फेफड़े बदलने में कितना खर्चा आता है? - phephade badalane mein kitana kharcha aata hai?

विस्तार

फेफड़ा प्रत्यारोपण को लेकर देश का सबसे बड़ा चिकित्सीय संस्थान एम्स गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) से मंजूरी और लाइसेंस मिलने के बाद एम्स प्रबंधन फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू करने से पहले असमंजस की स्थिति में है। 

इसके पीछे बड़ी वजह इलाज का अत्यधिक महंगा होना है। कारण दिल्ली एम्स आने वाले अधिकतर मरीजों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय होती है। इसलिए शुरुआत में एम्स फेफड़ा प्रत्यारोपण मुफ्त में करने की तैयारी में है। हालांकि यह सुविधा कुछ ही मरीजों को मिल पाएगी।

वर्ष 1994 में पहला हृदय प्रत्यारोपण करने वाले एम्स में फिलहाल लिवर, किडनी और दिल का प्रत्यारोपण होता है। इन अंगों के प्रत्यारोपण में करीब एक लाख रुपये तक खर्च होता है। जबकि कुछ केस में राशि डेढ़ से दो लाख रुपये भी पहुंचती हैं।

फेफड़ों का प्रत्यारोपण देश के चुनिंदा अस्पतालों में होता है। निजी अस्पतालों में इसके प्रत्यारोपण की कीमत करीब 50 लाख रुपये तक है। चूंकि प्रत्यारोपण के बाद भी मरीज को जीवन पर्यंत दवाएं लेनी होती है, जिसका खर्च प्रति माह कम से कम 10 हजार रुपये आता है।

बताया जा रहा है कि शुरुआती मरीजों को मुफ्त में फेफड़ों के प्रत्यारोपण की सुविधा देने के लिए एम्स  कुछ सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में हैं। सूत्रों की मानें तो एम्स इसके लिए अपना बजट भी खर्च करने को तैयार है।

हालांकि इसके बाद मरीजों को प्रत्यारोपण का खर्च वहन करना पड़ेगा। लाखों रुपये के इस उपचार को लिवर, किडनी और दिल के प्रत्यारोपण की भांति कम करने के लिए एम्स दवाओं, सर्जिकल सामान इत्यादि की क्रास कटिंग पर जोर दे सकता है।

दरअसल कुछ ही माह पहले एम्स को फेफड़ों के प्रत्यारोपण का लाइसेंस मिला है। अभी तक तमिलनाडु के अस्पतालों में फेफड़ा प्रत्यारोपण की सुविधा है। जबकि दो वर्ष पहले पीजीआई, चंडीगढ़ में एक मरीज का प्रत्यारोपण हुआ था। एम्स के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि दिल्ली में एम्स के अलावा गंगाराम अस्पताल के पास भी लाइसेंस है लेकिन वहां भी आजतक एक भी प्रत्यारोपण नहीं हुआ है।

नई दिल्ली
देश में सबसे पहले हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाले संस्थान AIIMS ने अब लंग ट्रांसप्लांट (फेफड़े प्रत्यारोपण) करने का फैसला किया है। राजधानी दिल्ली में लंग ट्रांसप्लांट करने वाला यह पहला जबकि देश का दूसरा अस्पताल होगा। अभी तक सिर्फ PGIMER चंडीगढ़ में ही लंग ट्रांसप्लांट होता है।

AIIMS ने हाल ही में इस जीवनदायिनी सर्जरी के लिए आवेदन दिया है, जिसे स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंजूर कर दिया है। यह इंस्टीट्यूट अब वेटिंग लिस्ट तैयार करने के लिए ऐसे मरीजों की स्क्रीनिंग कर रहा है जो लंबे समय से आखिरी स्टेज पर फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे हैं और जिन पर अभी मौजूद मेडिकल थेरेपी काम नहीं कर रही है।

AIIMS में पल्मनेरी मेडिसिन के प्रमुख और प्रफेसर डॉक्टर अनंत मोहन ने कहा कि कुछ सप्ताह पहले एक मरीज को हमने सर्जरी के लिए चुना था लेकिन ट्रांसप्लांट से पहले ही उसकी मौत हो गई। उन्होंने आगे बताया, 'हम दूसरे दो-तीन मरीजों की लिस्ट भी तैयार कर रहे हैं।'

गौर करने वाली बात है कि हार्ट ट्रांसप्लांट की तरह ही लंग ट्रांसप्लांट भी किसी मृत डोनर द्वारा दान किए गए अंग के जरिए ही संभव है। अभी तक दुनियाभर में ऐसे सिर्फ 4,000 ट्रांसप्लांट ही हुए हैं, जिनमें से 200 भारत में हुए हैं। देश में एक लंग ट्रांसप्लांट को छोड़कर बाकी सभी प्राइवेट हॉस्पिटल में ही हुए हैं, जहां इसकी कीमत 20-30 लाख रुपये तक हो सकती है। वहीं बाद में जीवनभर ली जाने वाली दवाइयों की बात करें तो यह कई लाख रुपये प्रति साल हो सकती है।

मरने के बाद फेफड़े दान करने वालों की है भारी कमी
AIIMS के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि संस्थान न सिर्फ ट्रांसप्लांट मुफ्त में करेगा बल्कि बाद में ली जाने वाली दवाइयां भी मुफ्त में मुहैया करेगा।

लंग ट्रांसप्लांट वह प्रक्रिया होती है जिसमें मरीज के खराब हो चुके एक या दोनों फेफड़ों को मृत डोनर के हेल्दी ट्रांसप्लांट से रीप्लेस किया जाता है। दुनिया में पहला लंग ट्रांसप्लांट अमेरिका में 1963 में किया गया था। लेकिन ज्यादा रिजेक्शन दर और हीलिंग में समस्या के चलते पिछले दशकों में बहुत कम ट्रांसप्लांट ही हो सके।

अमेरिका में कुछ डॉक्टर्स ने जीवित डोनर से लंग ट्रांसप्लांट करने की कोशिश भी की, जहां डोनर से लिए गए ट्रांसप्लांट को ट्रांसप्लांट किया गया लेकिन परिणाम उत्साहजनक नहीं रहा।

आंकड़ों से पता चलता है कि 1999 और 2011 के बीच दक्षिण एशिया में 5 विदेशियों का लंग ट्रांसप्लाट अलग-अलग अस्पतालों में हुआ। 2012 में मुंबई की एक 41 वर्षीय महिला इस जीवनदायिनी सर्जरी को कराने वालीं पहली महिला बनीं। वह पल्मनेरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थीं जिसमें फेफड़े के ऊतक (लंग टिश्यूज) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

अपोलो चेन्नै के चीफ कार्डियोथोरेकिक ऐंड ट्रांसप्लांट सर्जन डॉक्टर ए जी के गोखले ने कहा कि फेफड़ों की बढ़ती बीमारियों और बढ़ती जीवन प्रत्याशा के साथ लंग ट्रांसप्लांट की मांग में तेजी आई है।

सर्जरी के बाद होने वाला खर्च अधिकतर लोगों की पहुंच से बाहर
उन्होंने आगे बताया, 'हाई-ऐंड ऐंटीबायॉटिक्स और बेहतर सर्जिकल टेक्नीक्स के चलते सर्जरी की सफलता की दर बढ़ी है लेकिन अभी मरने के बाद अंग दान करने वाले लोगों की कमी है। इसके अलावा सर्जरी और उसके बाद होने वाले खर्च बहुत ज्यादा होता है जो अधिकतर लोगों की पहुंच से बाहर है।'

एक और डॉक्टर जिन्होंने कई लंग ट्रांसप्लांट किए हैं, उनका कहना है कि तेलंगाना जैसे राज्यों ने मरने के बाद विदेशियों को अंगदान करने की नीतियों को नए नियों के जरिए बैन कर दिया है। उन्होंने कहा, 'नए नियमों के चलते भी ऐसे ट्रांसप्लांट में कमी आई है क्योंकि कई लोग सर्जरी के बाद होने वाले खर्च नहीं उठा सकता।'

डॉक्टर्स का कहना है कि अमेरिका की तुलना में भारत में लंग ट्रांसप्लांट के बाद जीवित रहने वाले लोगों की दर बहुत कम है।

पब्लिक सेक्टर हॉस्पिटल PGIMER चंडीगढ़ ने हाल ही में एक 33 वर्षीय महिला का लंग ट्रांसप्लांट किया था। यह सर्जरी सफल हुई थी लेकिन सर्जरी के बाद उनमें एक मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी इन्फेक्शन हुआ और 14 दिन बाद उनकी मौत हो गई।

आर्टिफिशल लंग किया जा रहा तैयार
1994 में देश में पहला हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाली टीम का हिस्सा रहे डॉक्टर ए के बिसोई के मुताबिक, बात जब हार्ट या लंग ट्रांसप्लांट की हो टेक्निकल फीजिबिलिटी बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है।

मरने के बाद अंगदान करने वालों की कमी को खत्म करने के लिए कुछ वैज्ञानिक आर्टिफिशल लंग डिवेलप करने के लिए भी काम कर रहे हैं। आर्टिफिशल लंग को एक बैकपैक में ले जाया जा सकता है। फिलहाल, ऐसे मरीज बड़ी-बड़ी मशीनों पर निर्भर हैं जैसे कि कॉर्पोरील मेम्ब्रेन ऑक्सीजेनेशन (ECMO)जिसे ब्रीदिंग सपॉर्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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लंग्स ट्रांसप्लांट में कितना खर्चा आता है?

लंग्स ट्रांसप्लांट पर छह लाख से लेकर 35 लाख तक का खर्च आता है। सरकारी संस्थानों में यह खर्च छह से 10 लाख तक रहता है। वहीं सर्जरी ज्यादा जटिल होने की संभावना है तो दवाइयों का खर्च बढ़ता है।

क्या एक फेफड़े से इंसान जिंदा रह सकता है?

अस्पताल में दाखिल मरीज और होम ऑक्सीजन पर डिस्चार्ज किए गए मरीज भी डॉक्टर की सलाह से इस अभ्यास को कर सकते हैं। इससे उनकी ऑक्सीजन आवश्यकता कम करने में मदद मिल सकती है। स्वस्थ व्यक्ति भी सांस रोक कर रखने का अभ्यास कर सकते हैं। यह अभ्यास उन्हें अपने फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद करेगा।

क्या फेफड़ों को बदला जा सकता है?

यदि उन्हें वेंटीलेटर से न जोड़ा गया हो तो अस्पताल में होने वाले संक्रमण का जोखिम कम हो जाता है। यदि फेफड़ों को ऐसा नुकसान पहुंचा हो, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता तो प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है। यह स्वाइन फ्लू या एच1 एन1 इन्फ्लूएंजा में वरदान साबित हो सकता है।

फेफड़े खराब हो जाए तो क्या करना चाहिए?

Health Tips in Hindi: फेफड़े हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है..
अपने खाने में नमक की मात्रा को कम कर दें. ... .
ज्यादा मसालेदार खाना या फिर ऑयली फूड खाने से बचना चाहिए..
मीठे ड्रिंक्स पीने से बचना चाहिए. ... .
प्रोसेस्ड मीट प्रिजर्व करने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला नाइट्राइट फेफड़ों में सूजन और तनाव पैदा कर सकता है..