पापा खो गए पाठ लेखक का नाम इनमें से कौन सा है? - paapa kho gae paath lekhak ka naam inamen se kaun sa hai?

MCQ’s For All Chapters – Hindi Class 7th

पापा खो गए पाठ लेखक का नाम इनमें से कौन सा है? - paapa kho gae paath lekhak ka naam inamen se kaun sa hai?

1. इस पाठ और लेखक का नाम इनमें से कौन-सा है?

दादी माँ-शिवप्रसाद सिंह

हिमालय की बेटियाँ-नागार्जुन

मिठाईवाला-भगवती वाजपेयी

पापा खो गए-विजय तेंदुलकर

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Question 1 of 30

2. खंभा, पेड़, लैटरबक्स सभी एक साथ कहाँ खड़े थे?

विद्यालय के समीप

जंगल के पास

समुद्र के किनारे

झील के किनारे

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Question 2 of 30

3. इस पाठ में किस समय यह घटनाएं हो रही हैं ?

प्रातःकाल

सायंकाल

रात्रि में

दोपहर में

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Question 3 of 30

4. पत्र को कौन पढ़ रहा है?

पेड़

कौआ

लैटरबक्स

खंभा

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Question 4 of 30

5. खंभे के स्वभाव के बारे में पेड़ क्या सोचता था?

वह बहुत दुष्ट है

वह बहुत सभ्य है

वह मिलनसार है

वह अभिमानी है

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Question 5 of 30

6. आसमान में गड़गड़ाती बिजली किस पर आ गिरी थी?

खंभे पर

पेड़ पर

लैटरबक्स पर

पोस्टर पर

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Question 6 of 30

7. ‘आदमी’ लड़की को छोड़कर कहाँ चला गया?

खाना खाने

घूमने चला गया

बच्चे को उठाने

सोने के लिए

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Question 7 of 30

8. ‘फ़ीस के पैसे क्या फोकट में आते हैं?’-का भाव क्या है?

फ़ीस मुफ्त में आती है

पढ़ाई मुफ्त में होनी चाहिए

फ़ीस के पैसे बड़ी मुश्किल से आते हैं

फ़ीस अवश्य जमा करना चाहिए

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Question 8 of 30

9. तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था…न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है। 

उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम बताएँ।

बरसात की रातें-मीरा बाई

पापा खो गए—विजय तेंदुलकर

चिड़िया की बच्ची-जैनेद कुमार

कठपुतली-भवानीप्रसाद मिश्र

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Question 9 of 30

10. तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था…न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है। 

खंभे की बातों को कौन सुन रहा है?

पेड़

बादल

पत्र-पेटी

इनमें से कोई नहीं

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Question 10 of 30

11. तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था…न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है। 

खंभे को किस ऋतु की रात पसंद नहीं है?

सरदी

गरमी

बरसात

वसंत

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Question 11 of 30

12. तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था…न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है। 

खंभा किसे कसकर पकड़े रहता है?

स्वयं को

बल्ब को

लड़की को

हवा को।

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Question 12 of 30

13. तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था…न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है। 

खंभे की परेशानी क्या है?

बारिश में भींगना

एक टाँग पर खड़े रहना

तेज़ आँधी तूफान में बल्ब को सँभाल कर रखना

उपर्युक्त सभी।

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Question 13 of 30

14. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

कौन किससे कह रहा है?

पेड़ अपने आप से

पेड़ खंभे को

पेड़ कौए को

पेड़ चोर को

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Question 14 of 30

15. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

जब पेड़ का जन्म हुआ तो उस स्थान पर विशेष रूप से क्या था?

सड़क

पोस्टर

समुद्र

उपर्युक्त सभी

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Question 15 of 30

16. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

‘तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया गया’ किसे खड़ा करने को कहा गया है?

पेड़ को

खंभे को

लेटर बॉक्स को

ऊँचे मकान को

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Question 16 of 30

17. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

किसकी नाक ऊँची थी?

पेड़ की

खंभे की

लड़की की

सभी की

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Question 17 of 30

18. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

पेड़ का स्वभाव कैसा था?

चंचल

अभिमानी

दुष्ट

मिलन सार

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Question 18 of 30

19. अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है। 

किसने आवाज़ नहीं लगाई ?

पेड़ ने

खंभे ने

लड़की ने

पत्र-पेटी ने।

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Question 19 of 30

20. मैं बच्चे उठानेवाला हैं। दसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!..तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं। 

कौन, किससे, क्या कह रहा है?

पेड़ बच्चे उठानेवाले से

बच्चे उठानेवाला अपने आप से

कौआ बच्चे उठानेवाले से

इनमें कोई नहीं

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Question 20 of 30

21. मैं बच्चे उठानेवाला हैं। दसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!..तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं। 

उसने लड़की को कहाँ से उठाया था?

सड़क पर से

खेल के मैदान से

सोई हुई लड़की को उसके घर से

विद्यालय से

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Question 21 of 30

22. मैं बच्चे उठानेवाला हैं। दसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!..तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं। 

वह लड़की को छोड़कर कहाँ चला गया?

दूसरे बच्चे को उठाने

चोरी करने

खाना खाने

सोने चला गया

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Question 22 of 30

23. मैं बच्चे उठानेवाला हैं। दसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!..तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं। 

उसने यह क्यों सोचा कि लड़की नहीं उठेगी?

 

क्योंकि वह भूखी है

क्योंकि लड़की को उसने बेहोशी की दवा पिलाई थी

लड़की बेहोश थी

क्योंकि उसे उसने गहरी नींद में सुलाया था।

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Question 23 of 30

24. मैं बच्चे उठानेवाला हैं। दसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!..तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं। 

‘मुमकिन’ शब्द का तात्पर्य है-

संभव

असंभव

मँगाना

मारना।

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Question 24 of 30

25. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

खंभा क्यों झुक गया?

आँधी आने के कारण

लोगों व पुलिस को आकर्षित करने के लिए

लड़की को बचाने के लिए

तेज़ बारिश के कारण

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Question 25 of 30

26. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

पेड़ झुककर छाया क्यों कर रहा था?

क्योंकि नीचे एक व्यक्ति बैठा था

क्योंकि नीचे लड़की सो रही थी

खंभे के कहने पर

पेड़ का आकार ऐसा ही था

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Question 26 of 30

27. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम बताएँ-

शिव प्रसाद सिंह

विजय तेंदुलकर

नागार्जुन

यतीश अग्रवाल

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Question 27 of 30

28. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

कौआ काँव-काँव क्यों कर रहा था?

उसे भूख लगी थी

लड़की को जगाने के लिए

पुलिस को बुलाने के लिए

उस व्यक्ति से बचाने के लिए

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Question 28 of 30

29. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में क्या लिखा था?

लड़की चोरी हो गई

लड़की का नाम

पापा खो गए

माता-पिता का नाम

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Question 29 of 30

30. कौआ उसके कान में कुछ कहता है। लैटरबक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लेटर बॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है। 

पेड़ झुककर, खंभा टेड़ा होकर और कौआ काँव-काँव करके क्या संकेत देना चाह रहे थे?

दुर्घटना होने की

लोगों को उस जगह बुलाने का

लड़की को उसके घर तक पहुँचाने का

उपर्युक्त सभी।

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Question 30 of 30

पापा खो गए पाठ लेखक का नाम इनमें से कौन सा है? - paapa kho gae paath lekhak ka naam inamen se kaun sa hai?
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MCQ Papa Kho Gaye SET 2 Class 7 Hindi Chapter 7 पापा खो गए

पापा खो गए पाठ का लेखक कौन है?

यह एकांकी लेखक श्री विजय तेंदुलकर जी द्वारा लिखा गया है जिसमें निर्जीव वस्तुओं की पीड़ा का सजीव चित्रण किया गया है और पाठ के द्वारा बच्चों के अपहरण के बढ़ते वारदातों को दिखाया है| रात के समय सड़क पर एक बिजली का खंभा, एक पेड़, एक लैटरबॉक्स और दीवार पर नाचने की मुद्रा में खड़ी लड़की का पोस्टर है।

पापा खो गए इस पाठ और लेखक का नाम इनमें से कौन सा है *?

मैं लैटरबक्स, यह पेड़... वह बिजली का खंभा ...

पापा खो गए पाठ में लाल ताऊ किसका नाम है?

लैटरबक्स को सभी लाल ताऊ कहकर क्यों पुकारते थे? उत्तर:- लैटरबक्स ऊपर से नीचे पूरा लाल रंग में रँगा था और बड़ों की तरह बात करने के कारण सभी उसे लाल ताऊ कहकर पुकारते थे।

पापा खो गए पाठ का एकमात्र पढ़ा लिखा पात्र कौन था?

Answer: नाटक में सबसे बुद्धिमान पात्र कौआ है क्योंकि अन्तत: कौए ने ही लड़की के पापा को ढूंढने का उपाय बताया। उसी की योजना के कारण लैटरबक्स संदेश लिख पाता है।