इस पाठ में हम पढ़ेंगे और जानेंगे अधिकतर अखबारों में खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन के अलग-अलग पृष्ठ होते हैं। इनमें छपने वाली खबरें, फ़ीचर या आलेख कुछ अलग तरह से लिखे जाते हैं। इनकी भाषा और शैली दोनों ही अलग होती हैं। किसी समाचार-पत्र या पत्रिका को संपूर्ण बनाने के लिए
उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के बारे में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों की जानकारी नियमित रूप से दी जानी चाहिए। विशेष लेखन से एक ओर समाचार-पत्र में विविधता आती है तो दूसरी ओर उनका कलेवर व्यापक होता है। वास्तव में पाठक अपनी व्यापक रुचियों के कारण साहित्य, विज्ञान, खेल, सिनेमा आदि विविध क्षेत्रों से जुड़ी खबरें पढ़ना चाहता है, इसलिए समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के माध्यम से निरंतर और विशेष जानकारी देना आवश्यक हो जाता है। क्या है विशेष लेखन? विशेष लेखन का अर्थ है-किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकांश समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी०वी० और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का समूह भी अलग होता है। जैसे समाचार-पत्रों और अन्य माध्यमों में बिजनेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क होता है, इसी तरह खेल की खबरों और फ़ीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से अपेक्षा की जाती है कि संबंधित विषय
या क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता होगी। खबरें भी कई तरह की होती हैं-राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून, विज्ञान या किसी भी और विषय से जुड़ी हुई। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आमतौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्यक्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटने वाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिग करना है। अखबार की ओर से वह इनकी रिपोर्टिग के लिए जिम्मेदार और
जवाबदेह भी होता है। विशेष लेखन के लिए किसी व्यक्ति (संवाददाता) को उसी क्षेत्र-विशेष से संबंधित लेखन-कार्य सौंपा जाता है, जिसमें उसकी रुचि होती है। इसके अलावा उसे विषय-संबंधी गहरी जानकारी होती है। जैसे-खेल जगत की जानकारी एवं रुचि रखने वाले को खेल बीट मिल जाती है। विशेष लेखन केवल बीट रिपोर्टिग न होकर उससे भी आगे एक तरह की विशेषीकृत रिपोर्टिग है, जिसमें न सिर्फ़ उस विषय की गहरी जानकारी होनी चाहिए बल्कि उसकी रिपोर्टिग से संबंधित भाषा-शैली पर भी पूर्ण अधिकार होना चाहिए। बीट रिपोर्टिग
के लिए तैयारी पत्रकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नए-नए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई अन्य स्रोतों के जरिये भी करनी चाहिए। तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जा सकती है। बीट रिपोर्टिग और विशेषीकृत रिपोर्टिग में अंतर विशेष लेखन के अंतर्गत
रिपोर्टिग के अलावा उस विषय या क्षेत्र विशेष पर फीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार, लेख, समीक्षा और स्तंभ-लेखन भी आता है। इस तरह का विशेष लेखन समाचार-पत्र या पत्रिका में काम करने वाले पत्रकार से लेकर फ्री-लांस (स्वतंत्र) पत्रकार या लेखक तक सभी कर सकते हैं। शर्त यह है कि विशेष लेखन के इच्छुक पत्रकार या स्वतंत्र लेखक को उस विषय में निपुण होना चाहिए। मतलब यह कि किसी भी क्षेत्र पर विशेष लेखन करने के लिए जरूरी है कि उस क्षेत्र के बारे में आपको ज्यादा-से-ज्यादा पता हो, उसकी ताजी-से-ताजी सूचना आपके पास
हो, आप उसके बारे में लगातार पढ़ते हों, जानकारियाँ और तथ्य इकट्ठे करते हों और उस क्षेत्र से जुड़े लोगों से लगातार मिलते रहते हों। इस तरह अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में किसी खास विषय पर लेख या स्तंभ लिखने वाले कई बार पेशेवर पत्रकार न होकर उस विषय के जानकार या विशेषज्ञ होते हैं। जैसे रक्षा, विज्ञान, विदेश-नीति, कृषि या ऐसे ही किसी क्षेत्र में कई वर्षों से काम कर रहा कोई प्रोफ़ेशनल इसके बारे में बेहतर तरीके से लिख सकता है क्योंकि उसके पास इस क्षेत्र का वर्षों का अनुभव होता है, वह इसकी बारीकियाँ
समझता है और उसके पास विश्लेषण करने की क्षमता होती है। हो सकता है उसके लिखने की शैली सामान्य पत्रकारों की तरह न हो लेकिन जानकारी और अंतर्दूष्टि के मामले में उसका लेखन पाठकों के लिए लाभदायक होता है। उदाहरण के तौर पर हम खेलों में हर्ष भोगले, जसदेव सिंह या नरोत्तम पुरी का नाम ले सकते हैं। वे पिछले चालीस सालों से हॉकी से लेकर क्रिकेट तक और ओलंपिक से लेकर एशियाई खेलों तक की कमेंट्री करते रहे हैं। विशेष लेखन की भाषा और शैली विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों
और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश क्षेत्र तकनीकी रूप से जटिल हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं तथा मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की जरूरत पड़ती है, जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल न हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग होती है। उनके बीच सबसे बुनियादी फ़र्क यह होता है कि हर क्षेत्र-विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए आपके लेखन में आती है। जैसे कारोबार पर विशेष लेखन करते हुए आपको उसमें
इस्तेमाल होने वाली शब्दावली से परिचित होना चाहिए। दूसरे, अगर आप उस शब्दावली से परिचित हैं तो आपके सामने चुनौती यह होती है कि आप अपने पाठक को भी उस शब्दावली से इस तरह परिचित कराना चाहिए ताकि उसे आपकी रिपोर्ट को समझने में कोई दिक्कत न हो। उदाहरणार्थ-‘सोने में भारी उछाल’, ‘चाँदी लुढ़की’ या ‘आवक बढ़ने से लाल मिर्च की कड़वाहट घटी’ या ‘शेयर बाजार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े, सेंसेक्स आसमान पर’ आदि के अलावा खेलों में भी ‘भारत ने पाकिस्तान को चार विकेट से पीटा’, ‘चैंपियंस कप में मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके’ आदि शीर्षक सहज ही ध्यान खींचते हैं। विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर हम अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फ़ीचर की तरह हो सकती है। जैसे हम किसी केस स्टडी से उसकी शुरुआत कर सकते हैं, उसे किसी खबर से जोड़कर यानी न्यूजपेग के जरिये भी शुरू किया जा सकता है। इसमें पुराने संदभों को आज के संदर्भ से जोड़कर पेश करने की भी संभावना होती है। विशेष लेखन के क्षेत्र विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र हैं, जैसे
समाचार-पत्रों और दूसरे माध्यमों में खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फ़ैशन, स्वास्थ्य, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवन-शैली और रहन-सहन जैसे विषयों को आजकल विशेष लेखन के लिहाज से ज्यादा महत्व मिल रहा है। इसके अलावा रक्षा, विदेश-नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और विधि जैसे क्षेत्रों में विशेषीकृत रिपोर्टिंग को प्राथमिकता दी जा रही है। कैसे हासिल करें विशेषज्ञता विशेष लेखन के किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए
विशेष लेखन के कुछ चुने हुए क्षेत्र इसका कारण यह है कि अर्थ यानी धन हर आदमी के जीवन का मूल आधार है। हमारे रोजमर्रा के जीवन में खास महत्व है। हम बाजार से कुछ खरीदते हैं, बैंक में पैसे जमा करते हैं, बचत करते हैं, किसी कारोबार के बारे में बनाते हैं या कुछ भी ऐसा सोचते या करते हैं, जिसमें आर्थिक फ़ायदे, नफ़ा-नुकसान आदि की बात होती है तो इन कारोबार और अर्थ-जगत से संबंध जुड़ता है। यही कारण है कि कारोबार, व्यापार और अर्थ-जगत से जुड़ी खबरों में काफ़ी पाठकों की रुचि होती है। पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व काफ़ी बढ़ा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच रिश्ता गहरा हुआ है। खासकर आर्थिक उदारीकरण और देश में खुली अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद से अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आया है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। वैसे भी अर्थनीति और राजनीति के बीच गहरा रिश्ता होता है। इसलिए एक आर्थिक पत्रकार को देश की राजनीति और उसमें हो रहे बदलाव की भी जानकारी होनी चाहिए। आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की तुलना में काफ़ी जटिल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम लोगों को इसकी शब्दावलियों के बारे में या उनके मतलब के बारे में ठीक से पता नहीं होता। उसे आम लोगों की समझ में आने लायक कैसे बनाया जाए, यह आर्थिक मामलों के पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इसके साथ ही आर्थिक खबरों का एक ऐसा पाठकवर्ग भी है जो उस क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण उसके बारे में काफ़ी जानता है। एक आर्थिक पत्रकार को इन दोनों तरह के पाठकों की जरूरत को पूरा करना पड़ता है। इसलिए आर्थिक मामलों पर विशेष लेखन करते हुए इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह किस वर्ग के पाठक के लिए लिखा जा रहा है? कारोबार एवं व्यापार से जुड़ी खबर के उदाहरण महँगाई सातवें माह शून्य से नीचे नई दिल्ली, एजेंसियाँ। खाद्य पदार्थों की कीमत में साल-दर-साल आधार पर 3.8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद खनिजों के दाम में 28.41 प्रतिशत की गिरावट के कारण प्राथमिक वस्तुओं की कीमतें 0.77 प्रतिशत नीचे आई, जबकि विनिर्मित वस्तुओं की कीमत में 0.64 प्रतिशत की गिरावट से इनकी माँग में कमजोरी बने रहने के संकेत मिल रहे हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी आँकड़ों के अनुसार, पिछले साल मई की तुलना में इस साल मई में ईंधन एवं ऊर्जा समूह की वस्तुओं के दाम 10.51 प्रतिशत गिर गए। पेट्रोल में यह गिरावट 11.29 फ़ीसदी तथा डीजल में 11.62 फ़ीसदी रही, जबकि एलपीजी के दाम 5.18 प्रतिशत कम रहे। हालाँकि, खाद्य पदार्थों के दाम में 3.80 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिसमें दाल के दाम सबसे ज्यादा 22.84 प्रतिशत तथा प्याज के 20.41 प्रतिशत बढ़े। फल 8.65 प्रतिशत तथा दूध 6.85 प्रतिशत महँगे हो गए। गेहूँ के दाम 2.79 प्रतिशत बढ़ गए। वहीं आलू के दाम 51.95 फ़ीसदी, सब्जियों के 5.54 फ़ीसदी तथा चावल के 1.77 फ़ीसदी गिर गए। सूचकांक में सबसे ज्यादा 64.97 प्रतिशत का भारांश रखने वाले विनिर्मित पदाथों के दाम में 0.64 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। चीनी 9.06 प्रतिशत तथा इस्पात 7.66 प्रतिशत सस्ते हो गए। सूती कपड़ों की कीमतों में 628 प्रतिशत की कमी आई। विनिर्मित वस्तुओं में पिछले साल मई की तुलना में ७ जिनके दाम बढ़े हैं उनमें सीमेंट तथा चूना पत्थर 5.49 प्रतिशत और अधातु खनिज पदार्थ 5.36 प्रतिशत शामिल है। सोने-चाँदी की कीमतों में आया उछाल वहीं औद्योगिक इकाइयों और सिक्का निर्माताओं द्वारा उठाव बढ़ाने से चाँदी के भाव 140 रुपये की तेजी के साथ 37050 रुपये प्रति किलो हो गए। बाजार सूत्रों के अनुसार आभूषण-निर्माताओं की खरीददारी के चलते बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में तेजी आई। उन्होंने बताया कि विदेशी बाजारों में डॉलर की मजबूती के कारण सोने की कीमतों में गिरावट आई, जिससे स्थानीय बाजार में तेजी सीमित रही। दिल्ली में सोना 99.9 और 99.5 शुद्धता के भाव 105 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 27,180 रुपये और 27030 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुए। गिन्नी के भाव पूर्वस्तर 23,300 रुपये प्रति आठ ग्राम पर स्थिर बने रहे। चाँदी तैयार के भाव 140 रुपये की तेजी के साथ 37,050 रुपये और चाँदी साप्ताहिक डिलीवरी के भाव 75 रुपये सुधरकर 36,670 रुपये प्रति किलो बंद हुए। सीमित कारोबार के दौरान चाँदी सिक्का के भाव पूर्वस्तर 54,000 : 55,000 ७ रुपये प्रति सैकड़ा अपरिवर्तित पर बंद हुए। खेल अखबारों और दूसरे माध्यमों में खेलों को बहुत अधिक महत्व मिलता है। सभी समाचार-पत्रों में खेल के एक या दो पृष्ठ होते हैं और कोई भी टी०वी० तथा रेडियो बुलेटिन खेलों की खबर के बिना पूरा नहीं होता। यही नहीं, समाचार माध्यमों में खेलों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में खेलों पर विशेष लेखन, खेल विशेषांक और खेल परिशिष्ट प्रकाशित हो रहे हैं। इसी तरह टी०वी० और रेडियो पर खेलों के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं। पत्र-पत्रिकाओं में खेल-संबंधी लेखन के लिए आवश्यक बातें
खेल-संबंधी लेखन के कुछ उदाहरण डीआरएस को ‘टेस्ट’ करना चाहते हैं। कोहली फातुल्लाह,एजेंसियाँ गौरतलब है कि नए टेस्ट कप्तान विराट के नेतृत्व में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बांग्लादेश के खिलाफ़ वर्षा-प्रभावित एकमात्र टेस्ट ड्रॉ रहा। तब विराट ने डीआरएस को लेकर कहा, “आपको बैठकर इस प्रणाली की समीक्षा करनी होगी। भारत ही एकमात्र ऐसी टीम है जो लगातार डीआरएस का मजबूती से विरोध करती रही है।” चर्चा का समय है हमारे पास : कोहली ने बांग्लादेश के साथ खत्म हुए टेस्ट मैच का जिक्र करते हुए कहा, “हमें इस मैच के लिए आने से पूर्व बहुत कम समय मिला। अब हमारे पास समय है और मुझे विश्वास है कि इस विषय पर चर्चा होगी।” धोनी का हमेशा यह मानना रहा है कि डीआरएस फुलपूफ नहीं है और इसमें काफी सुधार की जरूरत है। वहीं कोहली का मानना है कि इस विवादित व्यवस्था पर बात की जा सकती है। कोहली ने कहा, “आपको गेंदबाजों से पूछना होगा कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं। बल्लेबाजों से पूछना होगा कि वे क्या सोचते हैं। पिछले साल भारतीय टेस्ट टीम के तात्कालिक कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी डीआरएस पर भारत की सोच में बदलाव के संकेत दिए थे। धोनी ने तब कहा था कि फ़ील्ड अंपायर द्वारा पहल किए जाने के मुकाबले स्वतंत्र तरीके से अंपायर के फैसले को डीआरएस तकनीक द्वारा आँका जाना चाहिए।” सहवाग को छोड़ना होगा दिल्ली का साथ! नई दिल्ली, एजेंसियाँ युवाओं को देना चाहते हैं मौका : सूत्रों के मुताबिक, सहवाग का मानना है कि दिल्ली की बल्लेबाजी लाइनअप में उनके, गौतम गंभीर, मिथुन मन्हास और रजत भाटिया जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के रहते युवाओं के लिए मौके सीमित हैं। ऐसे में यह बेहतर होगा कि वे खुद अपने कैरियर के इस पड़ाव पर युवा खिलाड़ियों को मौका दें। डीडीसीए के साथ संबंध अच्छे नहीं : इस धुरंधर बल्लेबाज के दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के साथ बहुत अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। उन्होंने 2009 में डीडीसीए में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए दिल्ली से हटाने की धमकी भी दी थी। डीडीसीए में पिछले कुछ समय से कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। ऐसे में सहवाग के जाने से स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है। अभी संन्यास का इरादा नहीं : सहवाग फिलहाल इन बातों से खुद को दूर रखते हुए घरेलू सत्र पर ध्यान लगा रहे हैं ताकि उनका कैरियर लंबा खिच सके। हाल ही में सहवाग ने कहा था कि वे अभी संन्यास नहीं लेना चाहते, उनका इरादा अभी दो-तीन साल और खेलने का है। जाफर जाएँगे विदर्भ : दिग्गज ओपनर वसीम जाफ़र ने लगातार हो रही अनदेखी के कारण मुंबई से नाता तोड़ा है। हालाँकि मुंबई टीम के कोच प्रवीण आमरे ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि टीम को जाफ़र की कमी काफी खलेगी। वहीं, विदर्भ के कप्तान सुब्रहमण्यम बद्रीनाथ ने कहा, “कोई भी टीम वसीम जाफ़र जैसे खिलाड़ी को अपने साथ जोड़ना चाहेगी।” शुरुआत में भाग्य का काफी साथ मिला : गावस्कर मुंबई, एजेंसियाँ गावस्कर ने 1971 में वेस्ट इंडीज़ दौरे पर अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की थी। गावस्कर ने कहा, “मैं आज यहाँ सिर्फ़ अपने भाग्य के कारण हूँ। 1971 में वेस्ट इंडीज दौरे पर मेरे साथ कुछ-एक घटनाएँ ऐसी हुई जो इसे साबित करती हैं।” गावस्कर ने कहा, “एक मैच में मैं छह रन के निजी योग पर बल्लेबाजी कर रहा था, तभी मैंने स्क्वॉयर कट मारा और गेंद काफी ऊपर चली गई। लेकिन क्षेत्ररक्षण कर रहे गैरी सोबर्स के सीने पर वह गेंद लगी और मैं बच गया। उसके बाद मैंने अर्धशतकीय पारी खेली। उन्होंने इसी तरह के एक और वाकिये का जिक्र करते हुए कहा, “यह घटना मेरे पहले टेस्ट शतक से जुड़ी है। मैं 94 रन बनाकर खेल रहा था और ऑफ़ स्पिन गेंदबाज पर मैंने फ़ॉरवर्ड की ओर शॉट खेला, गैरी सोबर्स मुझसे ठीक पीछे सटकर खड़े थे। लेकिन मैंने चूँकि फ़ॉरवर्ड की ओर शॉट खेला, वे बायीं ओर फ़ॉरवर्ड शॉर्ट लेग की ओर चले गए। गेंद मेरे ग्लव्स से टकाराई और पीछे की ओर उछल गई। गैरी अगर अपनी पहले वाली जगह ही खड़े रहते तो यह एक साधरण कैच होता।” पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न प्रश्न 1:
प्रश्न 2:
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प्रश्न 4: (क) सानिया मिर्जा के खेल के तकनीकी पहलू उत्तर – अन्य हल प्रश्न अति लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1: प्रश्न
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प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5:
प्रश्न 6:
प्रश्न 7:
प्रश्न 8: प्रश्न 9: प्रश्न 10: प्रश्न 11: प्रश्न 12: प्रश्न 13: प्रश्न 14: प्रश्न 15: स्वयं करें
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NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience विशेष लेखन कैसे लिखा जाता है?सामान्य लेखन का यह सर्वमान्य नियम विशेष लेखन पर भी लागू होता है कि वह सरल और समझ में आने वाला हो । दरअसल, विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्र हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं और मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है।
विशेष लेखन से आप क्या समझते हैं विशेष लेखन कब लिखा जाता है?अखबारों के लिए समाचारों के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों संबंधित घटनाएँ, समस्याएँ आदि से संबंधित लेखन विशेष लेखन कहलाता है। इस प्रकार के लेखन की भाषा और शैली समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।
विशेष लेखन क्या है विशेष लेखन के किन्हीं चार क्षेत्रों के नाम लिखिए?विशेष लेखन के प्रमुख क्षेत्र – अर्थ , व्यापार , खेल , मनोरंजन , विज्ञान-प्रौद्योगिकी , कृषि , विदेश , पर्यावरण , रक्षा , कानून , स्वास्थ्य आदि। विशेष लेखन की भाषा शैली – विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। यह उल्टा पिरामिड या फीचर शैली दोनों में लिखा जाता है यह विषय अनुसार निर्धारित होती है।
विशेष लेखन के क्षेत्र कौन कौन से हैं संक्षेप में लिखें?विशेष लेखन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? संक्षेप में लिखें। आज के समाचार पत्रों में खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवन-शैली और रहन-सहन आदि विषयों पर काफी विशेष लेखन हो रहा है।
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