स्थानीय शासन की कौन कौन सी विषय है? - sthaaneey shaasan kee kaun kaun see vishay hai?

स्थानीय शासन किस सूची का विषय है?...


स्थानीय शासन की कौन कौन सी विषय है? - sthaaneey shaasan kee kaun kaun see vishay hai?

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स्थानीय शासन की कौन कौन सी विषय है? - sthaaneey shaasan kee kaun kaun see vishay hai?

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संविधान में 73 वें और 74 वें संशोधन : 


  • संविधान का 73 वाँ संसोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है | इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है | 
  • संविधान का 74 वाँ संसोधन शहरी स्थानीय शासन (नगरपालिका) से जुड़ा है | 
  • सन् 1993 में 73वाँ और 74वाँ संशोधन लागू हुए।
  • स्थानीय शासन को राज्य सूची में रखा गया है | 

(iv) संविधन के संसोधन ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं।

पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढांचा :

(1) ग्राम सभा या ग्राम पंचायत: ग्राम पंचायत के दायरे में एक अथवा एक से ज्यादा गाँव होते हैं। जिसका प्रधान सरपंच या मुखिया होता है | 

(2) प्रखंड या तालुका पंचायत : प्रखंड (Block) स्तर पर गठित स्थानीय शासन को प्रखंड पंचायत कहते हैं | जो प्रदेश आकार में छोटे हैं वहाँ मंडल या तालुका पंचायत यानी मध्यवर्ती स्तर को बनाने की जरुरत नहीं।

(3) जिला पंचायत :पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढाँचे के सबसे उपरी पायदान पर जिस स्थानीय शासन की व्यवस्था है उसे जिला पंचायत कहा जाता है | इसके दायरे में पुरे जिले के सभी ग्रामीण इलाका आता है |  

                      

स्थानीय शासन की कौन कौन सी विषय है? - sthaaneey shaasan kee kaun kaun see vishay hai?

पंचायती राज संस्थाओं का अधिकार और कार्य: 

पारंपरिक कार्यों के साथ-साथ इन्हें अब कुछ नए आर्थिक विकास के कार्य दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं |

पारंपरिक कार्य: 

(i) स्वच्छ पेय जल मुहैया कराना |

(ii) गाँव में डिस्पेंसरी और स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना |

(iii) नालियों और सड़कों का रखरखाव करना |

(iv) सड़क के किनारे प्रकाश का व्यवस्था करना |

(v) गाँव के सभी घरों तक प्राथमिक शिक्षा पहुँचाना और ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों की प्रबन्धन | 

आर्थिक विकास के कार्य 

(i) लघु सिंचाई तथा कृषि योजनाएँ लागु करना और उन्हें क्रियान्वित करना |

(ii) ग्रामीण विद्युतीकरण करना |

(iii) शहरी सडकों को गाँव से जोड़ने की योजना को क्रियान्वित करना |

(iv) व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना |

(v) ग्रामीणों को आवास प्रदान करना |

(vi) समाज के कमजोर और विकलांग वर्गों के लिए योजनायें चलाना और उनका कल्याण करना |

(vii) राज्य और केंद्र की योजनाओं को गांवों तक पहुँचाना | 

संविधान में 73 वें और 74 वें संशोधन की विशेषताएँ :

(i) देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एक-सा किया है।

(ii) इससे शासन में जनता की भागीदारी के लिए मंच और माहौल तैयार हुआ है | 

(iii) पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधन के कारण
स्थानीय निकायों में महिलाओ की संख्या में भारी वृद्धि | 

(iv) गांवों में ग्राम, ब्लाक, और जिला स्तर पर पंचायतों की स्थापना संभव हुआ और शहरों में नगरपालिका और नगर निगम |

(v) नियमित प्रत्येक पाँच वर्ष में पंचायत के लिए चुनाव अनिवार्य बनाना | 

(vi) राज्य चुनाव आयोग का गठन का प्रावधान |

(vii) पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का अधिकार राज्यों को प्रदान करना | 

(viii) प्रत्येक पाँच वर्ष पर राज्य वित्तीय आयोग का गठन का प्रावधान | 

संविधान का 74 वाँ संशोधन: 

74 वाँ संशोधन अधिनियम में प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, मद्रास और अन्य शहर जहाँ नगरपालिका या नगर निगम का प्रावधान है के लिए किया गया है |  

  • प्रत्येक नगर निगम के लिए सभी व्यस्क मतदाताओं द्वारा चुनी गई एक समान्य परिषद् होती है | इन चुने हुए सदस्यों को पार्षद या काउंसिलर कहते है | 
  • पुरे नगर निगम के चुने हुए सदस्य अपने एक नगर निगम का अध्यक्ष का चुनाव करते है जिसे महापौर (मेयर) कहते है | 
  • 74 वें संशोधन अधिनियम के अनुसार प्रत्येक नगर निगम या नगरपालिका या नगर पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है | 
  • नगर निगम, नगरपालिका या नगर पंचायत के भंग होने पर 6 माह के अंदर चुनाव करवाना अनिवार्य है |

नगर निगम, नगरपालिका या नगर पंचायत का कार्य और दायित्व : 

(i) सड़कें और निर्माण एवं रख रखाव 

(ii) जल आपूर्ति 

(iii) सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता 

(iv) झुग्गी और झोपड़ियों में सुधार 

(v) सार्वजनिक सुविधाएँ जैसे स्कूल, स्वस्थ्य केंद्र, सड़क, की प्रकाश व्यवस्था, पार्क और खेल का मैदान, बस स्टैंड आदि | 

(vi) शहरी वानिकी के साथ-साथ शहरी सुविधाएँ जैसे उद्यान और बगीचे आदि |

(vii) सांस्कृतिक और शैक्षिक स्तर में सुधार एवं प्रोत्साहन देना 

राज्य वित्त आयोग: 

पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य सरकारें हर पांच वर्ष पर एक वित्त आयोग की नियुक्ति की जाती है | 

कार्य:

(i) यह ग्रामीण और शहरी निकायों को सौपे गए करों, प्रभार, टोल/चुंगी तथा प्रशुल्कों का निर्धारण करना |

(ii) यह राज्य के समेकित धनकोष में से पंचायतों और नगर निकायों को मिलने वाली सहायता या अनुदान का भी निर्धारण करता है |  

भारत में स्थानीय निकायों का ढाँचा : 

ग्रामीण भारत में जिला पंचायतों की संख्या करीब 500, मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6,000 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 2,50,000 है। शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1,400 नगरपालिका तथा 2,000 नगर पंचायत मौजूद हैं। हर पाँच वर्ष पर इन निकायों के लिए 32 लाख सदस्यों का निर्वाचन होता है।

स्थानीय निकायों में महिलाओं की स्थिति : 

(i) पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधन के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।

(ii) आरक्षण का प्रावधन अध्यक्ष और सरपंच जैसे पद के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला जन-प्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है।

(iii) आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2,000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80,000 से ज्यादा है।

(iv) नगर निगमों में 30 महिलाएँ मेयर (महापौर) हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं।

(v) लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी  महिलाओं के हाथ में हैं। संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास आर्जित किया है | 

(vi) इन संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के कारण बहुत-सी स्त्रिायों की राजनीति के काम-धंधे की समझ पैनी हुई है।

स्थानीय निकायों में अनुसूचित जाति और जनजाति की स्थिति : 

अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान ने ही अनिवार्य बना दिया गया है जिससे इन समूहों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है | 

(i) स्थानीय शासन के शहरी और ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों के सदस्यों की संख्या लगभग 6.6 लाख है।

(ii) इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।

(iii) ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के जरिए ज्यादा हो रही है।

स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति: 

(i) ये निकाय अनुदान देने वाले पर निर्भर होते हैं। स्थानीय निकाय प्रदेश और केंद्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं।

(ii) स्थानीय निकायों के पास अपना कह सकने लायक धन बहुत कम होता है।

(iii) इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का बहुत क्षरण हुआ है।

(iv) शहरी स्थानीय निकायों का कुल राजस्व उगाही में 0.24 प्रतिशत का योगदान है जबकि सरकारी खर्चे का 4 प्रतिशत इन निकायों द्वारा व्यय होता है। इस तरह स्थानीय निकाय कमाते कम और खर्च ज्यादा करते हैं।

पंचायती राजव्यवस्था में कमियाँ : 

(i) पंचायती राज संस्थाओं में गुटबंदी और भ्रष्टाचार |  

(ii) स्थानीय स्तर पर विभाजनकारी स्थिति |

(iii) अशिक्षा एवं गरीबी के कारण पंचायती राज व्यवस्था के प्रति उदासीनता | 

(iv) इस व्यवस्था में पर्याप्त धन की कमी |

(v) पंचायतों के लिए अपर्याप्त सहायता और अनुदान | 

स्थानीय शासन के कौन कौन से विषय होते हैं?

गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैंस्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है । स्थानीय शासन का विषय है आम नागरिक की समस्याएँ और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी ।

स्थानीय शासन के कितने विषय हैं?

73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा इन्हें संवैधानिक संस्थाओं का स्तर प्रदान किया गया तथा संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची भी जोड़ी गई है। जिसमें पंचायती राज संस्थाओं को 29 विषय दिये गये है। जिन पर ये संस्थायें कार्य करती है।

स्थानीय शासन के दो प्रकार कौन से हैं?

प्राचीन काल से स्थानीय शासन दो प्रकार के ये ग्रामीण और नगरीय शासन

स्थानीय शासन कितने प्रकार के होते हैं?

शहरी स्थानीय शासन, मुख्यतः तीन प्रकार का होता है, नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत आदि । 73वें और 74वें संविधान संशोधन 1992 ने ग्रामीण और शहरी स्थानीय शासन की संस्थाओं के संगठन और कार्यप्रणाली को अत्यधिक प्रभावित किया है ।