Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिनRBSE Class 12 Hindi भक्तिन Textbook Questions and Answersपाठ के साथ - प्रश्न 1. प्रश्न 2. विचारणीय बात यह है कि भक्तिन को घृणा और उपेक्षा परिवार की नारियों से ही मिली, अपने पति से नहीं। तीन कन्याएँ पैदा करने पर भी पति ने उसके प्रति प्रेम में कमी नहीं आने दी। इस घटना से यह धारणा स्पष्ट हो जाती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है और वही एक-दूसरे की उपेक्षा करती हैं, आपस में ईर्ष्या-द्वेष रखती हैं। प्रश्न 3. नारी को अबला मानकर दबाया जाता है, उसकी इच्छा-अनिच्छा का ध्यान न रखकर किसी के भी साथ उसका विवाह कर दिया जाता है। इसी का दुष्परिणाम अपहरण और बलात्कार रूप में भी देखा जाता है। समय बदलता रहा, परन्तु स्त्री-जाति का ऐसा शोषण नहीं रुका, उनके अधिकारों का हनन होता रहा। आज भी गाँवों की पंचायतों में ऐसी गलत परम्पराएँ चल रही हैं। भक्तिन की बेटी के साथ घटित घटना इसी की प्रतीक है। प्रश्न 4. लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए वह बात को इधर-उधर घुमा लेती। इसे आप झूठ कह सकते हैं। इतना झूठ और चोरी तो धर्मराज महाराज ने भी की है। वह सभी बातों और कामों को अपनी सुविधानुसार ढाल लेती और स्वयं रंचमात्र भी न बदलकर शास्त्रीय बातों की व्याख्या अपने अनुसार ही करती। इसी कारण लेखिका ने भक्तिन को लक्ष्य कर ऐसा कहा होगा। प्रश्न 5. प्रश्न 6. पाठ के आसपास - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. भाषा की बात - प्रश्न 1. (ख) ऐसी टकसाल जिसमें खोटे सिक्के ढलते हों। समाज में लड़की को 'खोटा सिक्का' तथा लड़के को 'खरा सिक्का' माना जाता है। भक्तिन ने एक-एक कर तीन लड़कियाँ पैदा की, इसलिए व्यंग्य रूप में उसे खोटे सिक्कों की टकसाल कहा गया। (ग) भक्तिन जब अपने पिता की मृत्यु के काफी समय बाद अपने मायके पहुँची, तो गाँव के लोग अस्फुट स्वरों में बातें करने लगे कि 'हाय लछमिन अब आयी।' गाँव की स्त्रियाँ बार-बार यही कहती रहीं। इस तरह अस्पष्ट कथनों की आवृत्ति करके वे सहानुभूति व्यक्त करने लगीं कि उसकी सौतेली माँ ने उसे बीमारी के दौरान अपने पिता से मिलने नहीं बुलाया। प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 12 भक्तिन Important Questions and Answersलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. वह जीवन पर्यन्त अपने साहस और संघर्ष के बल पर जीवन जीती है। इसीलिए वह अपना नाम लक्ष्मी नहीं कहलवाना चाहती। लेखिका ने उसकी वेशभूषा देखकर उसे भक्तिन नाम दिया था। उसमें स्वामि-भक्ति के गुण होने के कारण लेखिका भी उसे ज्यादा कुछ नहीं बोल पाती थी। वह लेखिका की हरसंभव सेवा करती तथा उन्हें खुश रखना अपना जीवन-धर्म समझती थी। भक्तिन के जीवन का संघर्षमय पक्ष का चित्रण करना लेखिका का उद्देश्य रहा है, जिसमें वे सफल रही है इसलिए 'भक्तिन' शीर्षक भी उसके नाम व जीवन के अनुरूप सफल व सार्थक ही रहा है। प्रश्न 2. लेकिन भक्तिन के लिए यह सब बातें कोई अर्थ नहीं रखती हैं। उसके लिए इससे बड़ा अंधेर कुछ और न होगा कि जितना मालिक को बंद करने में अन्याय नहीं लेकिन नौकर को अकेले छोड़ देने में अन्याय है। जहाँ मालिक वहाँ नौकर अगर नहीं होता है ऐसा तो वह बड़े लाट से लड़ने तक को तैयार है। कोई माई आज तक लाट से लड़ी या नहीं, पर भक्तिन का काम लाट से लड़े बिना चल ही नहीं सकता है। लेखिका उसके इसी व्यवहार और बातों के लिए उसे प्रतिद्वन्द्वी कहती है फिर भी दोनों को साथ रहना है, जिसके लिए कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है। प्रश्न 3. लेखिका की आज्ञानुसार किसी भी कार्य को नहीं करने के पश्चात् भी वह उनके चारों तरफ उनका कार्य करने को तत्पर रहती थी। लेखिका के कुछ कहने या न कहने का कोई असर उस पर नहीं होता किन्तु फिर भी अपने मनानुसार वह उनके कार्य करती रहती। उनका साथ छोड़ने के लिए वह किसी कीमत पर तैयार नहीं थी। दोनों स्वामी-सेवक विषम परिस्थितियों में भी प्रतिद्वन्द्वी की भाँति साथ-साथ रहती थी। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - प्रश्न 1. इनका कार्यक्षेत्र बहुमुखी रहा। इनकी रचनाएँ - नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा (काव्य संग्रह); अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार (संस्मरण); श्रृंखला की कड़ियाँ, आपदा, भारतीय संस्कृति के स्वर (निबन्ध) आदि। पद्म विभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत-भारती पुरस्कारों से सम्मानित लेखिका की मृत्यु 1987 ई. में हुई। इनकी कविताओं में निजी वेदना व पीड़ा समाहित है। इनके गद्य में सामाजिक सरोकारों का चिंतन है। भक्तिन Summary in Hindi(महादेवी वर्मा) - लेखिका परिचय-साहित्य-रचना एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में महादेवी वर्मा का आदरणीय स्थान रहा है। हिन्दी साहित्य में रेखाचित्र एवं संस्मरण विधा को आगे बढ़ाने में इनका अनुपम योगदान रहा है। अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों, साहित्यकारों, जीव-जन्तुओं आदि का संवेदनात्मक चित्रण कर महादेवी ने अतीव मार्मिकता प्रदान की है। ये छायावादी युग की नारी - संवेदना से मण्डित कवयित्री रही हैं। इनकी कविताओं में आन्तरिक वेदना और पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है, जिससे वे इस लोक से परे किसी अव्यक्त सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई देती हैं। इनकी प्रतिभा कविता और गद्य इन दोनों में अलग-अलग स्वभाव लेकर सक्रिय रही है। गद्य के क्षेत्र में इनका दृष्टिकोण सामाजिक सरोकार के प्रति संवेदनामय रहा है। महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में तथा निधन सन 1987 ई. में इलाहाबाद में हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-नीहार, नीरजा, रश्मि, सान्ध्यगीत, दीपशिखा तथा यामा (काव्य-संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी और मेरा परिवार (संस्मरण-रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ, आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर इत्यादि (निबन्ध-संग्रह)। ये ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार तथा पद्मभूषण से सम्मानित हुई हैं। पाठ-सार - 'भक्तिन' महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें भक्तिन, एक ऐसी नारी का परिचय दिया गया है, जो लेखिका की सेविका रही है। भक्तिन छोटे कद तथा दुबले शरीर की थी। उसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था, किन्तु उसके निवेदन पर तथा उसकी कण्ठी-माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया था। 1. भक्तिन का प्रारम्भिक जीवन - सी गाँव के एक अहीर की इकलौती बेटी और विमाता की छाया में पली लक्ष्मी का विवाह पाँच वर्ष की होने पर हंडिया गाँव के एक सम्पन्न गोपालक के पुत्र से हुआ। नौ वर्ष की होने पर लक्ष्मी का गौना कर दिया। विमाता ने उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से भेजा। तब सास ने अपशकुन से बचने के लिए उसे नहीं बताया और पीहर भेज दिया। वहाँ उसके साथ कठोर व्यवहार किया गया, तो वह वापस ससुराल आ गयी। 2. कन्या जन्म एवं विधवा जीवन - जीवन में भक्तिन को सुख नहीं मिला। उसकी तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जिठानियों ने उसकी उपेक्षा प्रारम्भ कर दी। सास के तीन कमाऊ बेटे थे, जिठानियों के भी पुत्र थे। उनके लड़के खेलते-कूदते, जबकि घर का सारा काम भक्तिन और उसकी बेटियाँ करती थीं। लेकिन उसका पति उसे सच्चे मन से प्यार करता था। वह संयुक्त परिवार से अलग हो गई। जहाँ उसने बड़ी लड़की का धूमधाम से विवाह किया। दुर्भाग्य से लक्ष्मी विधवा हो गई। भक्तिन की सम्पत्ति पर कब्जा करने की नीयत से जेठ-जिठानियों ने उससे दूसरा विवाह करने को कहा, परन्तु उसने मना कर दिया रोज की कलह से उसने केश कटवा कर कण्ठी धारण कर ली और अपनी छोटी लड़कियों की शादी कर बड़े दामाद को घर-जमाई बना लिया। 3. दुर्भाग्य एवं विवशता - भक्तिन का दुर्भाग्य उसके साथ लगा था, उसी समय बड़ी लड़की विधवा हो गई। अपनी विधवा बहन का दूसरा विवाह कराने के लिए जेठ का पुत्र अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, पर लड़की. ने उसे अस्वीकार कर दिया। एक दिन वह जबर्दस्ती उसकी कोठरी में घुस गया। यद्यपि लड़की ने उसका भरपूर विरोध किया, उसके चेहरे को नोच दिया, परन्तु पंचायत ने उन्हें पति-पत्नी के रूप में रहने का आदेश दिया। माँ-बेटी विवश थीं। यह सम्बन्ध सुखकारी नहीं रहा। पैसों की कमी आने से समय पर लगान नहीं चुकाया, तो जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर नभर कडी धुप में खडा रख दिया। इस अपमान को सहन न कर सकने से वह कछ कमाई करने के विचार से शहर चली आयी। 4. महादेवी की सेविका - सिर मुंडा हुआ, गले में कण्ठी और मैली धोती पहने लक्ष्मी अर्थात् भक्तिन लेखिका के पास नौकरी पाने आयी और सेविका बन गई। भक्तिन पवित्र आचरण की थी। प्रात:काल स्नान करके, सूर्य और पीपल को अर्घ्य देकर तथा दो मिनट का जप कर वह चौके की सीमा निर्धारित कर खाना बनाने लगी। यह क्रम नित्य का बन गया। भक्तिन छुआछूत भी मानती थी। उसके द्वारा पकाया गया भोजन ग्रामीण परिवार के स्तर का था। 5. भक्तिन का स्वभाव - भक्तिन दूसरों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करती थी, किन्तु स्वयं अपरिवर्तित बनी रहती। वह लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को किसी मटकी में रख लेती। लेखिका ने जब उसे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा, तो उसने 'तीरथ गए मुँडाए सिद्ध' कहकर यह काम शास्त्रसिद्ध बताया। भक्तिन सरल स्वभाव की थी, उसे गर्व था कि उसकी मालकिन जो काम करती है, उसे दूसरा नहीं कर सकता। लेखिका की किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसे बहुत प्रसन्नता होती थी। भक्तिन लेखिका की हर तरह से सेवा करती थी और भक्ति-भावना से सारे काम करती थी। 6. सेवार्थ समर्पित - जब भक्तिन को बेटी-दामाद, नाती को लेकर उसे बुलाने आये, तब वह समझाने-बुझाने पर भी उनके साथ नहीं गई। वह जीवन के अन्त तक लेखिका का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुई। भक्तिन लेखिका के परिचितों से परिचित हो गई थी, परन्तु कविता से उसका कोई लगाव नहीं था। वह महादेवी के साथ कारागार भी जाना चाहती थी। वह छात्रावास की लड़कियों के साथ स्नेह-सद्भाव रखती थी। इस तरह भक्तिन का जीवन लेखिका की सेवा के लिए समर्पित था। सप्रसंग महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ - निर्देश - निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उनसे सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 1. सेवक-धर्म में हनुमानजी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें लेखिका ने 'भक्तिन' के नाम की विशेषता उसके भाग्य से जोड़कर बताई है। व्याख्या - लेखिका बताती है कि सीधी-सरल स्वभाव की भक्तिन सेवा धर्म का पालन,करने में हनुमानजी से भी होड़ रखती थी। वह एक गाय पालने वाले गोपालिका की बेटी थी। उसका नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। लेखिका बताती है कि जैसे उनका नाम महादेवी था अर्थात् महानदेवी, उसी प्रकार उसका नाम लक्ष्मी था जो कि धन की देवी कही. जाती है। महादेवी कहती है, जिस प्रकार नाम अनुसार वह महान देवी नहीं बन पाई उसी प्रकार भक्तिन भी नामानुसार लक्ष्मी अर्थात् धन-धान्य से पूर्ण नहीं थी। लक्ष्मी की धन-सम्पदा भक्तिन के सिकुड़ी हुई भाग्य-रेखाओं में बँध ही नहीं सकी। अंत में लेखिका कहती है वैसे तो इस संसार में सभी को अपने-अपने नाम के विरोधाभास के साथ जीना ही पड़ता है। सभी अपने नाम के विपरीत ही होते हैं या फिर भाग्य-समय उन्हें वैसा बना देता है। विशेष- 1. लेखिका ने भक्तिनः की सेवा-प्रवृत्ति एवं उसके नाम पर प्रकाश डाला है। 2. पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और सम्पत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत प्रसंग लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें लेखिका ने 'भक्तिन' के जीवन की घटना को व्यक्त किया है। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि भक्तिन पर उसके पिता का अत्यधिक प्रेम-स्नेह था। किंतु उसकी विमाता बड़ी ही ईर्ष्यालु थी। वह सम्पत्ति पर एकाधिकार चाहती थी। इसलिए जब उसके पिता बीमारी में मरणासन्न स्थिति में पहुँच चुके थे, तब भी भक्तिन को इस बात की खबर नहीं दी गई थी। जब वे मृत्यु को प्राप्त हुए, तब कई दिनों बाद भी उसे नहीं बताया गया। उसकी सास ने सोचा पिता की मृत्यु की खबर सुनकर यह रोना-पीटना करके घर में अपशकुन करेगी इसलिए उसे बिना यह बात बताए प्यार व स्नेह जैसे बहुत बड़ी कृपा कर दी गई हो, उसे अच्छे कपड़े पहना कर पीहर भेजा। भक्तिन इस अचानक हुई कृपा से बहुत खुश थी और उसके पैरों में जैसे पंख लग गये थे अपने पीहर पहुँचने के लिए, पर जैसे ही वह अपने ग ने गांव की सीमा पर पहुंचती है उसे खबर मिल जाती है और उसी समय ऐसा प्रतीत होता है मानो खुशी के पंख वहीं झड़ गए हों। अर्थात् पिता की मृत्यु का समाचार उसकी खुशियों को खत्म कर देता है। विशेष : 1. लेखिका ने विमाता और सास द्वारा किये गए व्यवहार पर प्रकाश डाला है कि दोनों ही भक्तिन से स्नेह नहीं रखती थीं। 3. जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुःख ही अधिक है। जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दण्ड मिलना आवश्यक हो गया। कठिन-शब्दार्थ :
व्याख्या - लेखिका का बताती है कि जीवन का दूसरा भाग अर्थात् ससुराल में भी भक्तिन को सुख के बदले दःख ही अधिक प्राप्त हुआ था। पहली बेटी के जन्म के बाद गेहुएँ रंग की, आटे से बनी बाटी जैसी दो और बेटियों को जन्म दिया तब उसकी सास और जिठानियों ने मुँह बिचका अर्थात् मुँह बना कर बेटी-जन्म पर उसके प्रति उपेक्षा प्रकट की। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि पुत्र-जन्म को ही समाज में उत्तम माना जाता था और सास तीन-तीन कमाने वाले पुत्रों को जन्म देने वाली उनकी भाग्य निर्मात्री बन कर चारपाई पर बैठ कर घर के प्रमुख का पात्र निभाती थी। कहने का आशय है कि घर में पुत्रों को जन्म देने के कारण उसका मान-सम्मान अधिक था और घर में उसी का आदेश चलता था। उसी प्रकार उसकी जिठानियाँ भी काकभुशंडी जैसे काले रंग वाले पुत्रों को जन्म देकर सास के बाद उसके पद की उम्मीदवार बनी हुई थीं। भक्तिन अर्थात् छोटी बहू ने परिवार की परम्परा से हट कर पुत्रियों को जन्म दिया था इसलिए उसे सजा अवश्य मिलनी थी। विशेष : 1. लेखिका ने समाज की गलत सोच को प्रकट किया है जहाँ पुत्र जन्म को अच्छा माना जाता है। 4. इस दण्ड-विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अंगूठा दिखा दिया। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें लेखिका 'भक्तिन' के जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाल रही है। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि 'भक्तिन' ने तीन पुत्रियों को जन्म दिया जिससे भक्तिन की सास और जिठानियाँ बहुत चिढ़ती थीं। लेकिन लेखिका या किसी अन्य की दृष्टि में भी सजा देने के नियम में ऐसा कहीं नहीं था कि खोटे सिक्के पैदा करने वाली अर्थात् बेटियों को जन्म देने वाली भक्तिन को पति से अलग किया जाये। सभी के द्वारा भक्तिन के प्रति की गई चुगली का परिणाम पति का उस पर और अधिक प्रेम प्रदर्शन होता। जहाँ उसकी जिंठानियाँ बात-बात पर अपने पतियों से मार खाती थीं वहीं भक्तिन को उसके पति ने मारने के नाम पर एक ऊँगली भी नहीं छुवाई थी। क्योंकि वह बड़े बाप की स्वाभिमानी बेटी के स्वभाव को अच्छे से जानता था। भक्तिन परिश्रमी, तेजस्विनी व रोम-रोम से पति को चाहने वाली पत्नी को वह बहत चाहता था इसीलिए वह पत्नी व बेटियों के साथ माँ एवं भाइयों से अलग होकर रहने लगा था। विशेष : 1. लेखिका ने भक्तिन के पति के प्रेम स्वभाव को व्यक्त किया है। 5. भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबन्धन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसन्द कर दिया। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें भक्तिन की बेटी के विधवा होने तथा जेठों के बेटों द्वारा सम्पत्ति हड़पने की कूटनीति का वर्णन है। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि दुर्भाग्य के कारण जिस प्रकार भक्तिन विधवा हो गई थी, उसके बाद भाग्य की जिद ने उसकी बेटी को भी विधवा कर दिया था। जो दामाद भक्तिन का सहारा बना हुआ था, भगवान ने उसे भी बुला लिया। इसे भक्तिन का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। अभी तक बहनोई से पार नहीं पा सकने वाले जेठ के लड़के पुनः अपनी विधवा बहन का विवाह अपने तीतर लड़ाने वाले साले से करना चाहते थे, ताकि भक्तिन की सारी सम्पत्ति उनके हाथों में रहें। लेकिन अपनी माँ की तरह बेटी भी समझदार थी उसने अपने भाई के साले से विवाह करने को मना कर दिया। जिससे कुछ समय तक के लिए दोनों माँ-बेटी आराम से रहीं। विशेष : 1. सम्पत्ति हड़पने के लिए चचेरे भाइयों की चाल प्रकट हुई है। 6. एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुसकर भीतर से द्वार बन्द कर दिया और इसके समर्थक गाँव वालों को बुलाने लगे। युवती ने जब इस डकैत वर की मरम्मत कर कंडी खोली, तब पंच बेचारे समस्या में पड़ गए। तीतरबाज युवक कहता था, वह निमन्त्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमन्त्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अन्त में दूध का दूध पानी का पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें उस घटना का वर्णन है जहाँ मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि भक्तिन के जेठ के बेटे उसकी सम्पत्ति को हड़पने हेतु किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। इसलिए अपनी चचेरी विधवा बहन की शादी अपने साले से करवाना चाहते थे। लड़की द्वारा मना किये जाने पर एक दिन भक्तिन की अनुपस्थिति में वर महाशय अर्थात् तीतरबाज साले ने बेटी की कोठरी (कमरे) में घुसकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया तथा बाहर खड़े उसका साथ देने वाले चचेरे भाइयों ने गाँव वालों को बुलाना शुरू कर दिया। युवती ने जब उस साले की पिटाई करने के बाद दरवाजा खोला तो गाँव के सभी पंच हैरान हो गए थे क्योंकि तीतरबाज लड़का, लड़की को गलत साबित करने के लिए कह रहा था कि उसे लड़की ने बुलाया था और उसके चेहरे पर बने की के नाखूनों के निशान लड़की को सही बता रहे थे। वह अनुरोध करती रही कि लड़का गलत है वह नहीं, लेकिन पंचों ने उसकी बातं नहीं सुनी। जैसा कि सही निर्णय करने के लिए पंचायत बैठी और इस समस्या को कलियुग का पापकर्म मान कर दोनों को साथ पाये जाने पर. शादी का फैसला सुना दिया। जो कि भक्तिन और उसकी लड़की दोनों के लिए गलत था। विशेष : 1. गाँव-समाज-पंचायत में बिना गलती जहाँ औरतों-लड़कियों को दबाया जाता है उसका वर्णन हुआ है। 7. दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधा कर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अन्धकार और मेरी दीवार से फूटते हुए सूर्य और पीपल का, दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरान्त जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। जिसमें बताया गया है कि भक्तिन जब उनके पास कार्य करने हेतु आई तब उसका कैसा कार्य-व्यवहार रहा। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि दूसरे दिन सुबह-सुबह सिर पर कई लौटे पानी के डाल कर लेखिका की धुली साड़ी पहन कर, पूर्व में उगते सूर्य को जल देकर तथा पीपल में जल चढ़ा कर, भक्तिन दो मिनट नाक बंद कर जाप करके रसोई में प्रविष्ट हुई। अर्थात् सुबह के सारे सेवा-कर्म करने के पश्चात् कोयले की मोटी रेखा से अपने अधिकार क्षेत्र चिह्नित कर यह बता दिया कि वह छुआछूत को बहुत मानती है। कहने का आशय है कि लेखिका भक्तिन के पहले दिन के कार्य-व्यवहार को देख कर ही समझ गई थी कि इस सेवक का साथ निभाना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि जो उनकी धुली साड़ी को पवित्र जल के छींटे लगाकर पहनती है, रसोई के अन्दर अपने अधिकार क्षेत्र की रेखा खींचती है. ये सारे कार्य लेखिका के जीवन में कठिनाई उत्पन्न करने वाले थे। विशेष : 1. लेखिका ने भक्तिन के चरित्र पर पहले दिन के कार्य-व्यवहार की दृष्टि से प्रकाश डाला है। 8. भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। वह सत्यवादी हरिश्चन्द्र नहीं बन सकती; पर 'नरो वा कुंजरो वा' कहने में भी विश्वास नहीं करती। मेरे इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये, भंडार कैसे अन्तरहित हो जाते हैं. यह रहस्य भी भक्तिन जानती है। पर. उस सम्बन्ध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्क-शिरोमणि के लिए सम्भव नहीं। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें भक्तिन के चारित्रिक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है व्याख्या - लेखिका बताती है कि भक्तिन को अच्छी कहना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि अनेक मानवीय अवगुण उसमें भरे हुए थे। वह सत्यवादी हरिश्चन्द्र नहीं बन सकती थी अर्थात् वह सब सत्य कहे हम ऐसा नहीं मान सकते थे। अर्थात् उसकी बातों में झूठ ही अधिक होता था। वह उन धृतराष्ट्र की तरह भी व्यवहार नहीं करती थी जिन्होंने कहा कि 'नर है या हाथी, मैं नहीं जानता'। कहने का आशय झूठ बोलने पर भी उसको स्वीकार करने की कला उसे नहीं आती थी। लेखिका बताती थी कि उनके इधर-उधर रखे पैसे भी न जाने वहाँ से गायब होकर भंडार घर के किस मटके में जाकर छुप जाते थे, उन्हें पता ही नहीं चल पाता था। यह रहस्य केवल भक्तिन ही जानती थी कि रुपये-पैसे कहाँ गायब हो रहे थे। अगर कोई इस विषय में कुछ कहने की कोशिश भी करता तो वह लड़ने के लिए चुनौती दे देती जो कि किसी के भी वश में नहीं था कि उससे आगे से होकर लड़ाई करे। विशेष : 1. लेखिका ने भक्तिन के झूठ बोलने, चोरी करने व लड़ाई करने जैसे अवगुणों के बारे में बताया है। 9. पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर : पस्तकों को बाँध को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल सें झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है । लेखिका ने इसमें भक्तिन का उसके प्रति सेवा-भाव रखना बताया है। व्याख्या - लेखिका बताती है कि जब वह कोई कार्य कर रही होती उस समय भक्तिन का प्रयास रहता कि कोई काये करके यह बताये कि वह उनको सहयोग दे रही है। वह उनकी किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं करती इस बात को मानना उसे अपनी हीनता या कमी को स्वीकार करने जैसा लगता। इसलिए वह दरवाजे पर बैठ कर बार बार उनसे कुछ कार्य बताने का आग्रह करती। लेखिका के कुछ नहीं बताने पर उनकी उत्तर-पुस्तिकाओं को बाँध कर रखती, कभी अधूरे चित्र को उठा कर कोने में रखती, तो कभी रंग की प्याली को धोकर रखती, तो कभी चटाई को अपनी साड़ी से झाड़कर कार्य करने का उपक्रम करती-सी दिखाई देती है। उसका इस तरह कार्य करने का एक ही अर्थ होता कि वह लेखिका की कार्य में सहायता कर रही है और इस तरह कार्य करने से यह प्रमाणित हो जाता था कि वह अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान है जो बिना कहे ही लेखिका के कार्य करके उनकी सहायता करती है। विशेष : 1. लेखिका ने भक्तिन की कार्य-प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। 10. मेरे पास वहाँ जाकर रहने के लिए रुपया नहीं है, यह मैंने भक्तिन के प्रस्ताव को अवकाश न देने के लिए कहा था; पर उसके परिणाम ने मुझे विस्मित कर दिया। भक्तिन ने परम रहस्य का उद्घाटन करने की मुद्रा बनाकर और पोपला मुँह मेरे कान के पास लाकर हौले-हौले बताया कि उसके पास पाँच बीसी और पाँच रुपया गड़ा रखा है। उसी से वह सब प्रबन्ध कर लेगी। फिर लड़ाई तो कुछ अमरौती खाकर आई नहीं है। जब सब ठीक हो जाएगा, तब यहीं लौट आएँगे। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इस प्रसंग में लेखिका ने बताया कि युद्ध समय भक्तिन उनसे गाँव चलने की कह रही थी। व्याख्या - लेखिका ने बताया कि उस समय युद्ध का माहौल था और भक्तिन उससे बार-बार गाँव चलने का आग्रह कर रही थी। भक्तिन को इस बात से ध्यान हटाने के लिए लेखिका ने कहा कि उनके पास रुपये-पैसे नहीं है इसलिए वे नहीं जा सकती है। लेकिन इस बात के उत्तर में भक्तिन ने जो कहा उसे सुनकर लेखिका आश्चर्यचकित हो गई। भक्तिन ने जैसे बहुत बड़े रहस्य पर से पर्दा उठाने की मुद्रा बनाकर और अपना दाँतों रहित पोपला मुँह लेखिका के कानों के पास लाकर कहा कि उसके पास पाँच बीस पैसे और पाँच रुपया है। उसी से वह उन दोनों के आने-जाने का सारा प्रबन्ध कर लेगी। उन्हें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। साथ ही वह कहती है कि युद्ध कोई अमृत पीकर तो आया नहीं जो हमेशा ही रहेगा। जब युद्ध खत्म हो जाएगा वे यहीं वापस आ जायेंगी। लेखिका के आश्चर्य का कारण उसके पास पैसे होना तथा आश्वासन देना रहा कि वह किस प्रकार से सभी स्थितियों में तैयार रहती है। विशेष : 1. लेखिका ने भक्तिन के अविश्वसनीय चरित्र को उभारा है। 11. भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का सम्बन्ध है, यह कहना कठिन है; क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुःख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतन्त्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें लेखिका ने स्वयं का और भक्तिन का सम्बन्ध स्पष्ट किया गया है। व्याख्या - लेखिका बताती है कि कहने के लिए भक्तिन और लेखिका के मध्य सेवक-स्वामी का सम्बन्ध है, पर भक्तिन को देख कर कहना कठिन है कि उसमें सेवक भाव वाले सभी गुण मौजूद हैं। जहाँ तक स्वामी के बारे में कहा जाये तो लेखिका जैसी स्वामिन कोई हो नहीं सकती है क्योंकि उनकी इच्छा भक्तिन को हटाने की होती है पर वे उसे हटा नहीं पाती आशय उनका यह आदेश भक्तिन पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। दूसरी तरफ भक्तिन जैसा कोई सेवक भी इस व्यवहार का नहीं सुना गया जो चले जाने का आदेश पाकर भी आज्ञा का उल्लंघन कर हँस देती है। भक्तिन को नौकर कहना या मानना उतना ही गलत है जितना घर में बारी-बारी आने वाले अंधेरे-उजाले हैं। अंधेरों-उजालों को हम आने-जाने से रोक नहीं सकते उन पर हमारे किसी आदेश का कोई प्रभाव नहीं होता है। इसी प्रकार आँगन में खिलने वाला गुलाब और आम अपनी मर्जी के मालिक हैं, उन्ही की तरह भक्तिन का व्यवहार है। जिसका रहना न रहना स्वयं उसकी मर्जी पर निर्भर है। जैसे अंधेरे-उजाले, गुलाब-आम हमें सुख-दुःख देते हैं उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने आपको प्रमाणित करने के लिए मेरे जीवन को पूरी तरह से घेरे हुए है। कहने का आशय है कि लेखिका के स्वयं का कोई अधिकार या इच्छा भक्तिन पर प्रभाव उत्पन्न नहीं करता है। विशेष : 1. लेखिका ने अंधेरे-उजाले तथा दुःख-सुख की तरह भक्तिन के अस्तित्व को माना है। 12. भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊँची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की सम्भावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। कठिन-शब्दार्थ : कै = कितनी। प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' संस्मरण से लिया गया है। इसमें लेखिका ने ' भक्तिन के जेल जाने के भय को स्पष्ट किया है। व्याख्या - लेखिका बताती है कि 'भक्तिन' को प्रारम्भ से ही ऐसे संस्कार मिले हैं कि वह कारागार (जेल) जाने के नाम से डरती है। और उसका यह डर इतना ज्यादा है कि जैसे कारागार न होकर यमलोक जाना हो। कारागार की तरह ऊँची दीवारें जब कहीं देखती है तो वह आँख मूंद कर बेहोश हो जाना चाहती है। उसके इस डर को सभी लोग जान गये थे और इसलिए सभी उसे इस बात के लिए चिढ़ाते थे कि लेखिका भी स्वतंत्रता आन्दोलन के कारण जेल जाएंगी। ऐसा नहीं है कि वह डरती नहीं थी। पर इस डर से अधिक महत्त्व इस बात का था कि उसे लेखिक चाहे जेल में ही क्यों न रहना पड़े? लोगों की जेल जाने की बात पर विश्वास करके वह लेखिका से चुपचाप आकर पूछती है कि वह अपनी कितनी साड़ियाँ धोकर-साफ करके रख ले ताकि जब वो जेल में उनके साथ रहे तब उसकी गन्दी साड़ियों की वजह से लेखिका को शर्मिंदा नहीं होना पड़े और पूछती है कि और क्या-क्या सामान बाँध कर रखे जिनकी जरूरत लेखिका को वहाँ पर पड़ेगी। आशय यह है कि अनेक अवगुणों के बाद भी लेखिका को उसके स्वभाव का यह भोलापन तथा साथ रहने की लालसा अचंभित भी करती है। भक्तिन के चरित्र की विशेषता क्या थी?भक्तिन बहुत स्वाभिमानी थी। जब एक दिन ज़मींदार ने लगान न चुकाने के कारण दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा तब भक्तिन यह अपमान न सह सकी और अकेले ही शहर की ओर कमाने निकल पड़ी। भक्तिन अपने पति से अत्यंत प्रेम करती थी। उसके जीवित रहते भक्तिन ने कंधे से कंधा मिलाकर घर-गृहस्थी का सारा कार्य किया।
भक्तिन क्या नहीं बन सकती थी?भक्तिन स्वयं को बदल नहीं सकती थी। वह दूसरों को अपने मन के अनुकूल बनाने की इच्छा रखती थी। लेखिका देहाती बन गई, लेकिन भक्तिन को शहर की हवा नहीं लगी। उसने लेखिका को ग्रामीण खाना-खाना सिखा दिया, परंतु स्वयं 'रसगुल्ला' भी नहीं खाया।
भक्तिन के व्यक्तित्व की कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रेरित किया ओर क्यों?भक्तिन लाट-साहब तक लड़ने को इसलिए तत्पर थी क्योंकि वह अपनी मालकिन को किसी भी कीमत पर खो देना नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसकी मालकिन सदैव उसके साथ रहे। इससे उसके स्वभाव की सच्ची सेविका, अपने धर्म का पालन करने वाली, निडरता एवं साहसी विशेषताएँ उजागर होती हैं।
भक्तिन का व्यक्तित्व कैसे था?Expert-Verified Answer
➲ भक्तिन का व्यक्तित्व बेहद साधारण था, लेकिन लेखिका को उसमे असाधारण दृढ़ता दिखायी देती थी। उसका शरीर बेहद दुबला-पतला था और पतले होंठ थे। उसका सिर घुटा हुआ था, यानि उसने अपना सिर मुंडा रखा था। वह बेहद वाक्पटु थी और हर बात का जवाब बेहद हाजिरजवाबी से देती थी।
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