अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ है ‘आभूषण’ और कर का अर्थ है ‘सुसज्जित करने वाला’। जिस तरह से एक नारी अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती हैं उसी प्रकार भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है, अर्थात जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं। Show
Alankar Ke Bhed (अलंकार के भेद)अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते हैं :
Shabdalankar – शब्दालंकारशब्दालंकार दो शब्द से मिलकर बना है- शब्द + अलंकार शब्द के दो रूप है- ध्वनि और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। इस अलंकार में वर्ण या शब्दों की लयात्मकता या संगीतात्मकता होती है, अर्थ का चमत्कार नहीं। जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है अर्थात जो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार कहलाते हैं। शब्दालंकार के भेद:1. अनुप्रास अलंकार 2. यमक अलंकार 3. श्लेष अलंकार Video Explanation of Alankar
Top Anupras Alankar – अनुप्रास अलंकारवर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते है। आवृत्ति का अर्थ है-‘किसी वर्ण का एक से अधिक बार आना’। अनुप्रास दो शब्दों के मेल से बना है ‘अनु+प्रास’, ‘अनु’ का अर्थ है- बार-बार तथा ‘प्रास’ का अर्थ है -वर्ण अर्थात जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है, या जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सुमंत्र बुलाए। यहाँ पहले पद में ‘म’ वर्ण की और दूसरे वर्ण में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। तरनी तनुजा तात तमाल तरुवर बहु छाए। जैसा की आप देख सकते हैं की ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘त’ वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। अनुप्रास अलंकार के प्रकार-
Chhekanupras Alankar – छेकानुप्रास अलंकारकाव्य में जहाँ कहीं भी एक से अधिक बार वर्णों की आवृत्ति स्वरूप एवं क्रम से शब्द के आरम्भ में या अंत में सिर्फ एक बार हो अर्थात वह वर्ण दुहराया गया हो ,वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण – मैं बैरी सुग्रीव पियारा , कारण कवन नाथ मोहिं मारा।। यहाँ ‘क ‘ वर्ण की आवृति स्वरूप एवं क्रम से सिर्फ एक बार हुई है। Vrityanupras Alankar – वृत्यानुप्रास अलंकारकाव्य में जहाँ दो से अधिक बार शब्द के प्रारम्भ में या अंत में वर्णों की आवृति हो वहाँ वृत्यनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण – कुलन में केलि में कछारन में कुंजन में , क्यारिन में कलिन कलिन किलकंत हैं।। यहाँ ‘क ‘ वर्ण की आवृत्ति स्वरूप एवं क्रम से अनेक बार हुई है। Latanupras Alankar – लाटानुप्रास अलंकारजहाँ पर काव्य में पुरे पद की पुनरुक्ति होने पर थोड़ा परिवर्तन करने पर भिन्न आशय उत्पन्न हो वहां पर लाटानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण – पूत कपूत तो का धन – संचय , पूत सपूत तो का धन – संचय।। यहाँ थोड़ा परिवर्तन करने मात्र से ही पूरा अर्थ बदल गया है। Yamak Alankar – यमक अलंकारजिस जगह एक ही शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो, लेकिन उस शब्द का अर्थ हर बार भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है । जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है।प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है।
उदाहरण- कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पा बौराय।। इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दुसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है। अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है। काली घटा का घमण्ड घटा। यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले ‘घटा’ शब्द ‘वर्षाकाल’ में उड़ने वाली ‘मेघमाला’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार ‘घटा’ का अर्थ है ‘कम हुआ’। अतः यहाँ यमक अलंकार है। Slesh Alankar – श्लेष अलंकारश्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है। उदाहरण – रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।। इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है : पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. रहीम कहते हैं कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं । पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतर्गत आएगा । जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय । बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय। जैसा कि आप ऊपर उदाहरण में देख सकते हैं कि रहीम जी ने दोहे के द्वारा दीये एवं कुपुत्र के चरित्र को एक जैसा दर्शाने की कोशिश की है। रहीम जी कहते हैं कि शुरू में दोनों ही उजाला करते हैं लेकिन बढ़ने पर अन्धेरा हो जाता है। यहाँ बढे शब्द से दो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं। दीपक के सन्दर्भ में बढ़ने का मतलब है बुझ जाना जिससे अन्धेरा हो जाता है। कुपुत्र के सन्दर्भ में बढ़ने से मतलब है बड़ा हो जाना। बड़े होने पर कुपुत्र कुकर्म करता है जिससे परिवार में अँधेरा छा जात है। एक शब्द से ही डो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं अतः यह उदाहरण श्लेष अलंकार के अंतर्गत आएगा। Arthalankar अर्थालंकारजिस अलंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।दूसरे शब्दों में जब किसी वाक्य या छंद को अर्थों के आधार पर सजाया जाये तो ऐसे अलंकार को अर्थालंकार कहते हैं। अर्थालंकारों के भेदों पर विद्वानों के अलग अलग मत रहे हैं किसी विद्वान ने इसके भेद 23 बताये हैं तो किसी ने 125 तक बताये हैं। अर्थालंकार के मुख्यतः पांच भेद हैं -:
Upma Alankar – उपमा अलंकारजब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है। उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। उदाहरण – हरि पद कोमल कमल। ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा। मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है। ऊपर दिए गए उदाहरण में चेहरे की तुलना चाँद से की गयी है। इस वाक्य में ‘मुख’ – उपमेय है, ‘चन्द्रमा’ – उपमान है, ‘सुन्दर’ – साधारण धर्म है एवं ‘सा’ – वाचक शब्द है। उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं :
उदाहरण – सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊंचा हो जिसका मन उपमेय : जिस वस्तु या व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है या जो वर्णन का विषय है वो उपमेय कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में हृदय एवं मन उपमेय हैं। उपमान : वाक्य या काव्य में उपमेय की जिस प्रसिद्ध वस्तु से तुलना कि जा रही हो वह उपमान कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में सागर एवं गिरी उपमान हैं। साधारण धर्म : साधारण धर्म उपमान ओर उपमेय में समानता का धर्म होता है। अर्थात जो गुण उपमान ओर उपमेय दोनों में हो जिससे उन दोनों कि तुलना कि जा रही है वही साधारण धर्म कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है। वाचक शब्द : वाचक शब्द वह शब्द होता है जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है। जैसे : सा।ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘सा’ वाचक शब्द है। Rupak Alankar – रूपक अलंकारजब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। दूसरे शब्दों में रूपक अलंकार में उपमान और उपमेय में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ता है। उदाहरण – पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा। Utpreksha Alankar – उत्प्रेक्षा अलंकारजब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि आता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण –
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वर्ण – उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। 2. नेत्र मानो कमल हैं। ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘नेत्र’ – उपमेय की ‘कमल’ – उपमान होने कि कल्पना कि जा रही है। मानो शब्द का प्रय्प्ग कल्पना करने के लिए किया गया है। आएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। Atishyokti Alankar – अतिशयोक्ति अलंकारजब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले जाते हैं। उदाहरण – 1. आगे नदियां पड़ी अपार घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।। ऊपर दी गयी पंक्तियों में बताया गया है कि महाराणा प्रताप के सोचने की क्रिया ख़त्म होने से पहले ही चेतक ने नदियाँ पार कर दी। यह महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की अतिशयोक्ति है एवं इस तथ्य को लोक सीमा से बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा। 2. देख लो साकेत नगरी है यही। स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही। ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहां एक नगरी की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है। यह वर्णन बहुत ही बढ़ा चढ़कर किया जा रहा है। जैसा की हम जानते हैं की जब किसी चीज़ का बहुत बढ़ा चढाकर वर्णन किया जाता है तो वहां अतिश्योक्ति अलंकार होता है। अतः ऊपर दी गयी पंक्ति भी अतिश्योक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगी। Manvikaran Alankar – मानवीकरण अलंकारजब प्राकृतिक वस्तुओं जैसे पेड़,पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहां मानवीकरण अलंकार आता है। उदाहरण – 1. फूल हँसे कलियाँ मुसकाई। जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण में दिया गया है की फूल हंस रहे हैं एवं कलियाँ मुस्कुरा रही हैं। जैसा की हम जानते हैं की हंसने एवं मुस्कुराने की क्रियाएं केवल मनुष्य ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीज़ें नहीं। ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा। 2. मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के। ऊपर के उदाहरण में दिया गया है कि बादल बड़े सज कर आये लेकिन ये सब क्रियाएं तो मनुष्य कि होती हैं न कि बादलों की। अतएव यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है। अलंकार मुख्यतः कितने भेद हैं?अलंकार के मुख्यत: भेद माने जाते हैं-- शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा उभयालंकार।
अलंकार के कितने भेद होते हैं class 9?उपमा अलंकार. रूपक अलंकार. उत्प्रेक्षा अलंकार. अतिशयोक्ति अलंकार. मानवीकरण अलंकार. अलंकार के कितने भेद होते हैं class 8?साहित्य में कहीं शब्दों के माध्यम से चमत्कार उत्पन्न होता है तो कहीं अर्थ के माध्यम से, इस आधर पर अलंकार के दो भेद होते हैं – 1. शब्दालंकार , 2. अर्थालंकार।
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