बच्चों के पैरों को क्या कहा गया है - bachchon ke pairon ko kya kaha gaya hai

यदि पैदा होने के बाद से ही बच्चे के पैर टेढ़े होते हैं, तो यह एक प्रकार का जन्म दोष होता है। इसे क्लब फुट के नाम से जाना जाता है। यह दोष होने पर बच्चे के पैर अंदर या बाहर की ओर मुड़े हुए होते हैं। बच्चे को ऐसा एक या दोनों पैरों में हो सकता है। यदि समय रहते इस बीमारी का इलाज न किया जाए, तो बच्चे को बड़े होकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उसे चलने में भी दिक्कतें आ सकती हैं। सर्जरी की मदद से इस जन्म दोष से छुटकारा पाया जाता है।

​जन्म से बच्चे के पैर टेढ़े हाने के लक्षण

बच्चों के पैरों को क्या कहा गया है - bachchon ke pairon ko kya kaha gaya hai

  • बच्चे का पैर अंदर या बाहर की ओर मुड़ा हुआ होता है।
  • बच्चे की एढ़ी अंदर की ओर मुड़ी हुई होती है, जो कि आर्क शेप बनाती है।
  • गंभीर मामलों देखा गया है कि पंजे उल्टे हो सकते हैं।
  • प्रभावित पैर और टांग की लंबाई छोटी होती है।
  • प्रभावित पिंडली की मांसपेशियां अविकसित हो सकती हैं।

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​जन्म से टेढ़े पैर होने का कारण

बच्चों के पैरों को क्या कहा गया है - bachchon ke pairon ko kya kaha gaya hai

क्लब फुट होने के कारकों का अब तक ठीक-ठीक पता नहीं चलता है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों की वजह से हो सकता है। आमतौर पर लड़कों को लड़कियों की तुलना क्लब फुट का रिस्क दोगुना होता है।

क्लबफुट के निम्न जोखिम कारक हैं-

  • माता-पिता या परिवार में पहले से किसी को क्लबफुट की बीमारी है, तो बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है।
  • क्लबफुट के पारिवारिक इतिहास से संबंधित महिला गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करती है, तो बच्चे में इसका जोखिम बढ़ जाता है।
  • जन्मजात स्थितियां भी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं।

बच्चों में टेढ़े पैर का इलाज

बच्चों के पैरों को क्या कहा गया है - bachchon ke pairon ko kya kaha gaya hai

चूंकि, बच्चे के पैर में हड्डियों और मांसपेशियों को जोड़ने वाले ऊतक काफी लचीले होते हैं, इसलिए इसका इलाज बच्चे के जन्म के कुछ सप्ताह बाद ही शुरू हो जाता है। डाॅक्टर की कोशिश रहती है कि चलना सीखने से पहले ही इसका इलाज किया जा सके। इलाज के दौरान पांव को सीधा कर चलने योग्य बनाया जाता है।

स्ट्रेचिंग और कास्टिंग भी क्‍लबफुट का एक इलाज है। इस तरीके को पोंसेटी भी कहा जाता है। इसे अंतर्गत बच्चे के पैरों को धीरे-धीरे सीधा किया जाता है। इसके बाद पैरों पर प्लास्टर, जिसे कास्ट भी कहते हैं, को चढ़ा दिया जाता है। टेढ़े पैर को सीधा करने के लिए इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है।

इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सर्जरी की जाती है। डाॅक्टर के सुझाव के अनुसार ऑपरेशन के बाद खास तरह के जूते और ब्रेसेस बच्चों को पहनाए जाते हैं और उन्हें स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने की सलाह भी दी जाती है। उन्हें यह ब्रेसेस तथा जूते पूरे 3 साल तक रोजाना रात को पहने रखना होता है।

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​सर्जरी भी है उपाय

बच्चों के पैरों को क्या कहा गया है - bachchon ke pairon ko kya kaha gaya hai

बहुत गंभीर मामलों में ही क्लब फुट के इलाज के लिए सर्जरी की जाती है। ये ऐसे मामले होते हैं, जो काफी जटिल होते हैं और अन्य तरीके से पैर सीधे नहीं हो सकते हैं। सर्जरी में हड्डियों और मांसपेशियों के बीच मौजूद ऊतक को लंबा किया जाता है और सामान्य स्थिति में रखा जाता है।

सर्जरी के बाद कुछ महीनों के लिए बच्चे को कास्ट लगाकर रखना होता है। बच्चे को टेढ़े पैरों से स्थाई रूप से छुटकारा पाने के लिए एक साल तक ब्रेसेस पहनना पड़ सकता है।

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सीधे हो सकते हैं बच्चे का तिरछे पैर : डॉ. बासुकी

संवाद सहयोगी, जमशेदपुर : अगर आपके बच्चे का पैर तिरछे हैं तो वह सीधा हो जाएगा। उक्त बातें शनिवार को ब

संवाद सहयोगी, जमशेदपुर : अगर आपके बच्चे का पैर तिरछे हैं तो वह सीधा हो जाएगा। उक्त बातें शनिवार को बैंगलुरु के चिकित्सक डॉ. बासुकी वीआर ने कहीं। मौका था झारखंड ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का। बिष्टुपुर स्थित एसएनटीआइ प्रेक्षागृह में दूसरे दिन सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि सह टाटा स्टील के वीपी सुनील भास्करन ने की। उन्होंने कार्यक्रम को सराहते हुए कहा कि आने वाले दिनों में चिकित्सा के क्षेत्र में डिजीटल इंडिया काफी मददगार साबित होगा। इसके माध्यम से मरीज व चिकित्सक दोनों का फायदा होगा। वहीं डॉ. बासुकी वीआर ने कहा कि नवजात बच्चों में पैर तिरछे होने की शिकायत पर अभिभावक डर जाते हैं। वह ठीक नहीं होने वाले बीमारी समझते हैं। खासकर किसी लड़की को होने पर परिजन की परेशानी और बढ़ जाती है, क्योंकि उसकी शादी करनी होती है। लेकिन इस भ्रम से निकलने की जरुरत है। इसका इलाज पूरी तरह से संभव है। डॉ. बासुकी ने कहा कि पैर तिरछे होने की समस्या को 'क्लब फुट' कहते हैं। यह एक ऐसा रोग है, जिसमें जन्म से ही बच्चे के पैरों में टेढ़ापन रहता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 1000 बच्चों में एक बच्चा इस रोग से प्रभावित होता है। 'क्लब फुट' से प्रभावित लगभग 50 फीसद बच्चों में ऐसा टेढ़ापन दोनों पैरों में होता है। इसका इलाज दो तरीके से होता है। प्लास्टर व सर्जरी। यह निर्णय चिकित्सक बीमारी देखने के बाद लेते है। जागरुकता के अभाव में बच्चे के परिजन काफी देर से चिकित्सक के पास पहुंचते है। देश में 50 हजार से अधिक बच्चे इससे पीड़ित है। इस अवसर पर टाटा स्टील (मेडिकल सर्विसेस) के जीएम डॉ. जी रामदास, झारखंड ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार, आयोजन समिति के चेयरमैन डॉ. संतोष रावत, सचिव डॉ. रघुवर शरण, कोषाध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार रजक, डॉ. एबीके बाखला, पटना के डॉ. गिरीश कुमार सिंह, चंडीगढ़ के डॉ. विशाल कुमार, डॉ. आरपी ठाकुर सहित अन्य चिकित्सक उपस्थित थे।

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क्लब फुट के लक्षण

- इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में पैर अंदर की तरफ मुड़ता है। मुड़ने की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इस कारण बच्चा लंगड़ाकर चलता है।

- ऐसे बच्चों के बैठने पर उनकी एड़ी जमीन से उठी रहती है।

- बच्चा पांव के बाहरी किनारे से चलने लगता है।

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क्या हैं दुष्प्रभाव

डॉ. बासुकी ने बताया कि बच्चे के पैरों का जन्म से विकारग्रस्त होना मां-बाप की चिंता और परेशानी दोनों बढ़ा देता है। वहीं बच्चों को भी कई परेशानियां का सामना करना पड़ता है। जैसे देर से चलना, पैर टेढ़ा रखना, एड़ी जमीन पर न पड़ना, पैर का विकास सामान्य से कम होना, जूता-चप्पल का प्रयोग न कर पाना आदि। इन सब कारणों से बच्चे के मन में हीन-भावना पैदा हो जाती है। यही नहीं, वयस्क होकर वह कई नौकरियों के लिए भी अयोग्य करार दिया जाता है।

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हीप ज्वाइंट में रिप्लेसमेंट से अवगत हुए चिकित्सक

कोलकाता के डॉ. कंचन भंट्टाचार्य ने चिकित्सकों को हीप ज्वाइंट रिप्लेसमेंट के तरीकों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि अगर किसी मरीज को हीप ज्वाइंट रिप्लेसमेंट हुआ हो। उसके बाद भी अगर किसी व्यक्ति की हड्डी टूट जाती है तो उसे काफी सूझबुझ के साथ इलाज करना होता है। यह समस्या बुजुर्गो में काफी देखने को मिलता है।

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बच्चे के पैर का बाहर की ओर झुकना क्या कहलाता है?

यदि पैदा होने के बाद से ही बच्चे के पैर टेढ़े होते हैं, तो यह एक प्रकार का जन्म दोष होता है। इसे क्लब फुट के नाम से जाना जाता है। यह दोष होने पर बच्चे के पैर अंदर या बाहर की ओर मुड़े हुए होते हैं। बच्चे को ऐसा एक या दोनों पैरों में हो सकता है।

यदि किसी बच्चे के पैर जन्म से तिरछे हो तो कितने दिन तक ठीक कर सकते है?

सर्जरी और प्लास्टर, 8 हफ्ते का इलाज इसके मरीजों को लेकर सर्जरी भी जाती है या बच्चे के पैर की उंगली से लेकर घुटने के ऊपर तक प्लास्टर लगाया जाता है। प्लास्टर पैर को खींचकर सही स्थिति में रखता है और करीब 8 हफ्ते तक ये प्रक्रिया अपनाई जाती है।

पैर सीधे कैसे होते हैं?

निनामा ने बताया प्लास्टर चढ़ाने और स्ट्रेपिंग आदि के प्रयोग से इस बीमारी को 90 प्रतिशत तक ऑपरेशन के बिना ठीक किया जा सकता है। फिजियोथेरेपी से लाभ होता है। इसके बाद पैर का माइनर ऑपरेशन किया जाता है। पैर का साइज सीधा करने को बच्चों को स्पेशल जूते में चलना पड़ता है।

छोटे बच्चों के पैरों में दर्द हो तो क्या करें?

ऐसे करें इन समस्याओं से बच्चों का बचाव-.
पैर के दर्द से राहत पाने के लिए आप गरम पानी से सेंक सकते हैं..
बच्चों के पैरों को रोज धोएं क्लीन रखें और क्रीम लगाएं..
जूते हमेशा फिटिंग के ही बनाएं बच्चों को..
पैर में ज्यादा समस्या होने पर डॉक्टर को तुरंत दिखाएं..