इस पर नाराज गाँव वालों ने कहा —‘अगर तुम निर्दोष हो ,अगर तुम निरपराध हो ,अगर तुम सच्चे हो तो फिर कौन गायों का दूध निकालकर ले जाता है –बताओ ! देखो भई ! इस सारे मामले में दोष तुम्हारा ही बनता है | अब यह जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही है कि खुद को निर्दोष साबित करो और दूध चुरानेवाले को हमारे सामने लाकर खड़ा करो | Show चरवाहे थे तो बिल्कुल निरपराध ,निर्दोष | मगर मामला उन्हें ही सुलझाना था | उन्हें इस बात की चिन्ता सताने लगी कि इस झूठे आरोप से कैसे मुक्ति पाई जाये ? कैसे गाँव वालों को अपने निर्दोष होने का विश्वास दिलाया जाये ? ग्वालों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और निर्णय किया कि सभी ग्वाले गाय चराते समय पूरी तरह से सजग व सतर्क रहेंगे | एक दिन अचानक ग्वालों ने देख की गायें इधर-उधर चरती रहीं तो कुछ नहीं हुआ लेकिन जैसे ही टीले के ऊपर एक स्थान विशेष पर पहुँची तो उनके थानों से दूध स्वत:ही चुने लगा | कुछेक गायों के थनों से तो बाकायदा दूध की धार ही बहने लगी | जैसे ही गायें उस स्थान विशेष से अलग हटीं उनके थनों से दूध टपकना बन्द हो गया | इस अनोखी घटना को देख सभी चरवाहे हतप्रभ रह गये | यह महान आश्चर्यजनक घटना थी | चकित ग्वालों को एक बात की तो तसल्ली हो गयी कि अब उनपर लगा दूध चोरी का लांछन हट जायेगा | शाम को लोटकर चरवाहों ने गाँवमें गायों के मालिकों से उक्त घटना के बारे में बताया तो सभी ने उनकी इस बात को मानने से इंकार कर दिया | गाँव वालों ने ग्वालों से कहा —‘तुम एक झूठ को छिपाने के लिये अब दूसरा झूठ बोल रहे हो | ऐसी मनघडंत कहानी किसी और को सुनाना | हम क्या तुम्हें इतने मुर्ख दिखाई देते हैं कि तुम्हारी इस बेसिर-पैर की कहानी को सच मान लेंगे | चुपचाप असली बात बताओ ,नहीं तो तुम्हारे हक में अच्छा नहीं होगा |’ ग्वालों ने गोपालकों को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मामला ढ़ाक के तीन पात वाला साबित हुआ | गौपालक उनकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे | अन्त में काफी बहस के बाद तय हुआ कि अगले दिन ग्वालों के साथ गोपालक भी जायेंगे और घटना की सत्यता की स्वयं जाँच करेंगे दुसरे दिन गायों के साथ ग्वाले व गाँव वाले भी टीले की ओर चल पड़े | टीले के पास गायों को चरने के लिये छोड़ दिया गया | गायें टीले पर इधर-उधर बिखर गयीं | ग्वालों के साथ ही उत्सुक गाँव वाले भी पेड़ों की छावं में बैठ गये | काफी देर के इंतजार के बाद गाँव वालों ने अपनी आँखों से उस चमत्कार को अपने सामने होते देखा ,जिसके बारे में चरवाहों ने उन्हें बताया था | टीले के स्थान विशेष पर पहुँची कुछ गायों के थानों से स्वत: ही दूध टपकने लगा | बाद में कुछ गायों के थानों से दूध की धार भी बहते देखी | गाँव वालो को ग्वालों की बात पर विशवास हो गया था ,उन्होंने ग्वालों से क्षमा मांगी और उन्हें गाँव में पहुँच कर सबके सामने दोषमुक्त कर दिया | इस विचित्र चमत्कारी घटना की खबर जंगल में आग की तरह आस-पास के तमाम क्षेत्रों में फैल गई | हर तरफ यही चर्चा हो रही थी —‘क्या कारण है की स्थान विशेष पर गायों के पहुँचने पर दूध की धार स्वत: गिरने लगती है |’ अदभुत दैवी रहस्य:- गाँव वालों ने फैसला किया की उस स्थान की खुदाई करके इस अदभुत दैवी रहस्य से पर्दा उठाया जाये | उधर कोट नामक गाँव में उच्चकोटि के ,दसनामी जूना अखाड़े के एक जटिल सन्यासी सिद्ध महात्मा को स्वप्न मे भगवान् शिव ने दर्शन देकर इस महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने का आदेश दिया | भगवान् शंकर के आदेश का पालन करते हुए सिद्ध संत शिष्यों सहित इस पावन स्थल पर पहुँच गये | खुदाई का काम शुरू हुआ ,शीघ्र ही एक जलहरी और एक दिव्य शिवलिंग द्रष्टिगोचर हुआ | गाँव वाले इस अदभुत शिवकृपा से अभिभूत थे | इस दिव्य स्थान पर जल स्रोत भी होना चाहिए —ऐसा बुजुर्गों ने विचार किया | खुदाई करने पर पास ही एक अनोखा कुआं निकला | जिसका जल कभी गंगाजल जैसा ,कभी दूध जैसा सफ़ेद तो कभी मीठा होता था | यह कुआँ आज भी सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में विधमान है | भारतीय परिप्रेक्ष्य में एक धार्मिक समूह की उत्पत्ति प्रायः मठ में होती है। यहाँ प्रस्तुत संदर्भ में इसका अर्थ होगा- चामत्कारिक व्यक्ति तथा / अथवा समूह का ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने / नकारने तथा मानव के सामाजिक अस्तित्व के अर्थ से जुड़ा विचार दृष्टिकोण इस परिदृश्य के अनुसार ईश्वरीय अस्तित्व को नकारने वाला बौद्ध धर्म भी एक मठ है बौद्ध मठ ।
मार्ग (रास्ता ) क्या है
मठ-मार्ग से संप्रदाय
संघ (Sangh) { संघ क्या होते हैं }
संघ की संरचना
संघ का विस्तार
1) संगठन (Organisation) :
2) संघ और समाज
3 मठ (Mats )
मठ क्या होते हैं
मठं के तीन उद्देश्य हैं:(1) इसका प्रथम उद्देश्य आध्यात्मिक है इसके द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक ज्ञान को परिभाषित करना, बनाए रखना व इसका प्रचार करना। इस कार्य के लिए यह आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचारकों के शिक्षण तथा नियुक्ति के लिए संस्थागत साधनों की संरचना करता है। (2) यह दार्शनिक नैतिक मूल्यों को मनुष्यों में उजागर करने का प्रयास करता है। जिसका मुख्य उद्देश्य परिवार, राजनीति तथा समाज में व्यक्तिक चरित्र का पुनःस्थापन है। (3) परोपकारी सामाजिक कार्यों का संगठन तीसरा उद्देश्य है। इसमें दवाखानों तथा चिकित्सालयों, शैक्षणिक संस्थाओं व संस्कृत पाठशालाओं का संचालन सम्मिलित है। अपने आध्यात्मिक उद्देश्य के अनुसरण के लिए मठ बहुधा पुस्तकों तथा पत्रों के प्रकाशन के लिए मुद्रण की व्यवस्था भी करता है। यह शिक्षण तथा अनुसंधान के लिए पुस्तकालय भी बनाता है।
4 पंथ (Panth)
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