Solution : उपादानों (Inputs) एवं उत्पादनों (outputs) के फलनात्मक संबंध को उत्पादन फलन कहा जाता है। उत्पादन फलन हमें यह बताता है कि समय की एक निश्चित अवधि में उपादानों के परिवर्तन से उत्पादन के आकार में किस प्रकार और कितनी मात्रा में परिवर्तन होता है। इस प्रकार उपादानों की मात्रा और उत्पादन की मात्रा के भौतिक संबंध को उत्पादन फलन कहा जाता है। इसे गणितीय रूप में इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है- <br> Q=f(L,K,M,I,V,E) <br> जहाँ Q= वस्तु X का भौतिक उत्पादन एवं f= फलन है। <br> L= श्रम आदान, K= पूँजी आदान, M= भूमि दान, I= कच्चा माल,V = पैमाने के प्रतिफल, E =कार्यकुशलता। <br> वाटसन के अनुसार-"एक फर्म के भौतिक उत्पादन और उत्पादन के भौतिक साधनों के संबंध को उत्पादन फलन कहा जाता है।" <br> उत्पादन फलन के कई प्रकार हैं, परन्तु इनमें से प्रमुख फलन दो हैं - <br> (i)अल्पकालीन उत्पादन फलन-इसे परिवर्तनशील अनुपात उत्पादन फलन भी कहा जाता है। परिवर्तनशील उत्पादन फलन में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर उत्पत्ति साधनों के प्रयोग अनुपात में परिवर्तन होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। अल्पकाल में साधनों का प्रयोग अनुपात बदलता है क्योंकि अल्पकाल में उत्पत्ति के संसाधनों को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। पूँजी, पूँजीगत उपकरण, भूमि, उत्पादन तकनीक आदि अल्पकाल में स्थिर है जबकि श्रम की इकाइयाँ परिवर्तनीय हो सकती हैं। <br> (ii) दीर्घकालीन, उत्पादन फलन-इस प्रकार के उत्पादन फलन में सभी साधनों (आदानों) को परिवर्तनशील मान लिया जाता है और उन्हें सभी अनुपात में बढ़ाया जाता है जिस अनुपात में उत्पादन बढ़ाना होता है। इसका अभिप्राय है, संसाधनों को परिवर्तनशील मानकर उत्पादन वृद्धि के लिए एक ही अनुपात में बढ़ाना। इस प्रकार का उत्पादन फलन दीर्घकाल में पाया जाता है। दीर्घकाल में इतना अधिक समय होता है कि सभी साधनों को परिवर्तित किया जा सकता है अर्थात् उत्पादन के पैमाने को बड़ा या छोटा किया जा सकता है इसलिए इस स्थिति में उत्पादन में वृद्धि पैमाने में परिवर्तन का फल है और इसे पैमाने का प्रतिफल कहते हैं। Show Here is an essay on the ‘Production Function’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Production Function’ especially written for school and college students in Hindi language. Essay on the Production FunctionEssay Contents:
एक व्यावसायिक फर्म को अपनी उत्पादन क्रिया सम्पादित करने के लिए अनेक उत्पत्ति के साधनों को एकत्रित करना पड़ता है । दूसरे शब्दों में, ”एक व्यावसायिक फर्म द्वारा उत्पादन करने के लिए जिन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार उत्पत्ति के साधन (Factors of Production) कहा जाता है ।” आधुनिक वर्गीकरण में उत्पत्ति के साधनों को चार भागों में बाँटा जा सकता है – भूमि (Land), श्रम (Labour), पूँजी (Capital) एवं संगठन (Organization) । इन उत्पत्ति के साधनों को उपादान (Inputs) के नाम से जाना जाता है । उत्पादन प्रक्रिया में इन उत्पादनों को एक निश्चित अनुपात में दी गयी उत्पादन तकनीक के अनुसार मिलाया जाता है तथा इन उपादानों की पारस्परिक क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप जो भी उत्पादन होता है उसे हम उत्पादन (Output) के नाम से पुकारते हैं । एक दी गई तकनीक के अन्तर्गत उपादानों के विभिन्न संयोग एवं उनसे प्राप्त होने वाले उत्पादनों के भौतिक सम्बन्ध (Physical Relationship) को हम उत्पादन फलन (Production Function) कहते हैं ।
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