एकाकी व्यापार से आप क्या समझते हैं? - ekaakee vyaapaar se aap kya samajhate hain?

एकाकी व्यापार क्या है? एकाकी व्यापार का अर्थ (ekaki vyapar kya hai)

एकाकी व्यापार व्यावसायिक संगठन वह स्वरूप है जिसको केवल एक व्यक्ति स्थापित करता है। वही व्यक्ति आवश्यक पूंजी लगाता है, संचालन एवं प्रबंध करता है, लाभ प्राप्त करता है, हानि को सहन करता है और व्यापार का समस्त उत्तरदायित्व उसी एक व्यक्ति के कंधो पर होता है तथा लाभ-हानि का एकमात्र भाजक व वहनकर्ता भी वही होता है।
आगे जानेंगे एकाकी व्यापार की परिभाषा, एकाकी व्यापार की विशेषताएं।

एकाकी व्यापार की परिभाषा (ekaki vyapar ki paribhasha)

जेम्स स्टीफेंसन के अनुसार " एकाकी व्यापार वह व्यक्ति है जो व्यवसाय को स्वंय तथा अपने लिए ही करता है। इस प्रकार एकाकी व्यवसाय (व्यापार) का महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि वह व्यक्ति व्यवसाय को चलाने स्वामी ही नही होता। अपितु उसका संगठनकर्ता एवं प्रबन्धक भी होता है तथा सब कार्यों को करने अथवा हानि वहन करने के लिए उत्तरदायी होता है।"
सर्वश्री लुई हेने के शब्दों मे " एकाकी व्यापार व्यवसाय का वह स्वरूप है जिसका प्रमुख एक ही व्यक्ति होता है जो उसके समस्त कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है, उसकी क्रियाओं का संचालन करता है और लाभ-हानि का संपूर्ण भार स्वयं ही उठता है।"
बी. बी. घोष के अनुसार " एकाकी स्वामित्वधारी व्यवसाय मे, एक व्यक्ति की व्यवसाय का अकेला स्वामी होता है। वही व्यवसाय का प्रबंध और नियंत्रण करता है।"

डाॅ. जाॅन ए. शुबिन " एकाकी स्वामित्व व्यवसाय के अन्तर्गत एक ही व्यक्ति उसका संगठन करता है। उसका स्वामी होता है, अपने निजी नाम से व्यवसाय चलाता है।
किम्बाल एवं किम्बाल के अनुसार " एकाकी स्वामी अपने व्यवसाय से सम्बंधित समस्त बातों के लिए सर्वोच्च न्यायाधीश (अधिकारी) होता है, परन्तु देश के सामान्य नियमों तथा उसके व्यवसाय पर प्रभाव डालने वाले नियमों का पालन करते हुए।"

एकाकी व्यापार के प्रमुख लक्षण एवं विशेषताएं (ekaki vyapar visheshta)

1. कार्य क्षेत्र की निर्धारित सीमा
एकाकी व्यापार का कार्य-क्षेत्र व्यापार की सीमाओं मे सीमित होता है। अकेला होने के कारण वह अनेक स्थानों पर कार्य न करके एक स्थान पर कार्य-क्षेत्र सीमित करता है।
 2. एकल स्वामित्व
व्यवसाय का स्वीम एक ही व्यक्ति होता है जो व्यापार की समस्त बातों के लिए उत्तरदायी होता है। वह स्वयं जोखिम उठाता है। व्यवसाय की समाप्ति पर वह समस्त संपत्ति का अधिकारी होता है।
3. असीमित दायित्व
एकाकी व्यापार के यह भी विशेषता है कि इसके मालिक का दायित्व उसके द्वारा प्रदत्त पूँजी तक ही सीमित नही रहता अपितु उसकी निजी सम्पत्ति का भी प्रयोग व्यापार के दायित्व का चुकता करने के लिए जा सकता है।
4. ऐच्छिक आरंभ और अन्त 
एकाकी व्यापार का एक लक्षण यह भी है कि एकाकी व्यापारी अपनी इच्छा से जब चाहे तब अपनी मर्जी से व्यवसाय आरंभ कर सकता है और उसे समाप्त भी कर सकता है।
5. सीमित प्रबंध कुशलता
प्रायः ऐसे संगठन का प्रबंध उसके मालिक के द्वारा ही किया जाता है। कभी-कभी, उसके परिवार के सदस्य भी उसमे भाग लेते है। आकार के बड़े होने पर ही कुछ दशा मे योग्य प्रबन्धक नियुक्त किये जाते है परन्तु सीमित धन होने के कारण अधिक योग्य प्रबन्धक की सेवाएं ये नही प्राप्त कर पाते।
6. वैधानिक शिष्टाचार से मुक्ति 
एकाकी व्यापार को स्थापित करने के लिए किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही नही करनी पड़ती है अर्थात् इसके लिए रजिस्ट्री आदि की आवश्यकता नही होती।
7. व्यापार के चुनाव मे स्वतंत्रता
एकाकी व्यापार की एक विशेषता यह भी है की एकाकी व्यापारी को इच्छानुसार कोई भी व्यापार चुनने की स्वतंत्रता होती है, परंतु यदि एक ऐसा व्यापार आरंभ करने जा रहा है जिसके लिए सरकारी अनुज्ञा-पत्र जरूरी है तो उसे प्राप्त करना भी जरूरी है।
8. पूँजी पर एकाधिपत्य
एकाकी व्यापार मे लगाई जाने वाली पूंजी का प्रबंध एकाकी व्यापारी को स्वयं करना पड़ता है। वह कुल पूंजी या तो अपने पास से लगाता है अथवा अपने मित्रों या रिश्तेदारों से ऋण लेकर व्यापार मे लगाता है।
9. सम्पूर्ण जोखिम व लाभ मालिक का
व्यापार के मालिक को ही सम्पूर्ण जोखिम उठाना पड़ता है तथा वही हानि का वहन करता है। साथ ही, लाभ होने पर सम्पूर्ण लाभ भी उसी का होता है।

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एकाकी व्यापार क्या है?

एकाकी व्यापारी स्वयं ही व्यवसाय का प्रबंधक और कर्मचारी होता हैं। वह स्वयं ही आवश्यक पूंजी लगाता हैं। लाभ-हानि का अधिकारी होता हैं तथा व्यापार के समस्त उत्तरदायित्वों को पूरा करता है। इन्ही विषेष ताओं के कारण उसे एकाकी व्यापारी, व्यक्तिगत साहसी, व्यक्तिगत व्यवस्थापक, एकल स्वामी तथा एकाकी स्वामित्व आदि भी कहा जाता हैं। 

एकाकी व्यापार की परिभाषा 

डॉ. जानए ए. शुबिन के अनुसार:-‘एकाकी व्यापार के अंतर्गत एक ही व्यक्ति समस्त व्यापार का संगठन करता हैं उसका स्वामी होता हैं तथा अपने नाम से व्यापार का संचालन करता हैं।’

एकाकी व्यापार के प्रमुख लक्षण या विशेषताएं

  1. एकल स्वामित्व- एकाकी व्यापार में व्यापार का स्वामी एक ही व्यक्ति होता हैं जो व्यापार के समस्त कार्यो के लिये स्वयं उत्तरदायी होता हैं।
  2. निर्णय लेने में स्वतंत्र- एकाकी व्यापारी अपने व्यापार के संबंध में स्वंय निर्णय लेता हैं। उसे निर्णय लेने के लिये किसी सहयोगी या साझेदार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
  3. असीमित उत्तरदायित्व- एकाकी व्यापार में स्वामी केवल एक ही व्यक्ति होता हैं। अत: व्यापार को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करने का दायित्व उसी पर होता हैं। यदि किसी कारणवश व्यापार में लगाई गइ पूंजी से अधिक हानि होती हैं तो उस अतिरिक्त हानि की पूिर्त उसे अपनी निजी सपंत्ति से करनी पड़ती है।पैकमने के अनुसार-’काननू एकाकी व्यापारी के व्यापार अथवा घर में कोई अंतर नहीं मानता। एकाकी व्यापार में होने वाली हानि के अंतिम पैसे चुकाने तक वह उत्तरदायी होता हैं।
  4. सीमित व्यापार क्षेत्र- प्रत्येक व्यक्ति की प्रबंध पूंजी कार्य करने की क्षमता सीमित होती हैं। अत: साझेदारी व कंपनी के व्यवसाय क्षेत्र की तुलना में एकाकी व्यापार का क्षेत्र सीमित रहता हैं।
  5. ऐच्छिक प्रारंभ व समापन- एकाकी व्यापार का प्रांरभ एंव अंत करना दोनो ही सरल हैं। एकाकी व्यापारी जब चाहे तब व्यापार आरंभ एवं समापन कर सकता हैं। इसके लिये उसे किसी के सहयोग या सहमति की आवष्यकता नहीं हैं।
  6. लोभों पर एकाधिकार- एकाकी व्यापारी का लाभों पर एकाधिकार होता हैं, इसी प्रकार हानि की स्थिति मे वह अकेला उत्तरदायी होता हैं।
  7. व्यवसाय चुुनने की स्वतंत्रता- एकाकी व्यापारी अपनी इच्छा से व्यवसाय चुनने एंव उसे परिवर्तित करने के लिये स्वतंत्र होता हैं। इसके लिये वह किसी के परामर्श को मानने के लिये बाध्य नहीं होता हैं।

    एकाकी व्यापार का महत्व

    1. व्यक्ति एकाकी व्यापार करके स्वतंत्र जीवन व्यतीत कर सकता हैं। 
    2. यह रोजगार के अवसरों में वृद्धि करता हैं। नौकरी प्राप्त न होने पर व्यक्ति आसानी से इसके माध्यम से अपनी जीविका कमा सकता हैं। 
    3. एकाकी व्यापार में धन का छोटी-छोटी इकाईयों में विकेद्रीकरण हो जाता हैं। जिससे गरीबी व अमीरी का खाई बढ़ने नहीं पाती। 
    4. एकाकी व्यापार मे अधिक प्रतिस्पर्द्धा पायी जाती हैं, जिसके कारण ग्राहकों कों कम कीमत पर अच्छी वस्तुयें मिलने लगती हैं। 
    5. एकाकी व्यापार व्यक्तिगत हित होने के कारण एकाकी व्यापारी सााधनों को कुशलतापूर्वक उपयोग करता हैं। 
    6. एकाकी व्यापार छोटे व्यापार का सूत्रधार होता है। आगे चलकर यह बड़ें व्यापार का रूप ले लेता हैं।

      एकाकी व्यापार के लाभ एवं गुण

      अनेक गुणों के कारण एकाकी व्यापार प्राचीन काल से आजतक चला आ रहा हैं। विश्व के सभी देशो में अनेक व्यापारी इस प्रणाली से अपना व्यवसाय संचालित कर रहे हैं। एकाकी व्यापार के प्रमुख लाभ है-

      1. व्यावसाय आरभं करने में सुविधा- एकाकी व्यापार प्रारंभ करना बड़ा सरल है। इस व्यापार को प्रारंभ करते समय लाइसेंस या पंजीयन की आवष्यकता नहीं होती हैं, व्यक्ति अपनी सुविधानुसार व्यापार प्रारंभ तथा समापन कर सकता हैं। 
      2. त्वरिक निर्णय- व्यापार का स्वामी स्वयं होने के कारण एकाकी व्यापारी व्यवसाय से संबंधित सभी बातों का निर्णय स्वयं तथा शीघ्रता से ले लेता हैं। स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति एकाकी व्यापारी को विवेकशील तथा विचारवान बनाती हैं। 
      3. मितव्ययिता- असीमित उत्तर दायित्व व लाभ हानि के लिये स्वयं उत्तरदायी होने के कारण एकाकी व्यापारी अनावश्यक खर्च को कम करते हुये धन के दुरूपयोग को रोकता हैं। इससे लाभ में वृद्धि होती हैं और हानि कम हो जाती हैं। 
      4. गोपनीयता- एकाकी व्यापार में गोपनीयता पायी जाती हैं। एकाकी व्यापार में एक व्यक्ति ही व्यवसाय का संचालक होता हैं तथा उसे व्यापार की समस्त बाते पता होती हैं। इसके अलावा एकाकी व्यापारी को अपने खाते भी प्रकाशित नहीं करने पड़ते, अत: खाते संबंधी भेद भी गोपनीय रहते हैं। 
      5. सपूंर्ण लाभ पर एकाधिकार- ‘एकाकी व्यापार में संपूर्ण लाभ पर एकाकी व्यापारी का एकाधिकार होता हैं। अत: एकाकी व्यापारी अधिक परिश्रम, लगन, चतुराई, विवेक तथा धैर्य से काम करता हैं। ताकि उसे अधिक से अधिक लाभ हो सके। 
      6. व्यक्तिगत संपर्क - एकाकी व्यापार का एक अन्य लाभ यह हैं कि एकाकी व्यापारी ग्राहकों के व्यक्तिगत संपर्क में रहता हैं जिसके कारण ग्राहकों से उसके निजी संबंध स्थापित हो जाते हैं। इससे उसके व्यापार में वृद्धि होती हैं। इस प्रकार के संबंध का व्यापार पर उत्कृष्ट प्रभाव पड़ता हैं। 
      7. ऋण प्राप्त करने में सुविधा- एकाकी व्यापारी के असीमित दायित्व तथा ऋणदाता व व्यापारी में व्यक्तिगत संपर्क होने के कारण ऋण प्राप्त करने मे विशेष सुविधा होती हैं। ऋणदाता एकाकी व्यापार की साख व संपत्ति से अच्छी तरह परिचित रहता हैं, अत: एकाकी व्यापार को उचित समय पर पर्याप्त मात्रा में सही ब्याज दर से ऋण पा्रप्त हो जाता है।
      8. पैतृक गुण व ख्याति का लाभ- एकाकी व्यापार में पिता के साथ पुत्र भी कार्य करता हैं। अत: ग्राहक से बातचीत करने, मोलभाव करने, नापने, तोलने, हिसाब लिखने से संबंधित गुण पुत्र को बचपन से प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही व्यापारी को अपने पिता की प्रसिद्धि का लाभ भी व्यापार में मिलता हैं।

        एकाकी व्यापार की हानि या दोष

        1. सीमित प्रबधंकीय योग्यता- प्रत्येक मानव में ज्ञान, अनुभव व प्रबधंकीय कुशलता सीमित होती हैं अत: व्यक्ति जब व्यापार के समस्त कार्य देखता हैं तो उसने कही न कहीं त्रुटिया रह जाती हैं। एकाकी व्यापारी के पास जितनी योग्यता होती हैं उतना ही वह व्यापार का विकास कर पाता हैं। 
        2. सीमित  पूजी- एकाकी व्यापारी की पूंजी सीमित होती हैं। अत: वह अपने व्यवसाय का सीमित मात्रा में ही विकास कर पाता हैं। 
        3. सीमित साख- एकाकी व्यापारी की ख्याति एवं निजी साख सीमित होती हैं। अत: उसे उधार भी कम मिलता है। कम पूंजी व सीमित साख के कारण एकाकी व्यापार का आकार छोटा होता हैं। कई बार जब व्यापारी को अधिक साख की आवश्यकता होती हैं तो आवश्यकतानुसार साख न मिलने पर व्यवसाय को हानि होती हैं। 
        4. असीमित उत्तरदायित्व- एकाकी व्यापार का दायित्व असीमित होता हैं। एकाकी व्यापारी ही व्यापार की संपूर्ण हानि को चुकाने को उत्तरदायी होता हैं, इस कारण उसकी संपत्ति सुरक्षित नहीं रह पाती। दुर्भाग्य से यदि व्यापार में हानि हो जाये तो व्यापारी को अपनी निजी संपत्ति से हानि का भुगतान करना पड़ता हैं। इससे उसका आर्थिक जीवन समाप्त हो जाता हैं। यह एकाकी व्यापार का सबसे बड़ा दोश हैं। 
        5. अनुपस्थिति से क्षति- एकाकी व्यापारी अपने व्यापार का प्रबंध एंव संचालन स्वंय करता हैं। यदि वह बीमार हो जाता हैं या अन्य कारणों से वह व्यापार से अनुपस्थित रहता हैं तो उसे व्यापार बंद करना पड़ता हैं। इससे व्यापारी को न केवल हानि होती है बल्कि ग्राहकों के अन्य स्थानों पर चले जाने की भी आशंका बनी रहती हैं।
        6. अस्थायी अस्तित्व- एकाकी व्यापार का अस्तित्व अस्थायी प्रकृति का होता है। एकाकी व्यापार का जीवन एकाकी व्यापारी के जीवन से जुड़ा होता हैं, व्यापारी की मृत्यु होने पर उसका व्यापार ही समाप्त हो जाता हैं।

          एकाकी व्यापार का भविष्य

          1. जब व्यापार का क्षेत्र छोटा होता हैं। 
          2. जब सीमित या कम पूंजी की आवश्यकता होती हैं। 
          3. जब उत्तरदायित्व असीमित हो पर जोखिम कम हो।

          एकाकी व्यापार से आप क्या समझते है?

          एकल स्वामित्व : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय का स्वामी एक ही व्यक्ति होता है। यह व्यक्ति ही व्यवसाय से सम्बन्धित सभी संपत्तियों का स्वामी होता है और यही सारे जोखिम उठाता है। इसलिए एकल स्वामित्व व्यवसाय स्वामी की मृत्यु के साथ या स्वामी की इच्छा से समाप्त हो जाता है

          एकाकी व्यापार के लाभ क्या है?

          एकाकी व्यापार के लाभ अथवा अथवा महत्व अथवा गुण एकाकी व्यापारी का अपने ग्राहकों से निकट संपर्क रहता है। वह अपने व्यक्तित्व, नम्रता तथा व्यापारिक कुशलता से उन्हें संतुष्ट रखता है। एकाकी व्यापारी का अपने व्यापार पर पूर्ण नियंत्रण होता है।

          एकाकी व्यापार क्या है in English?

          यद्यपि वह इस व्यवसाय को एकल स्वामित्व के रूप में चलाने में समर्थ है, लेकिन उसे व्यवसाय के विस्तार के लिए अधिक धन की आवश्यकता भी है। अत: उसके पिता ने साझेदारी फर्म का विकल्प सुझाया, जिससे उसे अधिक पूँजी प्राप्त करने में भी सुविधा हो तथा उत्तरदायित्व एवं जोखिम में भी भागीदारी हो सके ।