1915 में जब गांधीजी पहली बार भारत आए तो उन्होंने क्या देखा? - 1915 mein jab gaandheejee pahalee baar bhaarat aae to unhonne kya dekha?

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जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे गांधी

जानिए क्यों मनाया जाता है प्रवासी भारतीय दिवस और इस दिन का गांधी से क्या है कनेक्शन.

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9 जनवरी को ही गांधी भारत पहुंचे थे

अभि‍षेक आनंद

  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2017,
  • (अपडेटेड 09 जनवरी 2017, 1:24 PM IST)

102 साल पहले 9 जनवरी को ही महात्मा गांधी भारत पहुंचे थे और फिर यहां उन्होंने मोहनदास से महात्मा तक का सफर तय किया था. आइए ग्राफिक्स के जरिए जानते हैं उनके बारे में कुछ और बातें...

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महात्मा गांधी: मानवता के लिए भावस्मरणीय उपहार

1915 में जब गांधीजी पहली बार भारत आए तो उन्होंने क्या देखा? - 1915 mein jab gaandheejee pahalee baar bhaarat aae to unhonne kya dekha?

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को भारत के पश्चिमी तट पर एक तटीय शहर पोरबंदर में हुआ था। पोरबंदर उस समय बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत के तहत एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ में कई छोटे राज्यों में से एक था।

उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। गांधी जी की मां पुतलीबाई एक साध्वी चरित्र, कोमल और भक्त महिला थी और उनके मन पर एक गहरी छाप छोड़ी थी। वो सात वर्ष के थे जब उनका परिवार राजकोट (जो काठियावाड़ में एक अन्य राज्य था) चला गया जहॉं उनके पिता करमचंद गांधी दीवान बने। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजकोट में हुई और बाद में उनका दाखिला हाई स्कूल में हुआ। हाई स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद गांधी जी नें समलदास कॉलेज, भावनगर में दाखिला लिया। इसी बीच 1885 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी। जब गांधी जी इंग्लैंड जाने हेतु नाव लेने के लिए मुंबई गए, तब उनकी अपनी जाति के लोगों नें जो समुद्र पार करने को संदूषण के रूप देखते थे, उनके विदेश जाने पर अडिग रहने पर उन्हें समाज से बहिष्कृत करने की धमकी दी। लेकिन गांधीजी अड़े हुए थे और इस तरह औपचारिक रूप से उन्हें अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। बिना विचलित हुए अठारह साल की उम्र में 4 सितम्बर, 1888 को वो साउथेम्प्टन के लिए रवाना हुए।

महात्मा गांधी के बारे में जानें

  1. लंदन में जीवन
  2. नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई
  3. दक्षिण अफ्रीका में
  4. भारत का दौरा
  5. चम्पारण में सत्याग्रह
  6. दांडी की नमक यात्रा

लंदन में जीवन

लंदन में शुरूआती कुछ दिन काफी दयनीय थे। लंदन में दूसरे वर्ष के अंत में, उनकी मुलाकात दो थियोसोफिस्ट भाइयों से हुई जिन्होनें उन्हें सर एडविन अर्नोल्ड के मिलवाया जिन्होंनें भगवद गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया था। इस प्रकार सभी धर्मों के लिए सम्मान का रवैया और उन सबकी अच्छी बातों को समझने की इच्छा उनके दिमाग में प्रारंभिक जीवन में घर कर गयी थी।

नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई

इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद गांधी जी ने राजकोट में कुछ समय बिताया लेकिन उन्होंने बंबई में अपने कानूनी प्रैक्टिस करने का निर्णय लिया। हालांकि बंबई में खुद को स्थापित करने में विफल होने के बाद गांधी जी राजकोट लौट आए और पुनः शुरूआत की। अप्रैल 1893 में गांधी दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी से एक प्रस्ताव प्राप्त करने पर दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हुए। वहॉ आगमन पर उन्होंनें करीब पहली बात महसूस की वो गोरों का नस्लवाद पर दमनकारी माहौल था। भारतीयों जिनमें से बड़ी संख्या में दक्षिण अफ्रीका में व्यापारियों के रूप में, गिरमिटिया मजदूरों या उनके वंशज के रूप में बसे थे, गोरों द्वारा हेय दृष्टि से देखा जाता था और कुली या सामी बुलाया जाता था। इस प्रकार एक हिंदू डॉक्टर को कुली डॉक्टर बुलाया जाता था और गांधी जी खुद को कुली बैरिस्टर बुलाते थे।

दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन यात्रा

दक्षिण अफ्रीका गांधी जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यहां उनका सामना कई असामान्य अनुभव और चुनौतियों के साथ हुआ जिसने गहराई से बापू के जीवन को बदल दिया।

गांधीजी व्यापारी दादा अब्दुल्ला के लिए कानूनी सलाहकार के रूप में सेवा करने के लिए 1893 में डरबन में आए थे। दक्षिण अफ्रीका में बापू के काम नें नाटकीय रूप से उनहें पूरी तरह से उसे बदल दिया, जहॉ उन्हें आमतौर पर काले दक्षिण अफ्रीकी और भारतीयों पर होनेवाले भेदभाव का सामना करना पड़ा। डरबन में एक दिन अदालत में मजिस्ट्रेट नें उनसे पगड़ी हटाने के लिए कहा जिसे गांधी जी ने इनकार कर दिया और अदालत से चले गए।

31 मई 1893 को गांधीजी प्रिटोरिया जा रहे थे, एक गोरे नें प्रथम श्रेणी गाड़ी में उनकी मौजूदगी पर आपत्ति जताई और उन्हें ट्रेन के अंतिम वैन डिब्बे में स्थानांतरित करने के लिए आदेश दिया। गांधीजी, जिनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट था, ने इंकार कर दिया, और इसलिए उन्हें पीटरमैरिट्सबर्ग में ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया।

स्टेशन के प्रतीक्षालय में सर्दी में रातभर कांपते रहे बापू नें दक्षिण अफ्रीका में ही रहने और भारतीयों एवं अन्य लोगों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इसी संघर्ष से उनका अहिंसक प्रतिरोध अपने अद्वितीय संस्करण, 'सत्याग्रह' के रूप में उभरा। आज, गांधी जी की एक कांस्य प्रतिमा शहर के केंद्र में चर्च स्ट्रीट पर खड़ी है।

दक्षिण अफ्रीका में इस दूसरी अवधि के दौरान गांधी के जीने के तरीके में आमूल परिवर्तन आया। उन्होंने अपनी इच्छाओं और खर्चों में कमी शुरु की। वो स्वयं अपने धोबी बने, अपने कपड़े खुद इस्त्री की, अपने बालों को खुद काटना सीखा। स्वयं की मदद से संतुष्ट न होकर उन्होंने एक चैरिटेबल अस्पताल में दो घंटे के लिए एक कम्पाउंडर के तौर पर काम किया। उन्होंने नर्सिंग और दाई के काम पर भी किताबें पढ़ीं। 1899 में जब बोर यूद्ध छिड़ा, तब उन्होंने डॉक्टर बूथ की मदद से 1100 भारतीय स्वयंसेवकों का एक एंबूलेंस दल तैयार किया और इसकी सेवायें सरकार को प्रदान की। गांधी के नेतृत्व में इस दल नें महत्वपूर्ण सेवायें दीं। गांधी को सबसे खुशी इस बात से हुई की भारतीयों नें भाइयों के रूप में काम किया और धर्म, जाति या संप्रदाय के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर एक साथ खतरों का सामना किया।

भारत का दौरा

गांधी जनवरी 1915 में भारत लौटे, एक महात्मा, जिसके पास कोई संपत्ति नही थी केवल अपने लोगों की सेवा करने की एक महत्वाकांक्षा के साथ। हालाकि बुद्धिजीवियों ने दक्षिण अफ्रीका में उनके कारनामों के बारे में सुना था, भारत में वे प्रसिद्ध नहीं थे और सामान्य भारतीय "भिखारी के वेश में महान आत्मा" जैसा टैगोर ने बाद में उन्हें बुलाया था, को नहीं जान पाये थे। पहले वर्ष में गांधी ने कान खोलकर और मुँह बंद कर अध्ययन करने के लिए पूरे देश की यात्रा करने का निर्णय किया। पूरे वर्ष घूमने के उपरांत गांधी अहमदाबाद के बाहरी किनारे पर सावरमती नदी के किनारे बस गये जहाँ मई 1915 में उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम का नाम उन्होंने सत्याग्रह आश्रम रखा।

चम्पारण में सत्याग्रह

उनका पहला सत्याग्रह बिहार के चम्पारण में 1917 में हुआ जहाँ वे सताये हुए नील की खेती करनेवाले मजदूरों के अनुरोध पर पहुँचे। प्रशासन के द्वारा गांधी जी को जिला छोड़ने का आदेश दिया गया और जब उन्होंने मना किया तो शर्मींदा मजिस्ट्रेट ने केस की सुनवाई स्थगित कर दी और बिना जमानत के उन्हें रिहा कर दिया। सत्याग्रह के पहले प्रयोग की सफलता ने गांधी जी की छवि को देश में काफी बढ़ा दिया।

दांडी की नमक यात्रा

मार्च 1930 में नमक पर टैक्स के खिलाफ गांधी नें एक नया सत्याग्रह चलाया। यह 12 मार्च से 6 अप्रैल तक नमक यात्रा के नाम से प्रसिद्ध हुआ जब उन्होंनें स्वयं नमक बनाने के लिए गुजरात के अहमदाबाद से दांडी तक की 388 किलोमीटर (241 मील) की पैदल यात्रा की।

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने के साथ ही गांधी जी ने आजादी के लिए अपनी मांग तेज कर दी और अंग्रेजों भारत छोड़ो संकल्प का मसौदा तैयार करने के साथ सत्याग्रह शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप अभूतपूर्व पैमाने पर हिंसा और गिरफ्तारी हुई। उन्होंने यह बताते हुए कि उनके आसपास की "आदेशित अराजकता" "असली अराजकता से बुरी थी" यहां तक स्पष्ट किया कि इस बार यदि व्यक्तिगत हिंसा रोकी नहीं गयी तो आंदोलन रोका नही जाएगा। उन्होनें अहिंसा के माध्यम से अनुशासन बनाए रखने के लिए कहा और परम स्वतंत्रता के लिए "करो या मरो" का नारा दिया।

अंतिम यात्रा

1915 में जब गांधीजी पहली बार भारत आए तो उन्होंने क्या देखा? - 1915 mein jab gaandheejee pahalee baar bhaarat aae to unhonne kya dekha?

30 जनवरी 1948 को, उनके उपर बम फेंके जाने के दस दिन बाद, गांधी को जब वे बिरला भवन में एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने मंच पर जा रहे थे, गोली मार दी गई। गांधी जी गिर गये और उनके होठों से "हे राम ! हे राम !" शब्द निकले। 1919 से 1948 में उनकी मृत्यु तक, वे भारत के केंद्र में रहे और उस महान ऐतिहासिक नाटक के मुख्य नायक रहे जिसकी परिणति उनके देश की आजादी के रुप में हुई। उन्होंने भारत के राजनैतिक परिदृश्य का पूरा चरित्र बदल दिया। जो कभी अछूत माने जाते थे उनके लिए भी उन्होंने जो किया वो कम महत्व का नहीं था। उन्होंने लाखों लोगों को जाति अत्याचार और सामाजिक अपमान के बंधनों से मुक्त कर दिया। उनके व्यक्तित्व के नैतिक प्रभाव और अहिंसा की तकनीक की तुलना नहीं की जा सकती। और ना ही इसकी कीमत किसी देश या पीढ़ी तक सीमित है। यह मानवता के लिए उनका अविनाशी उपहार है।

महात्मा गांधी शांति पुरस्कार

भारत सरकार सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं एवं नागरिकों को वार्षिक महात्मा गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करती है। गैर भारतीय पुरस्कार विजेताओं में नेल्सन मंडेला प्रमुख हैं, जो दक्षिण अफ्रिका में नस्लीय भेदभाव और अलगाव उन्मूलन करने के लिए संघर्ष के नेता रहे हैं। गांधी जी को कभी भी नोबल पुरस्कार नहीं मिला हालाकि उनका नामांकन 1937 से 1948 के बीच पाँच बार हुआ था। जब 1989 में चौदहवें दलाई लामा को यह पुरस्कार दिया गया तब समिति के अध्यक्ष ने इसे "महात्मा गांधी की स्मृति में श्रद्धांजलि" कहा था। महात्मा गांधी को फिल्मों, साहित्य और थिएटर में चित्रित किया गया है।

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गांधीजी ने भारत लौटने पर क्या किया?

गांधीजी ने भारत लौटने के दो साल बाद बिहार के चम्पारण से आजादी के लड़ाई के लिए सत्याग्रह शुरू किया। इसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है। उन्होंने आजादी की लड़ाई का जिम्मा उठाया और एक के बाद एक आंदोलन कर अंग्रेज सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया।

महात्मा गांधी पहली बार भारत कब आए थे?

09 जनवरी 1915 की सुबह बंबई (अब मुंबई) के अपोलो बंदरगाह पर गांधी जी और कस्तूरबा पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी की याद में हर साल 09 जनवरी का दिन प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो उनकी आयु कितनी थी?

पढ़िए, महात्मा गांधी के स्वदेश वापस आने पर कई अनुछुए पहलू। नौ जनवरी 1915 को जब अरबिया जहाज ने मुंबई के अपोलो बंदरगाह को छुआ, उस समय मोहनदास करमचंद गांधी की उम्र थी 45 साल।

गांधीजी ने 1919 में क्या किया था?

महात्मा गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रॉलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय स्तर का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य' और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंँगा।