Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Exercise Questions and Answers. Show
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथिJAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Questions and Answersमौखिक – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. लिखित – (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. भाषा-अध्ययन – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. योग्यता विस्तार – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. तुम कब जाओगे, अतिथि Summary in Hindiलेखक परिचय : जीवन-परिचय – शरद जोशी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य-लेखकों में से एक हैं। जोशी जी का जन्म सन् 1931 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। पिता सरकारी नौकरी में थे, अतः तबादले होते रहते थे जिससे इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में हुई। युवावस्था में आकाशवाणी और सरकारी कार्यालयों में काम करने के पश्चात जोशी जी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन करने लगे। इंदौर से प्रकाशित ‘नई दुनिया’ में इनकी रचनाएँ छपने लगीं। सन् 1980 में ‘हिंदी एक्सप्रेस’ के संपादन का भार भी इन्होंने सँभाला। शरद जोशी मूलत: व्यंग्य लेखक थे और इसी रूप में इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया था। सन् 1991 में इनका देहावसान हुआ। रचनाएँ – शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य रचनाएँ हैं- परिक्रमा, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ, किसी बहाने’, ‘रहा किनारे बैठ’, ‘तिलस्म’, ‘दूसरी सतह’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘यथासंभव’ तथा ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे ‘। भाषा-शैली – शरद जोशी व्यंग्य में हास्य का पुट अधिक रखते हैं, क्योंकि उनके ही शब्दों में, “हास्य के माध्यम से कुछ बातें बहुत कम शब्दों में और बड़ी सरलता से कह देने में सफलता मिली है। सामान्य पाठक बड़ी जल्दी विषय-प्रवेश कर जाता है और उसको जब इस बात का अहसास होता है कि इन सीधी-सादी बातों के पीछे गहरा तथ्य है, तो जो ‘शॉक’ पाठक को लगता है वही उसे झकझोरता है।” इस प्रकार वे हास्य को व्यंग्य का औज़ार मानते हैं, न कि लक्ष्य। ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ में जब अतिथि चार दिन तक लेखक के घर से नहीं जाता, तो पाँचवें दिन लेखक उसे चुनौती देते हुए कहता है – “तुम लौट जाओ, अतिथि ! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!” लेखक के इस कथन में अनचाहे मेहमानों पर कटाक्ष किया गया है। लेखक ने तत्सम प्रधान – चतुर्थ, दिवस, अंकित, संक्रमण शब्दों के साथ ही एस्ट्रॉनॉट्स, स्वीट- होम, स्वीटनेस, शराफ़त, सेंटर आदि विदेशी शब्दों का यथास्थान सहज रूप से प्रयोग किया है। लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें यथास्थान लाक्षणिकता एवं चित्रात्मकता भी विद्यमान है; जैसे- ‘मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी-बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं, तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा।’ पाठ का सार : ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ के लेखक शरद जोशी हैं। इस पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो अपने किसी परिचित के घर बिना सूचना दिए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। लेखक के घर अचानक आए हुए अतिथि को आज चार दिन हो गए हैं और वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक सोचता है कि ‘तुम कब जाओगे अतिथि ?’ लेखक के घर आया हुआ अतिथि जहाँ बैठा सिगरेट का धुआँ फेंक रहा है, उसके सामने लगे कैलेंडर की तारीखें पिछले दो दिनों से लेखक ने अतिथि को दिखा-दिखा कर बदली हैं। लेखक के घर आए आज उसका चौथा दिन है, पर वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक कहता है कि इतने समय तक तो चंद्रयात्री भी चाँद पर भी नहीं रुके थे। क्या उसे उसकी अपनी धरती नहीं पुकार रही ? जिस दिन यह अतिथि लेखक के घर आया था, उस दिन वह किसी अनजानी मुसीबत के आने की संभावना से घबरा गया था और उसे अपने बजट की चिंता होने लगी थी। इतना होने पर भी उसने पत्नी सहित अतिथि का स्वागत किया था। रात के भोजन में उसे दो सब्ज़ियाँ, रायता, मीठा आदि खिलाया था। उन्होंने सोचा था कि कल तो यह अतिथि चला ही जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरे दिन भी उसे अच्छा भोजन करवाया और सिनेमा भी दिखाया। लेखक ने सोचा था कि अगले दिन उसे स्टेशन पहुँचाकर भावभीनी विदाई दे देंगे। तीसरे दिन जब अतिथि ने अपने कपड़े धोबी को देने के लिए कहा, तो लेखक बहुत घबरा गया। उसे लगा कि अतिथि सदा देवता नहीं होता, वह मानव और राक्षस भी हो सकता है। उसके कपड़े देने के लिए लेखक उसके साथ लॉंड्री की ओर चला, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी की आँखें इस आशंका से फैल गई हैं कि अतिथि अधिक दिन तक ठहरेगा। लाँड्री से कपड़े धुल कर भी आ गए; उसके बिस्तर की चादर भी बदल दी, पर उसके जाने के कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे। दोनों की आपस में बातचीत भी बंद हो गई। लेखक उपन्यास पढ़ता, तो अतिथि फिल्मी पत्रिका के पृष्ठ पलटता रहता था। लेखक की पत्नी ने पूछा कि यह महाशय कब प्रस्थान करेंगे? लेखक ने केवल इतना ही कहा कि क्या कह सकता हूँ। पत्नी ने कहा कि आज मैं खिचड़ी बना रही हूँ। लेखक ने बनाने के लिए कह दिया। उनके मन में अतिथि सत्कार के सब भाव समाप्त हो गए थे। अब अतिथि को भी खिचड़ी खानी होगी। अगर वह अब भी न गया, तो उसे उपवास भी करना पड़ सकता है। लेखक को लगता है कि अतिथि को यहाँ अच्छा लग रहा है, इसलिए वह यहाँ से जाना नहीं चाहता क्योंकि दूसरों का घर सबको अच्छा लगता है। वह उसे गेट आउट कहना चाहता है, पर शराफत के मारे ऐसा कहता नहीं है। लेखक सोचता है कि अगले दिन जब अतिथि सो कर उठेगा, तो वह उसका यहाँ आने का पाँचवाँ दिन होगा। लेखक को लगता है कि तब वह यहाँ से सम्मानपूर्वक विदा होने का निर्णय अवश्य ले लेगा। यह लेखक की सहनशीलता का अंतिम दिन होगा। उसके बाद वह उसका आतिथ्य नहीं कर सकेगा। वह जानता है कि अतिथि देवता होता है, पर वह अधिक समय तक देवताओं का भार नहीं उठा सकता क्योंकि देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं न कि उसके समान जमकर बैठ जाते हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि उसका अतिथि भी लौट जाए, जिससे उसका देवत्व सुरक्षित रहेगा अन्यथा लेखक उसे भगाने के लिए कुछ भी कर सकता है। कठिन शब्दों के अर्थ : अतिथि – मेहमान। आगमन – आना। चतुर्थ – चौथा। दिवस – दिन। निस्संकोच – बिना किसी संकोच के। नम्रता – नरमी, कोमलता। विगत – पिछले। सतत – निरंतर, लगातार। आतिथ्य – आवभगत, अतिथि का सत्कार। संभावना – उम्मीद, आशा। एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री। अंतरंग – घनिष्ठ। मिट्टी खोदना – बुरी हालत करना। हाईटाइम – उच्च समय, ठीक समय, उचित समय। आशंका – भय, संदेह। डिनर – रात्रि-भोज। मेहमाननवाज़ी – अतिथि सत्कार। आग्रह – अनुरोध। पीड़ा – दुख। लंच – दोपहर का भोज। गरिमा – गौरव। छोर – सीमा, किनारा। भावभीनी – प्रेम से भरपूर। आघात – चोट, प्रहार। अप्रत्याशित – जिसके बारे में सोचा न गया हो, आकस्मिक, अचानक। मार्मिक – मर्मस्थल पर प्रभाव डालने वाली, प्रभावशाली। सामीप्य – निकटता। बेला – समय, अवसर। लॉड्री – कपड़े धुलने का स्थान। औपचारिक – जो केवल दिखलाने भर के लिए हो। निर्मूल – निराधार, व्यर्थ, बिना जड़ के। लुप्त – समाप्त। कोनलों – कोनों से। चर्चा – बातचीत। चुक गए – समाप्त हो गए। सौहार्द – सज्जनता, मित्रता। शनै:-शनै: – धीरे-धीरे। रूपांतरित – बदल जाना। अदृश्य – जो दिखाई न दे। ऊष्मा – गरमी, आवेश। संक्रमण – एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचना। चरम – अंतिम। होम – घर। स्वीटनेस मिठास। गेट आउट – निकल जाओ। गुंजायमान – गूँजती हुई। सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक के घर में क्या परिवर्तन आया?उत्तर:- सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लंच डिनर की जगह खिचड़ी बनने लगी। खाने में सादगी आ गई और अब भी अतिथि नहीं जाता तो उपवास तक रखना पड़ सकता था। ठहाकों के गुब्बारों की जगह एक चुप्पी हो गई। सौहार्द अब धीरे-धीरे बोरियत में बदलने लगा ।
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक की पत्नी ने अंत में गुस्से में क्या बनाने का निश्चय किया?Answer: सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लंच डिनर की जगह खिचड़ी बनने लगी।
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ तुम कब जाओगे अतिथि पाठ के आधार पर लिखिए?प्रश्न 6. सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ? सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक उच्च मध्यमवर्गीय डिनर से खिचड़ी पर आ गया। यदि इसके बाद भी अतिथि नहीं गया तो उसे उपवास तक जाना पड़ सकता है।
अतिथि के स्वागत सत्कार में लेखक और उसकी पत्नी ने क्या क्या किया?उनके आने पर पत्नी ने उनका स्वागत सादर प्रणाम करके किया था। दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई अर्थात दोपहर के भोजन को लंच जैसा शानदार बनाया गया। तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लॉण्ड्री में कपड़े देने को कहा क्योंकि वह उससे कपड़े धुलवाना चाहता था। सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर डिनर के स्थान पर खिचड़ी बनने लगी।
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