वेदों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई? - vedon ke anusaar prthvee kee utpatti kaise huee?

वेदों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई? - vedon ke anusaar prthvee kee utpatti kaise huee?

इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई, वेद अनुसार सृष्टि की रचना भगवान ने कैसे किया, और ब्रह्माण्ड के बनने का क्रम क्या है? यह प्रश्न प्रायः हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) से पूछा जाता है। इसका उत्तर बड़ा सरल तथा वैज्ञानिक आधार पर भी है। 'हिन्दू धर्म अनुसार ब्रह्माण्ड कैसे बना' इस पर भौतिक वैज्ञानिक अगर शोध करे, तो वे शायद सिद्ध भी कर दे। सबसे पहले वेद अनुसार यह समझिये की तीन नित्य (सदा से थे है और रहेंगे) तत्व है। वेद ने कहा -

एतज्ज्ञेयं नित्यमेवात्मसंस्थं नातः परं वेदितव्यं हि किञ्चित्।
भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत्॥१२॥
- श्वेताश्वतर उपनिषद् १.१२

भावार्थ:- तीन तत्व है। अनादि (जिसका प्रारम्भ न हो), अनंत, शाश्वत (सदैव के लिए)। एक ब्रह्म, एक जीव, एक माया।

माया ब्रह्माण्ड की शक्ति है या ऐसा भी कह सकते है की भौतिक ऊर्जा शक्ति है। जिससे यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड बना है। आत्मा का निर्माण माया से नहीं हुआ है और न ही ईश्वर से हुआ है। क्योंकि उपर्युक्त वेद मंत्र में यही कहा गया है की तीन नित्य तत्व है जो अनादि (जिसका प्रारम्भ नहीं हुआ) है। लेकिन यह अवश्य है कि आत्मा और माया की सत्ता भगवान के कारण है। इसको वेद तथा गीता ने इस प्रकार कहा -

श्वेताश्वतर उपनिषद् १.१० 'क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मानावीशते देव एकः' अर्थात् क्षर (माया), अक्षर (जीव) दोनों पर शासन करने वाला भगवान है। अतएव माया और जीव का भगवान अध्यक्ष है।

भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥॥
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥५॥
- गीता ७.४-५

भावार्थ:- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात् मेरी जड़ प्रकृति (माया) है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत् धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात् चेतन प्रकृति (आत्मा) जान।

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई?

जैसा ऊपर बताया गया है कि माया भगवान की ही शक्ति है तथा वो किसी दिन बनी नहीं है और वो अनादि है, तो उसी माया की शक्ति से यह संसार प्रकट हुआ है। वैसे तो माया जड़ है अर्थात् अपने आप कुछ नहीं कर सकती। परन्तु भगवान अपनी इच्छानुसार माया को सक्रिय करदेते है। हालांकि माया एक शाश्वत ऊर्जा और भगवान की शक्ति है, इसलिए सक्रियण की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में, माया एक दिमाग रहित और निर्जीव ऊर्जा है। यह ब्रह्मांड को प्रकट करने के लिए, स्वयं को सक्रिय करने का निर्णय नहीं ले सकती है। परन्तु जब भगवान माया को सक्रिय करते है, तो अपने स्वयं के अंतर्निहित भौतिक गुणों के अनुसार - माया ब्रह्माण्ड के रूप में प्रकट होती है।

ब्रह्माण्ड के बनने का क्रम क्या है?

तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः। आकाशाद्वायुः।
वायोरग्निः । अग्नेरापः। अद्भ्यः पृथिवी।
पृथिव्या ओषधयः। ओषधीभ्योन्नम्। अन्नात्पुरुषः।
स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः। तस्येदमेव शिरः।
अयं दक्षिणः पक्षः। अयमुत्तरः पक्षः।
अयमात्मा। इदं पुच्छं प्रतिष्ठा।
तदप्येष श्लोको भवति॥१॥
- तैत्तिरीयोपनिषद् २. १

वेदों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई? - vedon ke anusaar prthvee kee utpatti kaise huee?

भावार्थ:- निश्चय ही (सर्वत्र प्रसिद्ध) उस, इस परमात्मा से (पहले पहल) आकाश तत्व उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, (और) जल तत्व से पृथ्वी तत्व उत्पन्न हुआ, पृथ्वी से समस्त औषधियाँ उत्पन्न हुई, औषधियों से अन्न उत्पन्न हुआ, अन्न से ही (यह) मनुष्य शरीर उत्पन्न हुआ, वह यह मनुष्य शरीर, निश्चय ही अन्न-रसमय है, उसका यह (प्रत्यक्ष दीखने वाला सिर) ही (पक्षी की कल्पना में) सिर है, यह (दाहिनी भुजा) ही, दाहिनी पंख है, यह (बायीं भुजा) ही बायाँ पंख है, यह (शरीर का मध्यभाग) ही, पक्षी के अङ्गों का मध्यभाग है, यह (दोनों पैर ही) पूँछ एवं प्रतिष्ठा है, उसी के विषय में यह (आगे कहा जाने वाला) श्लोक है।

इस मंत्र में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ मनुष्य के ह्रदय रूप गुफा का वर्णन करने के उद्देश्य से पहले मनुष्य शरीर की उत्पत्ति का प्रकार संछेप में बताकर उसके अंगों की पक्षी के अंगों के रूप में कल्पना की गयी है। इस मंत्र का भाव यह है कि परमात्मा से पहले आकाश तत्व उत्पन्न हुआ। आकाश से वायु तत्व, वायु से अग्नि तत्व, अग्नि से जल तत्व और जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई। पृथ्वी से नाना प्रकार की औषधियाँ-अनाज के पौधे हुए और औषधियों से मनुष्यों का आहार अन्न उत्पन्न हुआ। उस अन्न से यह स्थूल मनुष्य शरीर उत्पन्न हुआ। अन्न के रस से बना हुआ यह जो मनुष्य शरीर है, उसकी पक्षी शरीर के रूप में कल्पना की गयी है। उपर्युक्त वेद मंत्र में पृथ्वी जल से उत्पन्न होने की बात संछेप में कही गयी है। पृथ्वी का प्राकट्य विस्तार से ऋग्वेद में इस प्रकार कहा है -

भूर्जज्ञ उत्तानपदो भुव आशा अजायन्त। - ऋग्वेदः १०.७२.४

भावार्थ:- पृथ्वी सूर्य से उत्पन्न होती है।

अस्तु, तो भगवान की प्रेरणा से यह ब्रह्माण्ड बनता और प्रलय होता है। यह ब्रह्माण्ड का प्रलय बिलकुल ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति के विपरीत होता है। अर्थात् प्रलय का कर्म - पृथ्वी जल में विलीन हो गयी, जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश भगवान में। अंत में केवल भगवान ही रहते है। आत्मा भगवान के महोदर में रहती है तथा माया जड़ के समान हो जाती है।

वेदों के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माता कौन है?

ब्रह्मा जी ब्रह्म का ही एक स्वरूप है । हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था।

वेदों में ब्रह्मांड के बारे में क्या लिखा है?

नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मण्डल का 129 वां सूक्त है। 'नासद्' (= न + असद् ) से आरम्भ होने के कारण इसे 'नासदीय सूक्त' कहा जाता है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है।

वेदों के अनुसार सृष्टि क्या है?

ऋग्वेद में अनेक ऋषि-मुनियों जैसे - प्रजापति, परमेष्ठी नारायण तथा दीर्घतमा आदि ने सृष्टि रचना की आरंभिक अवस्था का वर्णन किया है। हमारे ऋगवेद में नासदीय सूक्त तथा पुरुष सूक्त में सृष्टि रचना का उल्लेख मिलता है। पुरुष सूक्त के अनुसार विराट पुरुष से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।

सृष्टि में सर्वप्रथम किसकी उत्पत्ति हुई?

भगवान् स्वयंभू ने सृष्टि की उत्पत्ति के लिए सबसे पहले 'नार' जल की उत्पत्ति की। फिर उसमें बीज डाला गया। उससे परम पुरुष की नाभि में एक अंडा निकला।