राष्ट्रपति के महाभियोग में कौन कौन से सदस्य भाग लेते हैं? - raashtrapati ke mahaabhiyog mein kaun kaun se sadasy bhaag lete hain?

राष्ट्रपति के महाभियोग में कौन कौन से सदस्य भाग लेते हैं? - raashtrapati ke mahaabhiyog mein kaun kaun se sadasy bhaag lete hain?

Q. भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:1. राष्ट्रपति पर महाभियोग संसद की एक अर्ध न्यायिक प्रक्रिया है।2. संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग नहीं लेते है, यद्यपि वे इनके चुनाव में भाग लेते है।3. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य महाभियोग में भाग नहीं लेते हैं।उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?

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Solution

The correct option is B केवल 1 और 3व्याख्या: संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग ले सकते हैं, हालांकि इनके चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।

जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है। इंग्लैंड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। समयोपरान्त जब क्यूरिया या पार्लियामेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑफ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑफ़ लार्ड्स को प्राप्त हुआ। किन्तु जब से (1700 ई) न्यायाधीशों एवं मंत्रियों के ऊपर अभियोग चलाने का रूप अन्य प्रकार से निर्धारित हो गया है, महाभियोग का प्रयोग समाप्तप्राय है। इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गए। उदाहरणार्थ 16वीं शताब्दी में वारेन हेस्टिंग्ज तथा लार्ड मेलविले (हेनरी उंडस) का महाभियोग सतत स्मरणीय है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है। न्यूयार्क राज्य में 1613 ई में वहाँ के गवर्नर विलियम सुल्जर पर महाभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत किया गया था और आश्चर्य की बात यह है कि अभियोग के कारण श्री सुल्जर के गवर्नर पद ग्रहण करने के पूर्व काल से संबंधित थे।

इंग्लैंड एवं अमरीका में महाभियोग क्रिया में एक अन्य मान्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।

भारतीय संविधान में महाभियोग

भारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है.

महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है. लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं. इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है.

उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें.

महाभियोग की कार्यवाही

अगर यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं.

दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है.

जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं.

अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है.

प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है. अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है.

किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है.

भारत में सिर्फ राष्ट्रपति को ही महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है राष्ट्रपति के अलावा किसी को नहीं हटाया जा सकता

या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया.

हालांकि इस पर विवाद है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है. उनके ख़िलाफ़ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था.

यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया क्योंकि उस वक़्त सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला.

कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे, जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा.

यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्य सभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा. हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया.

महाभियोग के पिछले मामले

उसी साल सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जे बी पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली.

2015 में ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके.

आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला.

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 2018 में राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया जिसे उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया ।

संदर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • इंसाइक्लोपीडिया ऑव सोशल साइंसेज;
  • भारत संविधान;
  • संयुक्त राष्ट्र अमरीका का संविधान;
  • ला ऑव इंपीचमेंट इन दि यूनाइटेड स्टेट्स

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • कैसा होता है महाभियोग
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश को हटाने की क्या प्रक्रिया है
  • जज, जस्टिस और भ्रष्टाचार
  • Gerhardt, Michael J. The federal impeachment process.

राष्ट्रपति के महाभियोग में कौन कौन भाग लेते हैं?

संसद के दोनों सदनों के नामित सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग ले सकते हैं। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली, पुदुचेरी और जम्मू की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के महाभियोग में भाग नहीं लेते हैं हालांकि वे उनके चुनाव में भाग लेते हैं।

राष्ट्रपति पर महायोग कैसे चला जाता है?

राष्ट्रपति के महाभियोग का एकमात्र आधार "संविधान का उल्लंघन" है। महाभियोग की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन द्वारा शुरू की जा सकती है। आरोप एक नोटिस में सम्‍मिलित हैं जो आरंभ करने वाले सदन के कुल सदस्‍यों के एक-चौथाई द्वारा हस्‍ताक्षरित होने चाहिए।

कितने राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया गया है?

*भारत में अभी तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं लगाया गया है। महाभियोग के आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा शुरू किए जा सकते हैं। इन आरोपों पर सदन के एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए।

राष्ट्रपति का महाभियोग कैसे होता है?

राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए जो संवेधानिक प्रक्रिया अपनाई जाती है ,उसे महाभियोग कहा जाता है . इस प्रक्रिया में संसद के दोनो सदनों में इस महाभियोग प्रस्ताव को प्रस्तुत किया जाता ही और कुल सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत प्राप्त होने पर ही महाभियोग से राष्ट्रपति को पद से मुक्त किया जा सकता है .