व्याकरण का भाषा के लिए क्या महत्व है - vyaakaran ka bhaasha ke lie kya mahatv hai

व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा से संबंधित नियमों का ज्ञान करता है। किसी भी भाषा की संरचना का सिद्धांत अथवा नियम ही उसका व्याकरण है। यदि नियमों द्वारा भाषा को स्थित न रखा जाए तो उसकी उपादेयता, महत्ता तथा स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा। अत: भाषा के शीघ्र परिवर्तन को रोकने के लिए ही व्याकरण का उस पर नियन्त्रण कर दिया गया है। भाषा यदि साध्य है तो व्याकरण उसका साधन है।


व्याकरण भाषा का अनुशासन मात्र ही करता है, शासन नहीं। वह भाषा सृजन उसका साधन है। व्याकरण भाषा का सृजन नहीं। परिष्कार करता है।

व्याकरण का अर्थ 

व्याकरण का अर्थ है व्यांक्रियन्ते। व्याकरण के द्वारा किसी भी विषय को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। व्याकरण किसी विषय को भाली प्रकार से समझने के लिए किया जाता है। जो विषय छात्रों की समझ से बाहर होता है उसका व्याकरण के माध्यम से सीखा जाना अति लाभदायक सिद्ध होता है। 


व्याकरण भाषा का ही एक रूप है। व्याकरण को भाषा न कहकर भाषा का ही एक स्वरूप कहा जाता है। यह भाषा शासक के रूप में बल्कि अनुशासक के रूप में हिन्दी शिक्षण कला में प्रयुक्त की जाती हैं।

व्याकरण की परिभाषा

पंतजलि के अनुसार- ‘‘महाभाषय में व्याकरण (शब्दानुशासन) कहा है।’’


डॉ. स्वीट के अनुसार- ‘‘व्याकरण भाषा का व्यवहारिक विश्लेषण अथवा उसका शरीर विज्ञान है।’’


जैगर के अनुसार- ‘‘प्रचलित भाषा संबंधी नियमों की व्याख्या ही व्याकरण है।’’

व्याकरण की विशेषताएँ

  1. व्याकरण भाषा की शुद्धता का साधन है साध्य नहीं।
  2. व्याकरण भाषा का अंगरक्षक तथा अनुशासक है।
  3. व्याकरण वास्तव में ‘शब्दानुशासन’ ही है।
  4. व्याकरण भाषा के स्वरूप की सार्थक व्यवस्था करता है।
  5. व्याकरण भाषा का शरीर विज्ञान है तथा व्यावहारिक विश्लेषण करता है।
  6. गद्य साहित्य का आधार व्याकरण है।
  7. भाषा की पूर्णता के लिए-पढ़ना, लिखना, बोलना तथा सुनना चारों कौशलों की शुद्धता व्याकरण के नियमों से आती हैं।
  8. भाषा की मितव्ययिता भी व्याकरण से होती है।
  9. वाक्य की संरचना शुद्धता उस भाषा के व्याकरण से आती है।
  10. व्याकरण से नवीन भाषा को सीखने में सरलता एवं सुगमता होती है।

व्याकरण शिक्षण की आवश्यकता

व्याकरण की शिक्षा, भाषा-शिक्षण का अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण अंग है। व्याकरण भाषा का दिशा निर्देशन करता है और उसे सरलता से अपेक्षित लक्ष्य तक पहुँचाता है।

व्याकरण के नियमों का ज्ञान, छात्रों में ‘मौलिक’ वाक्य संरचना की योग्यता का विकास करता है। भाषा की मितण्ययिता के आधार हेतु व्याकरण के नियमों का ज्ञान आावश्यक है। छात्रों में भाषा शुद्ध, लिखने, बोलने के कौशल का विकास करती है।

भाषा का शुद्ध रूप पहचानने में छात्रों को सक्षम बनाना ही व्याकरण का मुख्य उद्देश्य है। व्याकरण-शिक्षा से मातृभाषा के प्रयोग-लिखने, बोलने में शुद्धता आती है। मातृभाषा में व्याकरण के उपयोग से शुद्ध एवं स्पषट व्यवहार आता है। शुद्ध सम्प्रेषण व्याकरण के उपयोग पर निर्भर होता है।

भावों की स्पषटता भाषा पर निर्भर है और भाषा की शुद्धता व्याकरण पर। व्याकरण भाषा का संगठन करता है। व्याकरण की जानकारी के बिना भाषा शुद्ध नहीं हो सकती। इसी कारण व्याकरण का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य है।

व्याकरण के प्रकार

आज ज्ञान के क्षेत्र में विस्फोट हो रहा है। समस्त अध्ययन क्षेत्रों में ज्ञान में वृद्धि अधिक तीव्रता से हो रही है। इसका प्रभाव व्याकरण के ज्ञान पर भी हुआ है। भाषा वैज्ञानिक ‘चौमस्की’ में एक नवीन व्याकरण का विकास किया है जिसे’व्यावहारिक व्याकरण’ की संज्ञा दी जाती है इस प्रकार के व्याकरण में नियमों के अनुसरण की अपेक्षा ‘व्यवहारिकता’ अथवा प्रचलन को विशेष महत्व दिया है। व्याकरण के तीन प्रकार है-

  1. शास्त्रीय या सैद्धान्तिक व्याकरण
  2. व्यावहारिक व्याकरण
  3. प्रासंगिक व्याकरण

1. शास्त्रीय या सैद्धांन्तिक व्याकरण

विद्वानों ने वाक्य संरचना, ध्वनि, स्वर आदि के व्याकरण के नियमों एवं सिद्धांतों की रचना की है उनका ज्ञान छात्रों को दिया जाता है। तथा छात्रों को भी अवसर देते है वे भी वाक्य संरचना में उनका प्रयोग करें तथा वाक्य की संरचना में घटकों-कर्ता, क्रिया, कर्म, विशेषण, संज्ञा सर्वनाम, क्रिया-विशेषण की पहचान करें। व्याकरण के नियमों को विशेष महत्व दिया जाता है। इसमें भाषा की शुद्धता को प्राथमिकता दी जाती हैं

2. प्रासंगिक व्याकरण

इस प्रकार के व्याकरण में शुद्ध स्पष्ट अभिव्यक्ति पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें भाषा की दृष्टि से अशुद्धियाँ रहती है परन्तु अपेक्षाकृत कम रहती है। गद्य साहित्य में कहानीकार अपितु सम्प्रेषण की प्रभावशीलता एवं अभिव्यक्ति पर विशेष ध्यान देते है।

व्याकरण की विभिन्न इकाइयों का अध्ययन

1. उपसर्ग एवं प्रत्यय :- उपसर्ग एवं प्रत्यय किसी शब्द के आगे व पीछे जुड़कर शब्द को नया रूप व अर्थ प्रदान करते है। विद्यार्थियों को इसका अध्ययन रोचक ढंग से कराने के लिए विभिन्न नए प्रकार के शब्दों का ज्ञान आवश्यक है। साधारणतः यह अत्यंत सरल होते है।


2. संज्ञा व सर्वनाम :- हिन्दी शब्दों की रचना में संज्ञा एवं सर्वनाम को सम्मिलित किया जाता है। किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या भाव का बोध कराने वाले शब्दों को संज्ञा कहते है। और संज्ञा के बदले में आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते है। सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है- ‘सबका नाम’। विद्याथ्र्ाीयों को इसका ज्ञान माध्यमिक कक्षाओं से ही कराया जाता है। इसका विस्तृत वर्णन उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं तक पूर्ण हो जाता है।


3. क्रिया, विशेषण, कारक :- जिन वाक्यों अथवा शब्दों का प्रयोग संज्ञा एवं सर्वनाम के स्ािान पपर किया जाता है उनको क्रिया कहते है। क्रिया संज्ञा एवं सर्वनाम में होने वाले कार्य को स्पषट करने का एक बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। इसके द्वारा कार्य का ज्ञान होता है। क्रिया से बनने वाले वर्णो का ज्ञान छात्रों को कराया जाना चाहिए। किस प्रकार क्रिया से वर्णों की उत्पत्ति की जा सकती है। 


संज्ञा एवं सर्वनाम को विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते है इस स्तर के छात्रों को शिक्षकों के द्वारा विशेषण का प्रयोग, विशेषणों की रूप-रचना, विशेषणों की पुनरूक्ति, विशेषणों के संबिंध में सभी जानकारी प्राप्त हो जाती है और वह विशेष का प्रयाकग करना भी सीख जाता है। गंद्याशों में प्रयुक्त होने वाली विशेषणों का भी छात्र स्वयं अपनी बुद्धि से छांटना प्रारंभ कर देते है।संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप का सीधा संबंध क्रिया से होता है, उसे कारक कहते है। कारके के आठ भेद होते है। 


कारक सूचित करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के साथ जो प्रत्यय लगते है उन्हें विभिक्तियॉं कहते है। कारके विद्यार्थियों को वाक्य रचना करने व पहचानने में सहायक होते है। इसे अभ्यास व प्रयोग से छात्र शब्द रचना को सीख सकते है।

भाषा के लिए व्याकरण का क्या महत्व है?

व्याकरण, भाषा में उच्चारण, शब्द प्रयोग, वाक्य गठन तथा अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है। इस तरह भाषा विविधितम विचारों की अभिव्यक्ति, लोगो की भावनाओं और अनुभवों का वर्णन, गणितीय प्रमेयों का निरूपण तथा वैज्ञानिक व तकनीकी ज्ञान की रचना करना संभव बनाती है। .

भाषा व्याकरण क्या है?

भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं। व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों एवं शुद्ध प्रयोगों का विशद ज्ञान कराया जाता है।