गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे? - gutanirapeksh aandolan ke praneta kaun the?

गुट निरपेक्ष आंदोलन – क्या वेनेजुएला अगले शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर सकता है ?

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे? - gutanirapeksh aandolan ke praneta kaun the?
 

राजदूत डॉ. भास्कर बालाकृष्णन

3 फरवरी, 2016 

गुट निरपेक्ष आंदोलन का अगला शिखर सम्मेलन (17वीं) वेनेजुएला में होना है। यह देश गुट निरपेक्ष आंदोलन के स्थापित चक्रीय प्रथा तथा वर्ष 2012 में ईरान में हुए गत शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार ईरान से इस आंदोलन की अध्यक्षता लेगा। इसलिए, वेनेजुएला (जहां विपक्षी दक्षिणपंथी एमयूडी गठबंधन को दिसम्बर, 2015 के संसदीय चुनाव में शावेज प्रेरित पीएसयूवी पर निर्णायक जीत हासिल हुई है) की स्थिति पर निकट रूप से नजर रखी जाएगी। क्या वेनेजुएला गुट निरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन को आयोजित करने में समर्थ होगा और गुट निरपेक्ष आंदोलन को नेतृत्व देने की नेतृत्व को संभाल पाएगा? 

पूर्व में नियमित रूप से हर तीन वर्ष में गुट निरपेक्ष संबंधी शिखर सम्मेलन आयोजित होते रहे हैं। अपवाद स्वरूप वर्ष 1964-70 के दौरान (जब जाम्बिया ने मिस्र से अध्यक्षता हासिल की) और वर्ष 1979-83 के दौरान (जब भारत ने क्यूबा से अध्यक्षता हासिल की) इसका शिखर सम्मेलन नहीं हुआ था। बाद की स्थिति उत्पन्न हुई क्योंकि इराक ने ईरान के साथ अपने संघर्ष के कारण 1982 में इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी नहीं कर सका, और प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी मार्च, 1983 में इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने पर सहमत हो गयीं। वेनेजुएला में स्थिति का परिणाम पहले से ही 17वें शिखर सम्मेलन को 2015 में इसकी मूल तिथि से लेकर 2016 में निर्धारित की जाने वाली तिथि तक स्थगित किए जाने का रहा है। समन्वयक ब्यूरो की महत्वपूर्ण विदेश मंत्री स्तरीय बैठक जो प्राय: इस शिखर सम्मेलन के परिणाम को तैयार करता है, को भी किसी तिथि की घोषणा के बिना ही स्थगित कर दिया गया है। 

वर्तमान में गुट निरपेक्ष आंदोलन में 120 सदस्य देश और 16 पर्यवेक्षक देश हैं, और कई अतिथि देश जिनका निर्धारण प्रत्येक शिखर सम्मेलन में किया जाता है। क्षेत्रीय ब्यौरा बड़ा दिलचस्प है। अफ्रीका महादेश का प्रतिनिधित्व सबसे बेहतर है जहां सभी 53 अफ्रीकी देश इसके पूर्णकालिक सदस्य हैं। एशिया और ओसनिया के 40 पूर्णकालिक सदस्य देश हैं, और 4 पर्यवेक्षक देश (चीन, कजाकिस्तान, किर्गीस्तान और ताजिकिस्तान) हैं। अमेरिका के 26 सदस्य देश हैं और 7 पर्यवेक्षक देश (अर्जेंटीना, ब्राजील, कोस्टा रीका, अल सल्वाडोर, मैक्सिको, पराग्वे और उरूग्वे) हैं। यूरोप में केवल एक सदस्य देश (बेलारूस) है और चार पर्यवेक्षक (अर्मेनिया, मोंटेनिग्रो, सर्बिया और यूक्रेन) देश हैं। 1992 से ही किसी यूरोपीय देश ने इस शिखर सम्मेलन का आयोजन नहीं किया है और इसकी अध्यक्षता का चक्रण एशिया, अफ्रीका और अमेरिकी क्षेत्र के देशों में हुआ है। 

गुट निरपेक्ष आंदोलन का सबसे अधिक समर्थक आधार अफ्रीका में है उसके बाद एशिया में और सबसे कम अमेरिका में है। कई प्रमुख लैटिन अमेरिकी देश शायद अमेरिका के प्रभाव के कारण पर्यवेक्षक के रूप में रहे हैं क्योंकि अमेरिका इस क्षेत्र में लंबे समय तक एक प्रबल शक्ति रही है और वह गुट निरपेक्ष आंदोलन को मूलत: सोवियत संघ का हिमायती मानता रहा है।  शीत युद्ध की समाप्ति, सोवियत संघ के टूटने तथा चीन के उदय के साथ हीं इस प्रश्न पर व्यापक रूप से चर्चा और वाद-विवाद होने लगा कि गुट निरपेक्ष आंदोलन की क्या भूमिका होगी। इसमें उभरने वाली एक साझी विचारधारा यह प्रतीत होती है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन को एक या कुछेक देशों के वर्चस्व के विरूद्ध तथा राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में लोकतंत्र के लिए एक ताकत बनना चाहिए। इस संदर्भ में गुट निरपेक्ष आंदोलन सुरक्षा परिषद् सहित संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रणाली में सुधार की मांग के स्पष्ट समर्थन के लिए एक मंच है। 

इसके अतिरिक्त, गुट निरपेक्ष आंदोलन प्रर्वतन और विनियामक एजेंसियों को मजबूत करने के लिए यूएन प्रणाली के विकासोन्मुखी एजेंसियों और कार्यक्रमों को विघटित करने की प्रवृत्ति का विरोध कर सकता है।  पिछले दशक के दौरान इस प्रवृत्ति की अगुवाई अमेरिका, यूके और कई ओईसीडी देश करते रहे हैं। दक्षता में सुधार करने, द्विरावृत्ति को कम करने और इस पर जोर देने के संदर्भ में इस प्रयास को ध्यानपूर्वक आच्छादित किया गया है कि विकास का कार्य बेहतर तरीके से द्विपक्षीय माध्यमों के जरिये ही किया जा सकता है। यूएनआईडीओ, डब्लूएचओ, आईएलओ, यूनेस्को और एफएओ सभी इस आक्रमण के लक्ष्य रहे हैं। दूसरी ओर, आईएईए जैसी एजेंसियों के साथ हितकारी व्यवहार किया गया क्योंकि ये एजेंसियां एनपीटी के रूप में असमान्य संधियों और आईएईए के भीतर भी विद्यमान शक्ति संतुलन को बनाए रखती हैं, विकास में कटौती और सुरक्षा में बढ़ोतरी की जाती है। 

कई ऐसे विवाद और मुद्दें भी हैं जो इसमें प्रमुख रूप से रहे हैं। इनमें शामिल हैं- अफगानिस्तान, ईराक, सिरिया, लीबिया में संघर्ष तथा कई देशों में आतंकवाद का प्रसार। स्थायी सदस्यों सहित कुछ प्रमुख शक्तियों के सतत भू-रणनीतिक हितों के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् समाधान खोजने में समर्थ नहीं रहा है। राष्ट्र के असफल होने की बीमारी कई राष्ट्रों में फैली हुई है। जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था उथल-पुथल की स्थिति में है, वहीं पूरे विश्व में विकास न्यूनता और भी बड़ी हो गयी है। जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्या के समाधान में सरकारों के उपर यह दबाव है कि वे मानवता के सामुहिक उत्तरजीवन के लिए एकसाथ कार्य करें किंतु समृद्ध राष्ट्र आवश्यक बलिदान करने के लिए अनिच्छुक हैं। ईबोला वायरस का फैलना विकासशील दुनिया में ऐसे महामारी के प्रति अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की स्पष्ट विफलता बतलाता है। इस परिदृश्य को देखते हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन इन वैश्विक मुद्दों के समाधान करने में उपयोगी भूमिका निभा सकता है और निभाना चाहिए। 

तेल की कीमत में भारी कमी ने वेनेजुएला को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया है और वह आर्थिक आपात स्थिति में पहुंच गया है और ऐसी संभावना खड़ी हो गयी है कि वह एक आसन्न संप्रभु ऋण चूककर्ता बन जाए। विश्लेषकों के अनुसार वेनेजुएला तथाकथित पांच दुर्बल ओपेक सदस्यों (लीबिया, अल्जीरिया, नाइजीरिया और इराक सहित) में से एक देश है जो मूल्यों में उथल-पुथल के बीच महत्वपूर्ण अस्थिरता के जोखिम में है। 30 डॉलर प्रति बैरेल में से वेनेजुएला अपने तेल निर्यात से होने वाली आय के 90 प्रतिशत भाग को केवल बाहरी ऋणकर्ताओं को पैसा चुकाने में खर्च करेगा। उसने तेल की गिरती कीमत को रोकने के लिए ओपेक देशों की आपातकालीन बैठक बुलाने की मांग की है किंतु कुछ बड़े तेल निर्यातक देशों के इनका साथ देने की संभावना नहीं है। राष्ट्रपति और निकोलनस मदुरो नीत सरकार (शावेज प्रावरक के उत्तराधिकारी) के बीच आंतरिक मतभेद तथा विपक्षी एमयूडी के प्रभुत्व वाले संसद (167 सीटों में से 105 सीट) से विद्रोहों और हिंसा के और फैलने की संभावना है। आर्थिक आपातकाल की घोषणा और कठोर कराधान उपायों के बारे में परिकल्पना के परिणामस्वरूप पूंजी की और अस्थिरता आ सकती है। वर्तमान संकट हेतु सरकार का यह अनुमान कि इस स्थिरता के लिए पश्चिमी देश उत्तरदायी है, से समस्या का समाधान नहीं होगा। 

ऐसी स्थिति में उक्त सरकार के लिए गुट निरपेक्ष आंदोलन जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी करना कठिन है। बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि क्या वेनेजुएला अपने बाहरी ऋणकर्ताओं से राहत पा सकता है अथवा पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण पा सकता है। तथापि, यह वेनेजुएला सरकार पर निर्भर करेगा कि वे यह बतलाए कि वह गुट निरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन आयोजित कर सकता है या नहीं अथवा यह अनुरोध करे कि कोई और देश इसकी मेजबानी करे, जिसके लिए और परामर्श की आवश्यकता होगी। लैटिन अमेरिका में गुट निरपेक्ष आंदोलन के कमजोर सदस्य देशों को देखते हुए इस क्षेत्र से किसी अन्य मेजबान देश का पता लगाना कठिन होगा। शायद क्यूबा और ईरान, वर्तमान अध्यक्ष मादुरो सरकार से परामर्श करे और इस स्थिति से निकलने का मार्ग निकाले। 

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन था?

गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Alignment Movement, NAM) राष्ट्रों की एक अंतराराष्ट्रीय संस्था है. यह आंदोलन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासर और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रॉज टीटो ने शुरू किया था. इसकी स्थापना अप्रैल1961 में हुई थी.

गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रथम अध्यक्ष कौन था?

प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन के अध्यक्ष युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप बरोज टीटो थे

पहला गुटनिरपेक्ष आंदोलन कब हुआ कहां हुआ?

1961 में बेलग्रेड में अपने प्रथम शिखर सम्मेलन में 25 राष्ट्रों की भागीदारी से यह आंदोलन आरम्भ हुआ था ।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में वर्तमान में कितने सदस्य?

अप्रैल, 2018 तक गुटनिरपेक्षता में 120 देश शामिल थे जिनमे 53 अफ्रीका के देश और 39 देश एशिया से सदस्य है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के। 26 देश और यूरोप के बेलारूस और अजरबैजान गुटनिरपेक्ष संगठन के सदस्य हैं। वर्तमान में 17 देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन में पर्यवेक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं।

भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन कब हुआ था?

गौरतलब है कि सन् 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम सम्मेलन बेलग्रेड में आयोजित किया गया थागुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना के बाद से इसमें लगातार सदस्यों की संख्या बढ़ी है। इस समय भारत सहित गुटनिरपेक्ष आंदोलन के 120 विकासशील देश सदस्य हैं।