Non-Stick Pan Side Effects: नॉन स्टिक बर्तनों में खाना पकाना है खतरनाक, कैंसर समेत हो सकती हैं ये बीमारियां Show सरसों के तेल को प्राकृतिक औषधि माना जाता है। इसके उपयोग से त्वचा की सतह पर रक्त प्रभाव बढ़ाने में मदद मिलती है। साथ ही अकड़न और दर्द में राहत मिलती है। इसके लिए सरसों के तेल में लहसुन की दो कलियां डालकर हल्का गुनगुना गर्म (नाममात्र) कर लें। अब गुनगुने तेल से हाथों और पैरों की अच्छी तरह मालिश करें। इससे ऐठन कम होती है और दर्द में राहत मिलती है। साथ ही लहसुन के तेल से पीठ दर्द, गर्दन दर्द, घुटने के दर्द में आराम मिलता है । High Cholesterol Symptoms: शरीर में नजर आने वाले ये लक्षण करते हैं हाई कोलेस्ट्रॉल की ओर इशारा यह भी पढ़ेंअदरक का इस्तेमाल करें आयुर्वेद में अदरक को औषधि माना जाता है। डॉक्टर्स हमेशा बदलते मौसम और कोरोना महामारी के दौरान इम्यून सिस्टम मजबूत करने के लिए अदरक युक्त काढ़ा और चाय का सेवन करने की सलाह देते हैं। अदरक सूजन विरोधी रूप में कार्य करता है और रक्त परिसंचरण और रक्त प्रवाह को बेहतर बनाता है। इसके सेवन से मांसपेशियों के दर्द में भी आराम मिलता है। एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि मांसपेशियों के दर्द में अदरक का सेवन फायदेमंद होता है। इसके लिए अदरक को पेन किलर भी कहा जाता है। Vertigo Problem: नामुमकिन नहीं वर्टिगो से छुटकारा पाना, बस इन बातों का रखें खास ध्यान यह भी पढ़ेंसेब का सिरका का यूज करें हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो मांसपेशियों के दर्द को दूर करने में सेब का सिरका भी गुणकारी है। इसके लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच सेब का सिरका मिलाकर पीने से काफी आराम मिलता है। सेब के सिरके में पोटैशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो मांसपेशियों के दर्द और ऐठन को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। इसके अलावा, आप बर्फ के टुकड़ों का भी उपयोग कर सकते हैं। Custard Apple Benefits: शरीफा खाने से मिलते हैं जबरदस्त फायदे, दूर हो सकती हैं ये बीमारियां यह भी पढ़ेंडिस्क्लेमर: स्टोरी के टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें। दर्द या पीड़ा स्नायु तंत्र में वह सामान्य संवेदना है जिसकी शुरुआत आपको किसी भी संभावित चोट तथा अपनी देखभाल के प्रति सतर्क करने के लिये होती है। आमतौर पर भयंकर दर्द अचानक बीमारी, अग्नि, या ऊत्तकों के चोटिल होने से से होता है। भयंकर दर्द के कारण का निदान एवं उपचार प्राय: कर लिया जाता है और दर्द किसी समयावधि या कठोरता में परिरुद्ध होता है। पुराना दर्द कभी समाप्त नहीं होता है- यह भयंकर दर्द की तुलना में लंबे समय तक रहता है और अधिकतर चिकित्सा उपचारों के प्रतिरोधी क्षमता वाला होता है। आरंभिक दर्दनाक दुर्घटना के बाद दर्द के संकेत सप्ताहों, महीनों और वर्षों तक संकेत देते रहते हैं। दर्द को कोई मौजूदा कारण हो सकता है जैसे कि - सा कैंसर, कान में संक्रमण आदि आदि। यह अलग बात है कि लोगों को पुराना दर्द पूर्व की किसी चोट या शारीरिक नुकसान के अभाव में भी होता है। पुराने दर्द को आमतौर पर लकवे से जोड़ा जाता है। देखा जाये तो दर्द एक जटिल परिभाषा है जो व्यक्तियों के अनुसार बदलती है यहां तक कि पहचानयोग्य चोट या रुग्णता वाले लोगों में भी। लकवाग्रस्त लोगों में आमतौर पर न्यूरोजेनिक दर्द (यह शरीर में नसों या मेरूरज्जु या स्वयं मस्तिष्क के चोटिल होने के परिणामस्वरूप) होता है। पुराने दर्द के इलाज में चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, स्थानीय इलेक्ट्रिक्ल स्टिमयुलेशन या प्रेरण, ब्रेन स्टियुमिलेशन तथा शल्य क्रिया शामिल है। साइकोथेरेपी, रिलेक्सेशन एवं मेडिकेशन थेरेपीज, बायोफीडबेक तथा व्यवहार में सुधार को भी अपनाया जा सकता है। दर्द प्रबंधन का उद्देश्य व्यक्तियों की कार्यप्रणाली में सुधार करना है ताकि वे काम कर सकें, स्कूल जा सकें या अन्य दैनदिंनी कार्यों में भाग ले सकें। सबसे आम इलाजों में से निम्न हैं : एक्यूपंक्चर चीन से सम्बद्ध लगभग 2,500 साल पुरानी विधा है। इसमें इलाज के लिये शरीर के हिस्से विशेष में सुईयों का इस्तेमाल किया जाता है। एक्यूपंक्चर भले ही विवादास्पद रही हो लेकिन लोकप्रिय भी है और जिस तरह से इसका प्रसार हो रहा है, यह एक दिन उपयोगी साबित हो सकती है। सीजर डिसआर्डर्स के इलाज के लिये एंटीकोंवूसलेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन कई बार इसका इस्तेमाल दर्द के इलाज के लिये भी किया जाता है। विशेषकर कार्बामेजेपाइन का इस्तेमाल अनेक तरह के दर्द के इस्तेमाल में किया जाता है जिसमें ट्राइजीमिनल न्यूरालाजिया भी शामिल है। दर्द निवारक दवा के रूप में एक अन्य एंटीएलोपेथिक दवा, गाबापेंटिन का अध्ययन किया जा रहा है। यह विशेषकर न्यूरोपेथिक दर्द के लिये है। एंटीडिपरेसेंटेस का इस्तेमाल भी कई बार दर्द के इलाज में किया जाता है। इसके अतिरिक्त एंटी एनेक्सिटी दवाओं जिन्हें बेंजोडाइजेपाइंस कहा जाता .. का इस्तेमाल भी कई बार मांसपेशियों को राहत देने तथा दर्दनिवारक के रूप में किया जाता है। बायोफीडबैक का इस्तेमाल अनेक तरह के सामान्य दर्द के इलाज के लिये किया जाता है। इसमें विशेष इलेक्ट्रानिक मशीन का इस्तेमाल करते हुए रोगी को इसके लिये प्रशिक्षित किया जाता है कि वह मांसपेशी तनाव, ह्रदय दर एवं त्वचा तापमान आदि कुछ शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण करना सीखे। इसके बाद व्यक्ति अपने दर्द के प्रति अपने प्रत्युत्तर के प्रभावों को बदलने में सक्षम हो जाता है, उदाहरण के रूप में रिलेक्सेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए। कैपेसइसिन एक रसायन है जो चिली पीपर्स में पाया जाता है। इसका इस्तेमाल भी दर्दनिवारक क्रीम में तत्व के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। किरोप्रेक्टिक का मतलब मेरू की हाथ से मसाज से है जो सामान्यत: पीठ दर्द में इस्तेमाल की जाती है। यह कम विवादास्पद नहीं है। किरोप्रेक्टिक पीठ के दर्द के इलाज के लिये उपयोगी है। उन लोगों के लिये जिनके विकट या भयंकर पीठ दर्द नहीं हो, इस थेरेपी के मसाज वाली बात का इस्तेमाल करते हुए दर्द से राहत दिलाई जा सकती है। काग्नीटिव- बिहेवियरल थेरेपी में अनेक तरह की युक्तियां शामिल होती हैं जिनमें लोगों को दर्द के लिये और दर्द सहने के लिये तैयार किया जाता है। दर्द से तड़प रहे व्यक्ति के लिये परामर्श या काउंसलिंग से बढिया कोई मदद हो ही नहीं सकती भले ही यह परिवार, समूह या व्यक्तिगत परामर्शक से मिले। सहयोगी समूह दवा एवं शल्यचिकित्सा को एक महत्वपूर्ण सहयोग उपलब्ध करा सकते हैं। काक्स-2 इनहिबीटर्स ('सुपरएस्प्रींस') ननस्टीरियोडल एंटी-इन्फलेमेटरी ड्रग (एन एस ए आई डी) दो एंजाइमों, साइक्लूएक्जीनेस-1 ओर साइक्लूएक्जीनेस-2 को अवरूद्ध करते हुए काम करती है। ये दोनों एंजाइम प्रोस्टेग्लेडाइंस नामक हारमोन का उत्पादन बढाते हैं जो जलन, बुखार एवं दर्द का कारण बन जाता है। नई दवा, कोक्स-2 इनहीबिटर्स, मुख्य रूप से साइक्लूएक्जीनेस-2 को बंद करता है और इसके गेस्ट्रोइंस्टेटाइनल साइड इफेक्टस की संभावना कम होती है जो सामान्यत: एनएसएआईडी द्वारा उत्पादित हैं। वर्ष 1999 में खाद्य एवं दवा प्रशासन ने दो काक्स-2 इनहिबीटर-रोफेकोएक्सीब (वियोएक्सएक्स) तथा (सेलेबरेक्स) को मंजूरी दी थी। इलेक्ट्रिक्ल प्रेरण में ट्रांसक्युटेनियस इलेक्ट्रिक्ल स्टीम्युलेशन (टीईएनएस) शामिल है, इलेक्ट्रिक नर्व स्टीम्युलेशन इंपलांट करता है तथा डीप ब्रेन या मेरू रज्जु प्रेरण। यह वर्षों पुरानी तकनीक का आधुनिक रूप है जिसमें मांसपेशियों की नसों को विभिन्न तरह के प्रेरण दिये जाते हैं जिनमें मसाज एवं गर्मी शामिल है। इलेक्ट्रिक्ल प्रेरण सभी के लिये नहीं है और न ही यह 100 प्रतिशत प्रभावी है। निम्न में से प्रत्येक तकनीक के लिये विशेषज्ञ उपकरणों तथा व्यक्तिगत प्रशिक्षण का इस्तेमाल किया जाता है :
सम्मोहन जिसे 1958 में पहली बार चिकित्सकीय इस्तेमाल के लिये मंजूरी दी गई, लगातार लोकप्रिय हो रहा है- विशेषकर दर्द दवा के सहायक के रूप में। सामान्य रूप से सम्मोहन का इस्तेमाल शारीरिक क्रियाविधि या प्रत्युत्तर के नियंत्रण के लिये किया जाता है। इसमें भी मामला, दर्द की मात्रा तथा व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। स्नायु तंत्र में रसायनों पर काम करते हुए सम्मोहन दर्दनिवारक का काम कर सकता है, यह स्लो कर देता है। शारीरिक (फिजिक्ल) थेरेपी एवं स्वास्थ्य लाभ इलाज की एक प्राचीन विधा है। इसमें इलाज की कुछ शर्तों में शीत, उष्मा, व्यायाम, मसाज आदि शारीरिक तकनीकों एवं प्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है। इनका इस्तेमाल शारीरिक गतिविधियों को बढाने, दर्द पर नियंत्रण करने तथा रोगी के शीघ्र स्वस्थ होने के लिये किया जा सकता है। शल्यक, शल्य क्रिया या सर्जरी : राइजोटोमी सहित अन्य तरह के दर्द के लिये आपरेशन किया जाता है जहां मेरूरज्जु के निकट की नसें काटी जाती हैं। इसी तरह कोर्डोटामी में मेरूरज्जु के भीतर ही नसों के समूह का विच्छेदन किया जाता है। कोर्डोटामी का इस्तेमाल सामान्यत: सिर्फ टर्मिनल कैंसर के इस्तेमाल के लिये किया जाता है जिसमें अन्य इलाज का फायदा नहीं होता है। दर्द के लिये अन्य आपरेशनों में 'डोरसल रूट एंट्री जोन आपरेशन' या डीआरईजेड है जिसमें रोगी के दर्द की जानकारी देने वाली मेरू न्यूरांस को शल्यक के माध्यम से नष्ट किया जाता है। कई बार इलेक्ट्राड का इस्तेमाल करते हुए भी शल्य क्रिया की जाती है जिसमें मस्तिष्क के लक्षित क्षेत्र में न्यूरांस को चुनिंदा ढंग से नुकसान पहुंचाया जाता है। उक्त सब प्रक्रियाओं से लंबे समय तक दर्द से राहत कभी कभार ही मिलती है। लेकिन यह फैसला तो रोगी एवं चिकित्सक को ही करना होता है कि खर्च एवं जोखिम के हिसाब से शल्यक प्रक्रिया उचित होगी या नहीं। अनुसंधान : वैज्ञानिकों का मानना है कि न्यूरोसाइंस में और प्रगति से आने वाले वर्षों में पुराने या क्रोनिक दर्द के और बेहतर इलाज सामने आयेंगे। क्लीनिक्ल जांचकर्ताओं ने क्रोनिक दर्द के रोगियों की जांच की है और पाया है कि उनके मेरू द्रव में प्राय: सामान्य से कम स्तर में इंडोरफिंस होता है। एक्युपंक्चर की जांच में नसों के प्रेरण के लिये सूइयों की वायरिंग शामिल है जिसे इलेक्ट्रोएक्युपंक्चर कहा जाता है। कुछ अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि इससे इंडोर्फिन प्रणाली सक्रिय होती है। एक्युपंक्चर के साथ अन्य प्रयोग दर्शाते हैं कि एक्युपंक्चर के बाद सेरेब्रोस्पाइनल द्रव में इंडोर्फिन्स का स्तर बढ जाता है। इसके अलावा अनुसंधानकर्ता क्रोनिक दर्द के अनुभाव पर तनाव के प्रभाव का असर भी कर रहे हैं। केमिस्ट नई दर्दनिवारक दे रहे हैं और दवाओं में ऐसे दर्दनिवारकों की खोज कर रहे हैं जो सामान्यत: दर्द निवारण के लिये नहीं होती हैं।दर्द निवारण के अनुसंधान में वे वैज्ञानिक आगे हैं जिन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ (एनआईएच) का समर्थन प्राप्त है, इसमें एनआईएनडीएस शामिल है। इस दिशा में शोध का समर्थन करने वाले एनआईएच के अन्य संस्थानों में नेशनल इंस्टीट्यूट आव डेंटल एंड क्रेनियोफेसियल रिसर्च, द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, द नेशनल इंस्टीट्यूट आव नर्सिंग रिसर्च, द नेशनल इंस्टीट्यूट आन ड्रग एब्यूज तथा नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ शामिल हैं। कुछ दर्द चिकित्सा में रोगी की दर्द की अहसास को मंद कर दिया जाता है। ऐसी दवाओं में से एक मार्फिन है। यह शरीर की प्राकृतिक दर्द निवारण मशीनरी के माध्यम से काम करती है और दर्द के संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचने में रोकती है। वैज्ञानिक मोर्फिन जैसी दवा के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं जिसमें मोर्फिन की दर्द-मारक गुणवत्ता तो होगी लेकिन उसके नकारात्मक साईड इफेक्ट नहीं होंगे जैसे कि इसकी आदत पड़ जाना या सिडेशन। इसके अलावा मोर्फिन लेने वालों में यह भी देखने को मिलता है कि एक समय के बाद उन्हें दर्द निवारण के लिये अधिक मात्रा में मोर्फिन की जरूरत महसूस होती है यानी उसी मात्रा में मोर्फिन उनके लिये काम नहीं करती वे उसके आदि हो जाते हैं। अध्ययनों में इसके कारणों की पहचान की गई है, इस दिशा में अनुसंधान जारी है और परिणामस्वरूप रोगियों को कम मात्रा में ही मोर्फिन की आवश्यकता पडे़, यह संभव है। दर्द के संकेतों को रोकना या अवरूद्ध करना, विशेषकर जब कोई चोट या ऊत्तकों को आघात नहीं हो, दर्द निवारण चिकित्सा के विकास में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। दर्द की मूल प्रणाली या मैकेनिज्म की बेहतर समझ से भविष्य की दवाओं के विकास का आधार मजबूत होगा। मांसपेशियों में दर्द कैसे खत्म करें?अदरक का इस्तेमाल करें
अदरक सूजन विरोधी रूप में कार्य करता है और रक्त परिसंचरण और रक्त प्रवाह को बेहतर बनाता है। इसके सेवन से मांसपेशियों के दर्द में भी आराम मिलता है। एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि मांसपेशियों के दर्द में अदरक का सेवन फायदेमंद होता है। इसके लिए अदरक को पेन किलर भी कहा जाता है।
कौन सा विटामिन मांसपेशियों में ऐंठन को ठीक करने में मदद करता है?पोटेशियम मसल्स के विकास में मदद करता है। इसकी कमी के कारण भी मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है। साथ ही इनमें विटामिन ए भी होता है। आप इनका सेवन गैस पर या ओवन में भून करके भी कर सकते हैं।
मांसपेशियों में जकड़न के लिए कौन सी दवा?मांसपेशियों की जकड़न में आराम के लिए पेपरमिंट और लेमनग्रास ऑयल दो सबसे प्रभावी आवश्यक तेल हैं. शोधों से पता चलता है कि ये तेल सूजन को कम करते हैं, दर्द से राहत देते हैं और ठंडा प्रभाव भी डालते हैं. हल्दी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला रासायनिक यौगिक है जिसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं.
मांसपेशियों में दर्द के लिए कौन सी दवा लें?मांसपेशियों में दर्द से राहत दिलाने में एप्पल साइडर विनेगर भी बहुत कारगर है। एक गिलास पानी में एक चम्मच एप्पल सिडर विनेगर मिलाकर पी लें या फिर इसे सीधा प्रभावित हिस्से पर लगाएं। एप्पल सिडर विनेगर में एलकेलाइन गुण होते हैं और ये सूजन-रोधी होता है जिससे मांसपेशियों में दर्द और सूजन कम होती है।
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