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हालदार साहब ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति देखी। मूर्ति संगमरमर की थी। मूर्ति में एक तेज़ नज़र आता था। हालदार साहब को मूर्ति देखकर `तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा` और `दिल्ली चलो` इत्यादि सब याद आ रहा था। उन्होने जैसे ही नेताजी की आँखों की ओर देखा तो पाया वहाँ पर केवल फ्रेम है। मूर्ति संगमरमर की थी पर फ्रेम असली था। यही देख कर उनके चहरे पर मुस्कान फैल गई। Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers. JAC Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न
2. (ख) हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रे, तो न चाहते हुए भी उनकी नज़र नेताजी की मूर्ति की ओर चली गई। मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। यह देखकर हालदार साहब को उम्मीद हुई कि आज के बच्चे कल देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी। (ग) नेताजी की मूर्ति पर बच्चे के हाथ से बना सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब भावुक हो गए। पहले उन्हें ऐसा लग रहा था कि अब नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं रहा। इसलिए उन्होंने ड्राइवर को वहाँ रुकने से मना कर दिया था। परंतु जब उन्होंने मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखा, तो उनका मन भावुक हो गया। उन्होंने नम आँखों से नेताजी की मूर्ति को प्रणाम किया। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. नेताजी के प्रति उसके आदर-भाव ने ही पूरे कस्बे की इज्जत बचा रखी थी। पानवाले के मन में देश और देश के नेताओं के प्रति सम्मान नहीं था। उसे केवल अपना पान बेचने के लिए कोई-न-कोई मुद्दा चाहिए था। यदि ऐसे लोग देश के लिए कुछ कर नहीं सकते, तो उन्हें किसी की हँसी उड़ाने का भी अधिकार नहीं है। कैप्टन जैसे भी व्यक्तित्व का स्वामी था, उससे उसकी देश के प्रति कर्तव्य भावना कम नहीं होती थी। पानवाले को कैप्टन की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए थी। रचना और अभिव्यक्ति – प्रश्न 6. (ख) पानवाला जब भी कोई बात कहता था, उससे पहले वह मुँह का पान नीचे अवश्य थूकता था। पानवाले को कैप्टन के मरने का दुख था। इसलिए उसकी आँखें नम थीं। इससे पता चलता है कि पानवाले के मन में कैप्टन के प्रति आदर की भावना थी। (ग) मूर्तिकार नेताजी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था। बिना चश्मे वाली मूर्ति कैप्टन को बहुत आहत करती थी। इसलिए वह मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगा देता था। जब भी मूर्ति से चश्मा उतारा जाता था, वह उसी समय उस पर दूसरा चश्मा लगा देता था। इससे पता चलता है कि कैप्टन में देश के नेताओं के प्रति आदर और सम्मान की भावना थी। प्रश्न 7. प्रश्न 8. (ख) हम अपने क्षेत्र के चौराहे पर लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमा लगवाना चाहेंगे। वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपनी मेहनत से देश के प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने आम व्यक्ति को यह अनुभव करवाया था कि उसकी भी देश के निर्माण में अहम भूमिका है। लाल बहादुर शास्त्री आम व्यक्ति की आवाज़ थे, इसलिए उनकी मूर्ति आम व्यक्ति को कुछ करने की प्रेरणा देगी। (ग) चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति हमारे और दूसरे लोगों के मन में आदर और सम्मान की भावना होनी चाहिए। हमें दूसरे लोगों को भी मूर्ति वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व से परिचित करवाना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर वहाँ पर देशभक्ति के समागम होने चाहिए, जिससे आम व्यक्ति में देशभक्ति की भावना प्रबल हो। उस मूर्ति के सामने से जब भी निकलें, उसके आगे नतमस्तक हों। उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद करके उन्हें अमल में लाने का प्रयत्न करें। प्रश्न 9. इसलिए जितना संभव हो, बिजली का उतना ही प्रयोग करना चाहिए। घरों में बिजली के पंखे, ट्यूबें खुली नहीं छोड़नी चाहिए। जब ज़रूरत न हो, तो इन्हें बंद कर देना चाहिए। पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए, जहाँ तक संभव हो निजी यातायात के साधनों का प्रयोग कम करना चाहिए। इसके स्थान पर सार्वजनिक यातायात के साधनों का अधिक प्रयोग करना चाहिए। इससे मनुष्य के धन की भी बचत होती है तथा पर्यावरण भी कम प्रदूषित होता है। ऐसे हमारे जीवन-जगत से जुड़े कई कार्य हैं, जिन्हें अमल में लाकर हम अपने देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं। प्रश्न 10. प्रश्न 11. भाषा-अध्ययन – प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. पाठेतर सक्रियता – प्रश्न 1. (ख) हमें अपने क्षेत्र के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को समय-समय पर प्रोत्साहन देना चाहिए। हम उन्हें अपनी कला दिखाने के लिए नए-नए अवसर दे सकते हैं। किसी त्योहार या राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर इन लोगों को अपनी कला दिखाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इनके प्रदर्शन के अनुरूप इन्हें प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरे और वे अपनी कला में निखार लाए। क्षेत्र के धनवान इन लोगों की कला को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करके इन्हें आगे बढ़ने का अवसर दे सकते हैं। प्रश्न 2. विषय : विद्यालय परिसर एवं कक्षा के लिए सुझाव हेतु पत्र मान्यवर, प्रश्न
3. कई कॉलोनियाँ शहर से दूर होती हैं, इसलिए वहाँ के लोगों को अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए इन फेरीवालों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये फेरीवाले उन लोगों की ज़रूरतों का फ़ायदा उठाते हुए मनमाने मूल्यों पर वस्तु बेचते हैं। कई बार तो अधिक पैसे लेकर गंदा और घटिया माल बेच देते हैं। कई फेरीवाले अपराधिक तत्वों से मिलकर उन्हें ऐसे घरों की जानकारी देते हैं, जहाँ दिन में केवल बच्चे और बूढ़े होते हैं। फेरीवालों की मनमानी रोकने के लिए उन्हें नगरपालिका से जारी मूल्य-सूची दी जानी चाहिए। फेरीवालों के पास पहचान-पत्र और वस्तु बेचने का लाइसेंस होना चाहिए। प्रश्न 4. प्रश्न 5. नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है – देश-प्रेम देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अंत:करण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है। यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते हैं कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि बस-बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले
नहीं। हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता। JAC Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answersप्रश्न 1. उसे बिना चश्मे के नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा लगता है, इसलिए वह उस मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगवा देता है। सब लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं। उसके मरने के बाद नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के चौराहे पर लगी रहती है। बिना चश्मे की मूर्ति हालदार साहब को भी दुखी कर देती है। वे ड्राइवर से चौराहे पर बिना रुके आगे बढ़ने को कहते हैं, लेकिन अचानक उनकी नज़र मूर्ति पर पड़ती है। उस पर किसी बच्चे द्वारा सरकंडे का बनाया चश्मा लगा हुआ था। यह दृश्य हालदार साहब को देशभक्ति की भावना से भर देता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि देश के निर्माण में करोड़ों गुमनाम व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान देते हैं। इस योगदान में बड़े ही नहीं अपितु बच्चे भी शामिल होते हैं। यही पाठ का उद्देश्य है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए – हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुज़रते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भई!
क्या बात है? (क) कस्बे में से गुज़रते हुए हालदार साहब को कौन-सी आदत पड़ गई थी? (ख) पानवाला कैसा था? (ग) मूर्ति का चश्मा हर बार कौन बदल देता था? (घ) किसका प्रश्न सुनकर पानवाला हँसा? (ङ)
चौराहे पर किसकी मूर्ति लगी थी? उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए – (ख) नेताजी की प्रतिमा किससे निर्मित थी? (ग) हालदार साहब की आँखें क्यों भर आईं? (घ) ‘नेताजी का चश्मा’ गद्य पाठ के लेखक कौन हैं? महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 1. पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज्यादा होने के कारण काफ़ी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न
: 2. इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 3. हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुज़रते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भई! क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है? पानवाले के खुद के मुँह में पान हुँसा हुआ था। वह एक काला मोटा और खुशमिज़ाज़ आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों-ही-आँखों में हँसा। उसकी तोंद थिरकी। पीछे घूमकर उसने दुकान के नीचे पान थूका और अपनी लाल-काली बत्तीसी दिखाकर बोला, कैप्टन चश्मेवाला करता है। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 4. हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न : 5. पान वाले के लिए एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा ‘मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल’ वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने-भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए-काँचवाला- यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा। या बनाते-बनाते “कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चष्ठमा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उफ….! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न : (ख) हालदार साहब की दृष्टि में कस्बे का अध्यापक बेचारा था। क्योंकि उसने कम समय और कम लागत में नेताजी की मूर्ति एक महीने में बनाकर लगा दी थी। संगमरमर की मूर्ति में काँचवाला चश्मा लगाने के लिए उसके पास समय नहीं रहा होगा। (ग) हालदार साहब सोच रहे थे कि मूर्तिकार ने पत्थर की मूर्ति पर पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी परंतु सफल नहीं हो पाया होगा, चश्मे की बारीकी पर ध्यान देते हुए चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। नेताजी का चश्मा Summary in Hindiलेखक-परिचय : जीवन – सुप्रसिद्ध कहानीकार स्वयं प्रकाश का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर नगर में सन् 1947 ई० को हुआ था। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के पश्चात औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद वे भोपाल में रहकर ‘वसुधा’ नामक पत्रिका का संपादन करने लगे हैं। इन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया है। रचनाएँ – स्वयं प्रकाश एक सशक्त कथाकार हैं। अब तक इनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं-‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘संधान’ आदि। इन्होंने उपन्यास भी लिखे हैं, जिनमें ईंधन’ तथा ‘बीच में विनय’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। भाषा-शैली – स्वयं प्रकाश का कथा साहित्य मध्यवर्गीय जीवन की सफल झाँकियाँ प्रस्तुत करता है। ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी में लेखक ने देश के नेताओं के प्रति आम आदमी तथा बच्चों की श्रद्धा का सजीव अंकन किया है। लेखक की भाषा सहज तथा बोधगम्य है, जिसमें तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है; जैसे – प्रयास, आहत, लक्षित, उपलब्ध, दुर्दमनीय आदि। इसी प्रकार से कंपनी, सिलसिला, बस्ट, कमसिन, चश्मा, आइडिया, ओरिजिनल जैसे विदेशी तथा गिराक, तोंद, सरकंडे जैसे देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी शैली अत्यंत प्रभावपूर्ण, चित्रात्मक, संवादात्मक, भावपूर्ण तथा वर्णनात्मक है। पानवाले का यह शब्द चित्र उसे साक्षात आकार प्रदान कर देता है-‘वह एक काला मोटा और खुशमिजाज़ आदमी था।’ इसी प्रकार से कैप्टन की रूपरेखा इन शब्दों से स्पष्ट होती है-‘एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे।’ इन आम बोलचाल के शब्दों में लेखक ने अपनी बात अत्यंत प्रभावी रूप से व्यक्त की है। पाठ का सार : ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक ‘स्वयं प्रकाश’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने देश के उन गुमनाम नागरिकों के महत्वपूर्ण योगदान का वर्णन किया है, जो देश के निर्माण में अपने-अपने ढंग से सक्रिय हैं। कैप्टन चश्मे वाले की देश-भक्ति भी उसके कस्बे तक सीमित थी। हालदार साहब कंपनी के काम से एक कस्बे में से हर पंद्रह दिन के बाद गुजरा करते थे। कस्बा सामान्य कस्बों जैसा था, जिसमें कुछ पक्के और कुछ कच्चे घर थे। लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल था। एक नगरपालिका थी। नगरपालिका समय-समय पर कस्बे के विकास के लिए कार्य करती थी। एक बार नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगवाने का निश्चय किया। मूर्ति बनाने का कार्य कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल को दिया गया। मोतीलाल जी ने एक महीने में नेताजी की छाती तक की संगमरमर की मूर्ति तैयार कर दी। नगरपालिका ने वह मूर्ति चौराहे पर लगा दी। नेताजी की मूर्ति को देखकर लोगों में देश के लिए कुछ करने का उत्साह पैदा होता था। इस तरह नगरपालिका का लोगों में देश-भावना जागृत करने का यह प्रयास सफल तथा सराहनीय था। लेकिन मूर्ति देखने वालों को मूर्ति में एक कमी लगती थी। मूर्ति का चश्मा पत्थर का नहीं था, वह असली था। शायद मूर्ति बनाने वाला नेताजी का चश्मा बनाना भूल गया, इसलिए मूर्ति पर असली चश्मा लगा। दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार कस्बे से गुज़रे, तो उन्हें लोगों का यह प्रयास अच्छा लगा। उन्हें लगा कि लोगों में अपने नेताओं के प्रति आदर-सम्मान है। अगले दो-तीन बार वहाँ से गुजरने पर हालदार साहब को मूर्ति पर अलग चश्मा लगा मिलता था। यह देखकर वे आश्चर्यचकित थे। उन्होंने अपनी जिज्ञासा कम करने के लिए चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि हर बार मूर्ति का चश्मा कैसे बदल जाता है? पानवाले ने बताया कि नेताजी का चश्मा कैप्टन बदल देता है। जब कोई ग्राहक नेताजी की मूर्ति पर लगा चश्मा चाहता है, तो कैप्टन मूर्ति से चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता है। कैप्टन को नेताजी की चश्मे के बिना मूर्ति बुरी लगती थी। उसे चश्मे के बिना नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा प्रतीत होता था, इसलिए वह अपने पास से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर लगा देता था। पानवाले ने हालदार साहब को यह भी बताया कि मूर्तिकार मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था। हालदार साहब को पानवाले को यह बात बहुत बुरी लगी। हालदार साहब कैप्टन चश्मे वाले से बहुत प्रभावित हुए थे, जिसने अपनी देशभक्ति से मूर्ति के अधूरेपन को पूरा किया था। उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा कि क्या वह नेताजी की फ़ौज का कोई सिपाही था। इस पर पानवाला मुसकरा पड़ा और बोला कि वह एक लँगड़ा है। वह फ़ौज में कैसे जा सकता है ? पानवाला हालदार साहब को कैप्टन दिखाता है। कैप्टन एक पतला-सा बूढ़ा व्यक्ति था। उसके पास एक संदूकची थी और एक बाँस था, जिस पर तरह-तरह के चश्मे टँगे थे। वह एक फेरी लगाने वाला था। जिस ढंग से पानवाले ने कैप्टन का परिचय दिया, वह ढंग हालदार साहब को बहुत बुरा लगा था। वे कैप्टन के विषय में बहुत कुछ जानना चाहते थे, परंतु पानवाला कुछ और बताने को तैयार नहीं था। हालदार साहब अगले दो साल तक कस्बे से गुजरते रहे और नेताजी की मूर्ति के बदलते चश्मे देखते रहे। एक बार हालदार साहब उधर से गुजरे, तो उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। उस दिन अधिकांश बाजार बंद था। अगली बार फिर हालदार साहब वहाँ से गुज़रे, तो उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। हालदार साहब ने पानवाले से पूछा कि नेताजी का चश्मा कहाँ गया? पानवाले ने उदास होकर बताया कि चश्मे वाला कैप्टन मर गया। हालदार साहब यह सुनकर चले गए। कैप्टन के मरने के बाद हालदार साहब यह सोचने लगे कि उस देश का भविष्य क्या होगा, जिसकी जनता देश का निर्माण करने वालों पर हँसती है। हालदार पंद्रह दिन बाद फिर उस कस्बे से गुजरे। उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि वे चौराहे पर रुककर मूर्ति की तरफ़ नहीं देखेंगे। वे नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति नहीं देख सकते थे। परंतु जैसे ही वे नेताजी की मूर्ति के सामने से गुजरे, यह देखकर हैरान रह गए कि मूर्ति पर किसी बच्चे द्वारा बनाया सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। हालदार भावुक हो गए। उन्होंने बच्चों की भावना का सम्मान करने के लिए मूर्ति के सामने अटेंशन खड़े होकर नेताजी को प्रणाम किया। कठिन शब्दों के अर्थ : प्रतिमा – मूर्ति। मूर्तिकार – मूर्ति बनाने वाला। बस्ट – छाती। कमसिन – कम उमर का। रियल – असली। आइडिया – विचार। कौतुक – हैरानी, जिज्ञासा। प्रयास – कोशिश। चेंज करना – बदलना। सराहनीय – प्रशंसनीय। लक्षित – बतलाया हुआ, निर्दिष्ट। दुर्दमनीय – जिसका दमन न हो सके। प्रफुल्लता – प्रसन्नता। हालदार साहब के चेहरे पर Kautuk Bhari मुस्कान क्यों फैल गई?नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुस्कान फैल गई।
हालदार साहब के चेहरे पर मुस्कान फैलने का कारण क्या था?यह गृहस्थ थे, लेकिन सब चीज़ 'साहब' की थी।
कौतुक भरी मुस्कान का क्या अर्थ है?- 1. कुतूहल; आश्चर्य; अचंभा 2. विनोद; हँसी-मज़ाक 3.
उनके चेहरे पर एक कौतुक भरी मुस्कान फैल गई कौतुक का क्या अर्थ है?कौतुकभरी मुस्कान का मतलब क्या है?
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