जगन्नाथ कविता के कवि कौन हैं?... Show
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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions जगरनाथ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. इस संबंध में कवि जगरनाथ भाई से प्रश्नोत्तर की आकांक्षा लिए हुए पत्र शैली में कविता के माध्यम से संवाद स्थापित कर अपनी शंका-समाधान चाहता है। प्रश्नोत्तर की जगह जगरनाथ भाई की खामोशी उसे चिन्ता में डाल देता है और उसका ध्यान सामाजिक विषमता से होने वाली गड़बड़ियों पर आकृष्ट हो जाता है। बौद्धिक विकास के क्रम में मानवीय जीवन में। जो उतार-चढ़ाव प्रतिबिम्बित होता है, वह गड़बड़ी का स्पष्ट संकेत है। प्रश्न 2. पालतू सुग्गे की तुलना में बनसुग्गे केवल देखने और क्षति पहुँचाने के लिए है। समाज में पल रहे ललबुओं की फौज भी सामाजिक विद्रूपता फैलाती हैं, उनसे समाज किसी प्रकार लाभान्वित नहीं हो सकता। बनसुग्गों के समान ही ये कभी यहाँ और कभी वहाँ निरूद्देश्य भटकते हैं। इन सामाजिक बनसुग्गों के रहने और नहीं रहने से कोई तब्दिली नहीं आ सकती, ऐसा कवि का अभिमत है। इन पंक्तियों में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का कुशलता पूर्वक प्रयोग हुआ है। ‘बनसुग्गों’ सामाजिक ललबबुओं का, ‘पांत’ जमात का उपमान है। ‘बनसुग्गा’ भोजपुरी भाषा का शब्द है। ‘ललबबुओं के लिए यह सुन्दर व्यंगात्मक प्रयोग है। भाषा, शैली और शिल्प पर चौकन्नी सजगता के कारण गहरे यथार्थ बोध का स्वाभाविक संप्रेषण होता है। कवि ने जीवन के मूल्यों में हास की ओर संकेत किया है। साथ ही समाज में पल रहे ललबबुओं पर अपने व्यंगवाणों की वर्षा की है। कवि केदानाथ सिंह ने इन पंक्तियों में बनसुग्गों पर कटाक्ष; क्रान्तिकारी हथौड़े से नहीं बल्कि मृत्यु संशोधन, निपुण वैध की भाँति रोगी की नाजुक स्थिति की ठीक-ठाक जानकारी प्राप्त कर उसकी रूची के अनुसार उचित पथ्य की व्यवस्था की है, जिससे इन पंक्तियों की जीवंतता सहज की दृष्टिगोचर होता है। प्रश्न 3. अचानक कवि को आकाश में उड़ते हुए लाल-पीले डैनेवाले पक्षियों अर्थात् मनुजता के पुजारी की ओर जाता है और उसे आशा की किरण स्पष्ट नजर आती है। निराशा का बादल छूटते ही मानव-मन आशा की सप्तरगिनी सपने देखकर सहज ही आत्मविभोर हो जाता है। वह पीछे घूमकर नहीं देखना चाहता अर्थात निराशा के अंधकूप में वह पुनः नहीं जाना चाहता है। मानव स्वभाववश कवि आसमान में लाल-पीले डैने वाली पक्षियों (आशा की किरण) को देखकर बनसुग्गों (निराशा की बदली) की उपेक्षा करता है। प्रश्न 4. भाई जगरनाथ की ओर आशा पूर्ण निगाहों से देखते कवि को उनके चेहरे पर दुनिया भर की मूक बेबसी और लाचारी स्पष्टतः झलकती है। जगरनाथ भाई का मौन से उत्पन्न जबाब जिसमें आधुनिक जीवन के जड़ तक फैल चुके ईष्या, द्वेष, संकीर्णता, स्वार्थपरता, घृणा तथा सामाजिक विषमता के चिह्न का स्पष्ट छाप उभर आती है। जगरनाथ भाई को उत्तर न देकर खामोशी धारण कर लेने के कारण कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने का संशय उत्पन्न होता है। प्रश्न 5. प्रश्न 6. इस प्रकार कवि व्यवस्था की गड़बड़ी के कारण उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की कर्तव्यहीनता पर चोट करता है। व्यवस्था की गड़बड़ी के कारण व्यक्ति कार्य-निष्पादन निष्ठा के साथ नहीं करता है। चूंकि लेखक भी इसी व्यवस्था का एक अंग है, जिसमें व्यक्ति अपने जिम्मेवारी को ढंग से नहीं निभा पाता। कवि चाहता है कि उच्च पदासीन लोग अपने आदर्शों से समाज में एक मिसाल कायम करना चाहिए परन्तु ऐसा संभव नहीं हो पाता है, यह कवि के लिए असंतोष का विषय है। प्रश्न 7. इस प्रकार गँवई जिन्दगी में शहरी जीवन की अपेक्षा हीन-भावना की बहुलता जगरनाथ भाई के मौन और कातर नेत्रों से सहज की दृष्टिगोचर होता है। जगरनाथ की खामोशी पूर्ण जाना शहर और गाँव के बीच की खाई को परिलक्षित करता है। भाई जगरनाथ जो कवि के बचपन का साथी है। समय के अन्तराल ने जहाँ एक को जीवन की बुलन्दी के शिखर पर पहुंचा दिया है, वहीं दूसरा दारूण-दशा झेलने को अभिशप्त मानवीय जीवन के बीच फैल चुके स्वार्थपरता, संकीर्णता, द्वेष, घृणा, अविश्वास का प्रतीक बनकर जगरनाथ भाई कवि को चीरता-फाड़ता जाता हुआ दिखाई पड़ता है। प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रस्तुत व्यंगात्मक कविता का जगरनाथ का काल्पनिक पात्र है। सम्पूर्ण कविता पर जगरनाथ के जीवन का सारगर्भित तथ्य छाया हुआ है। वह कविता के कवि का लंगोटिया दोस्त है। भाई जगरनाथ कविता के मूल कथ्य का केन्द्र बिन्दु है जिसके माध्यम से कवि सामाजिक परिवर्तन और उसके प्रभाव को इंगित करता है। सम्पूर्ण कविता जगरनाथ के इर्द-गिर्द ताना-बाना बुनती दृष्टिगोचर होती है। कवि ने जगरनाथ के माध्यम से ग्रामीण और शहरी वातावरण के बीच की खाई, व्यवस्था का दोष तथा ग्रामीण जीवन की संघर्षपूर्ण किन्तु निश्चल हृदय की संवेदनशीलता हमारे अंतस् पर रेखांकित किया है। साथ ही साथ शीर्षक ‘जगरनाथ’ गाँव की जिन्दगी की महत्ता को प्रदर्शित करता है और गवई भाषा के प्रति कवि की श्रद्धा को भी परिलक्षित करता है। प्रश्न 10. कविता का शीर्षक जगन्नाथ के बदले ठेठ भोजपुरी गवई शब्द ‘जगरनाथ’ का प्रयोग कर कवि ने ग्रामीण भाषा के प्रति श्रद्धा को व्यक्त किया है। प्राध्यापक जैसे उच्च पद पर पदासीन और शहरी वातावरण में रहने वाला कवि गाँव-गवई के संगी-साथियों को नहीं भूला है। लम्बे अरसे के बाद भाई जगरनाथ से उसकी मुलाकात होती है तो वह आत्मीय भाव से पूछता है कैसे हो भाई जगरनाथ? कितने बरस बाद तुम्हें देख रहा हूँ। कवि बाल्यावस्था में देखे गए नीम के पेड़ के नीचे बँधी बकरी जो कभी रहा करती थी उसको भी नहीं भूला है। जन्मभूमि के एक-एक वस्तु से कवि अपना प्यार और लगाव स्पष्ट करते हुए भाई जगरनाथ से पूछता है- कैसा है वह नीम का पेड़ कवि प्रकृति के प्रति प्रेम प्रदर्शित करते हुए उसके अनूठे उपहार ‘आम’ की चर्चा करता है। कवि कहता है कि आम का खुशबू और निराला स्वाद मन को आनंदातिरेक और वातावरण को सुवासित करता है। आम की महत्ता का चर्चा करते हुए कवि कहता है- क्या शुरू हो गया आम का पकना? इस प्रकार प्रस्तुत कविता गँवई और कसबाई जिन्दगी की विस्मयजनक वास्तविकता का उत्कृष्ट मानवीय दस्तावेज है। यह कविता हमारे जातीय और सामाजिक जीवन का दर्पण भी है। यह हमारे संक्रमणशील समाज के अंत: सघंर्षों तथा उसकी जीजीविषा का साक्ष्य भी है। प्रश्न 11. प्रश्न 12. गुम्मट के माध्यम से कवि का अभीष्ट है-दलित, शोषित और पीड़ित ग्रामीण कृषक-जीवन की संवेदनाओं को लोगों के सामने रखना तथा उसकी मार्मिकता के संबंध में कुछ करने और सोचने के लिए उन्हें बाध्य करना। कविता में जगरनाथ के ललाट पर उग आए गुम्मट का विवरण सारगर्भित और उद्देश्यपूर्ण है। प्रश्न 13. प्रश्न 14. कवि प्रश्नों के माध्यम से बौद्धिक विकास के क्रम में मानवीय जीवन में उतार-चढ़ाव की जानकारी लेना चाहता है। भाई जगरनाथ के उत्तर से ही कवि को ग्राम-परिवेश का पूरा सामाजिक, आर्थिक तथा परिवारिक परिदृश्य हमारे सामने साकार करना चाहता है। प्रश्नों के प्रयोग से यह कविता काल्पनिक तथा अस्वाभाविक न होकर बिल्कुल स्वाभाविक तथा यथार्थवादी बन गया है। कवि के द्वारा प्रश्नवाचक चिन्हों के प्रयोग ने इस कविता पर कहीं भी आदर्श का रंग नहीं चढ़ने दिया है। साथ ही प्रश्नों का भरमार कर कवि ग्रामीण समस्याओं के प्रति अपनी खोजी सोच को परिलक्षित करने का सार्थक प्रयास किया है। प्रश्न 15. प्रस्तुत शीर्षक ‘जगरनाथ’ कवि के गाँव की जिन्दगी के प्रति लगाव तथा गाँवों में व्याप्त साधनहीनता को प्रतिबिंबित करता है। कवि ने जगन्नाथ के स्थान पर उसका तद्भव रूप जगरनाथ का प्रयोग कर ग्रामीण भाषा के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया है। यहाँ प्रस्तुत कविता का शीर्षक ‘जगरनाथ’ ऊपर कही बातों की तस्दीक-सी करती है। जगरनाथ भाषा की बात। प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. उत्तम पुरुष-जिस सर्वनाम से वक्ता या लेखक का बोध हो। जैसे-मैं, हम। मैं खाता हूँ। हम टहलते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर जगरनाथ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. जगरनाथ लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. जगरनाथ अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. जगरनाथ वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. जगरनाथ कवि परिचय – केदारनाथ सिंह (1932) प्रश्न- वस्तुत: नयी कविता आन्दोलन का पाठक वर्ग मिला ही नहीं। सही ढंग के आलोचक भी . नहीं मिले। तीनों ही सप्तकों के कवियों ने अपने तरीके से अपने आन्दोलन को सार्थक बताया और स्वयं को स्थापित, व्यख्यायित किया, दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सबसे ज्यादा ध्यान बिम्बों के निर्माण और कविता में गतिशील नाटकीय रचना पर देते थे। सौभाग्य से केदारनाथ सिंह की कविता में क्लिष्टत्व और संश्लेषण के बावजूद एक अपनापन मिलता है। इनके बिम्ब श्रम साध्य नहीं है। इनके प्रतीक सर्वथा अपरिचित नहीं है। इसका कारण है कि इनका सीधा सरोकर गाँव से है। ग्रामीण संस्कृति संस्कार से इनका नाभि-नाल का सम्बन्ध है। गाँव से सम्बद्ध परिचित, परन्तु अधूरे इनके विम्ब इनको सम्भावनाओं से सम्पन्न कवि बनाते हैं। उनका उत्तरवर्ती जीवन तथा कथित बुद्धिजीवियों के बीच, दार्शनिकों, चिंतकों के बीच भले ही गुजरता रहा कि नागार्जुन की तरह इनके हृदय में, मन प्राण में इनका ‘बलिया’ (यू. पी.) बसा रहा है। “मांझी का पूल” कभी विस्तुत नहीं हो सका। जगरनाथ हो अथवा नूर मियां हो अथवा अपने गाँव-जवार का कोई हो, यदि वह हृदय की तंत्री को झकार चुका है, मन की बगिया को महका चुका है अथवा जिसने अपने चतुर्दिक वातावरण को अपनी उपस्थिति से प्रभावित प्रोत्साहित किया है तो उसे केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता का विषय बना लिया है। केदारनाथ सिंह में तीन बातें स्पष्ट होती हैं-(1) गहरा यथार्थबोध, (2) अनुभूति का वास्तविक धरातल और (3) बेजोड़ टटके बिम्बों के माध्यम से कविता को गतिशीलता प्रदान करना। कवि ने एकालाप शैली अपनायी है। किन्तु यह विलाप की तरह नहीं है। मैं, तुम, वह तीनों या कोई दो अवश्य उपस्थित है। जगरनाथ शीर्षक कविता में कवि और गांव का जगरनाथ दोनों है। छोटी-सी कविता जिसमें हिमालय की दिशा तय होती है, वहाँ भी बच्चा (वह) के साथ ‘मैं’ उपस्थित है। नूर मियां कविता में नूर मियां के साथ एक ‘तुम’ भी उपस्थित हैं, जिसके साथ केदारनाथ, नूर मियां और उनके बहाने रामगढ़ बाजार, मदरसा, इमली का पेड़, भूली हुई स्लेट, उन्नीस का पहाड़ा सबकी याद ताजा करते हैं। किन्तु साथ ही वर्तमान से जुड़े भी रहते हैं। पाकिस्तान के हालात पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहते हैं “हर साल कितने पत्ते गिरते हैं पाकिस्तान में।” यहाँ पत्ता गिरना सत्ता परिवर्तन का संकेत करता है, जिसके पीछे असंख्य बेकसूर लोग मारे जाते हैं। “बच्चा तुम्हारा गणित कमजोर है” यह कहकर पड़ोस की सच्चाई से मुँह फेरने की भारत की नीति पर प्रहार है कि यह पाक का निजी मामला है। केदारनाथ सिंह की कविता में एक ही साथ विरोधी प्रवृत्तियाँ नजर आती हैं। वे अतीत की स्मृति को जीवित भी रखना चाहते हैं और अपनी वर्तमान स्थिति से जुड़े भी रहना चाहते हैं। जगरनाथ के ललाट के गुम्मट से सहानुभूति भी है, और उससे पीछा भी छुड़ाना चाहते हैं। क्योंकि जगरनाथ की उपस्थिति मात्र से उनका व्यक्तिगत अस्तित्व खडित हो रहा है। वस्तुतः हर जगह केदारनाथ सिंह परिवेश, चरित्र और सम्बन्धों का एक ही सच देखते हैं, जहाँ उनपर समय और यथार्थ की मार पड़ती रहती हैं और वे उसे झेलते-भुगतते अपने को सुरक्षित रखने की संघर्ष में लगे भिड़े हैं। जगरनाथ कविता का सारांश प्रश्न- बहुत दिनों के बाद जगरनाथ भाई से कवि को भेंट हुई है जिसके ललाट पर गुम्मट-सा उग आया है जो जगरनाथ भाई के कठिन कर्मठता और दीनता का प्रतीक है। कवि बाल्यावस्था में देखे गए नीम के पेड़ के नीचे बंधी बकरी जो कभी रहा करती थी, उसको भी नहीं भूला है। इन प्रतीक चिह्नों के माध्यम से कवि का स्पष्ट करना चाहता है कि गाँव-गाँवई की चीजों को आज भी अपनी स्मृति-पटल में संजों कर रखा है। केदार नाथ सिंह वृति से प्राध्यापक है जो जगरनाथ भाई से वार्तालाप के क्रम में स्पष्ट होता है। इसी क्रम में वे आधुनिक सुख-सुविधा रूपी ‘बनसुग्गों की पांत’ को अनावश्कय बताते हुए समाज में अपने परिश्रम से प्राप्त वस्तुओं की जीवन के लिए आवश्यक बताया है। साथ ही दृष्टांत रूप में गाँव-गवई में उपजाए जाने वाले आमो की खुशबू एवं स्वाद का सुन्दर वर्णन किया है। कवि-यद्यपि सुख-सुविधाओं की आधुनिकतम वस्तुओं को निस्सार बताकर गवई जीवन को सुस्वादु बताया है, तथापि जगरनाथ भाई अपनी गवई स्वभाव से उबर नहीं पाते जिस कारण होठ तो फड़फड़ाता है किन्तु शब्द प्रस्फुटित नहीं हो पाते। फलतः जगरनाथ भाई निःशब्द ही चले जाते हैं। जिसे देखकर कवि का हृदय फट पड़ता है क्योंकि कवि ने अपने-आप को जगरनाथ भाई के स्तर में लाकर बीच की दूरी को पाटने का जो अथक-प्रयास किया था वह हो न सका। वस्तुत: इस कविता से यह शिक्षा मिलती है कि गवई जीवन में शहरी जीवन की अपेक्षा व्याप्त हीन-भावना बहुलता से दृष्टिगोचर होती है, जिसको दूर करने की चिन्ता विवेकियों को साथ-साथ सरकारी-व्यवस्था को भी होनी चाहिए। वास्तव में शहरी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ गाँव के क्षेत्रों का समुचित विकास करके ही भारत के विकास का सपना साकार हो सकता है। कठिन शब्दों का अर्थ जगरनाथ काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. कैसे हो मेरे भाई जगरनाथ …………… बँधती थी तुम्हारी बकरी? फिर वह बच्चों के बारे में पूछता है, दरवाजे के नीम गाछ के बारे में पूछता है जहाँ जगरनाथ की बकरियाँ बँधी रहती थीं। इस पूरे कथन में कवि ने माथे के गुम्मट, बच्चों के समाचार तथा दरवाजे के नीम वृक्ष का हाल पूछकर स्वाभाविकता लाने का प्रयास किया है। वहीं भाई सम्बोध न के द्वारा आत्मीयता स्थापित कर सम्बन्ध का अनौपचारिक बनाया गया है। संवाद की आत्मीयता समय के लम्बे अन्तराल से उत्पन्न तथा स्तर-भेद से उत्पनन औपचारिकता को तोड़ती है। 2. मैं तो बस ठीक ही हूँ ………………. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। इन पंक्तियों में कवि अपना हाल बताते हुए कहता है कि मैं ठीक हूँ, खाता-पीता हूँ और क्लास में पढ़ा आता हूँ, अवसर मिलता है तो दिन में भी एकाध नींद सो लेता है। इन बाहरी बातों के अतिरिक्त वह अपनी बौद्धिक सामाजिक जागरूकता प्रदर्शित करने के लिए यह भी जोड़ देता है कि मुझे हमेशा लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। कवि का संकेत सामाजिक राष्ट्रीय जीवन में आ रही गिरावट, जीवन की भागदौड़ और आर्थिक रवैये से उत्पन्न विकलता और उनके कारण मूल्यहीनता की बाढ़ है। 3. पर छोड़ो तुम कैसे हो? ………………. चलती ही रहती है जिन्दगी। 4. पर यह भी सच है मेरे भाई ………………. बड़ी राहत मिलती है जी को। इसे स्वीकार करते हुए लेखक कहता है कि वन-सुग्गों को देखने का आग्रह दबा देने के बावजूद सच्चाई यही है कि जब कभी आसमान में लाल या पीले या किसी रंग का कोई पक्षी उड़ता हुआ दीख जाता है तो मन को राहत अनुभव होती है। यहाँ लेखक यह बताना चाहता है कि मन की नैसर्गिक इच्छाओं की पूर्ति का अवसर न मिलने पर उनके प्रति आग्रह घट जाता है और एक उदासीन भाव आ जाता है। लेकिन उनके प्रति सम्मोहन कम नहीं होता। अवसर मिलने पर वे इच्छाएँ यदि पूर्ण होती हैं तो मन को जो आनन्द प्राप्त होता है वह जीवन में सन्तुष्टि और सन्तोष देता है। 5. पर यह तो बताओ ………………. भर जाती है दुनिया। इन पंक्तियों में लक्ष्य करने की बात यह है कि कवि के मन में जगरनाथ के प्रति अभिरुचि और संवेदना कम है तथा वर्षा और आम की रस-गंध में ज्यादा रुचि है। यह बतलाता है कि कवि की दृष्टि जगरनाथ में जगरनाथ से ज्यादा महत्त्व वनसुग्गे, बारिश और आम का है। इनके बारे में कहने के लिए उसने जगरनाथ का बहाना बनाया है। 6. पर यह क्या? ………………. जाओ ………………. जाओ। मगर जगरनाथ कुछ बोलता नहीं केवल एक विचित्र दृष्टि से देखता है। कवि को लगता है कि जगरनाथ को मेरी आत्मीयता भरी आतुरता पर विश्वास नहीं हो रहा है, उसे झूठ की गन्ध अनुभव हो रही है। यह कवि के सन्तुलन को गडबड़ा देता है। वह पूछता है क्या तुम्हें जल्दी है? क्या काम पर जाना है? और फिर बिना उसके मन्तव्य जाने अपनी ओर से अनुमति भी दे देता है जाओ मेरे भाई जाओ। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। इन पंक्तियों से यह धारणा बनती है कि कवि को स्वयं यह आत्मीयता-प्रदर्शन नकली लगता है। उसकी सारी जिज्ञासाओं में बनावटीपन और जगरनाथ के बहाने अपनी बात कहने की आतुरता है जो उसकी अभिजात वृद्धि और कृत्रिम सहानुभूति की पोल खोल रही है। 7. और इस तरह ………………. जगरनाथ दुसाध। जगरनाथ इस भेद को समझता है कि दोनों दो धरातल के जीव हैं जिनके जीवन-स्तर और बोध में अन्तर है। इस विषमता के कारण जगरनाथ के मन में कवि के लिए कोई आत्मीयता नहीं है। वह प्रतिक्रिया तो व्यक्त नहीं करता लेकिन लगातार चुप रहकर और चुपचाप चले जाकर सारी बातें कह जाता है। उसकी न देखने वाली दृष्टि की धार से चीरा जाकर कवि आहत हो उठता है। जगन्नाथ शीर्षक कविता का नायक कौन है?कविवर केदार नाथ सिंह द्वारा विरचित 'जगरनाथ' शीर्षक कविता का नायक भाई जगरनाथ हैं।
कवि भाई जगन्नाथ से क्या कहता है?Expert-Verified Answer. कवि भाई जगरनाथ से से हुई बातचीत का वर्णन: वह समाज के बारे में बताते हुए कहता है की उसे कभी भी झूठ का सहारा लेनी की ज़रूरत नहीं है और समाज को बदालने के लिए खुद को बदलना पड़ता है।
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