुंडलियां भी कही हों इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन कबीर की कुंडलियां भी प्रचलित हैं। ये कुंडलियां शायद उनके प्रशंसकों या उनके शिष्यों ने कबीर की साखियों को आधार बना लिखी हों। यदि आपके पास इसकी और जानकारी हो या आपने इसपर शोध किया हो तो कृपया जानकारी साझा करें।

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कबीर की साखियां | संकलन

कबीर की साखियां बहुत लोकप्रिय हैं। यह पृष्ठ कबीर का साखी संग्रह है।

साखी रचना की परंपरा का प्रारंभ गुरु गोरखनाथ तथा नामदेव के समय हुआ था। गोरखनाथ की जोगेश्वरी साखी काव्यरूप में उपलब्ध सबसे पहली 'साखी रचना मानी जाती है।

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संत कबीर दास का नाम साहित्य जगत में विशेष स्थान रखता है। उनका सूफियाना अंदाज और रूढ़िवादियों के खिलाफ कट्टर रवैया उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। वे एक मशहूर कवि व संत के रूप में प्रसिद्ध हुए।

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कबीर दास के जन्म का रहस्य

संत कबीर दास के जन्म की सटीक जानकारी किसी को नही है। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म सन् 1398 में हुआ था। वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबित कबीर दास का जन्म सन् 1440 में हुआ था।

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ब्राह्मण के घर जन्में थे कबीर

कबीर दास के जन्म एवं जाति में भी विभिन्न मत है। शिक्षाविदों के अनुसार कबीर दास वाराणसी में एक ब्राह्मण के घर जन्में थे। जबकि बाद में उनकी परवरिश एक मुस्लिम परिवार में हुई।

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कबीर को तालाब किनारे छोड़ा था

बताया जाता है कि संत कबीरदास को शिशु अवस्था में उनकी मां ने लोक लाज के डर से उन्हें छोड़ दिया था। क्योंकि कबीर की मां एक विधवा ब्राह्मणी थीं। कबीर की मां ने उन्हें एक तालाब के किनारे छोड़ा था।

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जुलाहे दंपत्ति ने किया पालन पोषण

कहते हैं कि उसी तालाब के किनारे से गुजर रहे एक जुलाहे दंपत्ति को पानी में बहती एक टोकरी में शिशु दिखा। वो बालक कबीर दास थे। जुलाहा दंपत्ति नीरू व रीमा ने शिशु को टोकरी से निकालकर अपने पास रख लिया, व उसका पालन-पोषण किया।

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जीवन-यापन के लिए किया जुलाहे का कार्य

संत कबीर दास एक मुस्लिम परिवार में पले-बढे़। उन्होंने जीवन चलाने के लिए अपने माता-पिता के पैतृक व्यवससय बुनाई को अपनाया। वह जूल्हा बनकर कपड़ों की बुनाई करते थे।

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बिना शिक्षा भी कहलाएं ज्ञानी

कबीर दास ने स्कूली शिक्षा भले ही कम ग्रहण की हो, लेकिन उनके विचार काफी प्रभावशाली थे। उन्होंने अपने व्यवहारिक ज्ञान के आधार पर कई कविताओं व लेखों की रचना की। उन्हें उस युग का महानायक भी कहा गया।

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बचपन से ही पसंद थी साधुओं की संगति

संत कबीर दास का लालन-पालन भले ही मुस्लिम परिवार में हुआ, लेकिन उनकी प्रवृत्ति बचपन से ही साधुओं की थी। वे भक्ति में हमेशा डूबे रहते थे। वे हिंदू भक्ति गुरू रामानंद से काफी प्रभावित थे।

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पैरों के नीचे आकर ग्रहण की सीख

बताया जाता है कि कबीर दास वाराणसी के पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए। जब स्वामी रामनंद आए तो उन्होंने गलती से कबीर पर पैर रख दिया व राम-राम कहने लगे। राम के इस शब्द को ही गुरु वाणी मान कबीर दास ने स्वामी रामानंद को अपना गुरु माना।

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निभाई सांसारिक जिम्मेदारियां

कबीर दास स्वभाव से भले ही एक संत हो, लेकिन उन्होंने अपने सांसरिक दायित्वों से कभी मुंह नहीं मोडा। उन्होंने लोई नामक स्त्री से विवाह किया। जबकि उनके कमाल एवं कमाली नामक पुत्र-पुत्री भी हुए।

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निर्गुण ब्रह्म के थे उपासक

संत कबीर दास एक सूफी की तरह लोगों को प्रेरण्दायी बातें बताते थे। वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक भी थे। उन्हें धर्म व जाति के नाम पर झूठे आडंबर बिल्कुल पसंद नही थे।

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हिंदू-मुस्लिम के बनें पहले प्रेरक

संत कबीर दास ने खुद को कभी भी जाति-धर्म के बंधन में नहीं बांधा। उन्होंने समान रूप से हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदायों को अच्छे कार्य करने को प्रेरित किया। इसलिए उन्हें प्रेरक भी कहा जाता है।

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समाज को दिखाई नई राह

कबीरदास कहते हैं कि एक बूंद से सृष्टि रची है। तो फिर कौन ब्राहृमण और कौन शूद्र। उनके इस दर्शन से जाति, धर्म, वर्ग, भाषा, संप्रदाय की भिन्नता खत्म हुई। समाज के प्रति लोगों ने अपना दृष्टिकोण बदला।

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जीव हिंसा के खिलाफ थे कबीर दास

संत कबीर दास जातिगत भेद-भाव के साथ जीव हिंसा के भी खिलाफ थे। उनका मानना है कि दया, हिंसा और प्रेम का मार्ग एक है। ऐसे में किसी भी तरह की हिंसा का जन्म हिंसा ही होगी।

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प्रमुख लेखनी

कबीर दास ने समाज सुधार के लिए कई कविताएं व लेख लिखे हैं, इनमें सबसे प्रमुख बीजक ग्रंथ है। ये ग्रंथ तीन भागों, साखी, सबद व रमैनी में बंटा हुआ है। इसके अलावा उन्होंने गुरू-महिमा, ईश्वर महिमा, सतसंग महिमा व माया आदि दार्शनिक जीवनी लिखी है।

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शैय्या स्थान पर मिले फूल

कबीर दास की मृत्यु से भी कई भ्रांतियां जुड़ी है। कई विद्वानों के मुताबिक उनकी मृत्यु सन् 1518 में मगहर में हुई है। उनके शव के स्थान पर कुछ फूल पड़े हुए मिले थे। जिसे हिंदू व मुस्लिम समुदायों ने आपस में बांट लिए।

कबीर साहब का जन्म कैसे हुआ?

उनके जन्म को लेकर ऐसा भी वर्णन है कि वे रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक ब्राह्मणी के गर्भ से जन्मे थे, जो एक विधवा थी। कबीरदास जी की मां को भूल से रामानंद स्वामी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था

कबीर दास जी का जीवन परिचय हिंदी में?

कबीर दास जी का जन्म विक्रम संवत 1455 अर्थात सन 1398 ईस्वी में हुआ था। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इनका जन्म काशी के लहरतारा के आसपास हुआ था। यह भी माना जाता है कि इनको जन्म देने वाली, एक विधवा ब्राह्मणी थी। इस विधवा ब्राह्मणी को गुरु रामानंद स्वामी जी ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था।

Kabir का जन्म कब और कहां हुआ था?

कवि-संत कबीर दास का जन्म 15 वीं शताब्दी के मध्य में काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था

Kabir का जन्म और मृत्यु कब हुआ था?

भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार 'कबीर' का अर्थ महान होता है।