आलोचना व्युत्पति की दृष्टि से आलोचना शब्द उपसर्ग पूर्वक 'लोच्' धातु में 'ल्युट्' और 'टाप्' प्रत्यय से निष्पण हुआ। जिसका शब्दगत अर्थ हुआ गुण-दोषों का विवेचन, परख, समीक्षा। हिंदी आलोचना को अंग्रेजी के Literary Criticism के समानांतर माना जा सकता है। अंग्रेजी शब्द Criticism की निष्पति ग्रीक शब्द 'क्रिटीकोस'
से बना है। जिसका अर्थ है - विवेचन करना या निर्णय देना। संस्कृत में आलोचना के लिए 'टीका-व्याख्या' और 'काव्य-सिद्धान्तनिरूपण' जैसे शब्दों का प्रयोग मिलता है। आलोचना और आलोचक अपने आज के प्रचलित अर्थ में आधुनिक शब्द है। पाठक ही पहले आलोचक होता था, जो मूल्यांकन कर सकता था, सहृदयतापूर्वक काव्य के गुण - दोषों का विवेचन कर सकता था। परन्तु उसका उद्देश्य दोष निकलना मात्र नहीं था। दोषों को प्रकट करके, उनको दूर करने की प्रेरणा देना भी था। रचनाकार तथा उसकी रचना के गुणों का विकास
करना उसका प्रमुख ध्येय था। Show 1. कवि या लेखक के प्रति 2. कृति के प्रति 3. समाज के प्रति
कवि और लेखक के लिए वह प्रेरक और मार्गदर्शक है। कृति के गुणों का विज्ञापन और दोषों का विवेचन, दिग्दर्शन करके उसका महत्व प्रकट करना आलोचक का प्रमुख कार्य है। समाज कोे कृति और कवि के संबंध में वास्तविक ज्ञान कराना और कृतियों का पठन या उनके प्रति पाठकों में प्रेरणा जागृत करना और लेखकों के प्रति सम्मान भावना बढाना आलोचक का उत्तरदायित्व है। इस आधार पर आलोचना के स्वरूप को निम्न रूप से समझा जा सकता है। आलोचना की परिभाषा आलोचना का स्वरूप 1 अनुसंधान -
जहाँ काव्य के नियम-सिद्धांत, वर्गीकरण पर विचार किया जाता है, वहाँ काव्यशास्त्र है। पर जहाँ कवि की कृति का मूल्यांकन होता है, वहाँ आलोचना है। आलोचक के गुण आलोचना का उद्देश्य - आलोचना की आवश्यकता - सारांश बुरे बर्ताव की शिकायत करेंआलोचना का मुख्य गुण क्या है?आलोचना का उद्देश्य -
आलोचना का कार्य कवि और उसकी कृति का यथार्थ मूल्य प्रकट करना है। इसके लिए कृति में व्याप्त गुणों का उदघाटन और दोषों का विवेचन करना तो आलोचक का कार्य है ही, साथ ही समाज में और अन्य कलाकृतियों के बीच उस कृति का क्या स्थान और महत्व है, यह स्पष्ट करना भी आलोचना का उद्देश्य है।
हिंदी साहित्य में आलोचना का क्या तत्व है?आलोचना हिन्दी गद्य की प्रमुख विधा है। आलोचना का अर्थ हैं किसी रचना को उचित प्रकार परख कर उसके गुण दोषों की समीक्षा करना और उसके विषय मे अपने विचार प्रस्तुत करना।
हिन्दी आलोचना से आप क्या समझते हैं प्रकारों का उल्लेख कीजिए?आलोचना के प्रकार
आलोचक के दृष्टिकोण और मापदण्ड की भिन्नता के आधार पर आलोचना के भी अनेक प्रकार होते हैं जैसे – शास्त्रीय आलोचना, सैद्धान्तिक आलोचना, निर्णयात्मक आलोचना, व्याख्यात्मक आलोचना, ऐतिहासिक आलोचना, मनोवैज्ञानिक आलोचना और मार्क्सवादी आलोचना आदि।
हिंदी आलोचना का विकास कैसे हुआ?आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही हिन्दी आलोचना का उदय भी भारतेन्दु युग में हुआ | विश्वनाथ त्रिपाठी ने संकेत किया है कि “हिंदी आलोचना पाश्चात्य की नकल पर नहीं, बल्कि अपने साहित्य को समझने-बूझने और उसकी उपादेयता पर विचार करने की आवश्यता के कारण जन्मी और विकसित हुई।” हिन्दी आलोचना भी संस्कृत काव्यशास्त्र की आधार-भूमि से ...
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