बाजार दर्शन (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न) Show
प्रश्न 1:'बाजार दर्शन' पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता हैं?उत्तर - पैसे की पावर का रस निम्नलिखित रूप में प्राप्त किया जा सकता है- 1, मकान, संपत्ति, कोठी, कार, सामान आदि देखकर। 2. संयमी बनकर पैसे की बचत करके। इससे मनुष्य पैसे के गर्व से फूला रहता है तथा उसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती। प्रश्न 2:कैसे लोग बाजार से न सच्चा लाभ उठा पाते हैं, न उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं? वे "बाजारूपन' को कैसे बढ़ाते है?उत्तर - लेखक कहता है कि समाज में कुछ लोग क्रय-शक्ति के बल पर बाजार से वस्तुएँ खरीदते हैं, परंतु उन्हें अपनी जरूरत का पता ही नहीं होता। ऐसे लोग बाजार से न सच्चा लाभ उठा पाते हैं, न उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे धन के बल पर बाजार में कपट को बढ़ावा देते हैं। वे समाज में असंतोष बढ़ाते हैं। वे सामान्य लोगों के सामने अपनी क्रय-शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे शान के लिए उत्पाद खरीदते हैं। इस प्रकार से वे बाजारूपन को बढ़ाते हैं। प्रश्न 3:बाजार का जादू क्या हैं? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता हैं? ’बाजार दर्शान' पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।उत्तर - बाजार की तड़क-भड़क और वस्तुओं के रूप-सौंदर्य से जब ग्राहक खरीददारी करने को मजबूर हो जाता है तो उसे बाजार का जादू कहते हैं। बाजार का जादू तब सिर चढ़ता है जब मन खाली हो। मन में निश्चित भाव न होने के कारण ग्राहक हर वस्तु को अच्छा समझता है तथा अधिक आराम व शान के लिए गैर जरूरी चीजें खरीदता है। इस तरह वह जादू की गिरफ्त में आ जाता है। वस्तु खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि फ़ैसी चीजें आराम में मदद नहीं करतीं, बल्कि खलल उत्पन्न करती हैं। इससे वह झुंझलाता है, परंतु उसके स्वाभिमान को सेंक मिल जाती है। प्रश्न 4:'बाजार दर्शन' पाठ का प्रतिपादय बताइए।उत्तर - ‘बाजार दर्शन' निबंध में गहरी वैचारिकता व साहित्य के सुलभ लालित्य का संयोग है। कई दशक पहले लिखा गया यह लेख आज भी उपभोक्तावाद व बाजारवाद को समझाने में बेजोड़ है। लेखक अपने परिचितों, मित्रों से जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार की जादुई ताकत मनुष्य को अपना गुलाम बना लेती है। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फँसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं। लेखक ने कहीं दार्शनिक अंदाज में तो कहीं किस्सागों की तरह अपनी बात समझाने की कोशिश की है। इस क्रम में उन्होंने बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र बताया है। प्रश्न 5:‘बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है?उत्तर = ‘बाजार दर्शन' से अभिप्राय है-बाजार के बारे में बताना। लेखक ने बाजार की प्रवृत्ति, ग्राहक के प्रकार, आधुनिक ग्राहकों की सोच आदि के बारे में पाठकों को बताया है। प्रश्न 6:बाजार का जादू किन पर चलता है और क्यों?उत्तर = बाजार का जादू उन लोगों पर चलता है जो खाली मन के होते हैं तथा जेब भरी होती है। ऐसे लोगों को अपनी जरूरत का पता ही नहीं होता। वे ‘पर्चेजिंग पावर' को दिखाने के लिए अनाप-शनाप वस्तुएँ खरीदते हैं ताकि लोग उन्हें बड़ा समझे। ऐसे व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान नहीं करते। प्रश्न 7:"पैसा पावर हैं।" -लेखक ने ऐसा क्यों कहा?उत्तर - लेखक ने पैसे को पावर कहा है क्योंकि यह क्रय-शक्ति को बढ़ावा देता है। इसके होने पर ही व्यक्ति नई-नई चीजें खरीदता है। दूसरे, यदि व्यक्ति सिर्फ धन ही जोड़ता रहे तो वह इस बैंक बैलेंस को देखकर गर्व से फूला रहता है। पैसे से समाज में व्यक्ति का स्थान निर्धारित होता है। इसी कारण लेखक ने पैसे को पावर कहा है। प्रश्न 8:भगत जी बाजार की सार्थक व समाज की शांत केसे कर रहें हैं?' बाजार दर्शन' पाठ के आधार पर बताइए?उत्तर = भगत जी निम्नलिखित तरीके से बाजार को सार्थक व समाज को शांत कर रहे हैं- 1, वे निश्चित समय पर चूरन बेचने के लिए निकलते हैं। 2. छह आने की कमाई होते ही बचे चूरन को बच्चों में मुफ़्त बाँट देते हैं। 3. बाजार में जीरा व नमक खरीदते हैं। 4. सभी का अभिवादन करते हैं। 5. बाजार के आकर्षण से दूर रहते हैं। 6. अपने चूर्ण का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन नहीं करते। प्रश्न 9:खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं?उत्तर - ‘खाली मन तथा भरी जेब' से लेखक का आशय है - मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की इच्छा न होना या वस्तु की आवश्यकता न होना। परंतु जब जेबें भरी हो तो व्यक्ति आकर्षण के वशीभूत होकर वस्तुएँ खरीदता है। इससे बाजारवाद को बढ़ावा मिलता है। प्रश्न 10:‘बाजार दर्शन' पाठ के आधार पर 'पैसे की व्यग्य शक्ति' कथन को स्पष्ट कीजिए।उत्तर = पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। पैदल व्यक्ति के पास से धूल उड़ाती मोटर चली जाए तो व्यक्ति परेशान हो उठता है। वह अपने जन्म तक को कोसता है। परंतु यह व्यंग्य चूरन वाले व्यक्ति पर कोई असर नहीं करता। लेखक ऐसे बल के विषय में कहता है कि यह कुछ अपर जाति को तत्व है। कुछ लोग इसे आत्मिक, धार्मिक व नैतिक कहते हैं। प्रश्न 11:‘बाजार दर्शन' पाठ के आधार पर बाजार का जादू चढ़ने और उतरने का आशय स्पष्ट कीजिए।उत्तर = ‘बाजार दर्शन' पाठ के आधार पर बाजार का जादू चढ़ने और उतरने का आशय है बाजार की तड़क-भड़क और रूप-सौंदर्य से जब ग्राहक खरीददारी करने को मजबूर हो जाता है तो उसे बाजार का जादू कहते हैं। बाजार का जादू तब सिर चढ़ता है जब मन खाली हो। मन में निश्चित भाव न होने के कारण ग्राहक हर वस्तु को अच्छा समझता है तथा अधिक आराम व शान के लिए गैर-जरूरी चीजें खरीदता है। इस तरह वह जादू की गिरफ्त में आ जाता है। वस्तु खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि फैंसी चीजें आराम में मदद नहीं करतीं, बल्कि खलल उत्पन्न करती हैं। खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं?बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है। उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है। वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।. बाज़ार में एक जादू है। ... . जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा।. यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है।. कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा।. बाजार का बाजारूपन से लेखक का क्या अभिप्राय है?Answer: बाज़ारूपन से लेखक का तात्पर्य है कि बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं।
मन खाली होने का मतलब क्या है?मन खाली होने' का अर्थ है- निश्चित लक्ष्य न होना।
बाज़ार कब जाना चाहिए अ जब मन खाली हो ब जब मन खाली न हो स जब मन अच्छा हो द जब मन अच्छा न हो?iv. V. vi. " बुनावट " शब्द में निम्न में से कौन सा प्रत्यय जुड़ा है ?
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