भारत का प्रथम मूल निवासी कौन है? - bhaarat ka pratham mool nivaasee kaun hai?

देश और विश्व भर में हमेसा से एक मुद्दा चर्चा में बना हुआ है की आखिर कौन भारत का मूल निवासी है, जबकि ठीक इसी तरह इस दुनिया में सबसे पहले कौन आया और ये जो नियम कानून इंसानों के लिए बनाये गए हैं वो किसकी देन है। विश्व के इतिहासकार हमेसा से इंसानों के उत्पति को लेकर आपस में उलझते रहे है कि इस विश्व में कौन सी इंसानो की प्रजाति सबसे पहले आई और विकसित हुई। इस पर युवल नोवा हेरारी की किताब 'सेपियंस' बहुत विस्तार से बताती है। बिलकुल ऐसे हीं भारत के भी कुछ विद्वान जन आपस में उलझते दीखते है की आखिर भारत में सबसे पहले किसकी उत्पति हुई ? यानि की भारत का मूल निवासी कौन है? अगर आप सवर्णों से मिलेंगे तो वो आपको ये बताते मिलेंगे की भाई हम सबसे पहले आएं है। सवर्णों में भी अगर आप ब्राह्मणों से मिलेंगे तो उनकी राय कुछ और होगी, क्षत्रिये और जमींदारों से मिले तो वो कुछ और बोलते दिखेंगे। वहीं दूसरी तरफ अगर आप दलितों की सुनेंगे तो वो कुछ अलग इतिहास बताएंगे और अगर आदिवासियों को देखें तो आपको कुछ अलग इतिहास दिखेगा। अगर दलित और आदिवासी की बात करे और बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर की इस स्थिति पे राय सुने तो आपको अम्बेडकर कहते मिलेंगे कि “आर्यो का मूलस्थान(भारत से बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नही खाता। वेदों में गंगा,यमुना,सरस्वती, के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नही कर सकता”। इस कारण सवर्ण जो अपने आप को आर्य वंसज कहते हैं वो भारत से बाहर के है.... लेकिन ये तो सिर्फ वो लोग जानते है जो अंबेडकर और अंबेडकरवादी विचारों को ऊपर-ऊपर से जानते हैं। आप अगर अंबेडकर और उनके द्वारा लिखे किताबों का गहन अध्यन करेंगे तो आपको ये पता चल जायेगा की कुछ लोग सिर्फ खुद के स्वार्थ के लिए कैसे महान पुरुषों की बातों को तोड़-मड़ोरकर पेश करते हैं।

भारत का प्रथम मूल निवासी कौन है? - bhaarat ka pratham mool nivaasee kaun hai?

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इंसान वानर जाति का है विकसित रूप

अगर युवल नोवा हेरारी के सेपियंस की और डारवीनस के विकासवाद की बात करे तो हमारे पुरुवज तो बंदर हैं। यानि की इंसान वानर जाती का ही विकसित रूप है। हाँ लेकिन भारत जैसे देश में जहाँ जातिवाद पानी में जहर की तरह घुली हुई है वहां ये चीज इतनी आसानी से सिद्ध नहीं की जा सकता। यहां सभी जातियों के अपने-अपने थेओरीज़ है। आइये हम शुरू करते है हिन्दू धर्म से। हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था का वर्गीकरण चार श्रेणियों में किया गया है, जिनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र शामिल हैं।

अंबेडकर ने शुद्रो को भी कहा आर्य

जाति व्यवस्था का यह रूप हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ (हिंदू क़ानून का स्रोत समझे जाने वाले मनुस्मृति) में लिखे उपदेशों के आधार पर दिया गया है। वहीं अगर बाबा साहब को भी अगर गहराइयों से अध्यन किया जाये तो वो भी अपनी पुस्तक "शुद्र कौन"? Who were shudras? में विदेशी लेखको की आर्यो के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यताओ का खंडन किया है। डॉ अम्बेडकर ने इस बात को पांच चीजों के द्वारा साफ़ किया है --1) वेदों में आर्य जाती के सम्बन्ध में कोई जानकारी नही है। 2) वेदों में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नही है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यो ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासियों दासो दस्युओं को विजय किया। 3) आर्य,दास और दस्यु जातियां अलग-अलग है ये भी सिद्ध करने के लिए वेदो में कोई साक्ष्य उपलब्ध नही है। 4)वेदो में इस मत की पुष्टि नही की गयी कि आर्य,दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे। 5)डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से शुद्रो को भी आर्य कहा है(शुद्र कौन? पृष्ट संख्या 80)....

अंग्रेज साशकों के पास जाती से बढ़िया कोई औजार नहीं

बाबा अंबेडकर के इन शब्दों से आपको एक चीज तो साफ़ हो ही गया होगा की आर्य, दलित और आदिवासी के नाम पर हमे सिर्फ अंग्रेजों ने बांटा है। हाँ पर अंग्रेजों के लिए इस बंटवारे या फुट को आसान हम भारतियों ने ही बनाया है। भारत में हो रहे दलितों और आदिवासियों पर ऐतिहासिक अत्याचार के कारण अंग्रेज साशकों को हमें बाँटने का इससे आसान तरीका कोई दूसरा नहीं मिल सकता था।

अगर आप आज भी देश की आम जनता से इस बारे में बात करें तो स्वर्ण आपको धर्म ग्रंथों की बात बता कर ये सिद्ध करने पर जोर देंगे की हम उच्च हैं और दलित आपको ये साबित करते दिखेंगे की दलित और आदिवासी जाती देश की मूल निवासी है और ये आर्य यानि की स्वर्ण बाहर से आएं हैं। वहीं आप अगर देश के पढ़े-लिखों ज्ञानियों की बात करे तो वो इन सभी चीजों को खंडित करते दिखेंगे और इसका उदाहरण आपको बाबा साहब अंबेडकर की बातों से चल ही गया होगा।

हिन्दू धर्म एक विचारधारा 

जिस हिंदू धर्म को आज हम व्यापक रूप में स्वीकार करते है वो वास्तव में एक विचारधारा है, जिसे "ब्राह्मणवाद" भी कहा जाता है, जो लिखित रूप में मौजूद है और यह उस छोटे समूह के हितों को स्थापित करता है, जो संस्कृत जानता है। इस बात पर यहां ध्यान दे की ये विचारधारा सिर्फ लिखीत रूप में मौजूद है पर इसके वास्तविक होने का कोई प्रमाण नहीं है। इसमें फिर ये भी संदेह नहीं बचता कि भारत में धर्म श्रेणियों को उन्हीं या अन्य ग्रंथो की पुनर्व्याख्या से भी बनाया जा सकता है।

भारत का प्रथम मूल निवासी कौन है? - bhaarat ka pratham mool nivaasee kaun hai?

जाति की उपत्पति के संबंध में हिन्दू ग्रंथों पर निर्भर नहीं रह सकते

1871 में मद्रास सूबे में जनगणना कार्यों की देखरेख करने वाले डब्ल्यूआर कॉर्निश ने लिखा है कि "...जाति की उपत्पति के संबंध में हम हिंदुओं के पवित्र ग्रंथों में दिए गए उपदेशों पर निर्भर नहीं रह सकते हैं. यह अत्यधिक संदिग्ध है कि क्या कभी कोई ऐसा कालखंड था जिसमें हिंदू चार वर्गों में थे." वहीं अगर 1871 में बिहार की जनगणना का नेतृत्व करने वाले नेता और लेखक सीएफ़ मगराथ की बात करे तो उन्होंने लिखा है कि, "मनु द्वारा बनाई गई चार जातियों के अर्थहीन विभाजन को अब अलग रखना चाहिए।" वर्तमान में ये भी कहना संदेह से भरा हुआ है की अंग्रेजों की परिभाषित की गई जाति व्यवस्था से पहले समाज में जाति का बहुत महत्व था।

शूद्र भी बने है क्षत्रिय

अंग्रेजी हुकूमत के कार्यकाल से पहले लिखित दस्तावेजों में पेशेवर इतिहासकारों और दार्शनिकों ने जाति का ज़िक्र बहुत कम पाया है। उनका कहना है कि सामाजिक पहचान लगातार बदलती रहती है। "ग़ुलाम", "सेवक" और "व्यापारी" राजा बने, किसान सैनिक बने, सैनिक किसान बन गए। दलित व्यपारी बनें और व्यपारी भी गरीब और दलित बने। अगर आपको विश्वास नहीं होता तो आपको बता दे की 'जनमे जयन्ते शूद्र' का अर्थ है की हर कोई एक हीन व्यक्ति के रूप में पैदा होता है, लेकिन जो ज्ञान प्राप्त करते हैं या खुद को योद्धाओं के रूप में उभारते हैं, सच्चे अर्थों में ब्राह्मण या क्षत्रिय कहलाते हैं। इसका मतलब आप ऐसे देख सकते है की मनुष्य को अगर क्षत्रिय और योद्धा के श्रेणी में आना है तो उसे खुद को उस रूप में विकसित करना होगा। कोई इंसान अगर उस श्रेणी में पैदा होकर भी अपने आपको अगर उसके मुताबिक नहीं ढालता है तो वो भी अपने कामों के आधार पर शूद्र या दलित के श्रेणी में चला जायेगा, इसी कारण बाबा साहब ने भी शूद्रों को आर्य बुलाया था। इस चीज का आपको सबसे बड़ा और उपयुक्त उदहारण भी इतिहास में ही मिलेगा। अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शूद्र योद्धा वर्ग के रूप में उभरे लेकिन योद्धा (क्षत्रिय) के रूप में उभरने के बाद उन्हें शूद्र नहीं कहा गया।

महापद्म नंदा एक शूद्र मूल से आने वाले वयक्ति थे। उन्होंने खुद को योद्धा के रूप में उभरा और कई क्षत्रिय कुलों को हराया। इसलिए उन्हें दूसरा परशुराम भी कहा जाता है। उन्होंने नंद वंश की स्थापना की जो मौर्यों के आगमन तक भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करते रहें।

ब्रिटिश भारत में धर्म आधारित मतदाता और स्वतंत्र भारत में जाति आधारित आरक्षण ने दिया जाति को बढ़ावा

अभी तक जितने भी इतिहास के साक्ष्य मौजूद हैं वे अंग्रेजों के शासन से पहले भारत में सामाजिक पहचान या फिर जाती को एक पुनर्कल्पना के रूप में देखती हुई मिलेगी। अंग्रेजों ने इस जाती विविधता को धर्म, जाति और जनजाति में बांट दिया। अंग्रेजों ने जनगणना का उपयोग जाति श्रेणियों को सरल बनाने और उसे परिभाषित करने के लिए किया था, जिसे अंग्रेज शायद ही समझते थे। इसके लिए उन्होंने सुविधाजनक विचारधारा और बेतुकी कार्यप्रणाली का इस्तेमाल किया । सबकुछ अंग्रेजों ने अपने मतलब के लिए किया ताकि भारत जैसे देश पर वो आसानी से शासन कर सके। अंग्रेजों ने जो नई श्रेणियां बनाई थीं, वो अपने मूल अधिकारों के लिए एक ओर मजबूत होने लगीं। ब्रिटिश भारत में धर्म आधारित मतदाता और स्वतंत्र भारत में जाति आधारित आरक्षण ने इन जाति समूहों को और मजबूती प्रदान करने का काम किया। वर्तमान में इन जाती समूहों को लेकर राजनीती होने लगी और अलग-अलग जाती के राजनेताओं ने इस चीज को खुद के हित में साधने के लिए, इंसानों के बिच इस जाती-वर्ण के खाई को और गहरा कर दिया। अब यह धीरे-धीरे भारत की नियति बन गई।

जाति व्यक्तिगत हितों को साधने का एक गंदा षड्यंत्र

अब ये भारत की आम जनता पर निर्भर करता है की इस जाती-वर्ण व्यवस्था को वह इतिहास के एक जंजीर के रूप में देखते है, जिसमे आज भी हमार समाज अपने आप को बंधा हुआ महसूस कर रहा है। या फिर समाज के इस कुव्यवस्था को आप अंग्रेजों और भारतीय राजनीतिज्ञों का खुद के व्यक्तिगत हितों को साधने के लिया बनाया गया एक गंदा षड्यंत्र समझते हैं।

भारत के सबसे पहले मूल निवासी कौन थे?

भारत की सरकारी किताबों में आर्यों के आगमन को आर्यन इन्वेजन थ्योरी कहा जाता है। इन किताबों में आर्यों को घुमंतू या कबीलाई बताया जाता है। यह ऐसे खानाबदोश लोग थे जिनके पास वेद थे, रथ थे, खुद की भाषा थी और उस भाषा की लिपि भी थी। मतलब यह कि वे पढ़े-लिखे, सभ्य और सुसंस्कृत खानाबदोश लोग थे

भारत के मूल मालिक कौन है?

ईसाई, पारसी, यहूदी, आर्य-क्षत्रिय-शूद्र, अछूत, दलित, ओबीसी, घुमन्तु, विमुक्त, आदिवासी, हूँण, कुषाण, शक, मंगोल, मुगल, आर्य-ब्राह्मण और वैश्यों सहित सभी के वंशज जो भारत के नागरिक हैं, आज कानूनी तौर पर भारत के मूलनिवासी हैं, लेकिन भारत के मूलवासी नहीं हैं। भारत के मूलवासी केवल भारत के आदिवासी हैं।

ब्राह्मण भारत में कब आए थे?

यह 7,000 से 3,000 ईसा पूर्व के बीच हुआ होगा.

आदिवासी भारत का मूल निवासी है क्या?

भारत में जनजातीय लोगों को "आदिवासी" कहा जाता है। "आदिवासी" शब्द जातीय और आदिवासी समूहों के विविध मिश्रण को दर्शाता है। उन्हें भारत के मूल निवासी माना जाता है।