भारतेंदु के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रहसन का नाम लिखिए - bhaaratendu ke sarvaadhik lokapriy prahasan ka naam likhie

इसे सुनेंरोकेंअँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।

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अंधेर नगरी की कथावस्तु क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकथावस्तु है – एक ऐसे नगर की विसंगतियों का चित्रण, जहाँ न्याय-अन्याय में फर्क नहीं किया जाता। कथानक है-महंत, गोबरधनदास, नारायणदास, हलवाई, फरियादी, कल्लू बनिया, कारीगर, कोतवाल, मंत्री और राजा आदि पात्रों के और बकरी के मर जाने तथा उसके लिए दोषी व्यक्ति को सजा सुनाने की घटना के ज़रिए कथा का विकास ।

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वर्तमान समय में अंधेर नगरी नाटक से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इसे सुनेंरोकेंनाटक को पढ़ते हुए एक बात पर ध्यान जाता है कि नाटक में बहुत सारे नीति के उपदेश हैं जो समय समय पर महंत अपने चेलों को देते हैं और प्रकारांतर भारतेंदु जनता को, पाठक को, दर्शको को. यही वो उपदेश हैं जो अपने समय को और आनेवाले समय को भी सम्बोधित है.

अंधेर नगरी में कितने पात्र हैं?

इसे सुनेंरोकेंअंधेर नगरी का आकार बहुत छोटा है इसलिए इसमें पात्रों के चारित्रिक विकास का लेखक के पास बहुत बड़ा अवसर तो नहीं था पर फिर भी तीन प्रमुख पात्र — महन्त जी , गोवर्धन दास और चौपट राजा अपने-अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करने में सफल रहे हैं।

अंधेर नगरी रचना का पूरा नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमूल रूप से ये कहानी भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की एक नाटक ‘अंधेर नगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’ का अंश हैं।

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यह अंधेर नगरी है वाक्य में विशेषण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअंधेर नगरी के कथानक की बुनावट में खुलापन और ताज़गी है। बाज़ार दृश्य और दरबार दृश्य इसके अमूल्य नाटकीय दृश्य (अंक) हैं। सत्ता की अंध-व्यवस्था, विवेकहीनता, मूल्यहीनता का परिचय इन दो दृश्यों से मिलता है। बाज़ार का दृश्य पूरे देश के स्तर पर सस्तेपन, विकृति, आडम्बर, अमानवीयता, शोषण और संवेदनहीनता को व्यक्त करता है।

अंधेर नगरी का प्रकाशन वर्ष क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसे सन् 1885 ई.

अंधेर नगरी नाटक का मुख्य पात्र कौन है?

इसे सुनेंरोकेंमहंत – साधु के रूप में ज्ञानी और दूरदर्शी व्यक्ति। गोवेर्धन दास – महंत का लालची शिष्य। नारायणदास – महंत का दूसरा शिष्य। राजा – मूर्ख राजा जो नशे में सराबोर रहता है और न्याय का अर्थ नहीं जनता।

अंधेर नगरी किस विधा की रचना है तथा उसका मुख्य पात्र कौन है?

इसे सुनेंरोकेंअंधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।

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हिंदी का प्रथम नाटक क्या है?

इसे सुनेंरोकेंभारतेन्दु के पूर्ववर्ती नाटककारों में रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह (१८४६-१९११) के बृजभाषा में लिखे गए नाटक ‘आनंद रघुनंदन’ और गोपालचंद्र के ‘नहुष’ (१८४१) को अनेक विद्वान हिंदी का प्रथम नाटक मानते हैं।

अंधेर नगरी नाटक की रचना कब हुई?

इसे सुनेंरोकेंअंधेर नगरी तो हर काल में मौज़ूद रहा है। हर स्थान पर। १८८१ में रचित इस नाटक में भारतेन्दु ने व्यंग्यात्मक शैली अपनाया है। इस प्रहसन में देश की बदलती परिस्थिति, चरित्र, मूल्यहीनता और व्यवस्था के खोखलेपन को बड़े रोचक ढ़ंग से उभारा गया है।

हिंदी गद्य को पहली बार एक निश्चित दिशा और सुव्यवस्थित स्वरुप प्रदान करने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र हैं । भारतेंदु बाबु ने न केवल स्वयं गद्य लेखन द्वारा मार्ग प्रशस्त किया अपितु अनेकानेक लेखकों को इस दिशा में प्रेरित भी किया । भारतेंदु हरिशचंद्र ने देखा देखा कि हिन्दी गद्य भटकाव और उलझाव की दिशा में है । एक य़ओर यदि राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द की उर्दू शब्दों से बोझिल हिन्दी गद्य की भाषा है तो दूसरी ओर संस्कृत शब्दावली के भार से आक्रांत राजा लक्ष्मण सिंह की हिन्दी भाषा थी । इन दोनों के मध्यवर्ती मार्ग से भारतेंदु हिन्दी गद्य के रथ को ले जाना चाहते थे । उन्होंने हिन्दी को उसका निजी स्वरुप देना चाहा । इसके लिए उन्होंने स्वयं भी निबंध, नाटक आदि लिखकर उसके आदर्श स्वरुप को सबके सामने प्रस्तुत किया । साथ हि एक लेखक मण्डल तैयार किया । पत्र-पत्रिकाएँ निकालकर हिन्दी गद्य के स्वरुप को सँवारे –निखराने में प्राणपण से जुट गये ।


        भारतेन्दु युग(पुनर्जागरणकाल)

   आधुनिक हिन्दी काव्य का आरंभ भारतेन्दु युग से आरंभ होता है । महान व्यक्तिव्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के कारण इस युग का नाम भरतेन्दु युग रखा गया । इस युग में खडीबोली का विकास पद्य के लिए कम गद्य के लिए ज्यादा हुआ । अर्थात् पद्य की भाषा ज्यादातर ब्रजभाषा थी ।

  शुक्लजी ने इस युग की सीमा सं 1925 से 1950 मानी है ।

  रामविलाश शर्मा ने सं 1925 से 1957 तक मानी है ।


     

     भारेतन्दु मण्डल

भारतेन्दु जी अपने साथ एक कवि मण्डल जमा लिए जो राष्ट्र भक्ति से जुडे थे ।

    1. भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र

    2. प्रतापनारायण मिश्र

    3. बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन

    4. अम्बिकादत्त व्यास

    5. ठाकुर जगमोहन सिंह

    6. राधाकृष्ण दत्त

    7. राधाचरण गोस्वामी


  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

  इनका जन्म काशी के एक संपन्न वैश्यकुल में संवत् 1908 और मृत्यु 35 वर्ष की अवस्था में संवत् 1941 को हुई ।

    संवत् 1925 में उन्होंने विद्यासुंदर नाटक बंगला से अनुवाद करके प्रकाशित किया ।   इसी वर्ष उन्होंने कविवचन सुधा नाम की एक पत्रिका निकाली ।

   सं 1930 में उन्होंने हरिश्चन्द्र मैगजीन नाम की एक मासिक पत्रिका निकाली जिसका नाम हरिश्चंद्रिका हो गया । इसी वर्ष अपना पहला मौलिक नाटक वैदिकी हिंसा हिंसा न भवती का प्रहसन लिखा ।


 भारतेन्दुयुग की प्रवृत्तियाँ

    1. नवजागरण

    2. सामाजिक चेतना

   3. भक्तिभावना

   4. श्रृंगरिकता

   5. रितिनिरुपण

   6. समस्या पूर्ती

   भारतेन्दुजी का मौलिक नाटक


1.वैदिकी हिंसा हिंसा न भवती    

2. चंद्रवली

3.विषस्य विषमौधम                     

4. भारत दुर्दशा

5. नील-देवी                                

 6. अंधेर नगरी

7. प्रेम जोगनी                              

8. सतिप्रताप (अधूरा)

भारतेन्दुजी का अनुदित नाटक

   1. विद्यासुंदर                 

   2. पाखंड विडंबन

   3. धनंज मंजरी            

   4. कर्पूर मंजरी

  5. मुद्राराक्षक               

  6. सत्य हरिश्चन्द्र

  7. भारत जननी

भारतेंदुजी का प्रमुख काव्य-रचनाएँ

1.        प्रेममालिका

2.        प्रेम सरोवर

3.        प्रेम फुलवारी

4.        वेणु-गीत

5.        गीतगोविन्दानन्द

6.        विनय प्रेमपचासा


    मुख्य बिंदु

1. भारतेन्दु कविता संवर्ध्दनी सभा काशी के संस्थापक थे । (सम्सया पूर्ती का एक मंच )

 2. भारतेन्दु की राजभक्ति परक कविता भारत भिक्षा है ।

 3. 1882 ई. में अंग्रेजों की मिस्र में विजय पर भारतेन्दु ने विजयिनी-विजय पताका शीर्षक रचना का प्रणयन किया ।

 4. उर्दू में इंद्रसभा एक प्रकार का नाटक है, जिसके अनुकरण पर बंदरसभा की रचना की ।

 5. भारतेन्दु उर्दू में रसा उपनाम से शायरी लिखते थे ।

 6. देवी चंद लीला भारतेन्दु की काव्य कथा है ।

7.भारतेन्दु ने अपनी प्रबोधिनी कविता में विदेशी वस्तों के बहिष्कार की प्रत्यक्ष प्रेरणा दी ।

8.भारतेंदु ने तदीय समाज की स्थापना भी की ।

9.रयिटिंग मिशन इन का उपनाम था ।

10.शीतल प्रसाद त्रिपाठी कृत जानकी मंगल हिंदी का प्रथम अभिनीति नाटक है । इसमें स्वयं भारतेंदु ने लक्ष्मण की भूमिका अदा की ।

11.कालचक्र नाम की अपनी पुस्तक में भारतेंदु ने नोट किया हिंदी नये चाल में ढली


भारतेन्दु जी का प्रसिध्द पंक्तियाँ


** निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल**

 ** तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए**

 ** पैधन विदेश चलि जात यहै अति ख्वारी**


  भारतेन्दु युग की विशेषताएँ

1. भारतेन्दु मण्डल के रचनाकारों का मूल स्वर नवजागरण है ।

2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता गोपाल चन्द्र गिरधर दास अपने समय के प्रसिध्द कवि थे ।

 3. भारतेन्दु युग में एक ही रचनाकार सगुण और निर्गुम दोने तरह के पद रचते थे ।

 4. कविता को जनोन्मुख बनाने का सबसे अधिक श्रेय समस्या पूर्ती को ही है ।

 5. भारतेन्दु कविता वर्धिनी सभा के जरिए समस्या पूर्तियों का आयोजन करते थे ।

6.भारतेंदु युग में प्रबंध काव्य कम लिखे गये मुक्तक कविताएं ज्यादा लोकप्रिय हुई ।


प्रतापनारायण मिश्र

   हास्य-व्यंग्यात्मक कविताओं के क्षेत्र में प्रतापनारायण मिश्र का अग्रणी स्थान है । प्रेमघन की भांति उन्होंने भी लावनी-शैली में अनेक कविताएँ लिखी । काव्य रचना के लिए उन्होंने मुख्यतः ब्रजभाषा को ही अपनाया है । खड़ीबोली से उन्हें उतना लगाव नहीं था । इसकी तुलना अंग्रेज के एडसेन से करते है । इन्हें द्वतीय भारतेन्दु भी कहते है ।

कविताः-

 1.प्रेम पुष्पावली       2. मन की लहर  

 3. लोकोक्ति शतक  4. तृप्पन्ताम    

5. श्रृंगार विलास

उनकी एक समस्यापूर्ती पपीहा जब पूछि है पीव कहाँ बहुत प्रसिध्द है ।

वह कानपूर के समस्या पूर्ती मंच रसिक समाज के प्रधान कार्यकर्ता थे ।


      बालकृष्ण भट्ट 

    इन्होंने सं 1931 में अपना हिन्दी प्रदीप अखबार निकाल, जिसमें बहुत से मनोरंजक निबंध निकले थे । आचार्य रामचंद्रशुक्ल ने बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी का स्टील कहा है ।

  आँख, कान, नाक आदि शीर्षक देकर कई लेखों में बडे ढंग के साथ मुहावरों का प्रयोग किया ।

 उन्होंने माइकेल दत्त के पद्मवती और शर्मिष्ठा नामक बंगभाषा का दो नाटको का अनुवाद भी किया ।

   

 बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन

  ये बोलचाल के शब्दों का बहुत कम प्रयोग और संस्कृत के तत्सम शब्द ज्यादा प्रयोग करते थे । इन्होंने उर्दू में अब्र उपनाम से कविता लिखते  थे । भारतेन्दु के वे घनिष्ठ मित्र थे पर लिखने में भारतेन्दु के उतावलेपन की शिकायत करते थे ।

कवितः-

 1.जीर्ण जनपद        2. अलौकिक लीला 

 3. मयंक महिमा      4. आनंद अरुणोदय

 5. हार्दिक हर्षादर्श   6. वर्षा बिन्दु

इनकी समस्या पूर्ती प्रसिध्द है चरचा चलिबे की चलाइए

  

  अम्बिकादत्त व्यास

  कविवर दुर्गादत्त व्यास के पुत्र अंबिकादत्त व्यास काशी निवाशी सुकवि थे । वे संस्कृत और हिन्दी के अच्छे विद्वान थे ।

कविताः-

   1. पावस पचासा   2. सुकवि सतसई   

   3. हो हो होरी

        बिहारी विहार उनकी एक प्रसिध्द रचना है, जिसमें महाकवि बिहारी के दोहों का कुंडलिया छंद में भावविस्तार किया गया है ।

         भारतेन्दु के कहने पर इन्होंने गोसंकट नाटक लिखा जोसमें हिन्दओं के बीच असंतोष फेलने पर गोवध वध किए जाने की कथा वस्तु रखी थी ।

        इन्होंने सन् 1884 में वैष्णव पत्रिका नाम से एक पत्र निकाला जो बाद में पीयुषप्रवाह नाम से चला ।

   ठाकूर जगमोहन सिंह

   ये भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के घनिष्ठ बालमित्र थे । श्यामा स्वप्न इनकी प्रसिध्द गद्यकृति है ।

 उनके द्वारा अनूदित ऋतुसंहार और मेघदूत भी ब्रजभाषा की सरस कृतिया है ।

  

     राधाकृष्णदास

ये भारतेन्दु हरिश्चंद्र के फुफुरे भाई थे । इन्होंने भारतेन्दु का अधूरा छोडा हुआ नाटक सतीप्रताप पूरा किया था ।

 * इनका सबसे उत्कृष्ट और बड़ा नाटक महाराणा प्रताप था । यह नाटक बहुत ही लोकप्रिय हुआ ।

 * नाटकों के अतिरिक्त इन्होंने निस्सहाय हिन्दू नामक एक छोटा सा उपन्यास भी लिखा था ।

  बाबू बालमुकुंद गुप्त

आपने बंगवासी और भारत मित्र (कलकत्ता) पत्रों द्वारा हिन्दी की विशेष सेवा की है । इनके शिव-शम्भू के चिट्ठे हास्य और व्यंग्य साहित्य में सदा स्मरीणय रहेंगे ।

भारतेंदु का पहला नाटक कौन सा है?

हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।

अंधेर नगरी प्रहसन के लेखक कौन है?

अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।

अंधेरी नगरी नाटक में कितने दृश्य है?

Answer: कुल छः दृश्य थे।

अंधेर नगरी के राजा का नाम क्या था?

अंधेर नगरी का राजा चौपट राजा के नाम से जाना जाता है। यहां भाजी भी बिकती थी टके सेर और मीठा खाजा भी बिकता था टके सेर। महंत वहां की व्यवस्था देख शिष्यों को तुरंत चलने को कहता है पर गोवर्धनदास वहीं टिक जाता है।