स्वामी हरिदास के गुरु कौन थे - svaamee haridaas ke guru kaun the

 इसी समय श्री कृष्ण रूप स्वामी चैतन्य महाप्रभु नवद्वीप में हरी नाम की पावन सुधा बरसा रहे थी हरिदास जी भी वही पहुंच गए और महाप्रभु के सानिध्य में हरी नाम लेते रहे फिर महा प्रभु की आज्ञा से वे एक अन्य सन्यासी नित्यानंद जी के साथ नगर में हरि कीर्तन करते घूमने लगे फिर वह पूरी में आ गए और वहीं कुटिया बनाकर जीवन पर्यंत करने के भक्तों की संख्या असंख्य कर दी थी उनके शिष्य थे वह उन भक्तों में से थे जो अपने हाथों समस्त मानव जाति के उधार में प्रयास कर रहे और अपने शत्रु को भी हरी नाम की दीक्षा दी  

दोस्तों हरिदासी या सखी सम्प्रदाय द्वैतवाद एवं विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय से अलग एक ऐसा सम्प्रदाय है. जहां श्रीकृष्ण जी का चरित्र और उसका मधुर पक्ष भक्तों का आलम्बन है. सखियों की कृष्ण के प्रति प्रेम भावना ही इस सम्प्रदाय का मूलाधार है. हरि का दास होते हुए भी सभी उसके प्रेम में रमण करते हुए भावविभोर हो जाते हैं. यही प्रेम ही भक्ति की ओर व्यक्ति को ले जाता है. हम यहाँ सखी सम्प्रदाय के महान पर्वतक स्वामी हरिदास जी की जीवनी (Biography of Swami Haridas). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी आपके साथ शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब तक अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है स्वामी हरिदास जी की अद्भुत और आश्चर्यजनक जानकारी.

स्वामी हरिदास जी कौन थे?

स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ और सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे. स्वामी हरिदासजी का जन्म वृन्दावन मथुरा के निकट राजपुर नामक ग्राम में हुआ था. वे सनाढ्‌य जाति से बिलोंग करते थे. हरिदास जी के पिता का नाम (आशुधीर जी) गंगाधर और माता जी का नाम गंगादेवी (चित्रादेवी) था. तानसेन उन्हीं के शिष्य माने जाते हैं. उनकी आयु 95 वर्ष बतायी जाती है. उनका जन्मकाल विक्रमी संवत 1580 (1478 ईस्वी ) के आसपास माना जाता है.

दोस्तों सखी सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय की एक शाखा भी है. इस सम्प्रदाय के लोग प्रेम के सिद्धान्त को प्रमुख मानते हैं. भगवान का प्रेम-दर्शन ही इस सम्प्रदाय के लिए प्रमुख है. सखी सम्प्रदाय प्रेम को ही जीवन का सत्य मानता है. प्रेम की इस क्रीड़ा के लिए राधा और हरि दो रूपों का जन्म हुआ. इसके तीसरे रूप उनके सखीजन हैं. इस लीला के आनन्द को प्राप्त करने वाले चौथे रूप उनके भक्तगण हैं.

दोस्तों स्वामी हरिदास भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे. जिसे ‘हरिदासी संप्रदाय’ भी कहते हैं. इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है. स्वामी हरिदास वैष्णव भक्त थे, तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे. प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे. सम्राट अकबर इनके दर्शन करने वृंदावन गए थे. स्वामी हरिदास जी द्वारा रचित ‘केलिमाल’ नामक ग्रंथ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं. इनकी वाणी में रस और भावुक है, ये प्रेमी भक्त थे.

स्वामी हरिदास के गुरु कौन थे - svaamee haridaas ke guru kaun the
स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ

Summary

नामस्वामी हरिदास जीउपनामललिता सखीजन्म स्थानवृन्दावन मथुरा के निकट राजपुर गांवजन्म तारीख1478 ईस्वीवंशसनाढ्‌यमाता का नामगंगादेवीपिता का नामश्री आशुधीर जीपत्नी का नामहरिमति देवीप्रसिद्धिकेलिमाल ग्रंथ की रचनापेशामहान संगीतज्ञबेटा और बेटी का नामनहीं हुएगुरु/शिक्षकश्री कृष्ण जीदेशभारतराज्य छेत्रमथुरा, उत्तरप्रदेशधर्महिन्दू सनातनराष्ट्रीयताभारतीयमृत्यु1573 ईस्वीपोस्ट श्रेणीBiography of Swami Haridas

केलिमाल ग्रंथ की रचना किस ने की थी?

केलिमाल स्वामी हरिदास जी द्वारा रचित एक ग्रंथ है. जिन्हें ललिता सखी का अवतार वृंदावन धाम में माना जाता है. हरिदास जी ने प्रमुख रूप से अंतरंग केली लीलाओं का वर्णन मुख्य इस ग्रंथ में किया है.

स्वामी हरिदास जी सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक कैसे बने?

दोस्तों कहाँ जाता है, एक बार अचानक दीपक की लो से उनकी पत्नी के जलकर मर जाने पर विरक्त होकर वृन्दावन मथुरा चले आये. कहा जाता है कि उन्हीं की उपासना के फलस्वरूप बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्‌य हुआ. जो आज भी वृन्दावन में विराजमान है. स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ थे. विक्रमी संवत 1630 (1573 ईस्वी) में महान संगीतज्ञ स्वामी हरिदास जी इस संसारिक दुनिया का त्याग कर दिया था.

वृंदावन, जासं। शास्त्रीय संगीत के सितारे स्वामी हरिदास की भूमि वृंदावन को संगीत साधकों का तीर्थ मानते हैं। यही वह भूमि है, जहां संगीत साधना से स्वामी हरिदास ने ठा. बांकेबिहारीजी का प्राकट्य किया। स्वामी हरिदास के संगीत के जब बांकेबिहारी मुरीद हो गए, तो राजा-महाराजाओं की बात क्या की जाए। बादशाह अकबर के दरबारी तानसेन अपने संगीत के लिए प्रख्यात थे। वह स्वामी हरिदास के शिष्य थे। एक दिन बादशाह अकबर ने तानसेन से उनके गुरु स्वामी हरिदासजी का गायन सुनने की इच्छा जताई और तानसेन के साथ वे वृंदावन आ गए, लेकिन स्वामी हरिदास ने बादशाह अकबर के सामने गाने से इन्कार कर ही दिया। इतना ही नहीं जब अकबर ने कुछ मांगने को स्वामी हरिदास से कहा तो स्वामीजी ने एक ही वस्तु मांगी कि भविष्य में संतों की इस भूमि में न आना।

प्राचीन इतिहासकार विसेंट स्मिथ ने अपने अकबर द ग्रेट मुगल नामक ग्रंथ में विक्रम संवत 1627 में अकबर बादशाह का वृंदावन निधिवन आना तथा दिव्य ²ष्टि से श्रीवृंदावन के चिन्मय तत्व को देखने का उल्लेख किया है। बादशाह अकबर के बारे में उल्लेख है कि एक दिन अकबर ने तानसेन के गायन पर रीझकर कहा तानसेन, तुम्हारे जैसा संगीतज्ञ और कोई नहीं। तानसेन ने कान पकड़े और बोले खुदा के लिए ऐसा मत कहिए। मेरे गुरु स्वामी हरिदास के आगे मैं कुछ भी नहीं। अकबर ने कहा स्वामी हरिदास को दरबार में बुलाओ, मैं उनका संगीत सुनना चाहता हूं। तानसेन बोले उनके गुरु सिर्फ प्राण प्रियतम भगवान श्रीराधाकृष्ण के लिए ही गाते हैं, किसी व्यक्ति को प्रसन्न करने अथवा धन व प्रतिष्ठा के लिए नहीं। आप उन्हें सुनना चाहते हैं, तो पद को भुलाकर वृंदावन चलना पड़ेगा। अकबर वृंदावन के लिए चल दिए। इसके बाद तानसेन ने उन्हें तानपुरा पकड़ा कर कहा आपको स्वामीजी सेवक समझेंगे, तो भजन सुनने में सहूलियत होगी। बादशाह इसके लिए तैयार हो गए। निधिवन में जब स्वामीजी का गायन सुनने को मिला तो अकबर कृतज्ञ हो गया, लेकिन स्वामीजी अपनी दिव्य ²ष्टि से अकबर को पहचान गए। अकबर के सामने गाने का प्रस्ताव रखा तो स्वामीजी ने मनाकर दिया था। अकबर ने स्वामीजी से अपनी बादशाहत दिखाते हुए कुछ मांगने का आग्रह किया, तो स्वामीजी हंस पड़े, बोले अकबर कुछ देना ही है तो बस इतना दे कि अब भविष्य में कभी भी संतों की इस भूमि पर न आना।

Edited By: Jagran

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बाबा हरिदास के गुरु कौन थे?

स्वामी श्याम चरण दास जी एक विरक्त संत थे व उनके गुरु श्री राधा चरण दास जी के ही आज्ञा से उन्होंने कोलकाता स्थित इस दिव्य एवं भव्य स्थान की स्थापना की थी।

स्वामी हरिदास का शिष्य कौन है?

स्वामी हरिदास संगीत के परम आचार्य थे, उनका संगीत सिर्फ अपने आराध्य को समर्पित था। बैजू बावरा, तानसेन जैसे दिग्गज संगीतज्ञ उनके शिष्य थे।

स्वामी हरिदास में अकबर को कैसे पहचान लिया?

निधिवन में जब स्वामीजी का गायन सुनने को मिला तो अकबर कृतज्ञ हो गया, लेकिन स्वामीजी अपनी दिव्य ²ष्टि से अकबर को पहचान गए। अकबर के सामने गाने का प्रस्ताव रखा तो स्वामीजी ने मनाकर दिया था।

स्वामी हरिदास की मृत्यु कब हुई?

1573स्वामी हरिदास / मृत्यु तारीखnull