सविनय अवज्ञा आंदोलनमहात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित सत्याग्रह का सिद्धान्त सत्य अथवा आत्मिक शक्ति पर बल देता है। इसकी सबसे सुन्दर अभिव्यक्ति सविनज्ञ अवज्ञा के रूप में हुई। savinay avagya andolan ka varnan karen Show
असहयोग से तात्पर्य आवश्यक रूप से सविनय अवज्ञा से नहीं है। किन्तु सविनय अवज्ञा निश्चित रूप से वर्तमान संस्थाओं के विरूद्ध संघर्ष करने के लिए गांधी द्वारा प्रयुक्त पद्धति की आधारशिला है। इसका अर्थ मात्र असहयोग ही नहीं वरन् राज्य अथवा समाज के कानूनों का विरोध है यही सविनय अवज्ञा आन्दोलन का सर्वाधिक क्रियाशील रूप है। दोनों का सार एक ही है अर्थात् बुराई का अहिंसात्मक तरीकों से प्रतिरोध करना। राजनीति में हम इसका अर्थ अन्यायपूर्ण कानूनों से उत्पन्न दोष व बुराइयों का विरोध करने से ले सकते है। परन्तु इस शब्द का भी प्रयोग उस अन्तिम दशा में करना चाहिए जबकि वर्तमान कानूनों को मानना एक प्रकार से पाप बन जाये। हमें सविनय अवज्ञा को कानूनों के अपराधपूर्ण उल्लघन से नहीं लेना चाहिए। अपराधी कानून का उल्लंघन दण्ड से बचने के लिए करता है, जबकि सत्याग्रही समाज के हित के लिए सरकार से असहयोग करता है। सविनय अवज्ञा करने वाला सरकार के कानूनों के प्रति आदर व श्रद्धा रखता है पर जब वे कानून समाज के लिए अहितकर बन जाते है तो सत्याग्रही उनका अनादर व अवज्ञा करता है। कानूनों की अवज्ञा करते समय सत्याग्रही दण्ड से भयभीत नहीं होता। सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआतसन् 1930 ई. में स्वाधीनता दिवस मनाने के बाद गाँधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) शुरू हुआ। यह आंदोलन गाँधीजी की प्रसिद्ध दांडी-यात्रा से शुरू हुआ। 12 मार्च 1930 ई. को गाँधीजी ने अहमदाबाद के अपने साबरमती आश्रम से 78 सदस्यों के साथ दांडी की ओर पैदल यात्रा शुरू की। दांडी अहमदाबाद से करीब 385 किमी. दूर भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है। गाँधीजी और उनके साथी 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुंचे। समुद्र के पानी के वाष्पीकरण के बाद बने नमक को उठाकर गाँधीजी ने सरकारी कानून को तोड़ा। नमक के उत्पादन पर सरकार का एकाधिकार था, इसलिए किसी के लिए भी नमक बनाना गैर-कानूनी था। नमक कानून को तोड़ने के बाद सारे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। तमिलनाडु में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने दांडी-यात्रा की तरह त्रिचनापल्ली से वेदराण्यम् तक की यात्रा की। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण1930 ई. में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे- savinay avagya andolan ke karan 1. साइमन कमीशन- भारत के वायसराय लार्ड इरविन ने 8 नवम्बर, 1927 को घोषणा की कि सर जान साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय राजकीय कमीशन शीघ्र भारत आने वाला है। इस कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे। यद्यपि इस आयोग को भारत के भावी संविधान के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था, परंतु कोई भी भारतीय इस आयोग में सम्मिलित नहीं था। अतः साइमन कमीशन के भारत पहुँचने पर उसका काले झण्डों एवं 'साइमन कमीशन वापस जाओ' के नारों से स्वागत किया गया। लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कमीशन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला गया। पुलिस द्वारा लाला लाजपत राय पर लाठियों की वर्षा की गई जिससे वे बुरी तरह से घायल हो गए और 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। लखनऊ में पुलिस ने पं. जवाहर लाल नेहरू तथा गोविंद वल्लभ पंत पर भी लाठियाँ बरसाईं। अंग्रेजों की दमनकारी नीति से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा। 2. साइमन कमीशन की रिपोर्ट से निराशा- 1930 में साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट से भारतवासियों को बड़ी निराशा हुई। रिपोर्ट में भारतीयों की औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग की पूर्ण उपेक्षा की गई। इसी प्रकार केंद्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की माँग भी स्वीकार नहीं की गई। अतः गाँधीजी ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट का विरोध किया और अंग्रेजों के विरूद्ध सविनय अवज्ञा प्रारंभ करने का निश्चय कर लिया। 3. नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार करना- भारत सचिव लार्ड बकन हेड ने भारतीयों को चुनौती दी कि वे एक ऐसा संविधान तैयार करें जो भारत के सभी राजनीतिक पक्षों को स्वीकार्य हो। कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया तथा भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए पं. मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने 10 अगस्त, 1928 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जो 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग ने भी नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार 31 दिसम्बर, 1929 तक नेहरू रिपोर्ट स्वीकार नहीं करेगी, तो वह अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करेगी। 4. पूर्ण स्वराज्य की माँग- दिसम्बर, 1929 में लाहौर में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ। 31 दिसम्बर, 1929 को अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निश्चय किया। अतः 26 जनवरी, 1930 को सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। इस अधिवेशन ने कांग्रेस को उचित अवसर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया। 5. देश में अशांति एवं अराजकता- इस समय देश की आर्थिक स्थिति बड़ी शोचनीय थी। देश में महँगाई, बेरोजगा गरीबी बढ़ रही थी। बढ़ती हुई महँगाई के कारण मजदूरों में तीव्र असंतोष था। उन्होंने भी ब्रिटिश सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए अनेक मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। मेरठ षड्यंत्र मुकदमें में 36 मजदूर नेताओं को लम्बी कैद की सजा दिए जाने के कारण मजदूर-वर्ग में घोर असंतोष व्याप्त था। इसी समय क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियाँ तेज कर दी थीं। 1929 में सरदार भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में बम फेंक कर सनसनी फैला दी। गाँधीजी इन हिंसात्मक घटनाओं से बड़े चिंतित हुए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का निश्चय कर लिया। 6. लार्ड इरविन की अस्पष्ट घोषणा- इंग्लैंड से लौट कर भारत के वायसराय लार्ड इरविन ने 31 अक्टूबर, 1929 को घोषणा की कि 1917 की घोषणा से यह अभिप्राय स्पष्ट होता है कि भारत को अधिराज्य स्थिति का दर्जा मिले। लार्ड इरविन ने यह भी घोषित किया कि साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार एक गोलमेज इस घोषणा में यह नहीं कहा गया कि भारत को कब स्वराज्य प्राप्त हो गया। दूसरी ओर इंग्लैंड के अनुदार दल ने इरविन की घोषणा की आलोचना की। गाँधीजी ने लार्ड इरविन से भेंट कर यह जानना चाहा कि क्या सरकार लंदन में गोलमेज सम्मेलन भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य के आधार पर नवीन संविधान का निर्माण करने के लिए बुला रही है। परंतु लार्ड इरविन ने गाँधीजी को इस प्रकार का कोई आश्वासन नहीं दिया जिससे गाँधीजी को बड़ी निराशा हुई। 7. गाँधीजी की माँगों की उपेक्षा- गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करने के पूर्व वायसराय लार्ड इरविन के सामने 11 माँगें प्रस्तुत की और चेतावनी दी कि यदि उनकी माँगें स्वीकार नहीं की गईं, तो वे सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करेंगे। गाँधीजी की माँगें निम्नलिखित थीं-
ब्रिटिश सरकार ने गाँधीजी की माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। लार्ड इरविन ने गाँधीजी को जो उत्तर भेजा, वह बड़ा असंतोषजनक था। इस पर गाँधीजी को बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने कहा “मैंने घुटने टेक कर रोटी माँगी थी, परंतु मुझे मिला पत्थर। ब्रिटिश सरकार केवल शक्ति पहचानती है और इस कारण वायसराय के उत्तर पर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। हमारे राष्ट्र के भाग्य में जेल की शांति ही एकमात्र शांति है। समस्त भारत एक विशाल कारागृह मैं अंग्रेजों के कानूनों को मानने से इंकार करता हूँ।" सविनय अवज्ञा आंदोलन कार्यक्रमसविनय अवज्ञा आंदोलन कार्यक्रम के अंतर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित थीं- savinay avagya andolan
6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी ने आंदोलन के लिए निम्न कार्यक्रम घोषित किया “गाँव-गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए। बहनों को शराब, अफीम और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर धरना देना, विदेशी वस्त्रों को जला देना चाहिए। हिंदुओं को छुआछूत त्याग देनी चाहिए। विद्यार्थियों को सरकारी, शिक्षण-संघ का परित्याग कर देना चाहिए तथा सरकारी कर्मचारियों को अपनी नौकरियों से त्याग-पत्र दे देना चाहिए।" (क) आंदोलन का प्रथम चरणसविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रथम चरण को विवेचन की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है-
प्रथम गोलमेज सम्मेलन सरकार के दमन चक्र के बावजूद सविनय अवज्ञा आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था। इसी समय ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए इंग्लैंड में प्रथम गोलमेज सम्मेलन बुलाया। 12 नवम्बर, 1930 को लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में कांग्रेस का कोई भी प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुआ। इस सम्मेलन में साम्प्रदायिक समस्या पर कोई समझौता नहीं हो सका। अंत में 19 जनवरी, 1931 को यह सम्मेलन स्थगित कर दिया गया। गाँधी-इरविन समझौता 5 मार्च, 1931 को गाँधीजी तथा वायसराय लार्ड इरविन के बीच समझौता हो गया, जो गाँधी-इरविन समझौते के नाम से प्रसिद्ध है। इस समझौते की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं-
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 17 अप्रैल, 1931 को लार्ड इरविन के स्थान पर लार्ड वेलिंगडन भारत के वायसराय नियुक्त हुए। उन्होंने गाँधी-इरविन समझौते का उल्लंघन करते हुए दमनकारी नीति अपनाई। अंत में 27 अगस्त, 1931 को गाँधीजी और वायसराय वेलिंगडन की शिमला में भेंट हुई तथा वायसराय के अनुरोध पर गाँधीजी ने द्वितीय सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार कर लिया। 7 सितम्बर, 1931 को लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी ने भाग लिया। गाँधीजी ने पूर्ण स्वराज्य की माँग की जिस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। सरकार विभिन्न वर्गों में फूट डालना चाहती थी। गाँधीजी ने साम्प्रदायिक समस्या को सुधारने के लिए नेहरू रिपोर्ट के आधार पर सुझाव दिए, परंतु सरकार ने उनके सुझावों पर ध्यान नहीं दिया। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1 दिसम्बर, 1931 को समाप्त हो गया और गाँधीजी खाली हाथ भारत लौट आए। (ख) आंदोलन का दूसरा चरणअसहयोग आंदोलन के द्वितीय चरण को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है-
देशी रियासतों के विरुद्ध आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव अथवा महत्त्वइस आंदोलन ने सारे देश में एकता और जागृति की महान् सरिता में को प्रवाहित किया। लोग स्वाधीनता प्राप्ति के लिए आतुर हो गए और देश में भावनात्मक एकता का अपूर्व वातावरण स्थापित हुआ। इससे निम्न वांछित परिणाम निकले-
सविनय अवज्ञा आंदोलन का निष्कर्षनिष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में अत्यंत क्रांतिकारी घटना थी, जिसने देश में अपूर्व उत्साह और गौरवपूर्ण राष्ट्रीयता का संचार कर दिया। इस आंदोलन की सबसे ठोस उपलब्धि यह थी कि इसका आधार जन-मानस होने से यह देश के मर्म को पहली बार सार्थक रूप में पहचान पाया। इस आंदोलन ने विश्व जनमत का नैतिक समर्थन प्राप्त किया और अंग्रेजों पर इस मनोवैज्ञानिक तथ्य का रहस्योद्घाटन किया कि वे अधिक समय तक स्वतंत्रता की माँग की उपेक्षा नहीं कर सकते। नि:संदेह यह आंदोलन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के विकास का गौरवपूर्ण पहलू था। सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्वपूर्ण तथ्य
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण क्या है?समुद्र के पानी के वाष्पीकरण के बाद बने नमक को उठाकर गाँधीजी ने सरकारी कानून को तोड़ा। नमक के उत्पादन पर सरकार का एकाधिकार था, इसलिए किसी के लिए भी नमक बनाना गैर-कानूनी था। नमक कानून को तोड़ने के बाद सारे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन कब और क्यों हुआ?जब गांधी ने 6 अप्रैल 1930 को सुबह 8:30 बजे ब्रिटिश राज नमक कानूनों को तोड़ा, तो इसने लाखों भारतीयों द्वारा नमक कानूनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा के कृत्यों को जन्म दिया।. गांधी ने ब्रिटिश नमक कानूनों को तोड़ने के लिए प्रसिद्ध लवण सत्याग्रह पर अपने अनुयायियों का नेतृत्व किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन से आप क्या समझते हैं?अंततः 1930 ई. में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने महात्मा गाँधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का अधिकार प्रदान किया. सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) की शुरुआत नमक कानून के उल्लंघन से हुई. उन्होंने समुद्र तट के एक गाँव दांडी (Dandi, Gujarat) जाकर नमक कानून को तोड़ा.
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