Solution : प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम में संयोजन (Resistances in Series)-जब भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है तो परिणामी प्रतिरोध भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों के जोड़ के बराबर होता है। जब चालकों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि एक अंतिम सिरा दूसरे के पहले सिरे से तथा दूसरे का अंतिम सिरा तीसरे के पहले सिरे से तथा इसी प्रकार से ऐसे आयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं, ऐसे आयोजन में सभी चालकों में से बहने वाली विद्युत् धारा का मान समान होता है। मान लो प्रतिरोध `R_(1), R_(2)` तथा `R_(3)`, श्रेणीक्रम में जोड़े गए हैं तो उनका कुल प्रतिरोध निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता प्रतिरोधों का समांतर क्रम में संयोजन (Resistance in Parallel) वह क्रम जिसमें सभी प्रतिरोधी के एक ओर के सिरे एक बिंदु तथा दूसरी ओर के सभी सिरे दूसरे बिंदु पर जुड़े होते हैं, इस प्रकार के आयोजन को समांतर क्रम आयोजन कहते हैं। मान लो यदि तीन चालक जिनके प्रतिरोध क्रमशः `R_(1), R_(2), R_(3)` हों, को समांतर क्रम में जोड़ा जाए तो उनका कुल प्रतिरोध R निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है- `(1)/(R)= (1)/(R_(1))+(1)/(R_(2))+(1)/(R_(3))` अर्थात् प्रतिरोधों को समांतर क्रम में जोड़ने से उनका परिणामी प्रतिरोध विभिन्न प्रतिरोधों के विपरीत क्रम के जोड़ के बराबर होता है। प्रतिरोधों को समांतर क्रम में जोड़ने से किसी भी चालक में विद्युत् धारा स्वतंत्रतापूर्वक भेजी अथवा रोकी जा सकती है। Show series and parallel combination of resistances in hindi प्रतिरोधों का श्रेणी तथा समान्तर क्रम संयोजन : विद्युत परिपथ के सभी भागो में हमें भिन्न धारा के मान की आवश्यकता होती है और यह प्रतिरोध के अलग अलग मानो वाले प्रतिरोधों की सहायता से संभव हो पाता है। प्रतिरोधों का संयोजन हमें उस दशा में करना पड़ जाता है जब हमारे पास जो प्रतिरोध का मान चाहिए वो उपलब्ध नहीं होता लेकिन अन्य मान के प्रतिरोध उपलब्ध होते है , ऐसी स्थिति में हम प्रतिरोधों को का आपस में इस प्रकार संयोजित करते है की हमें आवश्यक प्रतिरोध का मान प्राप्त हो जाए यह संयोजन किसी आवश्यकतानुसार किसी भी प्रकार का हो सकता है श्रेणी , समांतर या मिश्रित। सामान्तया: प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार का होता है 1. श्रेणी क्रम संयोजन 2. समान्तर क्रम संयोजन इनके बारे में विस्तार से पढ़ते है 1. श्रेणी क्रम संयोजन (series combination )जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को इस प्रकार से संयोजित किया जाए की प्रत्येक प्रतिरोध में विद्युत धारा का मान एकसमान हो तो इस प्रकार के प्रतिरोधों के संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते है। इस प्रकार के संयोजन में प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा रहता है और इसी प्रकार दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा रहता है जैसा चित्र में दिखाया गया है। चित्रानुसार 3 प्रतिरोध R1 , R2 , R3 है ये तीनो श्रेणीक्रम में जुड़े हुए है , तीनो प्रतिरोधों में समान मान की धारा I प्रवाहित हो रही है , तीनो प्रतिरोधों पर विभवांतर V1 , V2 , V3 है। V1 , V2 , V3 का मान ओम के नियम से निकाल सकते है। V1 = IR1 V2 = IR2 V3 = IR3 चूँकि परिपथ में आरोपित कुल विभवांतर Vs है। Vs = V1 + V2 + V3 V1 , V2 , V3 का मान रखने पर Vs = IR1 + IR2 + IR3 Vs = I (R1 + R2 + R3) चूँकि हम जानते है की Vs = I R Vs का मान ऊपर समीकरण में रखने पर I R = I (R1 + R2 + R3) अतः R = R1 + R2 + R3 यहाँ R को श्रेणी क्रम में प्रतिरोधों का तुल्य या कुल प्रतिरोध कहते है , यहाँ हमने देखा की श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर प्राप्त होता है। नोट : हमने 3 प्रतिरोध लेकर इसको समझा है , लेकिन 3 से अधिक प्रतिरोध होने पर भी ये ही निष्कर्ष इसी प्रकार निकाला जा सकता है। निष्कर्ष : 1. सभी प्रतिरोधों में समान धारा प्रवाहित होती है। 2. परिपथ का कुल विभवांतर सभी प्रतिरोधों के विभवान्तर के योग के बराबर होता है। 3. तुल्य प्रतिरोध का मान सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर आता है। 4. तुल्य प्रतिरोध का मान परिपथ में उपस्थित सबसे बड़े प्रतिरोध के मान से भी अधिक प्राप्त होता है। 2. समान्तर क्रम संयोजन (parallel combination of resistances)जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को इस प्रकार से संयोजित किया जाए की प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर का मान समान हो , प्रतिरोधों के इस प्रकार के संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहते है। इसमें प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है की प्रतिरोधों के एक तरफ के सभी सिरे जुड़े हो और दूसरी तरफ दूसरे सभी सिरे आपस में जुड़े हो जैसा चित्र में दिखाया गया है। चित्रानुसार 3 प्रतिरोध R1 , R2 , R3 है ये तीनो समांतर क्रम में जुड़े हुए है , तीनो प्रतिरोधों पर विभवांतर V का मान समान है तथा R1 , R2 , R3 में प्रवाहित होने वाली धारा क्रमशः I1 , I2 , I3 है और कुल धारा का मान I है। ओम के नियम से V = I1R1 , V = I2R2 , V = I3R3 अतः I1 = V/R1 I2 = V/R2 I3 = V/R3 परिपथ में प्रवाहित कुल धारा का मान I = I1 + I2 + I3 I1 , I2 , I3 का मान रखने पर I = V/R1 + V/R2 + V/R3 I =V (1/R1 + 1/R2 + 1/R3) चूँकि I = V / R I का मान समीकरण में रखने पर V / R =V (1/R1 + 1/R2 + 1/R3) अतः 1 / R =1/R1 + 1/R2 + 1/R3 अतः हम कह सकते है की प्रतिरोधों के समानांतर क्रम में तुल्य प्रतिरोध का मानव्युत्क्रम सभी प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है। निष्कर्ष 1. समांतर संयोजन में सभी प्रतिरोधों के सिरों पर विभवांतर का मान समान होता है। 2. तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है। 3. इस प्रकार के संयोजन में जुड़े सबसे कम प्रतिरोध में सबसे अधिक धारा बहती है और सबसे अधिक प्रतिरोध में सबसे कम धारा बहती है। श्रेणी क्रम संयोजन का सूत्र क्या है?एक समांतर अनुक्रम में पहले n पदों का योग (n/2)⋅(a₁+aₙ) होता है। इसे समांतर श्रेणी का सूत्र कहा जाता है।
श्रेणी क्रम संयोजन क्या होता है?श्रेणीक्रम संयोजन
जब विद्युत के दो या अधिक घटक इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि सबमें एक ही धारा प्रवाहित हो तो इसे श्रेणीक्रम कहते हैं। अर्थात, श्रेणीक्रम में जुड़े सभी अवयवों में प्रत्येक क्षण एक समान धारा प्रवाहित होती है।
श्रेणी क्रम में कैसे जोड़ते हैं?श्रेणी क्रम संयोजन (series combination )
इस प्रकार के संयोजन में प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा रहता है और इसी प्रकार दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा रहता है जैसा चित्र में दिखाया गया है।
श्रेणी क्रम तथा समांतर क्रम क्या है?वह संयोजन जिसमें पहले प्रतिरोध का दूसरा सिरा, दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं तथा दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं। और यदि तीन से अधिक प्रतिरोध हैं तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ देते हैं। तभ प्रतिरोध के इस संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं।
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