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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चनRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अति लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन व्याख्यात्मक प्रश्न प्रश्न 1. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. “जग जीवन का भार” से आशय है (क) जीवन के कष्ट 2. कवि ने संसार को बताया है – (क) अति सुंदर 3. कवि सीखे हुए ज्ञान को – (क) निरंतर स्मरण कर रहा है। 4. कवि चाहता है कि संसार उसे अपनाए – (क) एक
महान कवि के रूप में 5. संसार को कवि संदेश देना चाहता है – (क) मस्ती का उत्तर:
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन निबंधात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ।” यहाँ ‘जग’ से कवि का आशय जगत के स्वार्थी और मनसुहानी बातें सुनने के आदी लोगों से है। यह लोग उन्हीं को पूछते हैं, सम्मान देते हैं, जो उनके मन को भाने वाली बात कहे। स्वाभिमानी कवि बच्चन को भला यह कैसे स्वीकार हो सकता था। कवि के जगत से कई मतभेद भी हैं। वह संसार को अपूर्ण मानता है। दान-पुण्यों के सहारे भवजाल पार रखने की चाह रखने वाला, बुद्धिमानी के अहंकार के साथ सत्य की खोज न करने वाला, जगत उन्हें मूर्ख प्रतीत होता है। वह जगत से अपेक्षा रखते हैं कि वह उनको एक कवि के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘नए दीवाने’ के रूप में अपनाए। अंत में वह जगत को मस्ती और मुक्त प्रेम का संदेश भी देते हैं। जगत के प्रति बच्चन जी के दृष्टिकोण का यही सार है। प्रश्न 3. ‘आत्म-परिचय’ के आधार पर कवि बच्चन एक भावुक कवि तथा एक स्वतंत्र विचारक सिद्ध होते हैं। वह जगत से एक विशेष प्रकार का संबंध बनाना चाहते हैं। जग जीवन अपूर्ण है, मूढ़ है, दिग्भ्रमित है ऐसा मानते हुए भी वह उसे प्रेम का उपहार बाँटना चाहते हैं। उनके अनुसार ज्ञान और बुद्धिमत्ता का अहंकार त्यागने पर ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ कवि के अन्तर्मन की झलक भी इस रचना में दिखाई देती चलती है। कवि के हृदय में किसी की व्यथित कर देने वाली याद बनी रहती है। वह अपने स्वप्न जगत और मान्यताओं से संतुष्ट व्यक्ति है। उन्हें जगत के वैभव से कोई लगाव नहीं। इस प्रकार कवि बच्चन का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उनका संदेश भले ही हमें व्यावहारिक न लगे, पर एक मनमोहक लक्ष्य के रूप में स्वीकार हो ही सकती है। प्रश्न 4. कविता के आरम्भ में ही कवि, जीवन के कर्तव्यों के प्रति अपनी संवेदनशीलता और लोगों के प्रति स्नेह के वितरण में कवि आलोचकों की चिंता नहीं करता। कवि समाज की उस प्रवृत्ति के प्रति खेद व्यक्त करता है जो केवल मन-सुहाती बातें करने वालों को महत्व देती है। कवि को यह संसार अपूर्ण प्रतीत होता है। इसलिए वह अपने सपनों के संसार में ही खोए रहते हैं। बच्चन का जीवन-दर्शन गीता से प्रभावित होता है। वह जीवन के सुख-दुख समान भाव से सहन करते हैं। बच्चन के हृदय में किसी की याद कसकती रहती है। वह एक विरोधाभासी जीवन जीने को विवश हैं। उनकों ऊपर से हँसना और भीतर से रोना पड़ता है। कवि का स्पष्ट मत है कि ज्ञान और बुद्धिमत्ता के अहंकार को त्यागे बिना सत्य का साक्षात्कार नहीं हो सकता। कवि की शीतल वाणी में भी आग छिपी रहती है। कवि अपने जीवन से संतुष्ट है। उसे भूपतियों के राजमहल नहीं चाहिए। कवि अपनी पहचान एक कवि के रूप में नहीं बल्कि एक ‘नए दीवाने’ के रूप में चाहता है। अंत में कवि मस्ती के साथ जीवन बिताने का संदेश देते हुए अपनी भावनाओं के प्रवाह को विराम देता है। प्रश्न 5. कविता की भाषा परिमार्जित, प्रवाहपूर्ण, भावानुकूल तथा लक्षणाशक्ति से सम्पन्न है। पूरी कविता में कवि ने अपना परिचय भावात्मक शैली में दिया है। कविता आत्म-प्रकाशन शैली का सुंदर नमूना है। “कर दिया……………..फिरता हूँ” इन पंक्तियों में लक्षणा का सौन्दर्य मन को गहराई से छूता है। ‘स्नेह सुरा’, ‘स्वप्नों का संसार’, ‘भव-सागर’ में रूपक अलंकार है। और, ‘और’ में यमक, स्नेह-सुरा, मन-मौजों, क्यों कवि कहकर आदि में अनुप्रास अलंकार है। ये सभी अलंकार सहज भाव से आए हैं। कविता की सबसे आकर्षक विशेषता उसकी विरोधाभासी उक्तियाँ हैं। ‘मार और प्यार’ को साथ-साथ निभाना, उन्मादों में अवसाद लिए फिरना, बाहर हँसाती भीतर रुलाती, रोदन में राग लिए फिरना, शीतल वाणी में आग लिए फिरना, आदि ऐसी ही परस्पर विरोधी उक्तियाँ हैं। कविता शांत रस का आभास कराती है। छंद भावनाओं के प्रवाह के अनुकूल हैं। हरिवंशराय बच्चन कवि परिचय ‘हालावाद’ के प्रवर्तक, कवि-मंच से श्रोताओं को ‘मधुशाला’ का मधुर प्याला पिलाने वाले कवि हरिवंशराय बच्चन का जन्म सन् 1907 में हुआ था। बच्चन जी की प्रारम्भिक रचनाओं पर फारसी के कवि उमर खय्याम के जीवन दर्शन का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उनकी रचना ‘मधुशाला’ की काव्य मंचों पर धूम मच गई थी। प्रतिभाशाली कवि होते हुए भी उनकी कविता आरम्भ में इश्क, प्यार, पीड़ा और मयखाने तक सीमित रही। आगे उसमें गैम्भीरता और प्रौढ़ चिंतेने को भी स्थान मिला। रचनाएँ–कवि हरिवंशराय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ हैं-मधुशाला, मधुबाला, मधु कलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे आदि हैं। चार खण्डों में बच्चन की आत्मकथा तथा कुछ अनूदित पुस्तकें भी हैं। सन् 2003 में बच्चन जी का देहावसान हो गया। हरिवंशराय बच्चन पाठ-परिचय पाठ्यपुस्तक में कवि बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ संगृहीत है। इस रचना में कवि ने जीवन के भार उत्तरदायित्वों के साथ प्यार को भी निभाने का संकल्प व्यक्त किया है। संसार की चिंता किए बिना कवि सबको स्नेह की सुरा बाँटता रहता है। कवि को ठकुरसुहाती बातें करना स्वीकार नहीं है। वह अपने सपनों के संसार में ही रहता है और सुख-दुःख दोनों को समान भाव से स्वीकार करता है। मनमौजी कवि, यौवन की मस्ती के साथ-साथ अवसाद को भी सहज भाव से भोगता है। कवि की मान्यता है कि नादान लोग ही सत्य को जान लेने का दावा करते हैं। वह जग की रीति-नीति की परवाह न करके अपने भाव और विचारे जगत में मग्न रहता है। कवि चाहता है उसे कवि के रूप में नहीं अपितु दीवाने के रूप में याद रखें। कवि का संदेश है मस्ती भरा जीवन॥ काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ आत्मपरिचय 1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, कठिन शब्दार्थ-जग-जीवन = संसारिक जीवन। भार = उत्तरदायित्व, जिम्मेदारी। झंकृत = उत्पन्न कर दी, मधुर बनाया। साँसों के दो तार = जीवनरूपी वीणा। स्नेह सुरा = प्रेम की मस्ती। पान = पीना, आनंद लेना। जग की गाते = अन्य लोगों को सुहाने वाली बातें करते हैं। मन का गान = अपने मन को सुहाने वाली बातें। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की रचना ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। कवि बता रहा है कि वह जीवन के उत्तरदायित्वों को निभाते हुए, सभी के प्रति प्यार और कृतज्ञता व्यक्त करता है। वह जग सुहाती बातें न करके अपने मन के गीत गाया करता है। व्याख्या-कवि बच्चन कहते हैं कि मेरे ऊपर अनेक सांसारिक उत्तरदायित्व हैं, जिनके कारण मेरा जीवन भार-स्वरूप हो गया है परन्तु मेरे मन में सभी के प्रति प्रेम तथा स्नेह के भाव विद्यमान हैं। दुनियादारी में फंसकर मैं अपने प्रेम-भाव की उपेक्षा नहीं करना। चाहता। किसी ने अपने प्रेमपूर्ण स्पर्श से मेरे जीवनरूपी सितार को संगीतमय कर दिया है। उस मधुर प्रेम-राग के सहारे मैं इस जीवन को बिता रहा हूँ। मैं सदैव प्रेम की मदिरा में मस्त रहता हूँ। मैं इस संसार की अन्य अनावश्यक बातों की चिन्ता कभी नहीं करता। यह संसार उनकी ही प्रशंसा करता है, जो उसकी हाँ-में-हाँ मिलाया करते हैं, अर्थात् वही कवि संसार में प्रशंसनीय होते हैं जो दूसरों को खुश करने वाली कविताएँ लिखते हैं। परन्तु मैं अपने मन को सुख देने वाले विचारों को ही अपनी कविताओं में प्रकट करता हूँ। विशेष- 2. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, कठिन शब्दार्थ-निज = अपने। उर = हृदय। उद्गार = भावनाएँ, विचार। उपहार = प्रेमभाव, सद्भावनाएँ। अपूर्ण = अधूरा, मधुर भावनाओं से रहित। न भाता = अच्छा नहीं लगता। स्वप्नों का संसार = मन को सुहाने वाली भावनाएँ। जला हृदय में अग्नि = सांसारिक दुखों से त्रस्त मन। दहा करता हूँ = दुखी हुआ करता हूँ। मग्न = एक भाव से, अप्रभावित। भव-सागर = संसार रूपी सागर, जन्म-मरण का चक्र। तरने को = उद्धार पाने को। नाव = पुण्य कार्य। भव मौजों पर = सांसारिक जीवन की मस्ती॥ संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसे अंश में कवि कह रहा है कि वह अपनी कविता द्वारा सभी के कल्याण की कामना करता रहता है। वह अपने सपनों के संसार में मग्न रहता है, वह सुख-दुख को समान भाव से ग्रहण करते हुए मस्ती के साथ जीवन बिताया करता है। व्याख्या-कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भावों को अपनी कविता द्वारा व्यक्त करता रहता हूँ। मेरी कविता में सारे संसार के कल्याण की कामना रहती है। यही संसार को मेरा प्रेम-उपहार है। मेरी दृष्टि में यह संसार अधूरा है, जो मुझे प्रिय नहीं है। इसीलिए मैं अपने सपनों के संसार में मग्न रहता हूँ जहाँ कोई चिन्ता और अभाव नहीं है। यद्यपि संसार के कष्ट, अभाव और दुख-दर्द उसके मन को निरन्तर जलाते हैं, परन्तु उसके लिए सुख-दुख दोनों समान हैं। लोग इस संसार को माया और भ्रम मानकर इस संसाररूपी सागार से पार होने के उपाय किया करते हैं। वे पुण्य-कार्यों को नाव बनाकर संसार से मुक्ति चाहा करते हैं लेकिन कवि मस्ती के साथ संसार-सागर की लहरों पर बहता रहता है। आशय यह है कि कवि संसार की कठिनाइयों से विचलित न होकर प्रसन्नतापूर्वक उनके बीच से होकर अपनी मार्ग तलाशता है। विशेष- 3. मैं यौवन को उन्माद लिए फिरता हूँ, कठिन शब्दार्थ-यौवन = जवानी। उन्माद = मस्ती, पागलपन। अवसाद = दुख, वेदना। बाहर = प्रकट रूप में। भीतर = मन में। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता से लिया गया है। कवि इस अंश में अपनी परस्पर विरोधी मनोभावनाओं को व्यक्त कर रहा है। व्याख्या-कवि कहता है कि वह युवावस्था की मस्ती या उत्साह से भरा हुआ है। उत्साह की अधिकता उसे कभी-कभी पागल-सा बना देती है। वह चाहता है कि सारा जगत् उसी की तरह उत्साह से परिपूर्ण हो जाय। वह सभी को प्रेम की शिक्षा देना चाहता है किन्तु अपने प्रयत्न में सफलता न मिलती देख उसका हृदय निराशा और वेदना से भर जाता है। कवि कहता है कि उसके हृदय में किसी अज्ञात प्रेमी की याद छिपी है। यह याद मुझे प्रकट रूप में तो हँसते रहने को विवश करती रहती है। किन्तु मेरा मन उस अज्ञात को पाने के लिए रोता रहता है। विशेष- 4. कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना? कठिन शब्दार्थ–यत्न = उपाय। मिटे = मिट गए, संसार से चले गए। नादान = अज्ञानी । दाना = बुद्धिमान, ज्ञानी । मूढ़ = मूर्ख। सीखे = ज्ञान पाने का यत्न करे। सीख रहा = प्रयत्न कर रहा हूँ॥ संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सत्य की खोज में लगे लोगों को नादान बताते हुए, ज्ञान के अहंकार से मुक्त होने का संदेश दे रहा है। व्याख्या-कवि कहता है कि संसार में सभी लोग परम सत्य की खोज में लगे हैं परन्तु उनके नानाविध प्रयत्न सफल नहीं होते और वे थक-हारकर बैठ जाते हैं या फिर यत्न करते-करते ही संसार से चले जाते हैं। सांसारिक बातों को जानकर ही लोग स्वयं को ज्ञान सम्पन्न समझते हैं। परन्तु वास्तव में वे अज्ञानी ही हैं। सच्चे ज्ञान के अभाव में सत्य का साक्षात्कार नहीं हो सकता, इस बात को जानकर भी वे अनजान बने रहते हैं। इतने पर भी लोग सांसारिक ज्ञान को सीखने में लगे हुए हैं। ऐसे लोगों को मूर्ख ही कहा जा सकता है। यह जानने के बाद मैंने जो कुछ अब तक सीखा है, उसे भुलाने की चेष्टा कर रहा हूँ। विशेष- 5. मैं और, और जगे और, कहाँ का नाता, कठिन शब्दार्थ-और = भिन्न, अलग। नाता = संबंध बना-बना = कल्पना कर-कर के। मिटाता = त्याग देता, भुला देता॥ जोड़ा करता = इकट्ठा किया करता है। वैभव = संपत्ति । प्रति = प्रत्येक। पग = पैर। ठुकराता = ठोकर मारता॥ संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। कपि अपना तथा संसार का लक्ष्य अलग-अलग बता रहा है। उसे सांसारिक वैभव से कोई लगाव नहीं है। व्याख्या-कवि कहता है कि इस संसार से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। उसके और संसार के लक्ष्य अलग-अलग हैं। कवि सत्य की खोज के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को पाने में लगा है और यह संसार भौतिक सुख-सुविधाओं के संग्रह में लीन है। कवि होने के नाते वह अपनी कल्पना में अनेक लोकों का निर्माण करता है और अनुपयुक्त देखकर उनको मिटा देता है। विशेष- 6. मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, कठिन-शब्दार्थ-रोदन = रोना। राग = संगीत शीतल = सुनने में मधुर लगने वाली। वाणी = कविता, बोली। आग = मन की व्यथा। भूप = राजा । प्रासाद = राज-भवन, महल। खंडहर = टूटा हुआ भवन। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। कवि परस्पर विरोधी कथनों के द्वारा अपनी मनोभावनाओं से परिचित करा रहा है। व्याख्या-कवि इसी कविता में कह चुका है कि वह किसी अज्ञात प्रिय की याद अपने हृदय में छिपाए जी रहा है। उस प्रियतम (परमेश्वर) के वियोग में व्याकुल कवि का हृदय जब रोता है, तो उसका वह रुदन कवि के गीतों के रूप में सबके सामने प्रकट हो जाता है। कवि के ये गीत सुनने में शीतल और मधुर होते हैं, किन्तु इनके भीतर उसकी विरह व्यथा भी अलग दहकती रहती है। कवि फिर भी अपने खंडहर जैसे जीवन से संतुष्ट है। वह अपने इस जीवन के सामने राजभवनों के सुखों को भी तुच्छ समझता है। वह प्रिय की स्मृतियों से जुड़े, भग्न-भवन जैसे जीवन को संतुष्ट भाव से जिए जा रहा है। विशेष- 7. मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना, कठिन शब्दार्थ-रोया = अपनी पीड़ा व्यक्त की। गाना = कविता, गीत। फूट पड़ा = मन की वेदना प्रकट की। छंद बनाना = कविता रचना। दीवाना = मस्ती से जीने वाला। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि चाहता है कि संसार उसे एक कवि के रूप में नहीं एक मस्ती से जीने वाले व्यक्ति के रूप अपनाए। व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह अपने मन की पीड़ा को प्रकट करता है तो लोग उसे गीत कहने लगते हैं। जब उसके हृदय में भरी वेदना गीत बन कर फूट पड़ी तो लोग कहने लगे कि वह काव्य रचना कर रहा है। लोग उसको कवि मानकर उसका सम्मान करना चाहते हैं किन्तु कवि को अपनी यह पहचान स्वीकार नहीं है। वह तो चाहता है कि लोग उसे एक नए प्रेम दीवाने के रूप में जाने। छंदों के रूप में उसकी वेदना ही फूट-फूटकर रोई है। वह कवि नहीं बल्कि एक पागल-प्रेमी है। विशेष- 8. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ, कठिन शब्दार्थ-वेश = रूप। मादकता = मस्ती, मोहकता। नि:शेष = सारी, सम्पूर्ण । झूम = प्रसन्न होकर। झुके = सम्मान दे, महत्त्व स्वीकार करे। लहराए = मस्त हो जाए। सन्देश = विचार, मन की बात॥ सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुते पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता : आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सारे जगत को मस्ती भरे प्रेम का संदेश दे रहा है। व्याख्या-कवि कहता है कि दीवानगी केवल इसके मन में ही नहीं है, उसकी वेशभूषा से भी दीवानापन झलकता है। उसका सारा जीवन प्रेम और मस्ती से भरा हुआ है। कवि जहाँ भी जाता है, वहाँ लोगों को मस्त रहने और जीवन को अपने अनुसार जीने का संदेश देता है। उसका संदेश लोगों को गहराई से प्रभावित करता है और उसको झूमने, झुकने और मस्ती से लहराने के लिए बाध्य कर देता है। विशेष- We hope the RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन, drop a comment below and we will get back to you at the earliest. कवि का उद्धार और उपहार क्यों?➲ कवि को अपने हृदय के भाव यानि अपने हृदय के उद्गार और विचार तथा और उपहार अत्यन्त प्रिय हैं, क्योंकि कवि ने अपने ह्रदय में अनेक भावों को उपहार के रूप में संजोकर रखा है। कवि अपने उन्हीं उद्गारों रूपी हृदय के भावों के स्वप्निल संसार में ही डूबे रहना चाहता है। इसी कारण कवि को अपने हृदय के उद्गार और उपहार प्रिय हैं।
प्लीज और के उद्गार से कवि का क्या तात्पर्य है?कवि का तात्पर्य है कि उसकी कविता में लोगों के प्रति जो प्रेम और मस्ती के भाव व्यक्त हुए हैं, वे संसार के लिए उसकी अपूर्व भेंट है। उसके पास भौतिक वस्तुओं के उपहार नहीं है। वह अपने मनोभावों को समर्पित करके लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त किया करता है।
कवि का क्या अर्थ है कब?: वह जो कविता लिखता है : छंदों का निर्माता। : एक (जैसे एक रचनात्मक कलाकार के रूप में) महान कल्पनाशील और अभिव्यंजक क्षमताओं और माध्यम के प्रति विशेष संवेदनशीलता।
काव्यांश में स्नेह सुरा से क्या आशय है?(ख) 'स्नेह-सुरा' से आशय है - प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है ।
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