अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का कारण क्या था? - amerika ke svatantrata sangraam ka kaaran kya tha?

B.A-I-History II 

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प्रश्न 17. अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम के महत्त्व का मुल्यांकन कीजिए। अथवा ''अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम के कारण और परिणामों का विश्लेषण कीजिए।अथवा '' अमेरिका के स्वतन्त्रता आन्दोलन के कारणों का वर्णन कीजिए। इसके परिणाम बताइए तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।अथवा '' अमेरिका के स्वाधीनता युद्ध के क्या कारण थे? इस युद्ध में इंग्लैण्ड की पराजय के क्या कारण थे?

उत्तर-1453 ई. में जब तुओं ने पवित्र रोमन साम्राज्य का अन्त करके कुस्तुनतुनिया पर विजय प्राप्त की और यूरोप से पूर्वी देशों के मार्ग को बन्द कर दिया, तब यूरोप के साहसी नाविकों ने समुद्री मार्गों की खोज की, जिससे दूसरे देशों के साथ समुद्री मार्ग द्वारा व्यापार किया जा सके। इस समुद्री खोज में कोलम्बस नाम के नाविक ने अधिक प्रयास किया। 1492 ई. में नाविक अटलाण्टिक महासागर को पार करता हुआ अमेरिका के तट पर पहुँचा। 

अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का कारण क्या था? - amerika ke svatantrata sangraam ka kaaran kya tha?


यद्यपि उस समय कोलम्बस को भी यह ज्ञान नहीं हुआ कि उसने एक महत्त्वपूर्ण महाद्वीप की खोज कर ली है, किन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् यह महाद्वीप स्पेन तथा यूरोप निवासियों के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ। यह महाद्वीप धन-धान्य से परिपूर्ण था। इस महाद्वीप में कृषि योग्य विस्तृत प्रदेश फैले हुए थे। सोना, चाँदी, लोहा आदि खनिज पदार्थों की कमी नहीं थी। 

सबसे पहले स्पेन के निवासियों ने अमेरिका के मूल निवासियों को दास बनाकर उनसे कषि कार्य कराना चाहा, किन्तु अमेरिकी लोग दासता को पसन्द नहीं करते थे। इसलिए अफ्रीका से हब्शियों को पकड़कर अमेरिका में दासों के रूप में भेजा गया तथा उनसे कृषि कार्य लिया गया। धीरे-धीरे अमेरिका में स्पेन के उपनिवेश स्थापित हो गए। वेस्टइण्डीज, ब्राजील, मेक्सिको, पेरू आदि स्थानों पर स्पेन के उपनिवेश स्थापित हो गए। स्पेन की सफलता से प्रभा वत होकर इंग्लैण्ड व फ्रांस भी अमेरिका में अपने-अपने उपनिवेश बसाने में सफल हुए। 

फ्रांस के उपनिवेश कनाडा, नोवास्कोशिया और क्यूबेक आदि स्थानों पर थे। उनके दक्षिण में अंग्रेजों के उपनिवेश थे। ये उपनिवेश उस स्थान पर फैले हुए थे जहाँ आज संयुक्त राज्य अमेरिका है।

सप्तवर्षीय युद्ध-

अमेरिका में ग्रेट ब्रिटेन तथा फ्रांस की बस्तियों की सीमाएँ निश्चित नहीं थी। दोनों ही देश अपनी-अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे थे। इसी समय 1756 से 1763 ई. तक यूरोप के देशों में शक्ति-विस्तार के लिए युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध सात वर्ष तक चला, इसलिए इसे सप्तवर्षीय युद्ध कहते हैं। इस युद्ध के अन्तर्गत अमेरिका में अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के मध्य औपनिवेशिक युद्ध हुए। इस यद्धों में अंग्रेजों ने फ्रांसीसी उपनिवेशों पर अधिकार करके अमेरिका से फ्रांस की शक्ति का अन्त कर दिया।

ब्रिटिश उपनिवेशों की दशा-

अमेरिका में ब्रिटिश उपनिवेशों की संख्या 13 थी। इन उपनिवेशों का शासन अटलाण्टिक महासागर के पार से ब्रिटिश राजा तथा अंग्रेजी संसद द्वारा होता था। ये उपनिवेश राजनीतिक दृष्टि से भी संगठित नहीं थे। इन उपनिवेशों को फ्रांस के आधिपत्य से छुड़ाने के लिए ब्रिटिश सरकार को युद्ध करना पड़ा, जिसमें ब्रिटिश सरकार का अत्यधिक धन व्यय हुआ। इस धन की पूर्ति ब्रिटिश सरकार उपनिवेशों पर अधिक-से-अधिक कर लगाकर वसूल करना चाहती थी। ये उपनिवेश राजनीतिक दृष्टि से संगठित नहीं थे, किन्तु फिर भी है ब्रिटिश पार्लियामेण्ट की कर लगाने की नीति से असन्तुष्ट थे.

अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम के कारण

अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम के कारणों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

(1) पुरातन औपनिवेशिक पद्धति के दोष - 

ब्रिटिश सरकार उपनिवेशों का शासन मनोनीत गवर्नरों द्वारा कराती थी। पुरातन औपनिवेशिक पद्धति में इस बात का विश्वास किया जाता था कि उपनिवेशों का अस्तित्व मात्र देश के लिए है, इसलिए उपनिवेशों के व्यापार एवं उद्योग पर नियन्त्रण इस प्रकार से किया जाता था कि इंग्लैण्ड को ही लाभ हो। उपनिवेशों को जो भी माल भेजा जाता था, वह अंग्रेजी जहाजों में ही जाता था। जिन वस्तुओं की आवश्यकता उपनिवेश निवासियों को होती थी, उनकी पूर्ति भी इंग्लैण्ड द्वारा हीं की जाती थी। इस प्रकार

औपनिवेशिक व्यापार से इंग्लैण्ड को अधिक लाभ था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी समाज और अमेरिकी समाज भी एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे। आंग्ल समाज प्राचीन, विस्तृत एवं कृत्रिम था, जबकि अमेरिकी समाज नवीन, सरल एवं स्वाभाविक था। इस प्रकार दोनों समाज एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न थे।

(2) फ्रांसीसी संकट से मुक्ति - 

सप्तवर्षीय युद्ध के परिणामस्वरूप अमेरिका से फ्रांस की शक्ति का अन्त हो गया। अतएव अब अमेरिका के उपनिवेशों को फ्रांस की शक्ति का कोई भय नहीं रह गया था। अंग्रेजों ने सप्तवर्षीय युद्ध अमेरिकी उपनिवेशों की रक्षार्थ लड़ा था, इसलिए युद्ध में विजयी होने पर अंग्रेजों ने युद्ध में व्यय होने वाली धनराशि को अमेरिकी उपनिवेशों से वसूल करना चाहा। इसके लिए ब्रिटिश संसद ने अमेरिकी उपनिवेशों पर कर लगाने चाहे, जिसका उपनिवेशों ने कड़ा विरोध किया। इस विरोध का लाभ उठाकर फ्रांसीसियों ने अमेरिकी उपनिवेशों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काना आरम्भ कर दिया।

(3) जॉर्ज तृतीय की अदूरदर्शी नीति -

इस समय जॉर्ज तृतीय इंग्लैण्ड के सिंहासन पर विराजमान था। उसका कहना था कि इंग्लैण्ड ने अमेरिका के उपनिवेशों की रक्षा का भार लिया है, अतएव उपनिवेशों से धन प्राप्त करने का अधिकार इंग्लैण्ड का है। इस धन की प्राप्ति के लिए जॉर्ज ततीय तथा उसके मन्त्रियों ने निम्नलिखित कार्य किए-

(i) 1765 ई. में जॉर्ज तृतीय ने संसद से मुद्रांक अधिनियम पास कराया, जिसके अनुसार अमेरिकी उपनिवेशवासियों को वसीयतों, विवाहों तथा वैधानिक अनुबन्धों में मुद्रांकों का प्रयोग करना अनिवार्य था। उपनिवेशवासियों ने इसके विरुद्ध प्रदर्शन किए।


(ii) 1766 ई. के घोषणात्मक अधिनियम के अनुसार संसद को आन्तरिक तथा बाह्य कर लगाने का अधिकार दे दिया गया। उपनिवेशवासियों ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई और कहा कि प्रतिनिधित्व के अभाव में संसद को कर लगाने का अधिकार नहीं है।


(ii) चाय, कागज, शीशा तथा मुद्रकों के रंग पर सीमा कर लगाने का कार्य राजकोष के मन्त्री टाउन शैण्ड ने किया। उपनिवेशवासियों ने इसका घोर विरोध किया।


(iv) लॉर्ड नॉर्थ ने चाय के अतिरिक्त सभी वस्तुओं पर सीमा कर समाप्त कर दिया। चाय पर कर लगा रहने से उसने इस बात का प्रदर्शन किया कि ब्रिटिश संसद को उपनिवेशों पर कर लगाने का अधिकार है।


(v) कुछ उपनिवेशवासियों ने रेड इण्डियन का वेश धारण करके बोस्टन बन्दरगाह पर भारत से आए हुए 340 चाय के डिब्बों को समुद्र में फेंक दिया। इस अनुशासनहीनता को ब्रिटिश शासन सहन न कर सकी।


(vi) बोस्टन की चाय दुर्घटना का बदला लेने के लिए लॉर्ड नॉर्थ ने उपनिवेश के निवासियों के प्रति कठोर दण्ड नीति का अनुसरण किया।


(vii) 1765 ई. में उपनिवेशों के प्रतिनिधियों की बैठक फिलाडेल्फिया नामक स्थान पर हई। इस बैठक में उन्होंने संसद से शान्तिपूर्ण तरीके से कठोर अधिनियमों को भंग करने की माँग की और एक प्रार्थना-पत्र 'ऑलिवर ब्रांच पेरिशन' के नाम से संसद के पास भेजा। जॉर्ज तृतीय और लॉर्ड नॉर्थ ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की। अतएव अमेरिकी उपनिवेशों द्वारा विद्रोह आरम्भ कर दियागया।

युद्ध की संक्षिप्त घटनाएँ - 

उपनिवेशों ने मिलकर अंग्रेजी सत्ता का सामना किया। सरागोटा के युद्ध में 1777 ई. में एवं यॉर्कटाउन (1781 ई.) के युद्ध में उपनिवेशों को निर्णयात्मक विजय प्राप्त हुई। दक्षिण में जनरल वाशिंगटन के नेतृत्व में टेटन तथा प्रिंसटन के युद्धों में उपनिवेशों को भारी सफलता मिली। अन्त में 1783 ई. में वसिलीज की सन्धि से अमेरिका के 13 उपनिवेशों को स्वतन्त्रता प्रदान की गई, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना की गई।

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के परिणाम

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख परिणाम निम्न प्रकार हैं

(1) अमेरिकी उपनिवेशों की एकता-

इंग्लैण्ड द्वारा अमेरिका के सभी 13 राज्यों का शोषण होता था। लगभग सभी नीतियाँ इंग्लैण्ड के द्वारा बनाई जाती थीं। उन पर उनकी सहमति के बिना कर लगाए जाते थे। अतः सभी 13 उपनिवेशों ने अपना संगठन बनाकर संगठित रूप से इंग्लैण्ड के विरुद्ध संघर्ष किया।

(2) संयुक्त सम्मेलन-

सभी उपनिवेशों ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संयक्त सम्मेलन किए। 1774 ई. का फिलाडेल्फिया का प्रथम महाद्वीपीय सम्मेलन, 1776 ई. का द्वितीय महाद्वीपीय सम्मेलन, मेसाचुसेट्स की विधानसभा का सम्मेलन, सभी में उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इससे उनमें एकजुटता आई, जो क्रान्ति की समाप्ति पर भी बनी रही।

(3) संयुक्त राज्य अमेरिका के नाम से नये संघ का गठन–

सभी 13 उपनिवेशों ने 1783 ई. की पेरिस सन्धि से पूर्व ही संयुक्त राज्य अमेरिका के नाम से एक संघ का निर्माण कर लिया था, जो सभी उपनिवेशों को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम था।

(4) स्वतन्त्रता की प्राप्ति-

क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम सभी उपनिवेशों द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करना था।

(5) संयुक्त राज्य अमेरिका के रूप में नये राष्ट्र का गठन–

अमेरिकी क्रान्ति का यह सबसे बड़ा सुखद परिणाम था कि 13 उपनिवेशों ने मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका को एक नये राष्ट्र के रूप में गठित किया, जिसके लिए उन्होंने एक संविधान भी तैयार किया। इसी क्रान्ति के फलस्वरूप अमेरिका के 13 उपनिवेश आज एक समृद्ध और मजबूत संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्र के रूप में हैं।

(6) इंग्लैण्ड की शक्ति का कमजोर हो जाना—

क्रान्ति का यह भी बड़ा परिणाम था कि अमेरिकी उपनिवेशों के हाथ से निकल जाने पर इंग्लैण्ड की प्रतिष्ठा को धक्का लगा। जॉर्ज तृतीय की बढ़ती हुई शक्ति पर रोक लग गई। पार्लियामेण्ट को अधिक लोकप्रिय बनाने हेतु मार्ग प्रशस्त हुआ, जिससे नागरिक स्वतन्त्रता बनी रहे।

(7) फ्रांसीसी क्रान्ति के अग्रदूत-

अमेरिकी क्रान्ति का यह भी बड़ा परिणाम था कि अमेरिकी क्रान्ति द्वारा उछाले गए नारों को लेकर फ्रांस में भी क्रान्ति हुई।

अमेरिका के स्वतन्त्रता युद्ध में इंग्लैण्ड की पराजय के कारण

अमेरिका के स्वतन्त्रता युद्ध में यद्यपि प्रारम्भ में इंग्लैण्ड की विजय हई, किन्तु अन्ततः उसकी पराजय हुई। उसकी पराजय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

(1) इंग्लैण्ड का अमेरिका से दूर स्थित होना-

अमेरिका इंग्लैण्ड से लगभग 3.000 मील दूर है। इंग्लैण्ड को अपनी सेनाएँ तथा रसद सामग्री अटलाण्टिक महासागर पार करके अमेरिका भेजनी पड़ती थी। अमेरिका में भी उन्हें लगभग 1,000 मील के जंगलों को पार करना पड़ता था। यह एक कठिन कार्य था। दूसरी ओर अमेरिकी अपने ही देश में लड़ रहे थे और उन्हें संचार व यातायात की समस्या नहीं थी।

(2) अमेरिका की शक्ति का गलत अनुमान-

इंग्लैण्ड का विश्वास था कि उपनिवेशवासी ब्रिटिश सेनाओं का सामना नहीं कर पाएँगे। वे अमेरिका के स्वाधीनता युद्ध को विद्रोह मात्र समझते रहे। ब्रिटिश सेनापति गेज का मत था कि इस विद्रोह का दमन करने के लिए चार ब्रिटिश रेजीमेण्ट ही पर्याप्त थीं। यह गलत अनुमान इंग्लैण्ड की पराजय का कारण बना।

(3) युद्ध में इंग्लैण्ड का अकेला होना - 

युद्ध के प्रारम्भ में इंग्लैण्ड की स्थिति सन्तोषजनक थी, लेकिन जब युद्ध खिंचने लगा और उपनिवेश के लोगों ने साहस और दृढ़ता से इंग्लैण्ड की सेनाओं का सामना किया, तब उन्हें यूरोप के अन्य देशों का समर्थन मिलने लगा। इसके लिए उपनिवेशों ने अपने दूत यूरोप के विभिन्न देशों में भेजे और कूटनीतिक प्रयास किए। फ्रांस, स्पेन और हॉलैण्ड युद्ध में इंग्लैण्ड के विरुद्ध सम्मिलित हो गए। डेनमार्क, स्वीडन तथा रूस ने सशस्त्र तटस्थ संघ बना लिया। इस प्रकार युद्ध में इंग्लैण्ड अकेला रह गया और उसकी पराजय अनिवार्य हो गई।

(4) इंग्लैण्ड के अयोग्य सेनापति–

उपनिवेशों की सेना में उत्साह, साहस और दृढ़ता थी। उनके सेनापति योग्य और दृढ़ संकल्प वाले थे। ब्रिटिश सेना एक आक्रमणकारी सेना के समान थी, जिसका जनता विरोध कर रही थी। ब्रिटिश सेनापति होय और बरगोयने में सहयोग का अभाव था। इंग्लैण्ड का युद्ध मन्त्री भी अयोग्य था। कहा जाता है कि वह अमेरिका से आई डाक को खोलने का भी कष्ट नहीं करता था। उसने फ्रांसीसी बेड़े को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया।

(5) जॉर्ज तृतीय का चरित्र- 

इंग्लैण्ड की पराजय में जॉर्ज तृतीय के चरित्र का भी योगदान था। वह अहंकारी और जिद्दी स्वभाव का था। वह स्वयं शासन करना चाहता था और मन्त्रियों के परामर्श की उपेक्षा करता था। वह सैनिक मामलों में भी हस्तक्षेप करता था, जिससे अव्यवस्था उत्पन्न होती थी। वस्तुतः उसकी व्यक्तिगत नीतियों और हस्तक्षेप के कारण ही इंग्लैण्ड पराजित हुआ।

(6) इंग्लैण्ड में योग्य राजनीतिज्ञों का अभाव - 

इस समय इंग्लैण्ड में योग्य राजनीतिज्ञों का अभाव था। सबसे योग्य लॉर्ड चैथम था, लेकिन गठिया के कारण वह अस्वस्थ था और इंग्लैण्ड की युद्धनीति का संचालन करने में असमर्थ था। लॉर्ड नार्थ, रॉकिंघम, शेलबोर्न आदि साधारण योग्यता वाले व्यक्ति थे। ये लोग संकट का वास्तविक स्वरूप समझने में असफल रहे और गलतियाँ करते रहे।

(7) इंग्लैण्ड की शक्ति का विभाजित होना - 

इंग्लैण्ड को अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ रहा था और उसकी सैनिक शक्ति बँटी हुई थी। भारत में फ्रांसीसियों से सहायता प्राप्त करके हैदरअली अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर रहा था। आयरलैण्ड में भी विद्रोह के दमन के लिए ब्रिटिश सेना की आवश्यकता थी। यूरोप में भी फ्रांस और स्पेन के आक्रमण का भय था। अत: इंग्लैण्ड अपनी पूरी शक्ति अमेरिकी उपनिवेशों के विरुद्ध नहीं लगा सका।

(8) जॉर्ज वाशिंगटन द्वारा अमेरिका का नेतृत्व - 

अमेरिका के स्वतन्त्रता युद्ध का नेतृत्व जॉर्ज वाशिंगटन ने किया था। जॉर्ज वाशिंगटन दृढ़ निश्चय वाले और योग्य व्यक्ति थे। उनमें योग्य सेनापति के गुण थे। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य से संकटों का सामना किया। उन्होंने उपनिवेशों में एकता स्थापित की और सैनिकों को स्वतन्त्रता के लिए प्रेरणा दी।

अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम का महत्त्व

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के नहत्त्व (उपलब्धियों) का विवरण निम्नवत्

(1) गणतन्त्रतीय शासन प्रणाली की स्थापना - 

अमेरिकी क्रान्ति का सर्वाधिक महत्त्व इस कारण है कि उस समय जबकि विश्व के अधिकांश देशों में राजतन्त्र का बोलबाला था, इस क्रान्ति के नेताओं ने अमेरिका में गणतन्त्र की स्थापना की।

(2) जनता की शक्ति के महत्त्व का प्रतिपादन–'

अमेरिकी स्वतन्त्रता की घोषणा' में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया कि सत्ता का स्रोत जनता है तथा उसे अपनी पसन्द की सरकार बनाने का पूर्ण अधिकार है।

(3) समानता के महत्त्व का प्रतिपादन-

इस क्रान्ति के द्वारा वर्ग-भेद को दूर कर समानता के महत्त्व को भी प्रतिष्ठित किया गया। घोषणा-पत्र में उल्लेख किया गया कि "ईश्वर ने सब मनुष्यों को समान बनाया है।" इस आधार पर किसी भी देश को दूसरे देश को अपने आधिपत्य में रखने का अधिकार नहीं है।

(4) लिखित संविधान की परम्परा का आरम्भ-

अमेरिकी क्रान्ति ने विश्व में लिखित संविधान की परम्परा प्रारम्भ की। इसके पश्चात् अमेरिका का अनुकरण कर विश्व के अन्य देशों में भी लिखित संविधानों का निर्माण होने लगा।

1789 ई. के नये अमेरिकी संविधान की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(i) संविधान लिखित तथा विस्तृत था।
(ii) देश में संघीय शासन की स्थापना की गई।
(ii) इसके अनुसार लोकतन्त्र की अध्यक्षीय शासन प्रणाली को अपनाया गया।
(iv) इसमें कहा गया था कि अमेरिकी कांग्रेस (संसद), जिसमें हाउस ऑफ पिपेजेण्टेटिव तथा सीनेट हैं, कानून बनाने की सर्वोच्च संस्था होगी।
(v) कार्यपालिका विधि-निर्माण के कार्यों से मुक्त रहेगी।
(vi) इसमें दोहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया।

(5) मानवीय अधिकारों का पोषण- 

4 जुलाई, 1776 को फिलाडेल्फिया सम्मेलन में 13 अमेरिकी उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने स्वतन्त्रता का जो घोषणापत्र जारी किया, उससे स्वतन्त्रता के मानवीय अधिकारों को विशेष प्रोत्साहन मिला।

इस स्वतन्त्रता घोषणा-पत्र के तीन मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित थे-

(i) सभी व्यक्ति एक समान हैं। जीवन में स्वतन्त्रता और प्रसन्नता की खोज उन सबके मौलिक अधिकार हैं।
(i) अमेरिकावासियों को अपनी स्वायत्त सरकार स्थापित करने का अधिकार है।

(iii) उन्हें साम्राज्यवादी शक्तियों के दमनकारी शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।

(6) अन्य देशों में क्रान्तियों को प्रोत्साहन–

अमेरिका की क्रान्ति विश्व के अन्य देशों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई। मानव की समानता तथा उसके मूल अधिकारों की मान्यता सम्बन्धी अमेरिकी घोषणा-पत्र के दो तथ्य ऐसे थे जो विश्व के अन्य देशों की क्रान्तियों के लिए आदर्श बन गए। फ्रांसीसी सेनापति लाफयते, जो अमेरिका के क्रान्तिकारियों की ओर से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ा था, शीघ्र ही फ्रांस राज्यक्रान्ति का नेता बन गया। टॉमस पेन ने भी फ्रांस की क्रान्ति में भाग लिया। यूरोप के विभिन्न देशों के क्रान्तिकारियों ने भी अमेरिका की क्रान्ति से प्रेरणा ली।

(7) संघात्मक शासन प्रणाली का जन्म - 

इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप अमेरिका में संघात्मक शासन प्रणाली प्रारम्भ हुई। कालान्तर में इस संघात्मक व्यवस्था को अन्य देशों ने भी अपना लिया।

(8) उपनिवेशों के प्रति अंग्रेजों की नीति में परिवर्तन - 

इस क्रान्ति में अंग्रेजों को पराजय ने उन्हें इस बात पर सोचने को बाध्य कर दिया कि उनके द्वारा उपनिवेशों के लगातार शोषण की नीति अपनाने का क्या परिणाम हो सकता है। वे १६ भी समझ गए कि निरन्तर शोषण का मार्ग अपनाकर अधिक समय तक इनउपनिवेशों में टिका नहीं जा सकता।