भारत की स्वतंत्रता के बाद यूपीएससी के पहले अध्यक्ष कौन थे? - bhaarat kee svatantrata ke baad yoopeeesasee ke pahale adhyaksh kaun the?

‘संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) एक संवैधानिक निकाय है। भारतीय संविधान में इससे संबंधित प्रावधान संविधान के भाग 14 में किये गए हैं। इस भाग में अनुच्छेद 308 से 323 के अंतर्गत संघ लोक सेवा आयोग के संगठन, उसके सदस्यों की नियुक्ति, उनकी पदमुक्ति, स्वतंत्रता, कार्यों व शक्तियों इत्यादि का उल्लेख किया गया है। इस आयोग की स्थापना मूलतः औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान ही हो चुकी थी। उस समय इसका नाम ‘फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन’ रखा गया था। इस आयोग को कानूनी अधिकार भारत सरकार अधिनियम, 1935 के माध्यम से प्रदान किए गए थे। स्वतंत्रता के पश्चात् संविधान निर्माताओं ने यह महसूस किया कि सिविल सेवा परीक्षा का स्वतंत्र व निष्पक्ष आयोजन सुनिश्चित करने के लिए इस आयोग को अत्यंत सुदृढ़ व स्वतंत्र बनाना होगा, इसीलिए संविधान निर्माताओं ने संघ लोक सेवा आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया तथा इसे संविधान के भाग 14 में स्थान दिया।

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संघ लोक सेवा आयोग की संरचना

यदि इस आयोग की संरचना की बात करें तो इसमें एक अध्यक्ष व 10 सदस्य होते हैं, लेकिन संविधान में इसके सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई है, बल्कि इसके सदस्यों की संख्या के निर्धारण की शक्ति राष्ट्रपति में निहित की गई है। राष्ट्रपति ही इसके सदस्यों की संख्या का निर्धारण करते हैं। इसके साथ-साथ राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व इसके सदस्यों की सेवा-शर्तों का निर्धारण भी करते हैं। संघ लोक सेवा आयोग के कुल सदस्यों में से आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें भारत सरकार या राज्य सरकारों में कम से कम 10 वर्षों तक काम करने का अनुभव प्राप्त हो।

अध्यक्ष व सदस्यों की पदावधि

संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य दोनों ही पद धारण करने से 6 वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक आपने पद पर रह सकते हैं। इसके अलावा, यदि वे चाहें तो अपनी पदावधि पूर्ण होने से पूर्व भी राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए त्याग पत्र दे सकते हैं। ‘राष्ट्रपति’ संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले भी संविधान में बताई गई प्रक्रिया के माध्यम से हटा सकते हैं। राष्ट्रपति इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों को निम्नलिखित परिस्थितियों में हटा सकता है-

  • यदि उन्हें दिवालिया घोषित कर दिया गया हो
  • यदि वह पदावधि के दौरान किसी अन्य वैतनिक नियोजन में संलग्न हो
  • यदि राष्ट्रपति की समझ में वह मानसिक व शारीरिक अक्षमता के कारण अपने दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम न हो

इसके अलावा, राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को दुर्व्यवहार या कदाचार के आधार पर भी हटा सकता है, लेकिन दुर्व्यवहार या कदाचार से संबंधित मामलों की जाँच उच्चतम न्यायालय को भेजनी अनिवार्य होती है और उच्चतम न्यायालय द्वारा उन्हें कदाचार या दुर्व्यवहार का दोषी पाए जाने के बाद ही राष्ट्रपति उन्हें पद से हटा सकता है। आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के कदाचार के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा भेजी गई जाँच रिपोर्ट को मानने के लिए राष्ट्रपति सामान्यतः बाध्य होता है। संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को निम्नलिखित दो आधारों पर दुर्व्यवहार या कदाचार का दोषी ठहराया जाता है-

  1. यदि वह भारत सरकार या राज्य सरकार की ओर से जारी की गई किसी संविदा में हित धारक हो
  2. यदि वह किसी ऐसी संविदा या करार से होने वाले लाभ में भागीदार हो

संघ लोक सेवा आयोग के कार्य

  • संघ लोक सेवा आयोग केंद्र सरकार के लिए कार्मिकों की नियुक्ति संबंधी परीक्षा आयोजित कराता है।
  • यह आयोग केंद्र सरकार को नियुक्ति प्रणाली से संबंधित मामलों में सलाह देता है।
  • यह आयोग संघ सरकार में प्रत्यक्षतः अथवा पदोन्नति के माध्यम से होने वाली नियुक्तियों के संबंध में भी सरकार को सलाह देता है।
  • यह आयोग किसी सरकारी कार्मिक के विरुद्ध चलने वाली विधिक कार्रवाइयों के संबंध में भी सरकार को सलाह देता है।
  • यह आयोग सरकारी सेवा के दौरान किसी व्यक्ति को हुई क्षति से संबंधित दावों के बारे में सरकार को सलाह देता है।
  • संघ लोक सेवा आयोग नियुक्ति, स्थानांतरण व पदोन्नति के लिए उपयुक्त व्यक्तियों के विषय में सरकार को सलाह देता है।
  • यह आयोग सिविल सेवकों से संबंधित अनुशासनिक मामलों के विषय में सरकार को सलाह देता है।
  • यह आयोग राष्ट्रपति द्वारा माँगे जाने पर अन्य मामलों में भी सलाह देता है।
  • किसी लोक सेवक की निंदा, उसकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति, उसे सेवा से हटाना या बर्खास्त करना, उसकी रैंक में कमी करना या पदावनति करना, उसकी प्रोन्नति रोकना, उसकी लापरवाही के कारण सरकार को हुई धन हानि की आंशिक या पूर्ण प्राप्ति आदि के विषय में भी संघ लोक सेवा आयोग सरकार को परामर्श देता है।
  • यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से संबंधित राज्य के लिए लोक सेवा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कहे, तो संघ लोक सेवा आयोग इसका प्रबंध करता है।
  • दो या दो से अधिक राज्य ‘संघ लोक सेवा आयोग’ से किसी ऐसी सेवा के लिए अभ्यर्थियों के चयन करने की बात कहे, जिसके लिए विशेष अर्हता की आवश्यकता होती है, तो संघ लोक सेवा आयोग इस हेतु संयुक्त भर्ती परीक्षा की रूपरेखा का निर्माण करता है तथा उसके परिचालन में राज्यों की सहायता करता है।
  • यह आयोग विभिन्न सिविल सेवकों की प्रतिनियुक्ति के विषय में केंद्र सरकार को सलाह देता है।
  • संघ लोक सेवा आयोग प्रतिवर्ष अपने कार्यों के लेखे-जोखे संबंधी प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है।

ध्यान देने योग्य है कि केंद्र सरकार द्वारा संघ लोक सेवा आयोग से माँगा गया परामर्श सिर्फ सलाहकारी प्रकृति का होता है। यह पूर्णतः केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि वह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए परामर्श को माने अथवा नहीं। सरकार यदि चाहे तो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए परागण परामर्श को शब्दशः स्वीकार कर सकती है अथवा उसे अंशतः स्वीकार कर सकती है अथवा उसे पूर्णतः खारिज़ कर सकती है।

आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा

  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को उनके पद के संबंध में संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है। आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को संविधान में वर्णित उप बंधुओं के आधार पर ही उनके पद से हटाया जा सकता है।
  • आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन, भत्ते व पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। इसका अर्थ है कि संसद में इस मुद्दे पर मतदान नहीं हो सकता है।
  • आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति के पश्चात् उनकी सेवा-शर्तों में किसी भी प्रकार का लाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की पुनर्नियुक्ति

  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात् उनकी पुनर्नियुक्ति नहीं की जा सकती है।
  • आयोग के अध्यक्ष अपना कार्यकाल पूर्ण होने के पश्चात् संघ सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन किसी भी नियोजन के लिए पात्र नहीं हो सकते हैं।
  • संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य, संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या किसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त होने के लिए तो पात्र होगा, लेकिन वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी भी नियोजन का पात्र नहीं होगा।

इसके अलावा, कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें संघ लोक सेवा आयोग से केंद्र सरकार परामर्श नहीं करती है, ये निम्नलिखित हैं-

  • कुछ राजनयिक पदों से संबंधित मामले
  • न्यायाधिकरण या विभिन्न आयोगों की अध्यक्षता एवं सदस्यता संबंधी मामले
  • ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘डी’ कर्मचारियों से संबंधित मामले। ध्यान देने योग्य है कि केंद्र सरकार के सरकारी कर्मचारियों में लगभग 80% हिस्सा ग्रुप ‘सी’ व ग्रुप ‘डी’ के कर्मचारियों का ही है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, उपरोक्त वर्णित आलेख में हमने संघ लोक सेवा आयोग से संबंधित विभिन्न आयामों को विस्तारपूर्वक समझा। आलेख के माध्यम से आईएएस परीक्षा की तैयारी करने वाले विभिन्न अभ्यर्थियों को अच्छा खासा लाभ होगा और उन्हें उस संस्था के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होगी जिसके द्वारा आईएएस की परीक्षा आयोजित कराई जाती है। हम आशा करते हैं कि यह आलेख आईएएस की परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों की संघ लोक सेवा आयोग के विषय में समझ विकसित करेगा और इस संबंध में आईएएस परीक्षा प्रणाली के किसी भी चरण में पूछे जाने वाले प्रश्न को हल करने में भी सहायता प्रदान करेगा।

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भारत की स्वतंत्रता के बाद संघ लोक सेवा आयोग के पहले अध्यक्ष कौन थे?

भारत की स्वतंत्रता के बाद संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission –UPSC) के पहले अध्यक्ष एच०के० कृपलानी (H. K. Kripalani) थे। 1926-32 तक UPSC के प्रथम अध्यक्ष सर जॉन रॉस वार्कर (Sir John Ross Barker) थे। एच०के० कृपलानी का कार्यकाल 1947-49 तक था।

भारत में यूपीएससी के प्रथम अध्यक्ष कौन है?

संघ लोक सेवा आयोग(UPSC) प्रथम अध्यक्ष – एच. के. कृपलानी। अनुच्छेद 317 – अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल – 6/65 वर्ष जो भी पहले हो।

संघ लोक सेवा आयोग का गठन कब किया गया?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन, संघ लोक सेवा आयोग बन गया और 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के लागू होने के साथ ही इसे संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया । संघ लोक सेवा आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के अन्तर्गत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।