बौद्ध शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या था? - bauddh shiksha ka mukhy uddeshy kya tha?

बौद्ध - युगीन शिक्षा के उद्देश्य-

1- बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना।

2- चरित्र का निर्माण करना।

3- मोक्ष की प्राप्ति।

4- व्यक्तित्व का विकास करना।

5- भावी जीवन के लिए तैयार करना।

बौद्ध युगीन शिक्षा की विशेषताएं-

1- शिक्षा मठों एवं विहारों में प्रदान की जाती थी। यह शिक्षा प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक की शिक्षा प्रदान की जाती थी।

2- शिक्षा के लिए मठों में प्रवेश के लिए प्रवज्या संस्कार होता था।

3- शिक्षा समाप्ति पर उप- सम्पदा संस्कार होता था।

4- अध्ययन काल 20 वर्ष का होता था जिसमें से 8 वर्ष प्रवज्या व 12 वर्ष उप- सम्पदा का समय होता था।

5- पाठ्य विषय संस्कृत, व्याकरण, गणित, दर्शन, ज्योतिष आदि प्रमुख थे। इनके साथ अन्य धर्मों की शिक्षा भी दी जाती थी साथ ही धनुर्विद्या एवं अन्य कुछ कौशलों की शिक्षा भी दी जाती थी।

6- रटने की विधि पर बल दिया जाता था। इसके साथ वाद- विवाद, व्याख्यान, विश्लेषण आदि विधियों का प्रयोग भी किया जाता था।

7- व्यवसायिक शिक्षा के अंतर्गत भवन निर्माण, कताई- बुनाई, मूर्तिकला व अन्य कुटीर उद्योगों की शिक्षा दी जाती थी। मुख्यतः कृषि एवं वाणिज्य की शिक्षा दी जाती थी।

8- छात्र जीवन वैदिक काल से भी कठिन था व गुरु - शिष्य सम्बन्ध घनिष्टतम थे।

9- लोकभाषाओं में भी शिक्षा दी जाती थी।

10-शिक्षा को जनतंत्रीय आधार दिया गया।

बौद्ध शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या था? - bauddh shiksha ka mukhy uddeshy kya tha?

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Bauddha Kalin Shiksha Ke Uddeshya) विद्यादूत (vidyadoot) के इस लेख में हम बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Aim of Buddhist Education in Hindi) पर चर्चा करेंगें | इस लेख के पहले बौद्ध कालीन शिक्षा से सम्बन्धित कई लेख प्रस्तुत किये जा चुके है, जिन्हें आप बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताएं, बौद्ध धर्म का आधुनिक शिक्षा में योगदान, बौद्ध धर्म और शिक्षा (buddhism and education), बौद्ध धर्म की विशेषताएं (Characteristics of Buddhism) आदि लेख में देख सकते है | बौद्ध शिक्षा का भारत की आधुनिक शिक्षा के स्वरुप निर्धारण में उल्लेखनीय योगदान है | बौद्ध कालीन शिक्षा आज भी हमारी शैक्षिक समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |

बौद्ध-शिक्षा बौद्ध मठों में विकसित हुई | बौद्ध मठ न केवल बौद्ध धर्म बल्कि बौद्ध शिक्षा के भी केद्र थें | बौद्ध मठों में धार्मिक (Religious) और लौकिक (Secular) दोनों ही प्रकार की शिक्षा दी जाती थी | अल्तेकर लिखते है कि “बौद्ध शिक्षा पूरी तरह से बौद्ध मठों से सम्बन्धित थी और उनके लिए थी, जो बौद्ध संघ में प्रवेश करते थें या प्रवेश का उद्देश्य रखते थें |

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बौद्ध दर्शन के अनुसार शिक्षा एक ऐसी विशेष प्रक्रिया है जो मानव को लौकिक और पारमार्थिक दोनों ही जीवन के योग्य बनाती है | पारमार्थिक जीवन से इसका तात्पर्य निर्वाण की प्राप्ति से है | अतः बौद्ध दर्शन के अनुसार वास्तविक शिक्षा वह है जो मानव को निर्वाण की प्राप्ति में सहायता प्रदान करें |

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बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित है –

  1. निर्वाण की प्राप्ति
  2. दुःखों का अंत
  3. अविद्या का अन्त
  4. चार आर्य-सत्य और अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान करना
  5. नैतिक और चारित्रिक विकास
  6. बौद्ध धर्म का प्रचार
  7. साहित्य व संस्कृति का संरक्षण और प्रसार
  8. कला का संरक्षण व प्रसार
  9. लोककल्याण
  10. अहिंसा
  11. बौद्धिक विकास
  12. शारीरिक, मानसिक और व्यक्तित्व का विकास
  13. भेदभाव का अन्त करना
  14. व्यावसायिक शिक्षा
  15. सांसारिक जीवन की तैयारी

अब हम विस्तार से बौद्ध धर्म के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य/बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Bauddha Kalin Shiksha Ke Uddeshya) पर चर्चा करेंगें |

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Bauddha Kalin Shiksha Ke Uddeshya)

महात्मा बुद्ध दार्शनिक कम और समाज-सुधारक ज्यादा थें | इसलिए उन्होंने अपने समय की वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर बड़ी ही व्यावहारिक शिक्षायें दी थी | उनकी शिक्षाओं को ध्यान में रखकर ही बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किये गये थे |

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Bauddha Kalin Shiksha Ke Uddeshya)/बौद्ध शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य (Aims of Buddhist Education) निम्नलिखित थे –

निर्वाण की प्राप्ति

बौद्ध शिक्षा का मुख्य उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति था | आपको बता दें कि जिस सत्ता को अन्य भारतीय दर्शनों ने मोक्ष कहा, उसी सत्ता को बौद्ध दर्शन में निर्वाण कहा गया है | बौद्ध दर्शन में निर्वाण को मानव-जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है | बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण की प्राप्ति इस जीवन में भी सम्भव है |

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आपको ध्यान रखना है कि जीवन-मुक्ति और विदेह-मुक्ति की तरह निर्वाण और परिनिर्वाण में भी अंतर होता है | परिनिर्वाण का अर्थ होता है – मृत्यु के पश्चात् निर्वाण की प्राप्ति | जबकि निर्वाण का अर्थ जीवन का अंत नही है, बल्कि यह एक ऐसी अवस्था है जो इसी जीवन में ही प्राप्त होती है |

बौद्ध शिक्षा बौद्ध भिक्षुओं को महात्मा बुद्ध के आदर्शों पर चलकर निर्वाण की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन देती थी | यह निर्वाण की प्राप्ति कराकर मानव को जन्ममरण के चक्र से मुक्ति कराती थी |

दुःखों का अंत

बौद्ध धर्म संसार को दुःखमय मानता है | उसके अनुसार सब कुछ दुःखमय है (सर्व-दुःखं दुःखम) | इसलिए बौद्ध शिक्षा का लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से दुःखों का अन्त करना था | दुःखों का अन्त ही निर्वाण कहलाता है |

अविद्या का अन्त

बौद्ध धर्म में सभी दुःखों का मूल कारण अविद्या को ही माना गया है | अविद्या के कारण ही मानव जन्ममरण के चक्र में फंसा रहता है | बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य मानव को वास्तविक शिक्षा देकर उसकी अविद्या का अन्त करना था, जिससे वह सभी बन्धनों से मुक्त होकर निर्वाण की प्राप्ति कर सके |

चार आर्य-सत्य और अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान करना

महात्मा बुद्ध के सारे उपदेश उनके चार आर्य सत्यों (The Four Noble Truths) में समाहित है | ये चार आर्य सत्य है –

  1. दुःख अर्थात् संसार दुखों से परिपूर्ण है | (There is suffering)
  2. दुःख-समुदाय अर्थात् दुःखों का कारण भी है | (There is a cause of suffering)
  3. दुःख-निरोध अर्थात् दुःखों का अंत सम्भव है | (There is a cessation of suffering)
  4. दुःख-निरोध-मार्ग अर्थात् दुःखों के अंत का मार्ग है | (There is a way leading to the cessation of suffering)

बौद्ध धर्म चार आर्यसत्य और अष्टांगिक मार्ग को सर्वाधिक महत्व देता है | बौद्ध शिक्षा का उदेश्य भिक्षुओं को चार आर्यसत्य और अष्टांगिक का वास्तविक ज्ञान कराना था, जिससे वे अपनी मुक्ति (निर्वाण) का मार्ग स्वयं खोज सके |

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नैतिक और चारित्रिक विकास

बौद्ध धर्म में नैतिकता और चरित्र को अत्यधिक महत्व देता है | बौद्ध शिक्षा भिक्षुओं में नैतिक और चारित्रिक विकास में योगदान देती थी | बौद्ध धर्म में भिक्षुओं के नैतिक व चारित्रिक विकास के लिए दी जानी वाली मुख्य शिक्षाएं थी – (1) हिंसा न करना, (2) दुराचार से दूर रहना, (3) नशे का सेवन न करना, (4) झूठ न बोलना तथा (5) दूसरे के धन का लोभ न करना |

बौद्ध धर्म का प्रचार

बौद्ध शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना भी था | बौद्ध शिक्षा महात्मा बुद्ध के उपदेशों को जनसाधारण तक पहुचाती थी, जिससे वे महात्मा बुद्ध के आदर्शों पर चलकर अपने दुःखों का अन्त कर सके | बौद्ध भिक्षु उच्च शिक्षा प्राप्त करके देश विदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे | 

साहित्य व संस्कृति का संरक्षण और प्रसार

बौद्ध शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य साहित्य और संस्कृति का संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना भी था | बौद्ध भिक्षु शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त बौद्ध संस्कृति का संरक्षण करके भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करते थे और साथ ही देश-विदेश में इसका प्राचर-प्रसार करते थे | बौद्ध धर्म ने अपने लेखन से पालि भाषा को अत्यंत समृद्ध किया | पूर्वी भारत की कुछ प्रख्यात अपभ्रंश कृतियाँ बौद्ध धर्म की ही देन है |

शिक्षा के क्षेत्र में और योगदान देते हुए बौद्ध विद्वानों ने एक नवीन भाषा विकसित की, जो संस्कृत व पालि भाषाओं को मिलाकर बनाई गयी थी | इसे ‘मिश्रित संस्कृत’ (Hybrid Sanskrit) कहते है | कुछ बौद्ध विहार महान शिक्षा-केन्द्र थे, जो एक प्रकार के आवासी विश्वविद्यालय थे |

कला का संरक्षण व प्रसार

बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य कला के संरक्षण व प्रसार में योगदान देना भी था | प्राचीन भारत की कला पर बौद्ध धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप देखा जा सकता है | प्राचीन भारत में पूजित प्रथम मानव-प्रतिमाएं भगवान बुद्ध की ही मानी जाती है | बौद्ध शिक्षा के माध्यम से बौद्ध कला का संरक्षण व प्रसार-प्रचार हुआ |

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लोककल्याण

बौद्ध धर्म लोककल्याण को अत्यंत महत्व देता है | महात्मा बुद्ध लोककल्याण के लिए ही अपना सबकुछ त्यागकर संन्यासी बन गये थे | बौद्ध शिक्षा लोककल्याण की भावना से प्रेरित होकर जनहित में जनसामान्य के दुःखों को दूर करने का प्रयास करती थी |

अहिंसा

बौद्ध धर्म अहिंसा और जीवमात्र की दया को अत्यधिक महत्व देता है | ‘सुत्तनिपात’ नामक प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ में गाय की महत्ता बताकर इसकी रक्षा करने का उपदेश दिया गया है | बौद्ध धर्म की अहिंसा व जीवमात्र की दया की शिक्षाओं के प्रभाव के कारण ही ब्राह्मण धर्म में गाय की पूजनीयता और अहिंसा को महत्व दिया गया | इसप्रकार बौद्ध शिक्षा का एक उद्देश्य मानव को अहिंसा और जीवमात्र की दया के प्रति जागरूक करना भी था |

बौद्धिक विकास

बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य मानव के बौद्धिक विकास में योगदान देना भी था | बौद्ध धर्म के अनुसार किसी बात को यों ही नही, बल्कि भलीभांति उसके गुणदोष का विवेचन करके ग्रहण करे | इसप्रकार बौद्ध शिक्षा अंधविश्वास के स्थान पर तर्क को महत्व देती थी |

शारीरिक, मानसिक और व्यक्तित्व का विकास

बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य भिक्षुओं के शारीरिक, मानसिक व व्यक्तित्व का विकास करना भी था | महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं के शारीरिक, मानसिक और व्यक्तित्व के विकास पर जोर दिया | भिक्षुओं को ध्यान, योग, शारीरिक व्यायाम, व्यवसाय आदि की शिक्षा दी जाती थी, जिससे उनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों का समुचित विकास हो सके |

भेदभाव का अन्त करना

बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य समाज में फैले भेदभाव का अन्त करना भी था | बौद्ध संघ में बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्ति को शिक्षा दी जाती थी | स्त्री-पुरुष, निम्नवर्ण-उच्चवर्ण, गरीब-अमीर सभी को बौद्ध शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था | बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य सभी प्राणियों का कल्याण करना था |

व्यावसायिक शिक्षा

बौद्ध धर्म मानव को संसार से विमुख होने की शिक्षा नही देता है बल्कि यह सांसारिक दुःखों का अन्त चाहता है | इसलिए बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य भिक्षुओं को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना भी था, जिससे गृहस्थ जीवन में लौटने वाले भिक्षुओं को जीविकोपार्जन में सहायता मिल सके |

सांसारिक जीवन की तैयारी

बौद्ध शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य भिक्षुओं को सांसारिक जीवन के लिए तैयार करना भी था | बौद्ध दर्शन ने लोगों को संसार से विमुख होने का आदेश नही दिया बल्कि वह तो लोगों को सांसारिक दुःखों से मुक्ति दिलाने का मार्ग दिखाता है | इसीलिए बौद्ध मठों में न केवल धार्मिक शिक्षा बल्कि व्यावसायिक भी प्रदान की जाती थी |

संक्षेप में –

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Bauddha Kalin Shiksha Ke Uddeshya)

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति थी |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य दुःखों का अंत करना था

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य अविद्या का अन्त करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य चार आर्य-सत्य और अष्टांगिक मार्ग का ज्ञान कराना था

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य नैतिक और चारित्रिक विकास करना था

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य बौद्ध साहित्य व संस्कृति का संरक्षण और प्रसार करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य कला का संरक्षण व प्रसार करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य लोककल्याण करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य अहिंसा का प्रचार-प्रसार करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य बौद्धिक विकास करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य शारीरिक, मानसिक और व्यक्तित्व का विकास करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य भेदभाव का अन्त करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा का विकास करना था |

बौद्ध कालीन शिक्षा का उद्देश्य सांसारिक जीवन की तैयारी कराना था |

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बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य क्या है?

बौद्ध - युगीन शिक्षा के उद्देश्य- १- बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना। २- चरित्र का निर्माण करना। ३- मोक्ष की प्राप्ति। ४- व्यक्तित्व का विकास करना।

बौद्ध शिक्षा क्या है?

बौद्धकाल में शिक्षा मनुष्य के सर्वागिण विकास का साधना थी। इसका उद्देश्य मात्र पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करना नहीं था, अपितु मनुष्य के स्वास्थ्य का भी विकास करना था। बौद्ध युग में शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक,बौद्धिक तथा आध्यात्मिक उत्थान का सर्वप्रमुख माध्यम थी।

बौद्ध शिक्षा का केंद्र कौन था?

नालंदा बिहार, भारत में उच्च शिक्षा के एक प्राचीन केंद्र का नाम है। यह 427 से 1197 ई. तक शिक्षा का बौद्ध केंद्र था। कुछ इमारतों का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक महान द्वारा किया गया था जो बौद्ध शिक्षा केंद्र नालंदा की प्रारंभिक स्थापना का संकेत है।

बौद्ध काल में शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा थी?

बौद्ध काल में शिक्षा का माध्यम जनसाधारण की भाषा संस्कृत थीबौद्ध काल में शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक विकास तथा सैन्य प्रशिक्षण को विशेष महत्त्व दिया जाता था। बौद्ध काल में प्राथमिक शिक्षा के मुख्य केन्द्र बौद्ध मठ थे।