भारत में दलहन उत्पादन में प्रथम राज्य कौन सा है? - bhaarat mein dalahan utpaadan mein pratham raajy kaun sa hai?

Show

अरहर में संस्तुत उर्वरक की मात्रा क्या है?

  • सामान्यतया प्रति हे. 15-20 किग्रा. नाइट्रोजन, 45-50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा पोटाश व 20 किग्रा. गंधक की आवश्यकता होती है। नत्रजन व फास्फोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 कि.ग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.) एवं गंधक की पूर्ति हेतु 100 किग्रा. जिप्सम प्रति हे. का प्रयोग करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।
  • पोटाश की आपूर्ति 33 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश से की जा सकती है।
  • जिन क्षेत्रों में जस्ते की कमी है वहाँ 15-20 किग्रा. जिन्क सल्फेट/हे. देना लाभकारी है।

अरहर में बीज शोधन कैसे करें?

  • मृदा जनित (उकठा एव जड़ गलन) रोगों से बचाव के लिए 2.0 ग्राम थीरम + 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 3.0 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए।
  • बीजशोधन बीजोपचार से 2-3 दिन पूर्व करें। अथवा ट्राईकोडर्मा द्वारा बीज शोधन 10 ग्रा. / कि.ग्रा बीज की दर से राइजोबियम कल्चर की भाँति करें।

अरहर में बीजोपचार कैसे करें ?

  • एक पैकेट (250 ग्राम) राइजोबियम कल्चर 10 किग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है।
  • बुआई के 8-10 घंटे पहले, 50 ग्राम गुड़ अथवा चीनी को आधा लीटर पानी में घोल लेना चाहिए।
  • घोल को गर्म करके ठण्डा कर इसमें एक पैकेट राइजोबियम कल्चर अच्छी तरह डण्डे से चलाकर मिला देना चाहिए।
  • बाल्टी में 10 किग्रा. बीज डालकर घोल में मिला देना चाहिए ताकि राइजोबियम कल्चर बीज की सतह पर चिपक जाए।
  • उपचारित बीजों को छाया में सुखा लेना चाहिए।
  • उपचारित बीजों को धूप में न सुखायें
  • राइजोबियम से बीजोपचार के बाद कवकनाशी से बीज शोधन न करें।

अरहर की मेड़ पर बुआई :

भारी मृदा एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में अरहर की बुआई मेड़ों पर करने से पैदावार अधिक मिलती है।

मेड़ों पर बुआई करने से सिंचाई में पानी की मात्रा में 25-30 प्रतिशत की कमी होती है।

अरहर में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?

  • प्रथम 60 दिनों में खेत में खरपतवार की मौजूदगी अत्यन्त नुकसानदायक होती है।
  • हैण्ड हो या खुरपी से दो निकाइयाँ करें। प्रथम बुआई के 20-25 दिन बाद एवं द्वितीय 45-60 दिन बाद। इससे खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के साथ-साथ मृदा में हवा के संचार में वृद्धि होने से फसल एवं सह-जीवाणुओं की वृद्धि हेतु अनुकूल वातावरण तैयार होता है।

अरहर के साथ सहफसली खेती का वर्णन करें ?

दीर्घकालीन अरहर की 2 पंक्तियों के बीच ज्वार, मक्का, मूंगफली अथवा उर्द की अन्तः फसल ली जा सकती है। यह आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है तथा दैवीय विपदाओं से बचाव भी प्रदान करती है।

अरहर की खेती मेंड़ (रिज) पर करने से क्या लाभ है ?

  • जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है तथा पानी का जमाव हो जाता है, वहाँ अरहर की बुआई 45-60 से.मी. की दूरी पर बनी मेंड़ों पर करने से काफी लाभ होता है।
  • कूंड़ो / नाली द्वारा जल के अच्छे निकास से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है,
  • फाइटोफ्थोरा बीमारी का प्रकोप कम होता है 
  • पौधों की वांछित संख्या बनी रहती है।

अरहर में सूत्रकृमि जनित रोगों की रोकथाम कैसे करें ?

  • ग्रीष्म ऋतु में खेत को सिंचाई के बाद गहरा जोतें। तेज धूप और गर्मी से सूत्रकृमि व इनके अण्डे नष्ट हो जाएगें।
  • फसल चक्र में धान्य फसलों का उपयोग सूत्रकृमि की समस्या को कम करता है।
  • नीम की खली 500 कि./हे. की दर से या नीम के बीज का चूर्ण 50 कि./ग्रा. हे. की दर से बुआई के समय मृदा में मिलाने पर सूत्रकृमि जनित रोगों में कमी आती है।

अरहर में लगने वाले फली मक्खी/ फली भेदक कीटों से बचाव कैसे करें?

  • फली मक्खी तीन अवस्थाओ में (क्रमशः अण्डा, लार्वा तथा प्यूपा) फली के अन्दर पाई जाती है। इसलिए इसकी विभिन्नता में सर्वांगी कीटनाशी अधिक उपयोगी सिद्ध हुए है। 5 प्रतिशत ग्रसित दाने को फली मक्खी के आर्थिक क्षति स्तर की दशा में मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी., डायमेथोएट ई0सी0 (प्रत्येक 1 किलो/ ली. पानी या क्लीनम 25 ई.सी. 2 मिल / जली पानी का क्रमशः तीन छिड़काव, पहल फली शुरू होते ही, दूसरा तथा तीसरा छिड़काव दस दिन के अनतराल पर किये जाने से फली मक्खी को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  • उपरोक्त संस्लेषित रसायनों के छिड़काव से पहले यदि हो सके तो निबौली का सत् 5 प्रतिशत (1 किग्रा. निबौली बीज चूर्ण्/20 ली. पानी) या इसके व्यावसायिक उत्पाद जैसे निम्बीसीडीन नीम गोल्ड नीमाजाल, नीम गार्ड नीमार्क नीमरिच आदि का 2-3 मि/ली. पानी में घोलकर  600-700 लीटर घोल/हे. दस दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव फसल में फलिया बनते ही करने से फलीमक्खी आक्रमण से बचाव किया जा सकता है। संशलेषित रसायनों का प्रयोग फलीमक्खी के गम्भीरता/प्रयोग की दशा में आवश्यकतानुसार ही करें।
  •  
  •  चना फलीभेदक कीट के प्रकोप का पूर्वानुमान यौन रसायन आकर्षण जाल से किया जा सकता है। इससे प्राप्त सूचना पूरे गॉव या क्षेत्र के लिए एक जैसी होती है। एक हे. क्षेत्र में 3-4 जाल लगाने चाहिए। जैसे ही तीन से 5 नर पंतिगे जाल में 3-4 दिन लगातार आने लगें, तो आनी फसल को बचाने के लिए कीट नाशी रसायनों के छिड़काव/भुरकाव/भुरकाव अथवा अन्य नियंत्रण विधि के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
  •  चना फली भेदक एवं अन्य कीट समूह को नियन्त्रित करने में निबौली का सत् (एन.एस.के.ई.) काफी प्रभावशाली रहता है। इसके लिए निबौली को खरल याओखली में खूब बारीक कूट लें और बारीक कपड़े में पोटली बनाकर शाम को पानी में भिगो दें। सुबह पोटली को दबा-दबाकर सफेद दूधिया रस निकाल लें। शेष बचे पदार्थ को फेंक दें। इस तरह उपलब्ध घोल में एक प्रतिशत सस्ता साबुन मिलाकर फसल पर 5 प्रतिशत निबौली सत् का छिड़काव करें।
  • चना फली भेदक कीट के नियंत्रण के लिए एन.पी.वी. (न्यूक्लीयर पाली हाइड्रोसिस विषाणु) काफी कारगर पाया गया है। एक हे. क्षेत्र में 500 लार्वा तुल्यांक के 3 छिड़काव करने से प्रभावशाली नियंत्रा हो जाता है। इसका छिड़काव प्रातः या सांयकाल करना चाहिए। इसका प्रयोग बहुत आसान और अन्य कीट रसायनों की तरह होता हैं। एन.पी.वी. बहुत ही विशिष्ट होता है और चना फलीभेदक की सूंड़ी को मारता है। यह अन्य परजीवी, परभक्षी लाभदायक कीड़ों एवं वातावरण के लिए सुरक्षित होता है।

अरहर में उकठा रोग की रोकथाम कैसे करें ?

उकठा अवरोधी प्रजातियां जैसे नरेन्द्र अरहर-1 नरेन्द्र अरहर-2, अमर तथा मालवीय अरहर-6 की बुआई  करें। बीज-शोधित करके बोयें।

मृदा का सौर्यीकरण करें। इसके लिए मई-जून में खेत की जुताई करके छोड़ दें। तेज धूप से मृदा में रहने वाले जीवाणु नष्ट हो जायेंगे और रोग की संभावना कम हो जायेगी।

अरहर की ज्वार के साथ अंतः फसली खेती  करें।

अरहर का उचित भण्डारण कैसे करें ?

भण्डारण हेतु दानों में नमी 9-10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन की दर से प्रयोग करें।

अरहर की उन्नत प्रजातियों के बीज कहॉ से प्राप्त किये जा सकते हैं ?

अरहर की उन्नत प्रजातियों के बीज निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त किये जा सकते हैं

  • प्रदेश बीज विकास निगम के विक्रय केन्द्र
  • विभिन्न कृषि विश्‍वविद्यालय
  • भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर
  • कृषि विज्ञान केन्द्र
  • राष्ट्रीय बीज निगम के विक्रय केन्द्र
  • ब्लाक स्तर पर विकास खण्ड अधिकारी के कार्यालय
  • साधन सहकारी समिति।

दलहन उत्पादन में भारत का प्रथम राज्य कौन सा है?

भारत में सबसे ज्यादा (77 प्रतिशत) दलहन उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यो में मध्य प्रदेश (24 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश(16 %), महाराष्ट्र(14%), राजस्थान(6%), आन्ध्र प्रदेश (10%) और कर्नाटक (7 प्रतिशत) राज्य है ।

हमारे देश में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

मध्य प्रदेश अन्य भारतीय राज्यों में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक 32.14 प्रतिशत है। राजस्थान देश में 13 प्रतिशत दालों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक था।

दलहन उत्पादन में राजस्थान का कौनसा स्थान है?

राजस्थान दलहन उत्पादन में देशभर में अव्वल

निम्नलिखित में से कौन सा राज्य भारत में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है?

वित्तीय वर्ष 2022 में राजस्थान अन्य भारतीय राज्यों में 19 प्रतिशत से अधिक दालों का सबसे बड़ा उत्पादक था। मध्य प्रदेश उस वर्ष देश में लगभग 18 प्रतिशत दलहन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक था।