श्रीयंत्र किस धातु से बनाना चाहिये ? श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करे ?श्रीयंत्र कसी धातु से बना होना चाहिये ? या किस प्रकार का श्रीयंत्र हम अपने घर या ऑफिस में रख सकते है ? या श्रीयंत्र की प्राणप्रतिष्ठा कैसे की जाये ? या प्रश्न कई लोगो के मन में उभरता रहता है | तो आज इस विषय में शास्त्रोक्त सत्य-तथ्य और सप्रमाण में आपको इन सभी प्रश्नो का उत्तर बता रहा हु | Show
" यत्र नास्ति न च तत्र मोक्षो, यत्रास्ति मोक्षो न च तत्र भोगः | श्रीसुंदरी सेवनतत्पराणां भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव || यानि जहा पर भोग है या जो भोग को प्राप्त करता है, वहा पर मोक्ष नहीं है, या जहा पर मोक्ष है वहा पर भोग नहीं है किन्तु समग्र संसार की एक ऐसी विद्या और यन्त्र जिनके पूजन मात्र से भोग-मोक्ष दोनों प्राप्त हो जाते है | और वो है "श्रीविद्या" और "श्रीयंत्र" यानी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये जिनकी सतत आराधना की जाए वो | "तीर्थस्नान सहस्त्रकोटिफलदं श्रीचक्रपादोदकं"| अर्थात अगर श्रीयंत्र के चरणोदक को ग्रहण किया जाए या श्रीयंत्र की चरणसेवा की जाए तो एकहजार तीर्थो में स्नान करने का फल प्राप्त होता है "महाषोडशदानानि कृत्वा यल्लभते फलम | तत्फलं समवाप्नोति कृत्वा श्रीचक्र दर्शनं || सार्धत्रिकोटीतीर्थेषु स्नात्वा यत्फलमश्नुते | लभते तत्फलं भक्त्या कृत्वा श्रीचक्रदर्शनं || महान सोलह दान करने का पुण्य मिलता है केवल श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से | कई कई तीर्थो में स्नान करने का फल प्राप्त होता है केवल श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से | ब्रह्मांडपुराण में तो यहाँ तक कहा हुआ है की श्रीयंत्र सिर्फ जहा होता है सिर्फ वहा ही नहीं लेकिन घर आसपास के लोगो को भी फलदेता है घर के आसपास के वृक्षों को, पशुओ को, भी चमत्कारिक फल मिलता है | इसके अलावा कई कई ग्रंथो में श्रीयंत्र के विषय में प्रमाण दिये हुए है जैसे "ब्रह्मांडपुराण, लक्ष्मीउपनिषद, सौभाग्यलक्ष्मीउपनिषद, तंत्रराजतन्त्र, श्रीविद्यारत्नाकर,दक्षिणामूर्ति, श्रीविद्या रहस्य संहिता, कामकलाविलास, त्रिपुरोपनिषद, ललितसहस्त्र, ऋग्वेद आदि अन्य कई ग्रंथो में इसका प्रमाण मिलता है | " सर्वार्थ साधनं सर्वरोगतो हरमेव च" सभी कार्यो को सिद्ध करने वाला और सर्व रोगो को हरने वाला उत्तम है श्रीयंत्र दर्शन | श्रीयंत्र किस धातु का होना चाहिये ? सबसे बड़ा प्रमाण "तंत्रराजतन्त्र के चतुर्थ पटल के 53 श्लोक से 58 श्लोको में बताया हुआ है" "रत्ने हेमनि रूप्ये च ताम्रे द्रषदि च क्रमात |" अर्थात सोने से बना हुआ श्रीयंत्र, चांदी से बना हुआ श्रीयंत्र या ताम्र से बना हुआ श्रीयंत्र ही श्रेष्ठ है | "कृत्वा श्रीचक्रनिर्माणं स्थापयेत पूजयेदपि" लक्ष्मीकांतियशःपुत्रधनारोग्यादिसिद्धये || श्रीयंत्र की स्थापना और सविधि पूजा से लक्ष्मी-कांति-सामाजिक यश-पुत्र(संतान)-आरोग्य- आदि सभी सिद्धिया प्राप्त होती है | लक्षसागर में भी कहा हुआ है" सुवर्णरचितं यन्त्रं सर्वराजवशंकरं | रजतेन कृतं यंत्रं आयुरारोग्यकांतिदं || ताम्रैस्तु रचितं यन्त्रं सर्वेश्वर्यप्रदं मतं | लोहत्रयोद्भवं यंत्रं सर्वसिद्धिकरं मतं || अर्थात सोने के श्रीयंत्र की स्थापना एवं पूजा करने से सर्व राज वश हो जाता है | चांदी का श्रीयंत्र रखने से आयु लम्बा और स्वस्थ होता है | ताम्र यानी ताम्बे का श्रीयंत्र रखने से सर्व ऐश्वर्य प्राप्त होता है | और अगर इन तीनो को मिलाकर जो यन्त्र बनाया जाता है वो तो जगत की सर्ववस्तु दे देता है इसका तो माहात्म्य भी वर्णन करने में हम असमर्थ है | इसके अलावा लोग जैसे स्फटिक का-पारद का या अन्य कई प्रकार के भी यंत्र रखते है | किस धातु का श्रीयंत्र कभी घर में या कही पर भी नहीं रखना चाहिये ? "सीसकांस्यादिषु पुनः पूर्वोक्तविपरीत कृत | फलकायां पटे भित्तौ स्थापयेन्न कदाचन || स्थापितं यदि लोभेन मोहना ज्ञानतोपि वा | कुलमित्तमपत्यं च निर्मूलयति सर्वथा || अर्थात अगर सीसा,कांस्य, का श्रीयंत्र की पूजा या घर में स्थापना करते है तो कुल का निर्मूलय यानी पुरे कुल का मूल से विनाश हो जाता है | श्रीयंत्र का रंग पीत यानी पीला होना चाहिये | और उसका वजन कमसे कम 200 ग्राम और उससे अधिक जितना ज्यादा हो और यन्त्र बड़ा हो उतना ही श्रेष्ठ और चमत्कारिक फल मिलता है | 1 - भूपृष्ठ - जो सिद्ध जमीं के ऊपर समतल होता है | 2 - मेरुपृष्ठ - एक एक खंड के अनुसार उभरा हुआ | 3 - कूर्म पृष्ठ जो कछुए के पीठ पर स्थापि हो या कछुए सहित बीच से उभरा हुआ हो | मुख्य रूप से यह तीन ही प्रकार शास्त्रोमे है | श्रीयंत्र कैसा बना होना चाहिए ? चतुभिः श्रीकण्ठैः शिवयुवतिभिः पञ्चभिरपि प्रभिन्नाभिः शम्भोर्नवभिरपि मूलप्रकृतिभिः | त्रयश्चत्वारिंशद्वसुदलकलाश्र त्रिवलय त्रिरेखाभिः सार्धं तव शरण कोणाः परिणताः || बिंदुत्रिकोण वसुकोण दशारयुग्मं मन्वस्त्रनागदल शोभितशोडसारं | वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्रीचक्रमेतदुदितं परदेवतायाः || श्रीयंत्र किस शुभ मुहूर्त में लेना चाहिये ? या बनवाना चाहिये ? या स्थापना करनी चाहिये ? श्रीयंत्र को गुरुपुष्यामृत योग, रविपुष्यामृत योग, अक्षयतृतीया,धनत्रयोदशी, दिवाली के दिन यान नववर्ष के दिन इसके अलावा शुक्रवार के दिन एकादशी-त्रयोदशी- और पूर्णिमा को भी श्रीयंत्र को स्थापित कर सकते है | चारो नवरात्र में भी अनुष्ठान पूजा प्राणप्रतिष्ठा का श्रीयंत्र की घर मे स्थापना कर सकते है | ( चैत्र नवरात्री - आषाढ़ नवरात्री - आश्विन नवरात्री - माघ नवरात्री ) श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करे ? प्राण प्रतिष्ठा एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय जिससे लोग परिचित होने के बावजूद भी अपरिचित है | क्युकी ज्यादातर लोगो के घर में जो भी यन्त्र या मुर्तिया होती है वो बिना प्राण प्रतिष्ठा की ही होती है.किन्तु क्या कभी प्राण बिना कोई यन्त्र, या मूर्ति भगवान् कहलाती है या फल देने में समर्थ होती है ? कभी नहीं क्युकी अगर प्राण ही नहीं तो मंत्र, स्तोत्र, पाठ कौन सुनेगा ? अगर यन्त्र या मूर्ति यह सुनेगी ही नहीं तो फल कैसे मिलेगा ? इसी लिए किसी भी मूर्ति या यन्त्र को प्राणप्रतिष्ठित विहीन कभी ना रखे.प्राण प्रतिष्ठा के अलग अलग प्रकार है जैसे अगर कोई बड़ा मंदिर बन रहा है या बड़े मंदिर के लिए मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करनी है तो उसके विधान अलग होते है और वो त्रिदिन साध्य प्रयोग होता है किन्तु हम यहाँ पर घर के मंदिर में रखने वाली मूर्ति और यन्त्र विषय में प्राणप्रतिष्ठा के विषय को उजागर कर रहे है | प्राणप्रतिष्ठा का अर्थ है, जैसे हमारे शरीर में प्राण है वैसे ही प्राण यन्त्र या मूर्ति में हम स्थापित करे और जैसे हमारे शरीर में सभी इन्द्रिया है वैसे ही देवी-देवता यंत्र में इन्द्रिया स्थापित हो | प्राणप्रतिष्ठा में सर्वप्रथम विनियोगादि करना है | विनियोग के लिए अपने दाये हाथ में जल पकडे और विनियोग पढ़े | विनियोगः ॐ अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्म विष्णु महेश्वर ऋषयः ऋग्यजुः सामाथर्वणी छन्दांसि,क्रियामयवपुः प्राणाख्या देवता | ॐ बीजं | ह्रीं शक्तिः | क्रौं कीलकं अस्यां नूतन मूर्तौ प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः | ( यह विनियोग पढ़कर जल को किसी पात्र या भूमि पर छोड़ दे ) सर्वप्रथम अपना बाया हाथ अपने ह्रदय के ऊपर रखे और दाया हाथ भगवान् या मूर्ति के ऊपर रखे थोड़ा सा अंतर रखकर | और निम्न मन्त्रोंका उच्चारण करे, ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सँ हंसः सोहऽम आसां नूतन यंत्राणां प्राणा इह प्राणाः तिष्टन्तु | हमें भाव करना है जैसे मुजमे प्राण है वैसे ही आपमें भी प्राण स्थापित हो | फिर से वैसे ही ह्रदय पर बाया हाथ रखे और दाया हाथ मूर्ति के ऊपर रखकर निम्न उच्चारण करे | ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सँ हंसः सोहऽम अस्य प्रतिमायां जीव इस स्थितः | हमें भाव करना है, की जैसे मेरे देह में जिव है उसी तरह आपमें भी जिव स्थापित हो बोलकर एक पुष्पदल लेकर थोड़ा सा घी वाला पुष्प कर मूर्ति या यन्त्र को स्पर्श करे | फिर से वैसे ही ह्रदय पर बाया हाथ रखे और दाया हाथ मूर्ति के ऊपर रखकर निम्न उच्चारण करे | ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सँ हंसः सोहऽम अस्य प्रतिमाया वाङ्गमनस्त्वक चक्षु, क्षोत्र, जिह्वा, घ्राण, पाणिपायुपस्थानि सर्वेन्द्रियाणि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा | भाव करना है जैसे मेरे देह में जो इन्द्रिया जिससे में सबकुछ श्रवण कर सकता हु, जिससे में स्पर्श कर सकता हु, स्पर्शता का अनुभव करता हु, मेरे चक्षु से में सबकुछ देख सकता हु, मेरी जिह्वा से में सबकुछ बोल सकता हु, वैसे ही आप भी यह सब इन्द्रिया प्राप्त कर सबकुछ अनुभूत करे | फिर सुप्रतिष्ठितो भव ऐसा बोलकर भगवान् के दाए कान में मंत्र बोले | पश्चात एक ही श्वास में पंद्रह बार ॐ का उच्चारण करे | और निम्न श्लोको से भगवान् को प्रार्थना करे | ॐ स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यातत्वमीमिहागतः | प्राकृतं त्वंदृष्ट्वा मां बालवत्परिपालय || धर्मार्थकामसिद्धयर्थं स्थिरो भव शुभाय नः | सान्निध्यं तु सदा देव स्वार्चायां परिकल्पय || अंत में फिर से हाट में जल लेकर बोलना है अनेन अमुक नूतनमूर्तौ वा यंत्रौ प्राणप्रतिष्ठाकर्मकृतेन अमुकदेवता वा यंत्र प्रीयतां न मम | बोलकर जल छोड़ दे | और नारायण को अर्पण करे | || ॐ तत्सद नारायण अर्पणं अस्तु ||
घर में कौन सा श्री यंत्र रखना चाहिए?स्फटिक से बना श्री यंत्र, दक्षिणावर्ती शंख, गोमती चक्र एवं तुलसी पत्र जिस घर में हों वहां धन और ऐशवर्य की कोई कमी नहीं होती है। स्फटिक के श्रीयंत्र को समस्त प्रकार के श्रीयंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वास्तु निवारण के लिए स्फटिक श्री यंत्र श्रेष्ठतम माना जाता है।
श्री यंत्र घर में रखने से क्या होता है?कहा जाता है कि श्रीयंत्र की पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है इसलिए लोग अपने घर में श्रीयंत्र की स्थापना करके पूजा और अराधना करते हैं। यदि विधि-विधान के साथ श्रीयंत्र की पूजा की जाती है वहां सदैव सुख-संपत्ति, सौभाग्य और ऐश्वर्य बना रहता है।
श्री यंत्र की स्थापना कैसे करते हैं?श्री यंत्र की पूजा कैसे करते हैं?. श्रीयंत्र की पूजा करने का सबसे पहला नियम है कि आपको लोभ त्यागना होगा। ... . श्रीयंत्र की स्थापना के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। ... . श्रीयंत्र को महालक्ष्मी के साथ कभी भी स्थापित न करें। ... . श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर रखें और पंचामृत अर्पित करें।. श्री यंत्र की स्थापना कब करनी चाहिए?श्री यंत्र का निर्माण सिद्ध मुहूर्त में ही किया जाता है। गुरुपुष्य योग, रविपुष्य योग, नवरात्रि, धन-त्रयोदशी, दीपावली, शिवरात्रि, अक्षय तृतीया आदि श्रीयंत्र निर्माण और स्थापन के श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। अपने घर में किसी भी श्रेष्ठ मुहूर्त में श्रीयंत्र को स्थापित किया जा सकता है।
|