उद्दालक/ वाजश्रवस उपनिषद् युग के श्रेष्ठ तत्ववेत्ताओं में मूर्धन्य चिंतक थे। ये गौतम गोत्रीय अरुणि ऋषि के पुत्र थे और इसीलिए ‘उद्दालक आरुणि’ के नाम से विशेष प्रख्यात हैं। ये महाभारत में धौम्य ऋषि के शिष्य तथा अपनी एकनिष्ठ गुरुसेवा के आदर्श शिष्य बतलाए गए हैं। इतिहास में आरुणि का पद याज्ञवल्क्य के ही समकक्ष माना जाता है . Show
नचिकेता एक तेजस्वी ऋषि बालक थे। इनकी कथा तैतरीय ब्राह्मण, कठोपनिषद् तथा महाभारत में उपलब्ध होती है। वह कुमार ही था, तथापि वह श्रद्धालु तथा बुद्धिमान था । उसने देखा कि अपने पिताजी सर्वश अर्पण कर रहे है, तो मेरा भी दान किसीको वे करेंगे ही। ऐसा समझ कर उसने अपने पिता से दो-तीन बार पूछा कि “मुझे किसको दोंगे? ” फिर उन्होने भौतिक वस्तुओं का परित्याग किया तथा यम से आत्मा और ब्रह्म विषय पर ज्ञान प्राप्त किया। इस कहानी को जानते है विस्तार से। कठउपनिषद प्रथम अध्याय वाजश्रवा का सर्वमेघ यज्ञ – नचिकेता और यमराज की कहानी एक बार परम सुख की इच्छा करने वाले वाजश्रवा ऋषि ने सर्वमेघ यज्ञ किया और उसमे अपना सब कुछ धन इत्यादि दान में दे दिया। उनका वाजश्रवा नाम इसी दान के कारण पड़ा, अर्थात जो अन्न दान करने में श्रेष्ठ हो। उन वाजश्रवा अर्थात उद्दालक ऋषि का नचिकेता नाम का एक पुत्र था। जिस समय यज्ञ के संपन्न होने पर उनके पिता गायो आदि का दान कर रहे थे। वो ऋषि पुत्र बड़ी श्रद्धा के साथ वहां आया। सभी यज्ञ में पधारे हुए ऋषि दक्षिणायें गायो सहित स्वीकार करके जा रहे थे। तभी नचिकेता कुमार बालक ने देखा कि मेरा पिता जी उन बची हुयी गायों को भी दान में दे रहे है जो चल नहीं सकती, स्वयं घास खाने में असमर्थ है, और बूढी है। और तो और दूध भी नहीं देती है। तो फिर ऐसे दान का क्या फायदा? यह दान तो पुण्य की जगह पाप को फलेगा। अतः उसने अपने पिता को इस पाप से बचाने के लिए पूछा – हे तात! आप मुझे किसे देंगे? इस प्रकार दुबारा और तीसरी बार कहा। दान में अड़चन होने पर ऋषि उद्दालक क्रोधित हो गए और गुस्से से बोले – में तुझे मृत्यु को दूंगा! ( चूँकि वाजश्रवा ऋषि अपने अनुसार कुछ भी गलत
नहीं कर रहे थे क्युकी सर्वमेघ यज्ञ में सभी कुछ दान में दिया जाता है। अंत में वो इन बची हुयी गायो को दान में देकर अपना यज्ञ कर्म संपन्न करना चाहते थे। नचिकेता अपने पिता के वचन सुनकर अपने ही मन में सोचने लगता है। मैं बहुत शिष्यों में पहले रहता हु। तथा बहुतो में मध्यम रहता हु। पर में अधम नहीं हो सकता और इसमें क्या कर्तव्य हो सकता है? जो मेरे दान द्वारा पूरा होगा? (मनुष्य अपने कर्म के अनुसार भोग प्राप्त करता है। अतः अब अगर पिताजी ने मुझे म्रत्युदंड दिया ही है तो उसे भोगना ही होगा। इसका तात्पर्य है कि यह भी पूर्व कर्मानुसार ही होगा। जो भी हो मैं याम के पास जाता हु और वहां में धैर्य से जो होगा उसे देखता हूँ। और वह यम के पास चल पड़ता है।
नचिकेता क अतिथि सत्कार –नचिकेता सीधा शमशान पहुँच कर मृत्यु को ढूंढने लगे. वहां रहने वाले चाण्डाल ने जब एक कुमार बालक को घाट पर देखा पूछा – क्या हुआ घर से नाराज़ हो कर आये हो? किसी ने कुछ कुछ बोला क्या? नचिकेता कहता है – “नहीं” में अपने पिता द्वारा मृत्यु को दान किया गया हु। इसलिए मुझे मृत्यु अर्थात यमराज से मिलना है। चाण्डाल चौक जाता है और काफी समझाता है। लेकिन नचिकेता एक नहीं सुनता। और वह वहां बैठा रहता है। तभी कही से यमदूत ने नचिकेता के पास आकर पूछा की बालक तुम यहाँ क्या ढूंढ रहे हो। यमदूत के पूछने पर नचिकेता ने कहा की मुझे मृत्यु से मिलना है, मेरे पिताजी ने मुझे मृत्यु को दान में दिया है। ऐसा कहकर नचिकेता ने यमदूत से पूछा की आप कौन है। बालक के पूछे जाने पर यमदूत ने कहा मैं यमराज का दूत हूँ। यहाँ मेरा आना जाना लगा रहता है। यमराज मेरे राजा है। तब नचिकेता ने यमदूत से कहा की आप यमराज से कहिये की मैं उन से मिलने आया हूँ। बालक के बात सुनकर यमदूत ने कहा की यमराज अभी अपने महल में नहीं है। वे किसी आवश्यक कार्य से बाहर गए है, तुम अभी अपने घर जाओ। तुम्हारे पिताजी तुम्हारी राह देख रहे होंगे। ऐसा कहने पर नचिकेता ने कहा – की अगर यमराज कही बाहर गए है तो मैं यही बैठ कर उनकी प्रतीक्षा करूँगा। तत्पश्चात तीन दिन तक बिना कुछ खाये-पिए नचिकेता उसी स्थान पर बैठे रहे। तीन दिन बात यमदूत ने हार मानकर यमराज से सारा दृष्टांत कह सुनाया ओर उनसे विनती की के हे प्रभु आप चलकर उस बालक की जिज्ञासा को शांत करे, अन्यथा वह बालक मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। क्योंकि उस बालक ने पिछले तीन दिन से अन्न-जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया है। मृत्यु से मिलने के लिए अन्न जल का त्याग? यमराज के यहाँ एक मनुष्य ब्राह्मण कुमार अतिथि के रूप में आया था। यमराज प्रसन्न होते है उसका आदर करते है और खाने पीने से संतुष्ट करते है। जब अतिथि गृह प्रवेश करता है तब वह साक्षात् अग्नि का रूप होता है। सबसे पहले उसको जल देकर शांत करते है। अतिथि अगर भूखा रहता है तो गृह स्वामी की आशाये और आकांक्षाएं, सत्संग, सत्य और प्रिय भाषण, यज्ञ और उपकार के कार्य, पुत्र और घर के पशु सबको नष्ट कर देता है। तत्पश्चात यमराज ने नचिकेता की धीरज भरी प्रतीक्षा से प्रसन्न होकर नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा। नचिकेता ने कहा की आप मुझे –
यमराज ने कहा ठीक है दे दूंगा – बताओ वरदान क्या है? नचिकेता का पहला वर –नचिकेता अपना प्रथम वरदान यमराज से मांगता है। – हे मृत्यु ! में इन तीन मै से पहला वर यह मांगता हु की मेरा पिता गौतम शांत और प्रसन्न मन वाला तथा मेरे प्रति क्रोध रहित जैसा व्यवहार करने वाला होकर तुझसे अनुज्ञा लेकर जब में तव वह आदर और प्रसन्नता से बोले। यम का पहला वरदान –नचिकेता का यह प्रथम वर सुनकर धर्मराज प्रसन्न और आनंद से यह वरदान दे देते है और कहते है कि – मुझसे अनुमोदित हुआ तेरे पिता औद्दालिक आरुणि तुझसे पहले जैसा वर्ताव करने वाला होगा। हे ब्राह्मण कुमार अब दूसरा बरदान मांगो नचिकेता का दूसरा वर –दूसरे वरदान में नचिकेता ने जानना चाहा कि – हे प्रभु ! स्वर्ग लोक में कुछ भी भय नहीं है। वहां आप (मृत्यु) भी नहीं वहां बुढ़ापे से कोई डरता भी नहीं है। भूख और प्यास से पार है। शोक से दूर स्वर्ग में सभी आनंद प्रसन्न रहते है। हे यमदेव! इसलिए आप स्वर्गप्राप्ति कराने वाली अग्नि को जानते है। स्वर्गलोग में रहने वाले अमरत्व को कैसे प्राप्त करते है? इसलिए आप मुझ श्रद्धालु को उसका उपदेश करे। यम का दूसरा वरदान –हे नचिकेता ! अनंत सुखो को देने वाले, तथा सबके आधार, और स्वर्ग देने वाले अग्नि को यथावत जानने वाला मैं तुझे बतलाता हूँ। मुझसे उस विषय का ज्ञान तुम प्राप्त करो । स्वर्ग देने वाला यह अग्नि मनुष्य की बुध्दि के गुहा में विध्यमान रहता है। और वही से उसको प्रदीप्त करता है। इस अग्नि की उपासना से स्वर्ग प्राप्त होता है। यह अग्नि मनुष्य की बुद्धि में है यह तू जान। इससे अनंत सुखदायक लोको की प्राप्ति होती है। यह अग्नि ही सबका आधार है। सभी मानवीय अभुदय इसी से शक्ति प्राप्त करके सिद्द किये जा सकते है। यह अग्नि सभी लोको का आदि है। इस बुद्धि में रहने वाले अग्नि को तीन बार जिसने प्रदीप्त किया है अर्थात ऋग्वेद, यजुर्वेद, और सामवेद के द्वारा। इन तीन प्रकार में, तीन प्रकारो का कर्म करने से व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है। यमराज ने नचिकेता को इस अग्नि ज्ञान के साथ साथ एक और वरदान दिया कि जिस अग्नि का मेने तुझे ज्ञान दिया है उसे नचिकेताग्नि कहा जायेगा। और जो भी व्यक्ति अपने माता पिता और गुरु को याद कर इस नचिकेताग्नि का नाम लेकर हवन और अध्ययन, अध्यापन और दान ये तीन कर्म करेगा। जो जन्म मृत्यु से परे होगा। और ब्रह्म से उत्त्पन प्रसंशनीय देवो को जानकर पूर्ण-शांति को प्राप्त करता है। यमराज ने नचिकेता को अनेक रूप रंगो वाली माला दी, और कहा की यह माला “ज्ञानतत्वमयि माला” है। न तो यह फूलो की और न ही रत्नो की है। बुद्धि में रहने वाली ज्ञानाग्नि के साथ रहने वाली, तत्व ज्ञान परंपरा को अवाधित रखने वाली यह ज्ञान माला है। जिसे नचिकेता ने धारण किया। हे नचिकेता! अब तू अपना तीसरा वर मांग। नचिकेता का तीसरा वर –नचिकेता तीसरा वर मांगता है – मनुष्य की मृत्यु होने पर जो यह संदेह होता है कि कई कहते है कि – “यह है” और कई कहते है – “यह नहीं है “. आपके द्वारा ज्ञान प्राप्त करके में यह सच जानना चाहता हूँ? यम ने कहा – देवो ने भी इस विषय पहले संदेह किया था लेकिन यह जानना इतना आसान नहीं है। यह अति सूक्ष्म ज्ञान है। हे नचिकेता ! कोई अन्य वर मांग। मेरे ऊपर दवाब न डाल। इस वर को छोड़ दे। नचिकेता कहता है — हे मृत्यो यम ! जिस कारण देवो ने भी संदेह किया था और आप भी कहते है की उसको जानना सुबोध नहीं है। तो फिर इस विषय का उपदेश करने वाला आपसे भिन्न मुझे दूसरा मिलने वाला कोई नहीं है। इसलिए प्रभु ! मुझे इसके अलावा कोई दूसरा वर नहीं चाहिए। यमराज सोचते है की अगर जो व्यक्ति ज्ञान का अधिकारी नहीं है उसको ज्ञान दिया जाए तो उसका नाश हो जाता है। यह सोचकर यमराज उसे प्रलोभन देकर उसकी परीक्षा लेते है। यमराज के द्वारा नचिकेता को प्रलोभन –यम कहते है — सौ सौ वर्ष की आयु वाले पुत्र और पौत्र मांग। बहुत से पशु मांग, हाथी, सोना, घोड़े इत्यादि मांग ले। और तू उतने वर्ष जीवित रह जितना तो जीना चाहता है। यदि तू इसके सामान कोई दूसरा वर चाहता है तो उसको मांग। धन और दीर्घ आयु मांग ले। नचिकेता ! तू विस्तृत भूमि पर राज्य कर। में तुझे सारी कामनाओं का भोग करने वाला बनाता हु। जो-जो भोग इस मृत्युलोक में दुर्लभ है तू उन सबको मांग। जैसे की सुन्दर स्त्रियाँ, रथ, बाज के समान दास प्राप्त कर और उनसे अपनी सेवा करा। लेकिन मृत्यु के बारे में कुछ मत पूछ। भोगो का अल्प सुख –नचिकेता कहता है –हे मृत्यु यम ! मानव की सब इन्द्रियों में जो तेज़ रहता है , उस तेज़ को ये सब भोग जीर्ण और क्षीण करते है। फिर चाहे जीवन कितना भी लम्बा हो तो भी वह सब कुछ अल्प ही है। सो आप अपने घोड़े और नृत्य गीत अपने पास ही रखे। मनुष्य धन से तृप्त नहीं हो सकता। तेरा दर्शन होने पर मुझे धन जितना चाहे उतना मिलेगा। जितना तू चाहेगा उतना हम जियेंगे। लेकिन मेरा वर तो वही एक ही है। क्युकी भूमि पर नीचे रहने वाला जीर्ण और क्षीण होने वाला तथा मरने वाला मानव, क्षीण न होने वाले देवो के पास जाकर और ज्ञान प्राप्त करके, रंग रूप के भोगो का आनंद करता हुआ। इसे अतिदीर्घ जीवन में भला कौन आनंद मान सकता है? हे यम! जिसके विषय में सब संदेह करते है। और जिन्हे ज्ञान है वे देवता दूर के परलोक में है। इसलिए उस विषय पर मुझे ज्ञान दे। जो यह गूढ़ स्थान में प्रविष्ट होकर गुप्त रहने वाला वर है , उससे भिन्न किसी दूसरे वर को नचिकेता नहीं मांगता। (29 ) ——————प्रथमाध्याय में प्रथमवल्ली समाप्त —————— प्रथम अध्याय यम कहते है — श्रेय अर्थात कल्याण करने वाली वस्तु भिन्न है और प्रिय लगने वाली वस्तु उससे विभिन्न ही है। ये दोनों वस्तुए पुरुषो को बांध देती है। लेकिन उनमे से श्रेय वस्तुओं को धारण करने वाले व्यक्ति का भला होता है और जो प्रेय धारण करता है वो अपने उदेश्य से नीचे गिरता है। श्रेय और प्रेय दोनों मनुष्य के पास आते है। इनका विचार करके मनुष्य उनमे से किसी एक को चुनता है और पसंद करता है । बुद्धिमान पुरुष श्रेय को प्रेय से अधिक पसंद करते है। लेकिन मंदबुद्धि व्यक्ति हमेशा योगक्षेम चलाने के हेतु से प्रेय को ही स्वीकार करता है। हे नचिकेता ! तूने अच्छी तरह से विचार करके प्रिय और प्यारे दीखने वाले भोगो को छोड़ दिया है। तथा जिनमे बहुत से मनुष्य डूबते है ऐसे द्रव्य की माला का भी स्वीकार नहीं किया है। यह तूने बहुत अच्छा किया। (यमराज प्रसन्न होते है क्युकी नचिकेता ने परीक्षा पास कर ली थी) तब यमराज ने नचिकेता को आत्म ज्ञान का अधिकारी मान उसे आत्मज्ञान सुनाना आरम्भ किया। यमराज-नचिकेता संवाद का वर्णन संक्षिप्त में… नचिकेता प्रश्न : किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन? नचिकेता प्रश्न : क्या आत्मा मरती या मारती है? नचिकेता प्रश्न : कैसे हृदय में माना जाता है परमात्मा का वास? नचिकेता प्रश्न : क्या है आत्मा का स्वरूप? नचिकेता प्रश्न : यदि कोई व्यक्ति आत्मा-परमात्मा के ज्ञान को नहीं जानता है तो उसे कैसे फल भोगना पड़ते हैं? नचिकेता प्रश्न : कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं? नचिकेता प्रश्न : आत्मा निकलने के बाद शरीर में क्या रह जाता है? नचिकेता प्रश्न : मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं? नचिकेता प्रश्न : क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप? नचिकेता प्रथम वर के रूप में क्या मांगता है?उन्होंने नचिकेता से तीन वर मांगने को कहा। नचिकेता ने प्रथम वर यही मांगा कि उसके लौटने पर उसके पिता क्रोधरहित, शांतचित्त और सर्वथा संतुष्ट हो जाएं। उसने दूसरा वर स्वर्ग के साधनभूत अग्निविद्या के ज्ञान का मांगा। यमराज ने तब उसे अग्निविद्या का विस्तृत उपदेश देकर तीसरा वर मांगने को कहा।
नचिकेता के पिता कौन हैं?वाजश्रवा नाम के ऋषि की संतान थे नचिकेता। वाजश्रवा ने एक यज्ञ का आयोजन किया, यज्ञ की समाप्ति पर वो ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को दान दे रहे थे।
नचिकेता यमराज से कितने वर मांगा?यमराज ने नचिकेता के पिता की आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए कहा। तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था।
नचिकेता ने दूसरा और तीसरा वर क्या माँगा?दूसरे वरदान में नचिकेता ने जानना चाहा कि क्या देवी-देवता स्वर्ग में अजर एवं अमर रहते हैं और निर्भय होकर विचरण करते हैं! तब यमराज ने नचिकेता को अग्नि ज्ञान दिया, जिसे नचिकेताग्नि भी कहते हैं। तीसरे वरदान में नचिकेता ने पूछा कि 'हे यमराज, सुना है कि आत्मा अजर-अमर है। मृत्यु एवं जीवन का चक्र चलता रहता है।
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